scorecardresearch

राजस्थान: गरीबों का निवाला डकार रहे 52 लाख लोगों के बारे में कैसे पता चला?

अपात्र लोगों को खाद्य सुरक्षा योजना से बाहर करने के अभियान के तहत 25 लाख लोगों ने अपना नाम वापस ले लिया, तो 27 लाख ने ई-केवाइसी नहीं कराई

Special report: Rajasthan
जयपुर के सुमेरनगर में राशन की दुकान के बाहर लगी लाइन
अपडेटेड 9 सितंबर , 2025

उदयपुर जिले के कुंडई गांव के रहने वाले दल्लाचंद प्रजापत के पास न सिर छुपाने के लिए पक्का घर है और न अनाज पैदा करने के लिए जमीन. वे जंगल में टूटी-फूटी झोपड़ी में किसी तरह गुजर-बसर करते हैं. मानसिक रोग से ग्रस्त पत्नी और तीन बच्चों के पिता दल्लाचंद को आज तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला.

प्रधानमंत्री आवास योजना तो दूर, उन्हें खाद्य सुरक्षा योजना तक का लाभ हासिल न हो सका. दूसरी ओर, उदयपुर जिले के तरावट गांव के अंबालाल के पास गांव के बाहर आलीशान कोठी, 15 बीघा खेत, ट्रैक्टर और दुपहिया वाहन हैं. इतनी संपत्ति-संसाधनों के स्वामी अंबालाल पिछले कई साल से खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाला मुफ्त का राशन डकार रहे थे.

मगर राजस्थान में दल्लाचंद जैसे गरीबों के राशन पर डाका डालने वाले लोग अब मुफ्त का अनाज नहीं ले पाएंगे. दरअसल, राजस्थान सरकार की ओर से चलाए जा रहे गिव अप अभियान के तहत प्रदेश में 25 लाख लोगों ने मुफ्त राशन योजना से अपना नाम वापस ले लिया है. वहीं सूबे में 27.62 लाख से ज्यादा लोग इसके लिए अपनी ई-केवाइसी करवाने ही नहीं पहुंचे, जिसके चलते वे अपने आप इस योजना के दायरे से बाहर हो गए.

इस तरह राजस्थान में पिछले साल 1 नवंबर को शुरू हुए गिव अप अभियान की वजह से खाद्य सुरक्षा योजना से कुल 52 लाख से ज्यादा लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. अपात्र लोगों के बाहर होने का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि सूबे में अब 54 लाख से ज्यादा नए लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में जगह मिल गई है.

दरअसल, गिव अप अभियान से पहले राजस्थान में खाद्य सुरक्षा योजना की स्थिति बेहद खस्ताहाल थी. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सरकार गरीब और वंचित तबके के लोगों को राशन मुहैया करती है. मगर हजारों की तादाद में सरकारी कर्मचारी और बड़ी-बड़ी कोठियों के मालिक मुफ्त का राशन उठा रहे थे. सरकार की जांच में राज्य में करीब 83,000 सरकारी कर्मचारी ऐसे मिले जो गरीबों का दो रुपए किलो का गेहूं डकार रहे थे.

दो रु. किलो गेहूं उठाने वाले गोदा का दोमंजिला मकान

प्रदेश में इस योजना में सरकारी कर्मचारियों के पात्र बनकर गेहूं उठाने की अरसे से शिकायतें मिल रही थीं. विभाग की तमाम कोशिशों के बाद भी जब सरकारी कर्मचारियों और अपात्र लोगों ने योजना का लाभ लेना बंद नहीं किया तो सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को आधार से लिंक करने की योजना बनाई. 2021 में राज्य सरकार ने जिला रसद अधिकारियों के जरिए मामले की जांच और आधार लिंकिंग का काम शुरू किया.

लाभार्थियों का आधार से मिलान किया गया तो प्रदेश में 83,000 से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों के नाम सामने आए. 2020 से 2025 की अवधि के बीच इनसे 82 करोड़ रुपए की वसूली की जा चुकी है. इसी दौरान सरकार को यह जानकारी मिली कि अभी भी लाखों अपात्र लोग राशन ले रहे हैं. ऐसे में सरकार ने बीते साल गिव अप अभियान शुरू किया.

सूबे के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा ने अपात्र लोगों को चेताते हुए कहा, ''अभियान की समाप्ति के बाद कोई भी अपात्र व्यक्ति खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ लेते हुए पाया गया तो उससे 27 रुपए प्रति किलो की दर से वसूली की जाएगी.’’

इस चेतावनी का असर यह हुआ कि लोगों ने स्वेच्छा से अपना नाम वापस ले लिया या फिर ई-केवाइसी नहीं करवाई. अब इन 52.62 लाख लोगों के योजना से बाहर होने से राजस्थान में सालाना 600 करोड़ रुपए की बचत होगी. गोदारा बताते हैं, ''राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में फर्जीवाड़े की शिकायतें लगातार मिल रही थीं. यह भी पता चला कि जिन्हें राशन की जरूरत है वे बाहर हैं और जो सक्षम हैं वे इसका लाभ उठा रहे हैं.’’

ऐसे ही अपात्र भीलवाड़ा के शंकरलाल का मकान

योजना में वर्षों से ऐसे लोग घुसपैठ जमाए बैठे थे जो पात्रता की किसी भी सूरत पर खरे नहीं उतरते. 
मसलन, अंबालाल और उनका परिवार गरीबी रेखा के नीचे यानी बीपीएल सूची में शामिल थे और कई साल से मुफ्त राशन का लाभ उठा रहे थे. गिव अप अभियान के तहत उन्हें अब खाद्य सुरक्षा से बाहर किया गया है. अंबालाल प्रधानमंत्री आवास योजना के भी लाभार्थी बन बैठे थे.

इसी तरह, उदयपुर जिले की भींडर तहसील के खड़ोदा गांव के गोदा और तुलसा के दोमंजिला मकान और 30-40 बीघा खेत होने के बाद भी दोनों को कई साल तक दो रुपए प्रति किलो की दर पर गेहूं मिलता रहा. आधार लिंकिंग के दौरान भी वे दोनों पकड़ में नहीं आए. सरकार ने जब अपात्र परिवारों से 27 रुपए प्रति किलो की दर से वसूली की चेतावनी दी तब जाकर इन्होंने गरीबों का राशन लेना बंद किया.

भीलवाड़ा जिले में सबलपुरा के शंकरलाल भी वही कर रहे थे. उनके पास गांव में छह हजार वर्गफुट का भव्य मकान है. परिवार में दो ट्रैक्टर, दो मोटरसाइकिल और एक चौपहिया वाहन होने के बाद भी उन्हें योजना में पात्र मानकर दो रुपए किलो की दर से गेहूं मिल रहा था. गिव अप अभियान के तहत नकेल कसनी शुरू की गई तब जाकर शंकरलाल ने राशन छोड़ने का फैसला किया. 

अभियान के जरिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के दायरे से बाहर हुए लोगों की जगह अब दल्लाचंद जैसे जरूरतमंदों को जगह मिल सकेगी. सरकार ने अभी इसे 31 अगस्त तक जारी रखने का फैसला किया है. गोदारा कहते हैं, ''गिव अप अभियान की सफलता को देखते हुए हम इसे आगे भी जारी रखेंगे.’’  

पात्रता का पैमाना
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सरकार अंत्योदय अन्न योजना (एएवाइ), बीपीएल, स्टेट बीपीएल लाभार्थियों तथा बेघर, विकलांग, भूमिहीन कृषि एवं बंधुआ मजदूर, विधवा एवं परित्यक्ताओं, डायन बताकर प्रताड़ित की गई महिलाओं, ट्रांस जेंडर, स्ट्रीट वेंडर्स और निर्माण मजदूरों को पात्र मानते हुए मुफ्त तथा सस्ता राशन देती है.

इनमें अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले परिवारों को मुफ्त और अन्य श्रेणी के लाभार्थी परिवारों के हर सदस्य को दो रुपए प्रति किलो की दर से पांच किलो गेहूं हर महीने दिया जाता है.

गिव अप अभियान में राशन लेने से तौबा करने वाले उदयपुर जिले के तरावट गांव के अंबालाल की कोठी

इसकी अपात्रता के भी मापदंड बने हैं. ऐसे परिवार जिसका कोई भी एक सदस्य सरकारी, अर्द्धसरकारी, स्वायत्तशासी संस्था में कर्मचारी या आयकरदाता हो, वे इस योजना का लाभ नहीं ले सकते. परिवार में कोई सदस्य एक लाख रुपए से ज्यादा वार्षिक पेंशन पाता हो या किसी भी सदस्य के पास चौपहिया वाहन हो, वह भी इस योजना के दायरे में नहीं आ सकता.

ट्रैक्टर और एक वाणिज्यिक वाहन को इस दायरे से बाहर रखा गया है. अगर परिवार के सदस्यों के पास कृषि, ग्रामीण क्षेत्र में दो हजार वर्ग फुट तथा शहरी क्षेत्र में एक हजार वर्गफुट से ज्यादा में निर्मित पक्का मकान हो, तब भी इस योजना का लाभ नहीं लिया जा सकता.

केंद्र सरकार की निर्धारित सीमा के तहत राजस्थान में 4,46,61,960 लोगों को इस योजना का लाभ दिया जा सकता है. अब तक राज्य में करीब 4.45 करोड़ लोग इससे जोड़े जा चुके हैं. राज्य सरकार ने बजट में 10 लाख नए लोगों को इसमें शामिल करने का ऐलान किया था.

राशन कार्ड में पशुओं तक के नाम 
राज्य में राशनकार्ड में भी गड़बडिय़ां सामने आईं जिन्हें दुरुस्त किया जा रहा है. 2021 में आधार लिंक करने की प्रक्रिया शुरू की गई और उसके बाद राशन कार्डों में फर्जी तरीके से दर्ज 30 लाख लोगों के नाम हटाए गए. इस दौरान प्रदेश में खाद्य सुरक्षा योजना के तहत राशन लेने के कई रोचक मामले सामने आए. गोदारा ने कार्यभार संभालने के बाद ही यह अंदेशा जताया था कि प्रदेश में लोग अपने पालतू जानवरों के नाम पर राशन ले रहे हैं.

उदयपुर जिले के कुंडई गांव के दल्लाचंद को अब मिल सकेगा मुफ्त राशन

कई जगहों पर ऐसे मामले सामने भी आए. मसलन, धौलपुर जिले में एक व्यक्ति भगवान के नाम पर ही राशन उठा रहा था. मुरली मनोहर को घर का मुखिया बताकर पुजारी बाबूलाल कई साल तक मुफ्त राशन के मजे लेता रहा. पुजारी ने मुरली मनोहर की पत्नी का नाम ठकुरानी और बेटे का नाम गणेश लिखकर खूब राशन उठाया.

धौलपुर जिले के ही अररुआ गांव में रामरघुनाथ नाम के एक शख्स ने राशन कार्ड में परिवार के मुखिया का नाम ठाकुरजी महाराज और घर के सदस्यों के नाम श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, महादेव, सालिगराम लिखा रखा था. रामरघुनाथ दो राशन कार्डों से हर माह 35-35 किलो गेहूं लेता रहा. उसने 1,680 किलो गेहूं और 120 लीटर केरोसिन ले लिया.

जयपुर के शास्त्री नगर में रहने वाले महेश तंवर ने तो राशन कार्ड में अपने पालतू कुत्तों का नाम भी शामिल करवा लिया था. कार्ड में उसके कुत्ते के नाम भंवर बन्ना दर्ज था. महेश के पुराने राशन कार्ड में भी उसके दो पालतू कुत्तों जॉनी और लालू का नाम उसके बेटों की जगह दर्ज था. जब डिजिटल राशन कार्ड बना तो उसमें जॉनी और लालू का नाम हटा दिया गया और उनकी जगह भंवर बन्ना का नाम उसके बेटे के बतौर शामिल कर लिया गया.

30 साल तक पालतू कुत्तों के नाम पर राशन का गेहूं, केरोसिन और चीनी उठाने वाला महेश अपने पालतू कुत्तों के मरने पर इंसानों जैसे क्रियाकर्म करता था. वन नेशन वन राशन कार्ड के तहत जब राशन कार्ड को आधार से लिंक करवाने की कार्रवाई शुरू की गई तब महेश का मामला उजागर हुआ.

ऐसा ही मामला बांसवाड़ा जिले की आनंदपुरी तहसील के भलेर चमना गांव में सामने आया. गांव के दला नामक युवक के राशन कार्ड में उसके बेटे का नाम वकील बताकर उसे शामिल किया गया था. कार्ड को आधार से जोड़ते वक्त दला से वकील का आधार कार्ड मांगा गया तो उसने कहा कि वकील उसके कुत्ते का नाम है और उसका आधार कार्ड नहीं है. इसी तरह घाटोल पंचायत समिति के भगोरा का खेड़ा गांव में एक व्यक्ति ने राशन कार्ड में बंदर का नाम शामिल कर रखा था.

जाहिर है, गरीबों के राशन पर कई तरीके से डाका डाला जा रहा था जिस पर सरकार की कड़ाई, आधार जोड़ने और गिव अप सरीखे अभियान से लगाम लगती नजर आ रही है.

Advertisement
Advertisement