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गुजरात: क्या OBC चेहरे के सहारे पार होगी कांग्रेस की डूब रही नैय्या?

गुजरात में अमित चावड़ा को पूरी तरह से तबाही की कगार पर खड़ी कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी मिली है.

अमित चावड़ा (बीचीबोच) 22 जुलाई को गुजरात प्रदेश कांग्रेस का दायित्व संभालते हुए
अपडेटेड 11 सितंबर , 2025

अप्रैल 2025 में राहुल गांधी ने कहा था कि गुजरात में कांग्रेस बरात के घोड़े को रेस में और रेस के घोड़े को बरात में भेज देती है. उनके इस बयान की काफी चर्चा हुई थी. मगर कोई आलोचक तीखा तंज कस सकता है कि असल में कांग्रेस के पास काफी वक्त से रेस का घोड़ा यानी मुकाबला करने वाला कोई नेता ही नहीं बचा, और जो थे भी वे पार्टी छोड़कर भगवा खेमे में चले गए.

वाकई कांग्रेस के लिए यह बात पूरी तरह से सही है और यह इस सबसे पुरानी पार्टी का सबसे बड़ा सिरदर्द भी है. खैर, राहुल के इस प्रतीकात्मक उल्लेख ने पार्टी के पुनरुद्धार की दिशा तय कर दी—और यह राज्य में उसकी अनगिनत कोशिशों में शामिल है जहां वह 20वीं सदी से सत्ता से बाहर है.

उसके तीन महीने बाद, पार्टी के इस पुनर्गठन की लहर में राज्य कांग्रेस की कमान एक बार फिर ओबीसी नेता और पांच बार के विधायक 49 वर्षीय अमित चावड़ा को सौंप दी गई. चावड़ा ने 2018 से 2021 के दौरान अपनी इसी भूमिका में कुछ उम्मीदें जगाई थीं.

उनकी यह वापसी कई मायनो में इसी सोच को दिखाती है कि पार्टी अब सबसे पहले वैचारिक मजबूती पर जोर देना चाहती है और जड़ों से जुड़कर वापसी करना चाहती है. ठीक घास की तरह जो पहले जमीन से जुड़ती है और फिर चारों-तरफ फैलती है. पार्टी जमीन से कटे दिखावटी नेताओं को बढ़ावा देना नहीं चाहती जो हल्की-सी हवा में भी उड़ जाते हैं.

यह किसी रेगिस्तान को हरा-भरा करने सरीखा बेहद मुश्किल काम है क्योंकि चावड़ा को पूरी तरह से तबाही की कगार पर खड़ी पार्टी की जिम्मेदारी मिली है. जुलाई में जब उन्होंने राज्यसभा सांसद शक्तिसिंह गोहिल से पार्टी की कमान अपने हाथ में ली तो उस समय पार्टी दशकों की निराशा और हताशा में डूबी हुई थी. जून में दो उपचुनावों में मिली हार के बाद गोहिल ने इस्तीफा दे दिया था. एक सीट पर तो उसे अपनी सबसे बड़ी विरोधी भाजपा से हार का सामना करना पड़ा, तो शर्मनाक बात यह कि दूसरी सीट पर उसे नए दावेदार आम आदमी पार्टी ने हरा दिया. 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से तारी गहरी मायूसी के दौर को इसने चरम पर पहुंचा दिया.

कांग्रेस ने 1985 के बाद साल 2017 में अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया और 77 सीटें तथा कुल वोट का 41.4 फीसद हासिल किया था. मगर उसके बाद 182 सीटों वाले सदन में वह कुल सीटों के दसवें हिस्से यानी 17 विधायकों तक सिमट गई और इसकी वोट हिस्सेदारी भी घटकर 27.2 फीसद हो गई. उसके बाद उसकी हालत और खराब हो गई और उसकी सीटें घटकर 12 हो गईं. आखिर कैसे? वही चिर-परिचित चोट: उसके पांच विधायक भाजपा में चले गए. यह उसके लिए बड़ा झटका था.

भितरघात का भय
साल 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले खुद को फिर से खड़ा करने के लिए कांग्रेस को सबसे पहले अपनी जमीन खिसकने से रोकना होगा और भरोसे के संकट को दूर करना होगा. भाजपा के संपर्क में रहने वाले भीतरी लोगों को पार्टी की बैठकों में 'गद्दार' कहा जाता है. ये वैसे लोग हैं जो पाला बदलने के लिए मौके की ताक में रहते हैं या फिर कांग्रेस में ही रहकर भाजपा के लिए पार्टी को कमजोर करने में लगे होते हैं. राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर इस आंतरिक अविश्वास को स्वीकार किया और 'भाजपा के लिए काम करने वाले लोगों' को पार्टी से निकालने का आह्वान किया है. इस सोच के साथ पार्टी ने व्यापक संगठनात्मक सुधार और पुनर्गठन की कवायद शुरू की है जिसे उसने 'संगठन सृजन अभियान' नाम दिया है.

यही वह मसला है जिसे हल करने में चावड़ा अहम साबित हो सकते हैं. उन्हें कांग्रेस की विचारधारा से गहराई से जुड़ा नेता माना जाता है. यह विरासत में उन्हें मिला है क्योंकि कांग्रेस के साथ उनके परिवार का जुड़ाव बेहद पुराना है. इस वजह से वे भाजपा के किसी भी प्रलोभन में नहीं फंसे. उनके लंबे चुनावी अनुभव और कुशल नेतृत्व की वजह से अरसे बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उम्मीद की किरण जगी है. भले यह उम्मीद जरूरत से ज्यादा लग रही हो मगर उसकी वजह समझना मुश्किल नहीं है. वह यह कि पार्टी की हालत इतनी खराब हो गई थी कि उसके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता अर्जुन मोढवाडिया सरीखे जमीनी और अनुभवी नेता भी 2024 में भाजपा में चले गए थे. ऐसे में थोड़ी-सी स्थिरता भी बड़ी लगने लगती है.

बढ़ता असंतोष
उम्मीद जगने की एक और भी वजह है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ''तीन दशकों से भाजपा के शासन के बाद अब मतदाताओं में भारी असंतोष है. खासकर पिछले दशक में, जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, सभी तीनों मुख्यमंत्रियों को केवल नाम का मुख्यमंत्री माना गया और वे कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सके.'' अवाम बेचैन है और कांग्रेस को अच्छी तरह से समझ आ गया है कि नए विकल्प की सख्त दरकार है. यही कांग्रेस नेता कहते हैं, ''चावड़ा का काम है कि जल्द से जल्द उस खाली जगह को भरें. आम आदमी पार्टी अक्सर मामूली खिलाड़ी समझी जाती है मगर 2022 में यह दिख गया कि वह दुविधाग्रस्त मगर बेचैन मतदाताओं को अपने पाले में करके कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकती है.''

पहला इम्तहान
चावड़ा उधर जाते वोटों को अपने पाले में रोक पाते हैं या नहीं, इसकी परख 2026 की शुरुआत में होने वाले अगले नगर निकाय चुनावों में होगी. उसमें गुजरात के 17 नगर निगमों में से 16—जो भारत में सबसे ज्यादा हैं—और 149 में से 81 नगर पालिकाओं के चुनाव होंगे. अभी 148 नगर पालिकाओं पर भाजपा का नियंत्रण है और सिर्फ एक जामनगर के सलाया पर कांग्रेस की सत्ता है. निगमों पर भी भाजपा का तकरीबन पूरा दबदबा है और नौ नगर निगमों पर तो उसका एकछत्र राज है.

यह राज्य के सियासी परिदृश्य का अहम हिस्सा है क्योंकि गुजरात में शहरी घनत्व काफी ज्यादा है. 182 विधानसभा सीटों में से कम-से-कम 52 को 'शहरी' माना जाता है; और 2022 में कांग्रेस ने उनमें से केवल तीन सीटों पर जीत दर्ज की. ऐसे में स्पष्ट रूप से शहरी मध्य वर्ग उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है. पार्टी इस तबके में अपनी पहुंच नहीं बना सकी है. भाजपा की नकल करते हुए इसका 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का पैंतरा कोई खास असर नहीं छोड़ सका, जिसके तहत 2017 में चुनाव से पहले राहुल गांधी ने दर्जनों मंदिरों का दौरा किया था. आणंद के रहने वाले चावड़ा राज्य के शहरी तबके में कांग्रेस की पैठ नहीं होने के मसले पर ध्यान केंद्रित करते हुए जमीनी जुड़ाव स्थापित करके आगे बढ़ने की रणनीति पर जोर देकर अच्छी शुरुआत कर सकते हैं.

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