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राजस्थान: खंडहर हुई 9 हजार स्कूली इमारतें; 400 प्रस्ताव भेजे फिर भी क्यों नहीं बजट दे रही सरकार?

राजस्थान में मासूमों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा सरकारी भ्रष्टाचार. राज्य में घटिया निर्माण, कम दरों पर ठेके और देखभाल की अनदेखी के कारण रोज गिर रहीं स्कूली इमारतें.

खंडहर में बदल चुका झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव का स्कूल
अपडेटेड 2 सितंबर , 2025

झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव की गलियों में अब स्कूल की घंटी नहीं, रोती हुई मांओं की चीखें गूंज रही हैं. हफ्ते भर पहले तक जिन बच्चों की हंसी से पूरा गांव गुलजार था, अब उन मासूमों के नाम मुर्दाघर और सरकारी मुआवजे की फाइलों में दर्ज हैं.

इसी गांव के छोटूलाल 25 जुलाई की सुबह साढ़े सात बजे अपने सात साल के बेटे कान्हा और 10 साल की बेटी मीना को स्कूल छोड़कर खेत की तरफ निकले थे. वे कुछ ही दूर गए होंगे कि गांव में शोर-शराबा सुनाई दिया.

छोटूलाल गांव की तरफ दौड़े. पूरा गांव स्कूल में जमा था. छोटूलाल कुछ देर पहले जिस कमरे में बच्चों को छोड़कर गए थे वह जमींदोज हो चुका था. गांव के लोग मलबे के ढेर से बच्चों को बाहर निकालने में जुटे थे. छोटूलाल भी मलबे के ढेर में अपने बच्चों को ढूंढने लगे. पांच मिनट बाद एक ग्रामीण मीना को गोद में उठाए दिखाई दिया तो वे तुरंत उस तरफ लपके मगर तब तक मीना की सांसें थम चुकी थीं. कुछ मिनट बाद ही गांव का एक नौजवान कान्हा को गोद में उठाए उनके पास आया. कान्हा भी दम तोड़ चुका था.

अपने दोनों बच्चों को खोने के सदमे में छोटूलाल भी बेसुध होकर उसी मलबे के ढेर पर गिर पड़े. जख्मी बच्चों के साथ उन्हें भी अस्पताल में भर्ती कराया गया. इस हादसे में संतान खोने वाले छोटूलाल अकेले नहीं थे. इसी गांव के बीरमचंद, बाबूलाल, लक्ष्मण और हरकचंद भी अपने बच्चे खो चुके थे. पिपलोदी के नजदीक चांदपुरा गांव के उधमसिंह की बेटी प्रियंका की जान भी इस हादसे में चली गई. 25 जुलाई की सुबह झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव के सरकारी स्कूल के कमरे ढह जाने से सात बच्चों की मौत हो गई और 21 घायल हो गए.

26 जुलाई की सुबह इस गांव से छह बच्चों की अर्थियां एक साथ उठीं. पांच बच्चों का तो अंतिम संस्कार भी एक ही चिता पर किया गया. प्रशासन की संवेदनहीनता देखिए कि जल्द से जल्द अंतिम संस्कार करने की जिद में शवों को जलाने के लिए पर्याप्त लकड़ियों की भी व्यवस्था नहीं की गई. लकड़ियों के साथ टायर डालकर मासूमों के शवों को जलाया गया. जिसने भी यह दृश्य देखा उसकी रूह कांप उठी. 

पिपलोदी गांव के मासूमों की चिता की राख अभी पूरी तरह ठंडी भी नहीं हुई थी कि 28 जुलाई की दोपहर जैसलमेर जिले के पूनम नगर गांव में स्कूल का गेट गिरने से नौ वर्षीय एक छात्र की जान चली गई. हादसा स्कूल की छुट्टी होने के बाद हुआ. पूनम नगर के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाला अरबाज अपनी दो बहनों के इंतजार में पास की बालिका स्कूल के गेट पर खड़ा था. तभी गेट का एक भारी-भरकम हिस्सा ढह गया और उसके नीचे दबने से अरबाज की मौत हो गई. इस हादसे में एक शिक्षक और एक छात्रा भी घायल हुए हैं.

यह सिर्फ आठ मासूमों की मौत नहीं बल्कि सरकारी सिस्टम की लापरवाही से कई सपनों के राख बनने की कहानी है. हर शव के साथ एक सपना, एक भविष्य और एक परिवार की खुशियां राख हो गईं. पिपलोदी और पूनम नगर ही नहीं राजस्थान में हजारों स्कूल इसी तरह मौत की पाठशाला बनने की कगार पर हैं. प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में पड़ताल करने पर मलबे के ढेर में बदल चुकीं कई जर्जर स्कूलों की खौफनाक कहानियां सामने आईं.

अस्पताल में भर्ती हादसे में घायल बच्चे

पिपलोदी से महज तीन किलोमीटर दूर चांदपुर कस्बा गांव के सरकारी स्कूल की हालत बेहद खस्ता है. दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें और छत से नाले की तरह रिसता पानी इस स्कूल भवन की खौफनाक हकीकत बयान करता है. 26 जुलाई की सुबह इस स्कूल में शिक्षक बाहर खुले मैदान में बैठे थे और बच्चों की छुट्टी कर दी गई थी. शिक्षक भी बाहर इसलिए बैठे थे क्योंकि कमरों के भीतर जाते हुए उन्हें डर लग रहा था. एक शिक्षक इमरान कह भी उठे, ''स्कूल को सबसे ज्यादा सुरक्षित होना चाहिए मगर वे सर्वाधिक असुरक्षित हैं. पेड़ लगाने और गिनने पर तो सबकी नजर है मगर जर्जर स्कूलों की ओर कोई नहीं देखता.''

बूंदी जिले के डपटा गांव का सरकारी स्कूल 21 जुलाई को ढह गया था. गनीमत रही कि उस वक्त विद्यालय में कोई नहीं था. 26 जुलाई की सुबह यहां मलबे के ढेर पर कुछ बच्चे खेलते मिले. ग्रामीणों ने बताया कि खंड विकास अधिकारी से लेकर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी तक हम इस जर्जर भवन की शिकायत कर चुके हैं मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया. इस स्कूल में एक साल पहले ही तीन लाख रुपए खर्च करके बनाया गया कमरा भी जर्जर हो चुका है. गांव के कैलाश मीणा सीधे आरोप लगाते हैं, ''ठेकेदार ने बजरी की जगह मिट्टी में ही थोड़ी-सी सीमेंट मिलाकर निर्माण किया था. ऐसे में भवन तो जल्द जर्जर होना ही था.'' इसी गांव के सोनू कहते हैं, ''मैं ही नहीं पूरा गांव डरा हुआ है. बरसात में कोई भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजता.''

बारां जिले के रारोती गांव का सरकारी स्कूल 23 जुलाई की रात मलबे के ढेर में बदल गया. सरकार ने इसे उत्कृष्ट विद्यालय का दर्जा दे रखा है मगर यहां के जर्जर हो चुके आठ कमरे इसकी 'उत्कृष्टता' की कहानी बयान करते हैं. हालत यह है कि यहां एक भी कमरा बच्चों के बैठने लायक नहीं है.

हादसों वाले ये इलाके राजस्थान में कोटा के इर्द-गिर्द के हाड़ौती के हैं. प्रदेश के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर भी यहीं के हैं. उन्होंने पहली जुलाई को मारवाड़ इलाके के जोधपुर जिले की बालेसर तहसील के गुंदियाल नाड़ी स्कूल को शिक्षा और खेलकूद के क्षेत्र में मॉडल स्कूल बताते हुए वीडियो शेयर किया था. उसका एक बड़ा हिस्सा भी पिपलोदी की घटना के अगले ही दिन ढह गया. गनीमत यह रही कि यह हादसा स्कूल खुलने से पहले हुआ.

पिछले पांच दिन में प्रदेश में उपरोक्त हादसों समेत 15 स्कूलों के भवन ढह चुके हैं. इनमें प्रतापगढ़ जिले के बोरखेड़ा, बारां के सूरजपुरा, जोधपुर के गुंदियाल नाड़ी और जांटी भांडू, नागौर के खारिया की ढाणी, उदयपुर के रूपावली और झालावाड़ के खेजड़ा का पुरा के स्कूल शामिल हैं. इस फेहरिस्त में रोज नए नाम जुड़ते जा रहे हैं. 27 और 28 जुलाई की रात भी अलग-अलग हिस्सों में कई सरकारी स्कूल ढह गए. जोधपुर जिले के शेरगढ़ और बिलाड़ा में दो सरकारी स्कूलों के बरामदे ढह गए और प्रतापगढ़ के कुशलपुरा गांव में आंगनबाड़ी का पूरा भवन गिर गया.

सूबे के सरकारी स्कूलों के निर्माण और मरम्मत में हुए भ्रष्टाचार की परतें रोज उघड़ रही हैं. स्कूलों के ढहने और जर्जर होने के पीछे की एक बड़ी वजह सामने आई है: शिक्षा विभाग में अन्य विभागों से 10 से 15 फीसद कम बीएसआर (बेसिक शेड्यूल रेट) में भवन निर्माण और मरम्मत के काम किए जाते हैं. इसमें से भी 20 से 30 फीसद रकम अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों की जेबों में चले जाने के आरोप हैं. काम की गुणवत्ता को देखने का जिम्मा सार्वजनिक निर्माण विभाग के एक्सईएन, एईएन और जेईएन का होता है मगर उनमें से अधिकांश अधिकारी कुल लागत की 2-2 फीसद राशि लेकर घटिया गुणवत्ता के निर्माण को मंजूरी दे देते हैं.

जिस कमरे का निर्माण पांच लाख रुपए में होना चाहिए था, कम बीएसआर दर और भ्रष्टाचार के कारण उस कमरे के निर्माण पर महज दो लाख रुपए ही खर्च हो पाते हैं. नियमानुसार ठेका फर्म को पांच साल तक भवन निर्माण की गुणवत्ता की गारंटी देनी होती है. पांच साल की अवधि में भवन में किसी भी तरह की दिक्कत आने पर संबंधित ठेका फर्म को उसकी मरम्मत करनी होती है. मगर राजस्थान में एक भी स्कूल नहीं जिसमें निर्माण के बाद ठेका फर्म ने किसी तरह की मरम्मत की हो. पिपलोदी स्कूल के जो कमरे ढहे हैं उनकी पिछले साल दो लाख रुपए खर्च करके मरम्मत की गई थी. वहां मौके के हालात देखने पर पता चला कि ठेकेदार ने मरम्मत के नाम पर कमरों की छत पर एक पतली-सी प्लास्टिक की जाली बिछाकर उस पर सीमेंट का बारीक लेप कर दिया था. उसी का नतीजा था कि जिन कमरों को सुरक्षित मानकर बच्चों को बिठाया गया था वही भरभराकर गिर पड़ा.

राजस्थान में कुल 70,000 सरकारी स्कूल चल रहे हैं जिनमें से करीब 9,000 स्कूलों के भवन जर्जर हैं. 2,500 स्कूल बिना छत के या अस्थायी टिनशेड में चल रहे हैं और 5,500 स्कूलों में बड़ी दरारें तथा कमजोर दीवारें हादसों को न्यौता दे रही हैं. 20,000 स्कूलों के 48,000 कमरे खस्ताहाल हैं. बारिश से पहले इन जर्जर स्कूलों और उनके भवनों की मरम्मत के लिए 400 प्रस्ताव भेजे गए मगर सरकार की ओर से समय पर बजट जारी नहीं किया गया.

शिक्षक संघ एकीकृत के अध्यक्ष त्रिलोक सिंह कहते हैं, ''हर बार हादसे के बाद ही सरकारी रिपोर्टें क्यों सजाई जाती हैं? पहले कार्रवाई क्यों नहीं होती? जर्जर स्कूलों की सूची शिक्षा कार्यालय में पहले से मौजूद है फिर भी अधिकारी आंखें मूंदे क्यों बैठे रहते हैं?''

सूबे में शिकायत निवारण प्रकोष्ठ का हाल भी बुरा है. झालावाड़-बारां लोकसभा क्षेत्र के सूरजपुरा गांव के सरकारी विद्यालय के जर्जर भवन को लेकर ग्रामीणों ने 16 सितंबर, 2023 को संपर्क पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई. 6 अक्तूबर, 2023 को शिक्षा विभाग ने जानकारी दी कि इस नाम का कोई स्कूल ही नहीं है. पिपलोदी की घटना के दो दिन बाद 27 जुलाई को जब यह स्कूल भरभराकर ढह गया तब शिक्षा विभाग की आंख खुली और उन्होंने माना कि इस नाम का भी कोई स्कूल था.

राजस्थान में आए दिन ढहते स्कूलों को सिर्फ हादसा नहीं कहा जा सकता बल्कि यह उस लापरवाही का नतीजा है जो सरकारी सिस्टम में पसरी है. एक आंख अंतरिक्ष में और दूसरी बीते हुए कल पर गड़ाए राजनैतिक नेतृत्व को भरभराकर गिरता आज दिखाने वाली तीसरी आंख कहां से मिलेगी? जिन परिवारों का सब कुछ मलबे में दब गया, अगर उनकी तीसरी आंख खुली तो बहुत-से दावे और वादे राख हो जाएंगे.

राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा, ''जर्जर सरकारी स्कूलों के लिए बजट दिया जा रहा है मगर इसमें समय लगता है. मैं नैतिकता के आधार पर पिपलोदी की घटना की जिम्मेदारी लेता हूं. मैंने निर्देश दिए हैं कि जो जर्जर भवन हैं उनको ताला लगाया जाए और बच्चों को पढ़ाई के लिए सुरक्षित स्कूलों या भवनों में भेजा जाए.''

स्कूल ढहते गए, विभाग मोबाइल में पेड़ गिनता रहा

राजस्थान में इस साल जर्जर स्कूलों की अनेदखी की सबसे बड़ी वजह यह है कि पूरा शिक्षा महकमा पिछले 25 दिन से मोबाइल में पेड़ लगाने और उनकी गिनती करने में व्यस्त है. राजस्थान के शिक्षा निदेशक सीताराम जाट ने एक आदेश निकाला है कि विद्यालय में पढ़ने वाले हर बच्चे को 10 और शिक्षक को 15 पेड़ लगाने होंगे. पेड़ लगाने के बाद मोबाइल से 'हरियालो राजस्थान' ऐप के जरिए इनकी जियो टैगिंग भी करनी होगी. पिछले 25 दिन से शिक्षक ऐप के जरिए पेड़ लगाने और अधिकारी पेड़ गिनने में व्यस्त हैं.

राजस्थान में 5 लाख शिक्षक और 80 लाख बच्चे नामांकित हैं. अगर हर बच्चा 10 पेड़ लगाए तो इनकी संख्या 8 करोड़ और हर शिक्षक 15 पेड़ लगाए तो इनकी संख्या 7.75 करोड़ होती है. यानी रोज 15.75 करोड़ और महीने भर में 470 करोड़ पेड़ लगाए जाएंगे. अखिल राजस्थान विद्यालय शिक्षक संघ (अरस्तू) के प्रदेशाध्यक्ष रामकृष्ण अग्रवाल कहते हैं, ''आदेश निकालने वाले अधिकारी और मंत्री को यह भी नहीं मालूम कि राजस्थान में 470 करोड़ पेड़ लगाने की जगह नहीं है. वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की जिद में पेड़ जमीन पर नहीं बल्कि मोबाइल में ही उगाए जा रहे हैं.''

27 जुलाई की रात धराशायी उदयपुर जिले के रुपावली गांव का स्कूल

देर आए, दुरस्त आए

झालावाड़ के हादसे के बाद हरकत में आई केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूलों की सुरक्षा ऑडिट करवाने का फैसला किया है. केंद्र की ओर से सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे गए पत्र में यह हवाला दिया गया है कि सभी स्कूलों और सार्वजनिक परिसरों की सुरक्षा ऑडिट की जाए. यह ऑडिट राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों और आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देशों के अनुसार होनी चाहिए. राजस्थान सरकार ने भी यह फैसला किया है कि विधायक अपने कोष की 20 फीसद राशि जर्जर भवनों के निर्माण और मरम्मत के लिए दे सकते हैं.

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