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मध्य प्रदेश: भोपाल की खूबसूरती को लगी किसकी नजर; कौन उड़ा रहा मास्टर प्लान की धज्जियां?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लालची रियल एस्टेट एजेंट, निहित स्वार्थ वाले नेता और भ्रष्ट बाबू मिलकर एक खूबसूरत नियोजित शहर की सूरत बिगाड़ने में जुटे हैं

अपर लेक से भोपाल का नजारा
अपडेटेड 11 सितंबर , 2025

दरअसल, कोई सरकार देश की एक सबसे खूबसूरत और व्यवस्थित राजधानी को कैसे बर्बाद कर सकती है? सीधी-सी बात: जब निर्माण संबंधी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हों तो वह अपनी आंखें मूंद ले.

अपनी घुमावदार पहाड़ियों, साफ-सुथरी चौड़ी सड़कों और घने पेड़ों की छाया वाले रास्तों के लिए मशहूर भोपाल की खूबसूरती को मानो ग्रहण लग गया है. लापरवाह और भ्रष्ट नौकरशाही की शह पाकर लोभी कारोबारी और राजनेता बड़े पैमाने पर मास्टर प्लान की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं जिससे शहर ने खूबसूरती खो दी है.

नतीजा? रिहाइशी इलाकों का बेतहाशा व्यवसायीकरण हुआ और हर तरफ जाम, ध्वनि और वायु प्रदूषण की स्थिति पैदा हो गई. गंदगी इतनी बढ़ गई कि हाइकोर्ट को अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाने के साथ कुछ सीमाएं तय करनी पड़ीं. 29 जुलाई को अरेरा कॉलोनी निवासी पूर्णेंदु शुक्ल और पर्यावरणविद् सुभाष पांडे की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की पीठ ने राज्य सरकार, नगर निगम और बिजली विभाग को नोटिस जारी किया. पीठ ने नियम तोड़ने वाली सभी कार्रवाइयों पर रोक लगा दी.

याचिका में वादियों ने भले सिर्फ गंभीर समस्या से जूझती दक्षिण भोपाल स्थित अरेरा कॉलोनी का हवाला दिया मगर उन्होंने व्यापक स्तर पर बढ़ते संकट पर चिंता जाहिर की. उस कॉलोनी का विकास 1968 में आवासीय इकाइयों के निर्माण के खास मकसद से व्यक्तियों को रियायती दरों पर आवंटन के साथ किया गया था. उस वक्त निचले स्तर पर निर्धारित फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) 0.75 रखा गया यानी भूखंड के सिर्फ 75 फीसद हिस्से पर निर्माण की अनुमति.

सब तितर-बितर
बाद के मास्टर प्लान में भी अरेरा कॉलोनी को लगातार आवासीय भू उपयोग के दायरे में रखा गया और व्यावसायिक इस्तेमाल से परहेज किया गया. वजह यह कि इसका बुनियादी ढांचा सिर्फ सीमित यातायात और पार्किंग सुविधा का प्रबंधन कर सकता था. अभी लागू भोपाल विकास योजना 1995-2005 में इसी को अपनाया गया है. प्रस्तावित नए मास्टर प्लान के अंतिम मसौदे में यही मानक रखा गया जिसे बाद में मोहन यादव सरकार ने रद्द कर दिया. 2008 का मसौदा भी ऐसा ही था जो बाद में रद्द हो गया. सिर्फ तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने 2020 में पेश मसौदे में इसके लिए मिश्रित भूमि उपयोग का प्रस्ताव रखा था मगर वह भी बाद में रद्द हो गया.

उसके बावजूद रेस्तरां, शोरूम, बैंक जैसे कारोबारी प्रतिष्ठान खुल गए. भोपाल नगर निगम पीछे नहीं रहा और बड़े आराम से अवैध ढांचों से व्यावसायिक किराया वसूलता है. मध्य प्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने भी उनसे व्यावसायिक दरों पर कनेक्शन देना शुरू कर दिया. इस तरह की वैधता, बड़ी मौजूदगी और मास्टर प्लान में देरी से मिले तकनीकी कवच के साथ कानून का उल्लंघन लगभग मान्य हो गया. एक बार सील हुए दो कारोबारी ढांचे न्यायिक दखल के बाद खुल गए.

उल्लंघन करने वालों में सियासी दिग्गज पीछे नहीं. पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे की डेयरी का व्यावसायिक कार्यालय अरेरा कॉलोनी में ही है. विपक्ष के उप-नेता और कांग्रेस विधायक हेमंत कटारे के परिवार के पास इमारतें हैं जिनमें एक जिम, दो रेस्तरां और एक बैंक है. भोपाल के एक मंत्री के भाई का एक भवन बन रहा है. आयकर सूत्रों की मानें तो बेनामी निवेश जमकर हुआ है क्योंकि रियल एस्टेट अभी भी काला धन खपाने का सबसे बड़ा जरिया है. कई अधिकारी, डॉक्टर आदि इसके बूते पर भारी-भरकम किराया कमा रहे हैं.

रोक के आदेश के एक पखवाड़े बाद भी कई कारोबारी ठिकानों में काम जारी है और सरकार के रुख की किसी को खबर नहीं.

खास बातें
> भोपाल मास्टर प्लान के बड़े पैमाने पर उल्लंघन पर हाइकोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया.

> अरेरा कॉलोनी में व्यावसायिक रियल एस्टेट का बढ़ता कारोबार काला धन खपाने का सबसे बड़ा जरिया बना.

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