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उत्तर प्रदेश: उभरते खिलाड़ियों का स्पोर्ट्स कॉलेजों से क्यों उठा भरोसा?

बुनियादी ढांचे का आभाव, अनमने अंदाज की कोचिंग और खराब योजना से उत्तर प्रदेश के उभरते खिलाड़ियों का मनोबल टूट रहा है

लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज में वेलोड्रोम की दर्शक दीर्घा.
अपडेटेड 9 सितंबर , 2025

ओलंपिक और एशियाड तो गया एक तरफ, जरा राष्ट्रीय खेलों में ही उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर मार लीजिए. उत्तराखंड में हुए 2025 के राष्ट्रीय खेलों की पदक तालिका में उत्तराखंड, मणिपुर, ओडिशा से भी नीचे यूपी 12वें पायदान पर था.

दो साल पहले 2023 में गोवा में हुए 37वें राष्ट्रीय खेल में यूपी 15वें स्थान पर था. देश की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 'वन ट्रिलियन इकोनॉमी' की ओर अग्रसर उत्तर प्रदेश का खेल और खिलाड़ियों के विकास की दौड़ में पीछे छूटना कई गहरे सवाल खड़े कर रहा है. हालांकि इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं. 

लखनऊ जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर कुर्सी रोड पर मौजूद प्रदेश का सबसे बड़ा और पुराना स्पोर्ट्स कॉलेज राज्य में खिलाड़ियों के लिए खस्ताहाल संसाधनों की एक झांकी पेश करता है. गुरु गोविंद स्पोर्ट्स कॉलेज के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही सीधी सड़क एक किलोमीटर के बाद बाएं मुड़ जाती है. इसी मोड़ के दाहिनी ओर एक बदहाल इमारत को यूपी के पहले इनडोर साइकिल ट्रैक (वेलोड्रोम) के रूप में तैयार होना था.

फरवरी, 2015 में तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने 159 करोड़ रु. की लागत वाली वेलोड्रोम परियोजना को मंजूरी दी थी. 21 एकड़ जमीन में बनने वाली सपा सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को मार्च, 2020 में पूरा होना था. शुरुआत में काम तेजी से चला. दो वर्ष तक बजट भी मिला लेकिन 2017 में सत्ता बदलने के साथ वेलोड्रोम का काम सुस्त हो गया.

2021 तक इसमें 50 करोड़ रुपए से केवल दर्शक दीर्घा और पैवेलियन का ही निर्माण हो पाया. वेलोड्रोम प्रोजेक्ट को मंजूरी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले लखनऊ साइकिलिंग एसोसिएशन के सचिव अनुराग वाजपेयी निराश हैं. वे कहते हैं, ''अगर लखनऊ में वेलोड्रम बन जाता तो गरीब खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं मिलतीं और साइकिलिंग में देश को पदक दिलाने का सपना पूरा हो जाता.''

लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज में ध्यानचंद एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम के सामने ओलंपिक आकार के 10 लेन के स्विमिंग पूल की शुरुआत फरवरी 2002 में हुई थी. तब स्पोर्ट्स कॉलेज में तैराकी के लिए खिलाड़ियों का हॉस्टल होता था. लेकिन 2016 में तैराकी का हॉस्टल स्पोर्ट्स कॉलेज सैफई स्थानांतरित कर दिया गया. इसके बाद 2017 में स्विमिंग पूल में कुछ खराबी आ जाने से इसे बंद कर दिया गया और अब यह खंडहर में तब्दील हो गया है. हालांकि लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल अतुल सिन्हा कहते हैं, ''वेलोड्रोम और स्विमिंग पूल की जांच की जा रही है कि इन्हें शुरू करने में कितना खर्च आएगा. इसके बाद इन प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ाया जाएगा ताकि इनसे खिलाड़ी लाभान्वित हो सकें.''

खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं का सपना केवल लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज में ही नहीं, गोरखपुर और सैफई स्पोर्ट्स कॉलेजों में भी सपना ही लग रहा है (देखें बॉक्स). इन तीनों कॉलेजों का प्रबंधन उत्तर प्रदेश स्पोर्ट्स कॉलेजेज सोसाइटी, लखनऊ के तहत बनी प्रबंधन समिति के जरिए होता है. खेल मंत्री इस 13 सदस्यीय सोसाइटी का अध्यक्ष होता है. तीनों स्पोर्ट्स कॉलेजों का नोडल अधिकारी और प्रशासनिक नियंत्रण लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज के प्रधानाचार्य (सचिव, प्रबंधन समिति) के पास होता है. स्पोर्ट्स कॉलेज में खिलाड़ियों के लिए प्रशिक्षण के साथ छठीं से बारहवीं तक पढ़ाई की भी व्यवस्था है. यह जानकर हैरत होगी कि कभी इन स्पोर्ट्स कॉलेजों में भर्ती के लिए मारामारी होती थी लेकिन अब इनमें सीटें भरना मुश्किल हो रहा है.

पिछले शैक्षणिक सत्र में इन कॉलेजों में कुल 1,195 सीटों में से खींचतान कर 894 ही भरी जा सकीं. इस साल के शैक्षणिक सत्र में दो दौर के ट्रायल और मेडिकल टेस्ट के बाद भी ढाई सौ से ज्यादा सीटें खाली हैं. खेल अधिकारियों की दलील है कि पिछले साल से प्रवेश लेने वाले बच्चों को उनके जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) से जैविक आयु प्रमाणपत्र लेना पड़ रहा है. ऐसे में आयु कम दर्ज कराकर प्रवेश लेने वाले छात्र छंट गए और सीटें खाली रह गईं. आयु प्रमाणपत्र में भी गड़बड़ी का आरोप लगाकर कई अभ्यर्थी लखनऊ में खेल निदेशालय में शिकायत कर चुके हैं. हाइकोर्ट के आदेश पर बाराबंकी के एक अभ्यर्थी की दोबारा मेडिकल जांच कराई गई तो उसकी जैविक आयु में अंतर पाया गया.

हालांकि कॉलेज की भर्ती नियमावली में दोबारा मेडिकल परीक्षण का प्रावधान नहीं है इसलिए बड़ी संख्या में दूसरे अभ्यर्थी भी जैविक आयु की जांच मंस गड़बड़ी का आरोप लगाकर कोर्ट की शरण में पहुंच रहे हैं. सीटों को भरने के संकट ने कॉलेज प्रबंधन को नए तरीके अपनाने पर मजबूर कर दिया है. अब सातवीं और नौवीं कक्षा में भी सीधे प्रवेश की व्यवस्था बनाई गई है लेकिन यह भी कारगर होती नहीं दिख रही.

वर्ष 2023 में स्पोर्ट्स कॉलेज प्रबंधन समिति ने कॉलेज में सामान्य प्रवेश प्रक्रिया को मंजूरी दी थी, जिसमें प्रदेश के बाहर के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को चयनकर्ता के रूप में शामिल किया जाना था. ऐसा इसलिए कि अगर ट्रायल में बाहर के चयनकर्ता होंगे, तो किसी के साथ पक्षपात नहीं होगा. सभी की मौजूदगी में शारीरिक परीक्षण की उचित वीडियोग्राफी भी होनी थी, लेकिन इस योजना को कभी पुख्ता ढंग से लागू नहीं किया गया. इसीलिए हर बार चयन प्रक्रिया किसी न किसी विवाद में फंस जाती है.

पूर्व भारतीय वॉलीबॉल कप्तान और यूपी के पहले अर्जुन पुरस्कार विजेता रणवीर सिंह कहते हैं, ''यह सब संबंधित अधिकारियों की खराब योजना के कारण है. उनके पास इन स्पोर्ट्स कॉलेजों की बेहतरी के लिए कोई विजन नहीं है.'' उन्होंने यह भी कहा कि अब ये कॉलेज उन लोगों के लिए 'तैयारी केंद्र' बन गए हैं जो सेना, पुलिस आदि में नौकरी की तलाश में हैं क्योंकि एथलीटों को भविष्य में बड़े खिलाड़ी बनने या ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतने का बहुत कम भरोसा है. सिंह सवाल करते हैं, ''हर बार प्रवेश नीति में बदलाव क्यों होता है? व्यवस्था में एकरूपता होनी चाहिए और इसके अलावा, इन कॉलेजों में स्थायी प्रिंसिपल होना जरूरी है क्योंकि मेरी जानकारी के अनुसार 1975 में गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज की स्थापना के बाद से कोई स्थायी प्रिंसिपल नहीं है.''

हैरत की बात यह भी है कि लखनऊ में 1975 में अपनी स्थापना के बाद से ही यह कॉलेज एक अदद स्थायी प्रिंसिपल की तलाश में संघर्ष कर रहा है. स्पोर्ट्स कॉलेज के पहले प्रिंसिपल श्याम सुंदर एक पीसीएस अधिकारी थे, जिन्होंने 1975 से 1980 तक अस्थाई रूप से कार्यभार संभाला. उसके बाद गिरीश चंद्र पाठक, जगजीत सिंह सिरोही, बृजेंद्र कुमार सिंह और यहां तक कि एक आइएएस ललित वर्मा जैसे अधिकारी भी 1985 तक इस पद पर रहे. फिर तो अतिरिक्त प्रभार वाले बाकी सभी प्रिंसिपल उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय से थे.

दरअसल, मौजूदा स्थिति को संबंधित अधिकारियों की एक बड़ी नाकामी के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि लंबे अंतराल के बाद भी, उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय के तीन अधिकारी राज्य भर के तीन अलग-अलग स्पोर्ट्स कॉलेजों का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं. लखनऊ के क्षेत्रीय खेल अधिकारी अतुल सिन्हा गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल हैं. गोरखपुर के क्षेत्रीय खेल अधिकारी अली हैदर वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज का कामकाज संभाल रहे हैं, जबकि इटावा के खेल अधिकारी सर्वेंद्र सिंह चौहान को सैफई का प्रभार सौंपा गया है. ये सभी अतिरिक्त जिम्मेदारियों के तौर पर इन कॉलेजों का प्रबंधन कर रहे हैं.

हालांकि, प्रतिनियुक्ति पर भी पूर्णकालिक प्रिंसिपल नियुक्त करने के सरकार के हाल के प्रयासों को झटका लगा है क्योंकि पिछले साल उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय की जांच समिति ने 'मानदंडों से मेल न खाने' के आधार पर 80 से ज्यादा आवेदनों को खारिज कर दिया और एक बार फिर सब कुछ ठप पड़ गया है. खेल निदेशालय के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ''हमारे स्तर पर स्पोर्ट्स कॉलेज के स्थायी प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिए निर्धारित मानदंडों के अनुरूप कोई भी आवेदक नहीं पाया गया. हमने अपनी रिपोर्ट शीर्ष अधिकारियों को सौंप दी है.''

आवेदकों ने प्रतिनियुक्ति पर प्रिंसिपल पद के लिए आवेदन किया था और उनमें से ज्यादातर खेल निदेशालय से ही थे. असल में स्पोर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल पद पर नियुक्ति के लिए शर्तें काफी जटिल हैं. पिछले दिसंबर में घोषित नियमों के अनुसार, किसी व्यक्ति के पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री और शिक्षण का अनुभव होना चाहिए. उन्हें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी होना चाहिए और किसी शैक्षणिक संस्थान या सरकारी संगठन में पांच साल का प्रशासनिक अनुभव होना चाहिए. आयु सीमा 35 से 50 वर्ष के बीच है, लेकिन यह प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन करने वालों पर लागू नहीं होती. रणवीर सिंह कहते हैं, ''एक साथ खेल अधिकारी और स्पोर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में दो बड़ी जिम्मेदारियां संभालते हुए कोई भी अपने कर्तव्यों के साथ न्याय नहीं कर सकता. ऐसे में दोनों जगहों पर काम प्रभावित होता है. स्पोर्ट्स कॉलेजों की हालत देखकर यह स्पष्ट भी हो रहा है.''

स्पोर्ट्स कॉलेज भ्रष्टाचार से भी अछूते नहीं हैं. अगस्त 2015 से सितंबर 2019 तक लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज के कार्यवाहक प्रिंसिपल रहे विजय गुप्ता 2020 में भ्रष्टाचार के आरोप में पहले निलंबित, फिर बर्खास्त हुए थे. तीनों स्पोर्ट्स कॉलेजों में दाखिले में बड़े पैमाने पर फैली विसंगतियों से 'स्पोर्ट्स कॉलेज पूर्व छात्र कल्याण समिति' नाराज है. समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य संबंधित अधिकारियों को चिट्ठी लिखकर राज्य के प्रमुख खेल संस्थानों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया है.

गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज में 1977 बैच के क्रिकेटर और कल्याण समिति के सचिव लवलेश माथुर कहते हैं, ''स्पोर्ट्स कॉलेजों में कुछ भी स्थाई नहीं है. प्रिंसिपल कार्यवाहक हैं तो शिक्षक और कोच भी आउटसोर्स से आ रहे हैं. ठेके पर खेल की शिक्षा से स्पोर्ट्स कॉलेजों से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का निकलना बंद हो गया है.'' पिछले 20 साल में गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज से केवल दो खिलाड़ी आर.पी. सिंह और सुरेश रैना 2005 में भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बना पाए हैं. लंबे अंतराल के बाद, इसी कॉलेज के युवा शाहरुख खान ने 2023 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन में अंडर-20 एशियाई चैंपियनशिप में 3,000 मीटर स्टीपलचेज में रजत पदक जीता.

खेल विभाग के वार्षिक बजट का एक बड़ा हिस्सा खेल कॉलेजों को जाता है. इन कॉलेजों के हरेक छात्र पर सालाना 1.5 लाख रु. खर्च होता है, पर वे शायद ही कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर पाते हैं. इसकी एक बड़ी वजह स्थाई कोच की व्यवस्था न होना है. स्पोर्ट्स कॉलेज में आउटसोर्स पर तैनात कोच को प्रति माह महज 25,000 रु. ही मिलते हैं, जबकि बिहार में एक कोच को 40,000 रु., झारखंड में 65,000 रु. प्रति माह मानदेय मिलता है.

इसके अलावा प्रशिक्षकों को आधुनिक तकनीकी की जानकारी देने के लिए 2015 के बाद से कोई 'ओरिएंटेशन प्रोग्राम' नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरियों में खिलाड़ियों के लिए 2 फीसद कोटा योजना को लागू करने में अहम भूमिका निभाने रणवीर सिंह कहते हैं, ''स्पोर्ट्स कॉलेज में तैनात प्रशिक्षकों के साथ अन्याय हो रहा है. यही वजह है कि ज्यादातर उदीयमान खिलाड़ी अब निजी कोच से प्रशिक्षण लेकर अपने सपनों को उड़ान दे रहे हैं.''

लगता है कि सरकार में कोई भी इन कॉलेजों पर से नियंत्रण नहीं खोना चाहता क्योंकि इनका बजट पूरे खेल निदेशालय के बजट से लगभग दोगुना है, जिस पर सभी 75 जिलों में खेल गतिविधियों को संभालने की जिम्मेदारी है. पुराने बदहाल स्पोर्ट्स कालेजों को भूलकर नए कालेज खोलने के पीछे भी संभवत: यही सोच है. पर खिलाड़ियों की कौन सोचे? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है.

'बीमार' हैं खेल के मंदिर
गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज, लखनऊ 
लखनऊ में कुर्सी रोड पर 1975 में 153 एकड़ जमीन पर यूपी के पहले स्पोर्ट्स कॉलेज की स्थापना हुई. यहां एथलेटिक्स, फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबॉल और बैडमिंटन खेलों में प्रशिक्षण की व्यवस्था है जिसमें केवल लड़कों को ही प्रवेश मिलता है. यहां कुल 315 सीटों पर प्रवेश लिया जाता है लेकिन पिछले साल केवल 239 ही भरी जा सकीं. खेल की छह विधाओं में सात अस्थाई कोच हैं. फुटबॉल कोच का पद रिक्त है. कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा का जिम्मा 14 शिक्षकों पर है जिनमें से केवल 6 ही तैनात. साइकिल वेलोड्रोम, वेटलिफ्टिंग सेंटर, टेनिस और स्विमिंग पूल बंद पड़े हैं.

गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज, लखनऊ

वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज, गोरखपुर
वर्ष 1988 में गोरखपुर जिले में महाराजगंज रोड पर 48.7 एकड़ जमीन पर स्पोर्ट्स कॉलेज की स्थापना की गई थी. गोरखपुर के क्षेत्रीय खेल अधिकारी आले हैदर के पास इस कॉलेज के प्रिंसिपल का भी दायित्व है. यहां लड़कियों के भी प्रशिक्षण की सुविधा है. यहां जिम्नास्टिक (बालक और बालिका), बैडमिंटन (बालिका), जूडो (बालक और बालिका), वॉलीबॉल ( बालक और बालिका) और हॉकी (बालिका) खेल में प्रशिक्षण की व्यवस्था है. यहां पर कुल 390 सीटों पर प्रवेश लिया जाता है. पिछले साल इनमें केवल 284 ही भरी जा सकी थीं. शिक्षकों के छह पद रिक्त चल रहे हैं. कुल नौ कोचों की तैनाती है लेकिन इनमें से वॉलीबॉल को छोड़कर कोई भी स्थाई नहीं है. मल्टीपरपज हॉल बदहाल होने से एक भी परपज पूरा नहीं कर पा रहा. सिंथेटिक ट्रैक न होने से भी दिक्कतें हैं.

मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कॉलेज, सैफई, इटावा 
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई में 2015 में स्पोर्ट्स कॉलेज की स्थापना की गई. इटावा के खेल अधिकारी सर्वेंद्र सिंह चौहान पर ही इस स्पोर्ट्स कॉलेज की भी जिम्मेदारी है. इस कॉलेज में भी बालिकाओं के प्रशिक्षण की सुविधा है. बालक वर्ग में क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, कुश्ती, एथलेटिक्स, तैराकी, कबड्डी तथा बैडमिंटन (बालक और बालिका) और जूडो (बालिका) खेलों में प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां पर कुल 490 सीटों पर प्रवेश लिया जाता है. पिछले साल केवल 371 सीटें ही भरी जा सकी थीं. यहां सात विधाओं में केवल आठ अस्थाई कोच तैनात हैं. बैडमिंटन का कोच नहीं है. शिक्षकों के भी आधे से ज्यादा पद रिक्त हैं. यहां इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम, ऑल वेदर स्विमिंग पूल, सिंथेटिक एथलेटिक ट्रैक का उचित उपयोग नहीं हो रहा.

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