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तमिलनाडु: मंदिरों के पैसे से कॉलेज बनाने के मुद्दे पर क्यों छिड़ी सियासी बहस?

तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से ये सियासी चर्चा तेज हो गई है कि क्या मंदिरों के धन का इस्तेमाल कॉलेज और स्कूल बनाने में होना चाहिए?

तमिलनाडु का मदुरै स्थित श्री मीनाक्षी मंदिर
अपडेटेड 25 अगस्त , 2025

दक्षिण में मंदिरों पर—ज्यादा सटीक ढंग से कहें तो मंदिर के धन पर—नियंत्रण ऐतिहासिक रूप से परंपरावादियों और तर्कवादियों के बीच भावनात्मक विवाद का मुद्दा रहा है. परंपरावादी धार्मिक दायरे में स्वायत्तता के पक्षधर हैं और तर्कवादियों की तरफ से इसके किसी भी उल्लंघन को अतिक्रमण के तौर पर देखते हैं—यह जनता के जज्बात को भड़काने का आसान तरीका भी है.

ताजा चेतावनी अन्नाद्रमुक के नेता एडप्पाडी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) की चुनावी टिप्पणी की शक्ल में आई. राज्यव्यापी यात्रा के दौरान उन्होंने सत्तारूढ़ द्रमुक पर मंदिरों के धन का धर्म से अलग उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. देखते ही देखते यह चुनावी रणनीतियों, कानून और द्रविड़ राजनीति की विरासत से जुड़े बड़े टकराव में बदल गया.

ईपीएस ने कोयंबत्तूर में कहा, ''द्रमुक को मंदिर देखने से चिढ़ है. वे मंदिरों का धन ले रहे हैं और कॉलेज बना रहे हैं. आप जैसे नेकदिल लोग मंदिर के विकास के लिए हुंडियालों में दान देते हैं. यह धन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ निधि (एचआरऐंडसीई) विभाग के पास जाता है. वे इस धन का दूसरे उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं. क्या यह अनुचित नहीं है? क्या तमिलनाडु की सरकार को अपने संसाधनों से महाविद्यालयों में धन नहीं लगाना चाहिए?''

द्रमुक की प्रतिक्रिया तीखी और त्वरित थी. पहली चोट करते हुए मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा, ''उनके वक्त में भी मंदिर के धन का इस्तेमाल कॉलेजों के उद्घाटन के लिए किया जाता था. एचआरऐंडसीई अधिनियम मंदिरों के अधिशेष धन का इस्तेमाल शैक्षिक और जनकल्याण के उद्देश्यों के लिए करने की इजाजत देता है.'' फिर उन्होंने और भी तीखा प्रहार किया: ''भाजपा की डब की हुई आवाज होने के बजाए ईपीएस अब उसकी मौलिक आवाज बन गए हैं.'' उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन भी कम तीखे नहीं थे: ''ईपीएस पूरी तरह संघी हो गए हैं. यह अन्नाद्रमुक की आवाज नहीं है; यह आरएसएस-भाजपा की आवाज है.''

इस आरोप का एक संदर्भ है. आरएसएस-भाजपा दशकों से कहते आ रहे हैं कि मंदिरों का प्रशासन-संचालन पूरी तरह 'श्रद्धालुओं' के हाथों में होना चाहिए. इस मांग को जून में मदुरै में हुए विश्व मुरुगन भक्त सम्मेलन में फिर से उठाया गया. भाजपा नेताओं की मौजूदगी के साथ इस आयोजन में प्रस्ताव पारित कर मंदिरों के मामलों को सरकार के नियंत्रण से 'मुक्त करने' की मांग की गई. पार्टी ने 12 जुलाई को फिर मुद्दा छेड़ते हुए ''मंदिरों की संपदा की लूट'' को रोकने के लिए पारदर्शिता पर जोर दिया और इस मुद्दे पर श्वेत पत्र की मांग की. भाजपा के प्रवक्ता ए.एन.एस. प्रसाद पूछते हैं, ''सवाल सीधा-सादा और जायज है: शिक्षा के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल क्यों न किया जाए?''

तमिल लेखक और तमिलनाडु एससी-एसटी आयोग के उपाध्यक्ष इमायम को मंदिरों के धन को शिक्षा के लिए रोकने का विचार ''न केवल गलत बल्कि विद्वेषपूर्ण'' लगता है. साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक का कहना है कि तमिलनाडु ने ''धर्म का निजीकरण करने और मंदिरों को एक्सक्लूसिव जोन में बदलने के दबाव'' का ''ऐतिहासिक रूप से विरोध किया और जीत हासिल'' की है. दरअसल, मंदिर के धन से सामाजिक उद्देश्य हासिल करना द्रमुक का नवाचार नहीं है; बहुत पहले 1961 में कांग्रेस की हुकूमत के तहत पलानी मंदिर के अधिशेष धन की मदद से पलानीदावर भारतीय संस्कृति महाविद्यालय की स्थापना की गई थी.

हमले से थोड़े विचलित ईपीएस ने कहा, ''मै शिक्षा के खिलाफ नहीं हूं. लेकिन जब मंदिर का धन कॉलेजों में लगता है तो उनमें अक्सर पर्याप्त सुविधाएं नहीं होतीं. सरकारी धन से चल रहे कॉलेजों में बेहतर सुविधाएं होती हैं. मैं बस इतना कहना चाहता था.'' प्रसाद भी उनके बचाव में उतर आए. उन्होंने कहा कि ईपीएस की चिंता विशुद्धत: ''धन लगाने की रणनीति'' को लेकर थी.

यह मुद्दा अन्नाद्रमुक के वोट आधार के बड़े हिस्से की दुखती रग हो सकता है. 2026 का विधानसभा चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आ रहा है, धर्म से जुड़े मुद्दों के राजनैतिक तौर पर गरमाने की संभावना और प्रबल होगी, और ऐसे में अन्नाद्रमुक के लिए दो नावों की सवारी करना मुश्किल हो सकता है. द्रमुक के लिए यह कम संकट का सबब लगता है, क्योंकि धर्म के इर्द-गिर्द राजनीति होने और बढ़ने से उसका आधार मजबूत ही होता है.

खास बातें

> ईपीएस ने सवाल उठाया कि क्या मंदिरों का धन गैर धार्मिक कार्यों में प्रयोग किया जाना चाहिए?

> जवाबी हमले में डीएमके ने उनके रुख को शिक्षा विरोधी बताया.

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