
इथियोपिया के मिहिरेतु वासी अपने साथ महात्मा गांधी के चित्र को लेकर पटना आए हैं. उनकी यह कलाकृति बिहार म्यूजियम की अस्थायी गैलरी के इथियोपिया वाले खंड में लगी है. यह चित्र उन्होंने छोटे-छोटे बटनों से तैयार किया है. वे बटनों और चमड़े की कतरनों से कलाकृतियां बनाने के लिए जाने जाते हैं.
वे कहते हैं, ''जैसे भारत ने औपनिवेशिक शासन को झेला है, इथियोपिया ने भी उसी तरह औपनिवेशिक सत्ता की ज्यादतियां बरदाश्त की हैं. इथियोपिया जैसे ग्लोबल साउथ के देशों के लिए आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी एक प्रेरणा की तरह थे, इसलिए मैं उन्हें पसंद करता हूं. वे हमारे भी हीरो हैं.’’
पूर्वी अफ्रीका के इस अल्पज्ञात देश, जिसका नाम बिहार के लोगों ने देशों और उनकी राजधानियों का नाम रटते हुए ही जाना है, की एक खास गैलरी बिहार म्यूजियम में इसलिए लगी है क्योंकि इस बार के म्यूजियम बिनाले में यह संग्रहालय ग्लोबल साउथ के साथ भारत के साझा इतिहास का जश्न मना रहा है.
7 अगस्त, 2025 को शुरू हुए तीसरे बिहार म्यूजियम बिनाले में इथियोपिया के साथ-साथ इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, मैक्सिको, श्रीलंका, पेरू और इक्वेडोर जैसे ग्लोबल साउथ के 11 देश भागीदारी कर रहे हैं. भारत की भी चार संस्थाएं इसमें शामिल हैं.

दो साल में एक बार होने वाले इस आयोजन के विचार पर बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह कहते हैं, ''इससे पहले के दो बिनाले में हमने पूरी दुनिया के देशों को बुलाया, उनकी कलाकृतियां प्रदर्शित कीं. पिछले बिनाले में जी-20 के देशों की कलाकृतियां प्रदर्शित हुईं. पर हमें लगा कि विकसित देशों को तो हमेशा प्लेटफॉर्म मिलते रहे हैं, ग्लोबल साउथ के देश इथियोपिया, पेरू, इक्वाडोर जैसे एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका महाद्वीप के देशों को कम प्लेटफॉर्म मिलते हैं. उनके बारे में हमें कम पता है. इसलिए इस बार हमारा फोकस ग्लोबल साउथ के देशों पर है.’’
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 7 अगस्त को इसका उद्घाटन करने के बाद चार अस्थाई गैलरियों में लगी छह खास प्रदर्शनियां देखीं. एक प्रदर्शनी पटना म्यूजियम में भी लगी है. ये प्रदर्शनियां एक से डेढ़ महीने चलने वाली हैं. 8-9 अगस्त को ग्लोबल साउथ के देशों से आए विद्वानों ने इन देशों की कला, संस्कृति, विरासत और उनके संरक्षण के सवाल पर अच्छी चर्चा की.
पटना आए यूनेस्को इंडिया के निदेशक टिम कर्टिस ने ग्लोबल साउथ के देशों की जीवंत विरासत के संरक्षण की बात की, जिसमें कलाओं, मेलों और खानपान पर विशेष जोर था. भारत में दक्षिण अफ्रीका के उच्चायुक्त अनिल सूकलाल जिनके पूर्वज भारत से ही गए थे, ने वैश्विक राजनीति और खासकर विरासत के सवाल पर ग्लोबल साउथ की उपेक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए. अहमदाबाद से आईं अवनि सेठी ने अपने संग्रहालय कंक्रिलक्टोरियम के बहाने विवादों से जुड़े संग्रहालयों के विचार और उनकी महत्ता को रेखांकित किया.

अपने बेहतरीन स्थापत्य और विरासत को प्रदर्शित करने के आधुनिक और इन्टरैक्टिव तरीकों के लिए कम समय में दुनिया में पहचान बनाने वाले बिहार म्यूजियम में वैसे भी रोज अच्छी खासी भीड़ रहती है. बिनाले की वजह से आवाजाही काफी बढ़ गई है और मुखौटों पर केंद्रित प्रदर्शनी सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है, जिसे दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की मदद से लगाया गया है. पच्चीसेक देशों और भारत के अलग-अलग राज्यों के मुखौटों का अलग आकर्षण है: धार्मिक, आनुष्ठानिक, झाड़फूंक, उत्सव और दूसरे क्रियाकलापों से जुड़े मुखौटे. थाइलैंड के मुखौटों को लेकर खासी जिज्ञासा है, जिनमें राम के तीनों भाई और सीता के मुखौटे हैं.
मगर बिहार के सारण जिले के चिरांद के मुखौटे की बात ही अलग है. टेराकोटा से बना यह मुखौटा करीब 2,000 साल और इस प्रदर्शनी का भी सबसे पुराना है: आंखें उभरी, कान-नाम-दांत सुस्पष्ट. बताते हैं, इसका इस्तेमाल कर्मकांड या उत्सव के दौरान होता रहा होगा. नाइजीरिया के लकड़ी के बने दो मुखौटे भी खास हैं. एक विशाल हेलमेट मुखौटा और दूसरा किसी पशु के सिर के आकार का.

मुखौटों के अलावा दूसरी सबसे चर्चित प्रदर्शनी है विश्वरूप राम की. रामायण और महाभारत ऐसे ग्रंथ हैं जो भारत को इंडोनेशिया और थाइलैंड जैसे मुल्कों से जोड़ते हैं और साझा विरासत के प्रतीक हैं. इन्हें प्रदर्शनी का रूप भी दिया गया है. इनको क्यूरेट करने वाली बिहार म्यूजियम की उप निदेशक मोमिता दास बताती हैं, ''आने वाले दिनों में ऐसी कई और प्रदर्शनियां लगने वाली हैं. उनमें खास है बिहारी डायस्पोरा का एग्जिबिशन.
इसमें उन्नीसवीं सदी में गन्ने के खेतों में काम करने के लिए मॉरिशस, फिजी और सूरीनाम जैसे देश ले जाए गए मजदूरों की ऐसी कृतियां आएंगी, जिनका केंद्रीय विषय घर होगा. वे घर यानी बिहार को कैसे देखते हैं. इसके अलावा पटना कलम की खास प्रदर्शनी लगेगी.’’ बिहार म्यूजियम के संयुक्त निदेशक अशोक कुमार सिन्हा बताते हैं कि ''औपनिवेशिक काल में पटना शहर में विकसित इस चित्र परंपरा की अस्सी से अधिक दुर्लभ कलाकृतियां आजादी के बाद पहली बार कहीं प्रदर्शित हो रही हैं.

ये चित्र पटना कलम के उस दौर के कलाकार हुलास लाल, बनी लाल, शिवा लाल, ईश्वरी प्रसाद और सेवक राम की हैं, जिन्हें उनकी संततियां लेकर आ रही हैं.’’ सिन्हा के साथ बैठे हुलास लाल की संतति ओमप्रकाश और संजय कुमार बताते हैं, ''वैसे तो हमारे परिवार के चित्र कई संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं मगर जिन 80 से ज्यादा पेंटिंग को हम यहां लाए हैं, वे 1930 के दशक में ही प्रदर्शित हुई थीं. इनमें रानी लक्ष्मी बाई, टीपू सुल्तान और लॉर्ड लिटन की पेंटिंग शामिल हैं.’’
इस बिनाले में शामिल होने खास तौर पर पुणे से आए कला समीक्षक अरविंद दास कहते हैं, ''जियो पॉलिटिक्स के लिहाज से ग्लोबल साउथ की कला और संस्कृति भी कम चर्चा में आई है, उस लिहाज से यह अच्छी पहल है. इनमें से ज्यादातर देश औपनिवेशिक शासन के शिकार रहे हैं. पोस्ट कोलोनियल दौर में इनका अपना महत्व है. एक तरह से यह विकासशील देशों की संस्कृतियों का मिलन है.’’