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2006 मुंबई ट्रेन धमाकों के आरोपी दोषमुक्त, तो आखिर असली गुनहगार कौन?

19 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आरोपियों को दोषमुक्त किए जाने के फैसले से 2006 के मुंबई ट्रेन बम धमाकों की दोषपूर्ण जांच उजागर हुई है.

7/11 मुंबई ट्रेन धमाकों के 12 आरोपी; (दाएं) जुलाई 2006 में एक क्षतिग्रस्त रेल डिब्बे में पुलिस
अपडेटेड 28 अगस्त , 2025

वह एक सामान्य शाम थी मगर महज छह मिनट में ही वह सुहानी से डरावनी बन गई, जैसे नरक से बिजली गिरी हो. लेकिन जैसी कि भारत में कहावत चलती है, न्याय में हमेशा देर होती है—और अक्सर मूर्खतापूर्ण. जुलाई 2006 में मुंबई के मुख्य उपनगरीय ट्रेन नेटवर्क में हुए विस्फोटों को लगभग दो दशक बीत चुके हैं पर इसमें किसका हाथ था, यह आज तक पता नहीं चल सका है.

दोषियों को सजा दिलाना तो दूर की बात है. मामले में अब तक जिन लोगों पर अभियोग चलाया गया था, उन्हें तब तक दोषी माना गया जब तक कि वे बेकसूर साबित नहीं हो जाते—या जब तक कुछ साबित ही न हो पाए. 21 जुलाई को बंबई हाइकोर्ट के दो न्यायाधीशों की बेंच ने 12 आरोपियों को बरी कर दिया जो तब तक अपने जीवन के लगभग 19 साल जेल में गुजार चुके थे. 

वेस्टर्न रेलवे लाइन पर 11 जुलाई, 2006 को विभिन्न लोकल ट्रेनों के प्रथम श्रेणी के डिब्बों में सात विस्फोट हुए. ये बम प्रेशर कुकर में रखे गए थे और महज छह मिनट के भीतर—शाम 18:23 बजे से 18:29 बजे के बीच—फटे, जिनमें 187 लोग मारे गए और 827 घायल हुए.

इसके बाद इस घटना की एक व्यापक जांच शुरू हुई. इसके कई आधार संदिग्ध और शुरुआत गलत थी जिससे यह पक्का हो गया कि कार्यवाही विवादों में घिर जाएगी. आतंकवाद-निरोधक दस्ते ने शुरू में निष्कर्ष निकाला था कि ये विस्फोट प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) ने लश्कर-ए-तैयबा की मदद से किए थे. बाद में मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने दावा किया कि यह इंडियन मुजाहिदीन के एक मॉड्यूल की करतूत थी जिसका उसने भंडाफोड़ किया था.

कानून का सवाल
गिरफ्तार लोगों के अंतिम समूह पर मकोका (उस समय बने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम 1999) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) अधिनियम 2008 के तहत एक विशेष अदालत में मुकदमा चलाया गया. सितंबर 2015 में 12 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया. उनमें से पांच को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास मिला. मृत्युदंड पाने वाले लोगों में से एक की 2021 में नागपुर जेल में अपील का इंतजार करते हुए कोविड संक्रमण से मृत्यु हो गई.

हाइकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ''हर पहलू से...उचित संदेह से परे अपराध सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा.'' न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की बेंच ने कहा कि निर्णय की वैधता और दोषसिद्धि तथा सजा का आदेश ''रद्द और निरस्त किए जाने योग्य है.'' उसने विभिन्न आधारों पर इकबालिया बयानों की स्वीकार्यता को चुनौती दी, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या वे स्वेच्छा से दिए गए थे या उत्पीड़न करके लिए गए थे. यह भी कि क्या मकोका कानून पिछली तारीख से लागू हो सकता है.

महाराष्ट्र सरकार 'स्तब्ध करने वाले फैसले' के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई, जिसने हाइकोर्ट के निर्णय पर रोक लगा दी लेकिन रिहा किए गए लोगों को वापस जेल भेजने से इनकार किया. मृतकों के परिजनों ने भी फैसले पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है. कुल मिलाकर आतंक की पड़ताल की विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई.

खास बातें
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बंबई हाइकोर्ट ने जुलाई 2006 के उपनगरीय ट्रेन बम विस्फोट केस में 12 अभियुक्तों को बरी कर दिया.

> सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई लेकिन रिहा किए लोगों को फिर जेल भेजने से मना किया.

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