scorecardresearch

पश्चिम बंगाल: CM ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव से पहले 'बांग्ला गौरव' को क्यों बनाया राजनीतिक हथियार?

BJP शासित प्रदेशों में बांग्ला भाषी कामगारों को 'अवैध नागरिक' करार दिए जाने की खबरों को हाथोहाथ लेते हुए तृणमूल कांग्रेस ने उसके जवाब में बांग्ला गौरव का राग जोरदार तरीके से छेड़ दिया है

The nation: West Bengal
कोलकाता में 16 जुलाई को एक रैली के दौरान ममता बनर्जी और सांसद अभिषेक बनर्जी.
अपडेटेड 27 अगस्त , 2025

पश्चिम बंगाल अब जब 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटा है तो सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) भी पहचान की राजनीति में लिपटे जज्बाती अभियान में पूरी तरह कूद गई है. इस अभियान के केंद्र में बांग्ला भाषा और सांस्कृतिक गौरव की रक्षा का एक ताकतवर नैरेटिव गढ़ा गया है. तृणमूल का आरोप है कि भाजपा शासित राज्यों से बांग्ला भाषी प्रवासी कामगारों को परेशान करने, उनको अपराधी बताने और उन्हें बाहर निकालने का एक संगठित प्रयास चल रहा है.

तृणमूल का दावा है कि ये घटनाएं पूरे भारत में बांग्ला पहचान को अवैध ठहराने की बड़ी कोशिश का हिस्सा हैं. इसमें भाजपा के वे प्रयास भी हैं जिसमें वह अपने बंगाली विरोधी अतीत की विरोधाभासी छवि से खास उत्तर भारतीय लहजे में बाहर आना चाहती है. इसकी ताजा झलक उसके इस फैसले में दिखती है जिसमें भाजपा ने समिक भट्टाचार्य को पार्टी का राज्य प्रमुख नियुक्त किया है. वे खांटी संघी और सौम्य व्यक्तित्व वाले हैं. उनकी नियुक्ति के दौरान बांग्ला धार्मिक छवि, विशेष रूप से देवी काली भी खूब नजर आईं. 

लिहाजा वे सारी वजहें मौजूद हैं जिनमें तृणमूल क्षेत्र निषेध का मिलिट्री स्टाइल ऑपरेशन चलाए. तृणमूल का अभियान 16 जुलाई को चरम पर पहुंच गया जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने मध्य कोलकाता में एक विशाल रैली का नेतृत्व किया जिससे संकेत मिला कि पार्टी इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है.

ममता ने आरोप लगाया कि भाजपा बंगालियों को उनके ही देश में 'घुसपैठियों’ का दर्जा देने की कोशिश कर रही है. बारिश के बीच विशाल भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार ने गुपचुप भाजपा शासित राज्यों को बिलावजह बांग्ला भाषी लोगों को गिरफ्तार करने और खदेड़ने का निर्देश दिया है.

उनके शब्द थे, ''आप बंगालियों को क्यों प्रताड़ित कर रहे हैं? कागजात दिखाने के बाद भी लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. उनका कसूर क्या है? सिर्फ बांग्ला में बात करना?’’ इस मुद्दे पर चिंता जताने वाली तृणमूल अकेली नहीं. 15 जुलाई को माकपा ने भी बांग्ला भाषी प्रवासियों के साथ एकजुटता को मार्च निकाला.

उत्पीड़न का यह बोध कुछ बहुचर्चित मामलों से भी पुष्ट हुआ है. दिल्ली के वसंत कुंज की जय हिंद कॉलोनी में सैकड़ों बांग्ला भाषी दिहाड़ी मजदूर रहते हैं. यहां सागरिका घोष, साकेत गोखले, डोला सेन और सुखेंदु शेखर रॉय जैसे तृणमूल सांसद तथा नेता उन खबरों के बाद धरने पर बैठ गए जिनमें कहा गया था कि वैध आधार और मतदाता पहचान पत्र वाले निवासियों को 'अवैध’ बता दिया जा रहा है. बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी काट दी गईं. बंगाली मजदूरों को निशाना बनाए जाने की ऐसी ही खबरें महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम से भी सामने आई हैं.

एक मामला मुर्शिदाबाद के हरिहरपाड़ा के 34 वर्षीय मिस्त्री निजामुद्दीन शेख से जुड़ा था. उचित पहचान के बावजूद 10 जून को मुंबई पुलिस ने उन्हें उठा लिया, उन्हें त्रिपुरा ले जाया गया और बीएसएफ ने कथित तौर पर उन्हें बांग्लादेश की सीमा में भेज दिया. वहां से लौटने के बाद निजामुद्दीन ने कहा, ''उन्होंने लाठियों और जूतों से हमको पीटा. हमारे पास न फोन थे, न पैसे—था तो सिर्फ डर.’’

BSF की ओर से पहले बांग्लादेश भेज दिए गए तीन बंगाली देश में वापस लाए जाने के बाद कूच बिहार में

जब उन्होंने बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) से संपर्क किया तो उन्हें आखिरकार 17 जून को कूचबिहार के रास्ते वापस भेज दिया गया. उन्होंने कहा, ''सबूत दिखाने के बाद भी कि मैं भारतीय हूं, उन्होंने मेरे साथ अपराधी जैसा बर्ताव किया.’’ इसी तरह से मुर्शिदाबाद के मिनारुल शेख, वर्धमान के मुस्तफा कमाल शेख और उत्तर 24 परगना के फजल और तस्लीमा मंडल सरीखे लोगों को भी कथित तौर पर जबरन देश से बाहर कर दिया गया था.

बाद में राज्य के हस्तक्षेप से उन्हें वापस लाया गया. वीरभूम के पिकोर गांव से कथित तौर पर बांग्लादेश भेजे गए छह बंदियों से संबंधित एक याचिका पर कार्रवाई करते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने 11 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्रालय से 'बांग्लादेशी नागरिकों’ को निष्कासित करने के उसके अभियान का ब्योरा पेश करने को कहा और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव मनोज पंत को निर्देश दिया कि वे दिल्ली में अपने समकक्ष के साथ तालमेल करें और रिपोर्ट दाखिल करें.

तृणमूल के राज्यसभा सांसद और पश्चिम बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम कहते हैं, ''यह असंवैधानिक है. बीएसएफ ने भारतीय नागरिकों को निकालने से पहले राज्य से संपर्क नहीं किया.’’ उनके मुताबिक, पश्चिम बंगाल के करीब 22 लाख प्रवासी मजदूरों ने बोर्ड के पास पंजीकरण कराया है. ममता ने भी बताया है कि दूसरे राज्यों के 1.5 करोड़ प्रवासी मजदूर बंगाल में हैं और वे पूरे सम्मान से वहां रहते हैं.

तृणमूल ने अपने अभियान को 'बंगालियाना’ की लड़ाई के रूप में पेश किया है. दरअसल, 'बंगालियाना’ एक समग्र बांग्ला पहचान है जो धर्म और जाति से परे है, मगर भाषा और संस्कृति से जुड़ी हुई है. इस मसले के इर्द-गिर्द जज्बाती माहौल का मकसद बंगाल के ग्रामीण वोटरों में पैठ मजबूत करना है जहां से बड़ी संक्चया में प्रवासी मजदूर आते हैं.

भाजपा का जवाब 
अनुमान के अनुरूप, भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. ममता की रैली वाले दिन विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल से मुलाकात की और बंगाल के सीमावर्ती जिलों में 'जनसंख्या में असामान्य वृद्धि’ का मुद्दा उठाया. उन्होंने इसे असम में बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के संदिग्ध ऑपरेटर की गिरफ्तारी से जोड़ा, जिसने बंगाल में कथित तौर पर तीन बार मतदान किया था.

सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया कि बंगाल के 340 में से 80 ब्लॉकों को अब ''वे अफसर चला रहे हैं जो अवैध घुसपैठिए हैं.’’ अधिकारी ने मांग की कि बिहार की तरह यहां भी मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जाए. तृणमूल ने इस हल्के-फुल्के स्पष्टीकरण का जवाब नाम, दस्तावेज और भावुक गवाहियों से दिया जिनमें हिंदू पीड़ित भी शामिल हैं. पिछले हफ्ते ओडिशा में 200 प्रवासी बंगाली कामगारों को हिरासत में लिया गया.

इनमें हुगली के चिनसुराह के देवाशीष दास भी शामिल थे. कूचबिहार के दिनहाता के राजवंशी उत्तम कुमार ब्रजवासी को कथित तौर पर असम के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का नोटिस मिला जबकि वे पांच दशक से ज्यादा समय से पश्चिम बंगाल में रह रहे थे. यहां तक कि बंगाल का मतुआ समुदाय, जो पारंपरिक रूप से भाजपा से जुड़ा रहा है, वह भी इसका असर महसूस कर रहा है.

पुणे में काम कर रहे हबरा के आरुष अधिकारी को भाजपा से जुड़े अखिल भारतीय मतुआ संघ से जारी मतुआ पहचान पत्र के बावजूद गिरफ्तार किया गया. उनके भाई भगीरथ कहते हैं, ''हम भाई को बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं. उसके पास सभी दस्तावेज हैं.’’

इस बीच, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भट्टाचार्य ने घोषणा की, ''किसी भी बंगाली हिंदू और किसी भी भारतीय मुसलमान को नागरिकता साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं देना होगा. यह बंगाल भाजपा का आश्वासन है. तृणमूल की घिनौनी राजनीति उल्टी पड़ेगी.’’ मगर इस बयान—या 'बंगाली मुसलमानों’ की श्रेणी का जिक्र न होने—से भाजपा के रुख की पड़ताल तेज हो गई है, खासकर 9 जुलाई को असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा के बयान के बाद.

सरमा ने अपने बयान में कहा था कि अगर लोग जनगणना के दस्तावेज में अपनी मातृभाषा 'बांग्ला’ बताएं तो असम में बंगालियों की संख्या का पता लगाना आसान है. जहां उनकी टिप्पणियों ने बंगालियों की तुलना 'अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों’ से करने की कोशिश पर हंगामा मचा दिया, वहीं सरमा ने इस बात से इनकार किया कि वे 'बंगाली विरोधी’ हैं. उन्होंने दावा किया कि असम में बांग्ला भाषी लोग अवैध घुसपैठ के खिलाफ उनकी सरकार के अभियान को समझते हैं.

इस विवाद ने भाषायी पहचान, प्रवासन और शासन व्यवस्था से जुड़े बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. बंगाली राष्ट्रवादी समूह बांग्ला पोक्खो के संस्थापक गर्गा चटर्जी ने बंगाली मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना की. वे पूछते हैं, ''सरकारी नौकरियों में बांग्ला भाषियों के लिए आरक्षण क्यों नहीं है? तृणमूल को इस मुद्दे का राजनैतिक फायदा उठाने के बजाए रोजगार पैदा करने पर ध्यान देना चाहिए.’’

फिर भी ममता बनर्जी ने इस मुद्दे को उठाने का विकल्प चुना है. उन्होंने 16 जुलाई को कहा, ''अगर आप मुझे परेशान करेंगे, तो मैं देश भर में घूमूंगी. देखते हैं कि आप मुझे कैसे डिटेंशन कैंप में डालते हैं. मैं वहां बांग्ला में बोलूंगी.’’ अब बंगाल 2026 की ओर बढ़ रहा है. तृणमूल का दावा है कि यह महज राजनैतिक अभियान नहीं बल्कि सांस्कृतिक प्रतिरोध आंदोलन है जो उसके पारंपरिक समर्थन आधार से परे भी जा सकता है. भाषा, पहचान और गरिमा ऐसी केंद्रीय धुरी बन गए हैं जिनके इर्द-गिर्द आने वाले महीनों में राज्य की राजनीति घूमेगी.

Advertisement
Advertisement