बाड़मेर के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गोविंद सिंह के घर पर 15 जून को पुराना मीटर हटाकर उसकी जगह नया स्मार्ट मीटर लगाया गया. 30 जून को उनके पिछले माह तक का 4,893 रुपए का बिल आया. पहली जुलाई को यह बिल चुकाकर गोविंद सिंह निश्चिंत हो गए मगर अगले ही दिन दो जुलाई को उन्हें 9,889 रुपए का एक और बिल थमा दिया गया.
इस संबंध में जब उन्होंने डिस्कॉम के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि आपका पुराना बिल सिस्टम में अपडेट नहीं था जिसके कारण यह गफलत हुई है. गोविंद सिंह कहते हैं, ''मेरा दो माह का बिल भी कभी 3,500 रुपए से ज्यादा नहीं आया मगर स्मार्ट मीटर लगने के 17 दिन बाद ही 9,889 रुपए का बिल आ गया.''
इसी कॉलोनी के मनोज सिंह राठौड़ ने भी पहली जुलाई को अपना 800 रुपए का बिल चुकाया था. एक निजी बैंक में सहायक की नौकरी करने वाले मनोज के खाते में 9 जुलाई की सुबह 11,000 रुपए वेतन आया और उसके कुछ समय बाद ही 8,500 हजार रुपए का बिजली बिल उनके बैंक खाते से ऑटो डेबिट कर लिया गया. मनोज का कहना है, ''मेरे घर में न पंखा है, न फ्रिज. रात को सिर्फ दो बल्ब जलते हैं. जितना बिल मेरे सालभर में नहीं आता उससे ज्यादा बिल स्मार्ट मीटर लगाने के बाद महज 17 दिन में आ गया है.''
बाड़मेर के ही हिंगलाजदान को 5 जुलाई को जो बिल मिला उसमें उनकी बिजली खपत 187 यूनिट थी मगर स्मार्ट मीटर लगने के अगले ही दिन 6 जुलाई को उनकी बिजली खपत 287 यूनिट हो गई. हिंगलाज ने डिस्कॉम से पता किया तो उनके पुराने बिलों का औसत निकालकर उन्हें जो बिल थमाया गया वह 887 यूनिट था, जिसकी राशि करीब साढ़े आठ हजार रुपए होती है. उन्होंने डिस्कॉम के दफ्तर पहुंचकर विरोध जताया तो 427 यूनिट समायोजित करने का भरोसा दिलाया गया.
यह पीड़ा अकेले गोविंद, मनोज और हिंगलाज की नहीं है बल्कि राज्य के उन हजारों बिजली उपभोक्ताओं की है जिनके घरों में स्मार्ट मीटर लगाने के बाद बिल अचानक बढ़ गए हैं. स्मार्ट मीटर को लेकर लोगों का आक्रोश इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि लोगों को बिना पूर्व जानकारी या उनकी सहमति लिए पुराने मीटर तोड़कर उनकी जगह ये नए मीटर लगाए जा रहे हैं.
कई जगह बिलों में बढ़ी हुई राशि आ जाने से लोग यह अंदेशा जता रहे हैं कि ये स्मार्ट मीटर पुराने मीटर से तेज चल रहे हैं. लोगों को डर है कि चार माह बाद जब ये मीटर प्री पेड हो जाएंगे तब पहले रिचार्ज कराने के बाद ही उन्हें बिजली मिलेगी. सूबे का बिजली विभाग स्मार्ट मीटर की प्रदेशभर से आ रही शिकायतों का अब तक सही ढंग से निस्तारण नहीं कर पाया है. नतीजतन राज्य के कई इलाकों में लोग स्मार्ट मीटर के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं.
राजस्थान में इस समय स्पॉट बिलिंग की व्यवस्था है. बिजली कंपनियों ने मीटर रीडिंग के लिए अलग-अलग फर्मों को ठेका दे रखा है. इन फर्मों के कर्मचारी मौके पर जाकर मीटर की रीडिंग लेते हैं और तुरंत उपभोक्ता को बिल थमा देते हैं. स्मार्ट मीटर लगने के बाद रीडिंग ऑनलाइन मिल जाएगी जिससे इन कर्मचारियों की नौकरी पर संकट बनेगा.
पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास सवाल करते हैं, ''पहले से लगे इलेक्ट्रॉनिक मीटर अगर खराब नहीं हैं तो उनकी जगह ये नए मीटर क्यों लगाए जा रहे हैं? स्मार्ट मीटर हवा से नहीं चलेगा, यह लोगों की जेब काटेगा. सरकार को इसमें बड़ा कमीशन मिलने वाला है.'' सांसद और माकपा नेता अमराराम का आरोप है, ''केंद्र और राज्य की सरकार स्मार्ट मीटर के नाम पर उपभोक्ताओं को लूट रही हैं. बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए देशभर में पांच लाख करोड़ रुपए के स्मार्ट मीटर खरीदे जा रहे हैं.''
लेकिन राजस्थान के बिजली मंत्री हीरालाल नागर का दावा है कि ''स्मार्ट मीटर लगने के बाद गरीब और आम आदमी अब अपनी आमदनी और खपत के अनुसार बिजली का उपयोग कर सकेगा. बिजली सुधार के लिए स्मार्ट मीटर बहुत उपयोगी साबित होने वाले हैं.''
ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड (ईईएसएल) के जरिए राजस्थान में घरेलू, कृषि और व्यावसायिक बिजली उपभोक्ताओं के पुराने मीटर बदलकर 1.43 करोड़ स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं. कई राज्यों में जहां प्री पेड मीटर लगाए जा रहे हैं, राजस्थान में अभी पोस्ट पेड स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं.
इस योजना के तहत पूरे भारत में 25 करोड़ पुराने मीटर बदलकर उनकी जगह स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे. सरकार का दावा है कि स्मार्ट मीटर लगाए जाने से 2031-32 तक करीब 11 लाख करोड़ रुपए के राजस्व घाटे की बचत होगी. केंद्रीय विद्युत मंत्री मनोहरलाल खट्टर की अध्यक्षता में बिजली मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की बैठक में यह जानकारी दी गई कि अब तक देश में 11.5 करोड़ स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं.
केंद्र सरकार की पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत 31 अगस्त, 2026 तक देश के सभी सरकारी कार्यालयों में स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य रखा गया है. स्मार्ट मीटरिंग के लिए प्रति उपभोक्ता 15 फीसद तक अनुदान दिए जाने का प्रावधान है जो अधिकतम 900 रुपए तक हो सकता है. विशेष श्रेणी में शामिल राज्यों के लिए यह अनुदान 1,350 रुपए या मीटर लागत का 22.5 फीसद तक होगा.
स्मार्ट मीटरिंग के लिए केंद्र सरकार की ओर से सामान्य राज्यों के वास्ते कुल लागत की 60 फीसद राशि वहन की जा रही है वहीं विशेष श्रेणी के राज्यों को 90 फीसद वित्तीय सहायता केंद्र सरकार देगी. इस योजना के तहत उपभोक्ताओं से हर माह 75 रुपए मीटर शुल्क लिए जाने का प्रावधान है मगर यह शुल्क उपभोक्ताओं से नहीं वसूलकर सरकार डिस्कॉम को सब्सिडी के तौर पर जारी करेगी.
सरकार का दावा है कि उपभोक्ता अगर प्रीपेड आधारित यानी 'पहले पैसा फिर बिजली' का विकल्प चुनते हैं तो उन्हें 15 पैसे प्रति यूनिट सस्ती बिजली मिलेगी. विपक्ष सरकार के मुफ्त मीटर लगाने के दावे को लेकर भी हमलावर है. बकौल अमराराम, ''सरकार इस मीटर को मुफ्त में लगाने का हवाला दे रही है मगर हमें जानकारी मिली है कि इस मीटर की कीमत 25,000 रुपए है. खराब होने के बाद उपभोक्ता मीटर लगवाएगा तो उससे 25,000 की वसूली होगी.''
राजस्थान में स्मार्ट मीटर लगाने का काम कांग्रेस सरकार में ही शुरू हो गया था मगर भाजपा सरकार बनने के बाद इस काम में तेजी आई. 2022 में जयपुर डिस्कॉम में स्मार्ट मीटर लगाए जाने का काम शुरू हुआ था मगर उस वक्त जयपुर डिस्कॉम के तहत आने वाले 15 जिलों में महज दो लाख स्मार्ट मीटर ही लगाए जा सके. बहरहाल, नए मीटरों की कथित 'तेजी' के साथ ही राज्य में उसके विरोध की लहर भी तेज होती जा रही है.
इस मामले में बिजली मंत्री हीरालाल नागर ने कहा, ''अब तक राज्य में स्पॉट बिलिंग की व्यवस्था थी जिसमें विभाग का बंदा जाकर मीटर रीडिंग लेता था. कई जगह हमें शिकायतें मिलीं कि लोगों ने अपने मीटर खराब कर दिए ताकि स्पॉट बिलिंग न हो.''
वहीं, माकपा लोकसभा सदस्य अमराराम ने कहा, ''अब तक तो बिजली उपयोग करने के एक या दो माह बाद ही बिजली के बिल आते थे मगर अब पहले ही उपभोक्ताओं से बिल वसूला जाएगा. माकपा प्रदेश भर में स्मार्ट मीटर के खिलाफ आंदोलन कर रही है.''
खास बातें
> बताया जा रहा है कि स्मार्ट मीटरिंग योजना से बिजली की चोरी और छीजत कम हो जाएगी.
> विद्युत वितरण निगम कंपनियों के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में हर साल औसतन 166 करोड़ रुपए की बिजली चोरी होती है.