जहां रागों की तालीम दी जानी थी, वहां अब विवादों की बेसुरी गूंज है. संगीत की विरासत पर भ्रष्टाचार की छाया इतनी गहरी हो गई है कि अब सवाल यह नहीं कि अगला राग कौन-सा होगा, बल्कि यह है कि पुलिस का अब अगला कदम क्या होगा?
बात लखनऊ के कैसरबाग इलाके में मौजूद भारतीय संगीत, नृत्य और अन्य कलाओं के लिए समर्पित और देश के प्रतिष्ठित संस्थान भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की हो रही है.
ताल की थाप के बीच 23 जुलाई की शाम को भातखंडे विश्वविद्यालय में मुख्य भवन के भूतल पर अचानक पुलिस के बूटों की धमक सुनाई पड़ने लगी. पुलिस बल के साथ सादी वर्दी में अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) की टीम धडधड़ाते हुए नृत्य के विभागाध्यक्ष (एचओडी) के कमरे में दाखिल हुई और वहां मौजूद ज्ञानेंद्र दत्त बाजपेयी को पकड़ लिया.
सीआइडी की दूसरी टीम ने परिसर के गेट से तालवाद्य विभाग के एचओडी मनोज कुमार मिश्र को भी गिरफ्तार किया. उसी दिन सीआइडी की अलग-अलग टीमों ने लखनऊ के कैसरबाग, मेडिकल कॉलेज चौराहा और राजाजीपुरम में पांच अन्य ठेकेदार और निजी फर्मों के मालिकों को पकड़ा. इससे पूरे विश्वविद्यालय परिसर में बेचैनी का माहौल है.
यह पहला मौका था जब भातखंडे विश्वविद्यालय में दो वरिष्ठ शिक्षक और प्रसिद्ध कलाकारों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. दो वरिष्ठ संकाय सदस्यों समेत कुल सात लोगों की गिरफ्तारी संस्थान की पूर्व कुलपति और लोकप्रिय ख्याल गायिका श्रुति साडोलिकर काटकर के कार्यकाल में हुए 3.31 करोड़ रुपए के वित्तीय गबन की जांच के बाद हुई है.
इस साल 18 जनवरी को मामले की जांच अपने हाथ में लेने वाली सीआइडी ने पाया कि आरोपियों ने कथित तौर पर निजी फर्म संचालकों के साथ मिलीभगत की और विश्वविद्यालय में निर्माण संबंधी परियोजनाओं में प्रक्रियाओं को दरकिनार किया. मई में कोर्ट में दाखिल सीआइडी के आरोप पत्र में काटकर समेत 13 लोगों और 12 निजी फर्मों के नाम हैं.
5 मार्च, 2021 को कैसरबाग पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, राजभवन को सौंपी गई तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर काटकर और अन्य पर वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं का मामला दर्ज किया गया था. जांच का आदेश राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने दिया था, जो विश्वविद्यालय की अध्यक्ष भी हैं. इलाहाबाद हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार दीक्षित के नेतृत्व वाली समिति ने पाया था कि पूर्व कुलपति काटकर ने 2018 में कला मंडप के लिए 3.08 करोड़ रुपए की निर्माण परियोजना को निविदाएं आमंत्रित किए बिना मंजूरी दे दी थी.
एक निजी इंजीनियरिंग फर्म को 23 लाख रुपए का एक और कार्य आदेश जारी किया गया था. इसी तरह, दो वर्षों में कई फर्मों को 4 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान किया गया. इससे पहले 21 दिसंबर, 2020 को पद से हटाए जाने से पहले काटकर को विश्वविद्यालय के कुलपति पद से निलंबित कर दिया गया था. इस तरह पहली बार वर्ष 2009 में कुलपति नियुक्त होने के बाद से दो विस्तारों के साथ उनके असामान्य रूप से लंबे कार्यकाल का अंत हुआ था.
काटकर का कार्यकाल विवादों से भरा रहा. भातखंडे विश्वविद्यालय में 2018 में भ्रष्टाचार की पहली शिकायत करने वाले 'थिएटर ऐंड फिल्म वेलफेयर एसोसिएशन' के सचिव दबीर सिद्दीकी बताते हैं, ''कैसरबाग हेरिटेज ज़ोन में आता है, फिर भी बिना किसी अनुमति के कला मंडप का निर्माण शुरू करवा दिया गया. जब मैंने पड़ताल की तो पूरा मामला घोटाले का लगा.'' सीआइडी को जांच में पता चला है कि भातखंडे विश्वविद्यालय में हुए घोटाले में काटकर, बाजपेयी, मनोज कुमार मिश्र के साथ प्रशासनिक अधिकारी रामकुमार की भी भूमिका थी.
सीआइडी के एक अधिकारी बताते हैं, ''रामकुमार कई छोटे काम बिना टेंडर के सादे कागज पर एजेंसियों को लिखकर देता था और भुगतान भी कर देता था. बदले में कमीशन को आपस में बांटने की भी इसी की जिम्मेदारी थी.'' अब सीआइडी पूर्व कुलपति के कार्यकाल में हुए कई अन्य निर्माण और अतिथि शिक्षकों की तैनाती से जुड़े कागजात भी खंगाल रही है. संपर्क करने पर काटकर ने आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि वे अपने वकील के माध्यम से आरोपों का मुकाबला करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी.
भातखंडे की यह गिरावट एक दिन में नहीं हुई. 2020 में जब इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला, तो उम्मीद थी कि संगीत शिक्षा को नई पहचान मिलेगी. छात्रों को यूजीसी मान्य डिग्री मिल सकेगी और रोजगार के नए अवसर खुलेंगे. लेकिन यह दर्जा उच्च शिक्षा विभाग के बजाए संस्कृति विभाग के जरिए मिला, जिससे वित्तीय और प्रशासनिक संरचना साफ नहीं रही. यूनिवर्सिटी बनने के बाद तैनात कुलपतियों को नियमों की न तो पूरी जानकारी थी और न उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए गए. इस कारण एक ओर कलात्मक स्वायत्तता थी, दूसरी ओर सरकारी नियमों की पेचीदगियां, जो आपस में टकराने लगीं.
इस गड़बड़ी का असर साफ दिख रहा है. आज भातखंडे में स्थायी शिक्षकों के 25 पद हैं, पर सिर्फ चार ही भरे गए हैं. जिनमें से दो—मिश्र और बाजपेयी—अब जेल में हैं. बाकी बचे सिर्फ दो स्थायी शिक्षक, गायन विभाग की प्रोफेसर सृष्टि माथुर और कथक विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर रुचि खरे. पूरे संस्थान में 1,700 से ज्यादा छात्र हैं, उन्हें दो शिक्षकों और कुछ अतिथि शिक्षकों का सहारा है.
भातखंडे की एक पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर बताती हैं, ''यहां नियुक्तियों के लिए न तो विज्ञापन निकाले गए, न नियुक्त लोगों के पास जरूरी योग्यता थी. वेतन में देरी हुई, पेंशन रोकी गई, जिससे लोग कोर्ट का रुख करने लगे.'' भातखंडे की वेबसाइट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में एक और इलाहाबाद हाइकोर्ट में 41 मुकदमे लंबित हैं. इनमें पेंशन, बर्खास्तगी, वेतन भुगतान न होना जैसे मुद्दे हैं. शिक्षण, गैर-शिक्षण और प्रशासनिक पदों में 107 में से 55 खाली हैं. 25 पद शिक्षकों के हैं जो पिछले 20 साल से नहीं भरे गए.
मौजूदा कुलपति प्रो. मांडवी सिंह बताती हैं, ''कालेज से विश्वविद्यालय बनने की प्रक्रिया में पदों के पुनर्गठन में देरी हुई.'' 13 जनवरी, 2025 को जाकर शिक्षकों के पदों का रोस्टर तय किया गया. 21 जनवरी को इसे बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट से पास कराकर शासन को भेजा गया लेकिन अभी तक अनुमोदन नहीं मिला है.
इसी बीच तबला संगतकर्ता सारंग पांडेय ने हाइकोर्ट में प्रोन्नति न मिलने को लेकर केस किया है. पांडेय 2003 से कनिष्ठ प्राध्यापक का वेतनमान पा रहे हैं, लेकिन उनकी नियुक्ति संगतकर्ता पद पर बनी हुई है. हाइकोर्ट ने विश्वविद्यालय को छह हफ्ते में निर्णय देने को कहा है. मुश्किल यह है कि नए रोस्टर के मुताबिक, तबला विभाग में कनिष्ठ प्राध्यापक के तीनों पद आरक्षित हो चुके हैं.
भातखंडे संस्थान को कभी सांस्कृतिक शिक्षा का प्रमुख केंद्र माना जाता था. यहां एक मशहूर नारा भी प्रचलित था—'संडे हो या मंडे, रोज आएं भातखंडे.' लेकिन अब हालत यह है कि रियाज से ज्यादा मुकदमे और गिरफ्तारी चर्चा में हैं. स्टाफ की भारी कमी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उलझनों के बीच यह संस्थान अपने ही अस्तित्व के लिए जूझ रहा है.
इन्होंने छेड़ी भ्रष्टाचार की तान
श्रुति सालोडिकर काटकर, 73 वर्ष वर्ष 2009 से 2020 तक भातखंडे विश्वविद्यालय की कुलपति रहीं. कार्यकाल के दौरान वित्तीय अनियमितता बरतने, पदों के सृजन, वेतनमान और भर्ती प्रक्रिया में शासकीय नियमों की अवहेलना करने की आरोपी.
ज्ञानेंद्र दत्त बाजपेयी, 53 वर्ष भातखंडे विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर, भरतनाट्यम और नृत्य के विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत. पूर्व कुलपति श्रुति सालोडिकर के साथ मिलकर वित्तीय अनियमितता करने के आरोपी. वर्तमान में जेल में बंद.
मनोज कुमार मिश्र (60) वर्ष, भातखंडे विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर तबला और विभागाध्यक्ष तालवाद्य के पद पर कार्यरत. नियमविरुद्ध प्रभारी कुलपति नियुक्त हुए थे. पूर्व कुलपति के साथ मिलकर गबन करने के आरोपी. वर्तमान में जेल में बंद.
रामकुमार, 48 वर्ष, भातखंडे विश्वविद्यालय में तृतीय श्रेणी कर्मचारी के रूप में नियुक्ति हुई थी. पूर्व कुलपति श्रुति सालोडिकर के कार्यकाल में प्रोन्नति पाकर प्रशासनिक अधिकारी के पद पर पहुंचा. वित्तीय अनियमितताओं का मास्टरमाइंड. गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार.
भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर मांडवी सिंह ने कहा कि भातखंडे विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भर्ती के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है. संस्थान में गड़बड़ी करने वालों पर कठोर कार्रवाई होगी.
संगीतमयी परंपरा का ध्वजावाहक
> अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने लखनऊ में कैसरबाग की इमारतों का निर्माण कराया था. इन इमारतों में से एक 'परीखाना' के नाम से जानी जाती थी.
> सन् 1926 में पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने राय उमनाथ बली और अन्य संगीत संरक्षकों के सहयोग से इसी इमारत में एक संगीत विद्यालय की स्थापना की.
> इस विद्यालय का उद्घाटन अवध के तत्कालीन गवर्नर सर विलियम मैरिस ने किया और इसे उनके नाम पर 'मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजिक' नाम दिया गया.
> वर्ष 1966 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस कॉलेज को अपने अधीन ले लिया और इसके संस्थापक के नाम पर इसे 'भातखंडे कॉलेज ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक' नाम दिया.
> राज्य सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार ने 24 अक्तूबर, 2000 को एक अधिसूचना से भातखंडे संगीत महाविद्यालय को 'डीम्ड विश्वविद्यालय' घोषित किया.
> विभिन्न कला रूपों के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करने के लिए जून 2022 में इसका नाम बदलकर 'भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय' कर दिया गया.
> भातखंडे विवि ने बड़े पैमाने पर भारतीय शास्त्रीय शैलियों और वाद्ययंत्रों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें चार विभाग हैं—नृत्य, गायन, वाद्ययंत्र और तालवाद्य.