scorecardresearch

गोवा: जनजातियों को आरक्षण देकर BJP ने कैसे टाली अपनी मुसीबत?

आरक्षण के लिए गोवा के जनजातीय समुदाय लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे. BJP ने अब उनकी मांग स्वीकार कर ली है.

पारंपरिक त्योहार मनाते गोवा के आदिवासी
अपडेटेड 10 सितंबर , 2025

भाजपा एक दशक से अड़ी थी और यह उसके लिए नुक्सानदेह साबित हो रहा था. दूसरी तरफ, मान लेना सुरक्षित और फायदेमंद भी लग रहा था. आखिर जनसांख्यिकी पैटर्न ही ऐसा बना है. अंतत: गोवा में लंबे वक्त से चली आ रही राजनैतिक कोटे की आदिवासियों की मांग का समाधान निकला.

इसे पूरा करने के लिए लोकसभा ने गोवा राज्य के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन विधेयक 2024 पारित कर दिया है. इसे राज्यसभा में पारित होना है और उसके बाद जनगणना आयुक्त जमीन पर गणना करेंगे. आबादी के आधार पर चुनाव आयोग विधानसभा में सीटों के आरक्षण के लिए परिसीमन आदेश में संशोधन करेगा.

दस में से एक गोवावासी
राज्य के मूल निवासियों का वंशज माने जाने वाले गोवा के आदिवासियों की मौजूदा तादाद एक अनुमान के मुताबिक करीब 1,49,275 है, जिनमें ईसाई संप्रदाय के लोग भी शामिल हैं. गौरतलब यह कि ये गोवा की आबादी के 10.23 फीसद हैं. उनकी इतनी तादाद तब हुई जब गौड़ा, वेलिप और कुणबी समुदायों को गोवा के आदिवासियों के हिस्से के तौर पर मान्यता देकर एसटी सूची में जोड़ दिया गया. अगर पशुपालक गौली धनगर समुदाय की आदिवासी दर्जे की मांग स्वीकार कर ली जाती है तो तादाद और बढ़ सकती है.

फिलहाल वे उत्तर गोवा की आबादी के 6.92 फीसद (8,18,008 में से 56,606) और दक्षिण गोवा की आबादी के 14.47 फीसद (6,40,537 में से 92,669) हैं. प्रियोल, नुवेम, क्यूपेम, संगुएम और वेलिन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में उनकी अच्छी-खासी तादाद है.

गोवा की राजनीति में आदिवासियों का सवाल हाशिए का मुद्दा नहीं है. शिक्षा और नौकरियों में अनुसूचित जनजातियों को 12.5 फीसद कोटा हासिल है, मगर राजनैतिक आरक्षण उन्हें अब तक नहीं मिला था. लंबे वक्त से यह भावनात्मक मुद्दा रहा, जिसके पीछे प्रदर्शनों का दो दशक लंबा इतिहास है. 

चरमबिंदु 2011 में आया जब विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा में दो आदिवासी युवाओं की मौत हो गई. यह गोवा के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ क्योंकि उसके बाद हुए 2012 के चुनाव में आदिवासियों के तीव्र आक्रोश ने उस वक्त की कांग्रेस सरकार की किस्मत पर ताले जड़ दिए और भाजपा फिर सत्ता में आ गई. तभी से वह गोवा पर हुकूमत कर रही है, लेकिन करीब 12 वर्ष आदिवासियों के मुद्दे को टालती आई. आदिवासियों की बेचैनी पिछले साल फिर चरम पर पहुंच गई और इसकी तपिश भाजपा को दक्षिण गोवा लोकसभा सीट पर झेलनी पड़ी जहां उसकी उम्मीदवार पल्लवी डेम्पो को कांग्रेस के कैप्टन विरियाटो फर्नांडीस (सेवानिवृत्त) ने धूल चटा दी. 

विरोध-प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे धड़ों में से एक 'मिशन फॉर पोलिटिकल रिजर्वेशन फॉर शेड्यूल्ड ट्राइब्स ऑफ गोवा' के गोविंद शिरोडकर का कहना है कि आरक्षण 2027 के विधानसभा चुनाव से जरूर लागू हो जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ''वे अब और हमें हल्के में नहीं ले सकते.''

सियासी कोटा तो मिल जाएगा मगर सत्ता प्रतिष्ठान इस धड़े की दूसरी मांगों से खीझ सकता है. वे हैं अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 लागू करना, और अनुसूचित क्षेत्रों का ऐलान.

जगह का अधिकार
तादाद (और सियासत) के लिहाज से कहीं ज्यादा अहम गौड़ा, कुणबी और वेलिप जनजातियों के लिए जारी रहने के अलावा ये वैधानिक बचाव डबला, नाइकडा, वरली और ढोडिया, और साथ ही अफ्रीकी मूल के सिद्दियों के लिए प्रासंगिक होंगे. कैप्टन फर्नांडीस ने संसद में भी आरक्षण का यह मुद्दा उठाया था और वे आदिवासियों के हक और इंसाफ की वकालत करते हैं. उनके शब्दों में, ''वे 'निज गोअणकर' यानी गोवा के मूल निवासी हैं. गोवा के लिए उनका अप्रतिम योगदान है.''

गोवा भाजपा के अध्यक्ष दामोदर नाइक केंद्र और राज्य में अपनी पार्टी की सरकारों को श्रेय देते हैं. वे गोवा के मुख्यमंत्री के पद पर मनोहर पर्रीकर के कार्यकाल के दौरान 12 फीसद कोटा दिए जाने का हवाला देते हुए कहते हैं, ''राजनैतिक आरक्षण गोवा के आदिवासियों की जिंदगी का कायापलट करने में मददगार होगा.'' राज्य के चार आदिवासी विधायकों में से तीन (स्पीकर रमेश तावड़कर समेत) भाजपा के हैं और एक निर्दलीय का समर्थन भी सरकार को हासिल है.

खास बातें
>
गोवा विधानसभा में आदिवासियों को कोटा देने के लिए लोकसभा में बिल पारित.

> गोवा की आबादी का ये 10.23 फीसद हैं और आदिवासी वोट पांच सीटों पर असर डालता है.

> आदिवासियों के आक्रोश के कारण 2012 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और 2024 में भाजपा को दक्षिणी गोवा में हार मिली.

Advertisement
Advertisement