अचानक आई बाढ़ का हिमाचल प्रदेश में एक अजीब नतीजा दिखा. उससे सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के लिए एकजुटता दिखाने का मौका मिल गया. अलबत्ता, अच्छे वक्त में भी वह बिखरी-बिखरी दिखती रही है. मुख्यमंत्री ने अपनी सक्रियता से लोगों का ध्यान खींचा. वे राहत का समन्वय, केंद्रीय सहायता की मांग, पर्यटकों को आश्वस्त करते सुर्खियों में देखे गए. उनकी सक्रियता की सियासी वजहें भी हैं.
इस साल के अंत में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं और सत्तारूढ़ कांग्रेस के पांव जमीन पर नहीं दिखते. उपमा में कहें तो उसका दायां पैर गायब है. सुक्खू के वफादारों और प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के खेमे के बीच सत्ता संघर्ष खत्म नहीं हो रहा, जिससे पार्टी और सरकार लकवाग्रस्त स्थिति में है.
इस स्थिति पर परदा डालने की कोशिश में सुक्खू ने 10 जुलाई को एक गुगली फेंकी. उन्होंने स्थानीय निकाय चुनावों के लिए सीट आरक्षण को यह कहकर टाल दिया कि नई जनगणना के अभाव में सटीक जातिगत संख्या का अंदाजा नहीं है, इसलिए इस पर फैसला नहीं किया जा सकता. इसके लिए उन्हें चुनाव आयोग से फटकार भी मिली. जाहिर है, इस पर बयानबाजी जारी है लेकिन यह सब सुर्खियों से ध्यान हटाने की ही कवायद है.
बाढ़ राहत कार्य की वजह से सियासी सुर्खियां थोड़ी थम-सी गई हैं. भूस्खलन से सड़कें साफ करने के लिए बुलडोजर चल रहे हैं और मूसलाधार बारिश से बह रहे बरसाती नालों पर अस्थायी पुल बन रहे हैं. लेकिन सत्ताधारी पार्टी के बहुत सारे पुल टूटे हुए हैं. पार्टी की जिला और ब्लॉक स्तर की इकाइयां नवंबर, 2024 में ही भंग कर दी गई थीं. प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) भी भंग कर दी गई थी, जिसका अभी तक पुनर्गठन नहीं हुआ है.
भाजपा ने इस खालीपन को भांपकर अपनी पूरी फौज उतारने में जरा भी देर नहीं लगाई. पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर स्थानीय निकाय चुनावों के लिए अपनी रणनीति को धार दे रहे हैं—इस तरह वे घुमावदार पहाड़ी रास्तों से सफर करके 2027 के विधानसभा चुनावों की भी जमीन तैयार कर रहे हैं.
इसके उलट, कांग्रेस में नेताओं का जमावड़ा है और निचले स्तर पर खालीपन है. इसे पार्टी मुश्किल से छिपा पाती है और सरकार तो बाल-बाल बची है. हालांकि सुक्खू सरकार पर पकड़ बनाए हुए हैं. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की 69 वर्षीय विधवा प्रतिभा सिंह की भावनात्मक अपील है और राजनैतिक वफादारों पर पक्की पकड़ है. वे अपने बेटे राज्य में मंत्री विक्रमादित्य के साथ आलाकमान को भगवा धारण करने की धमकी देने से भी नहीं चूकतीं.
आलाकमान रेफरी की भूमिका निभाने पर अड़ा हुआ है. उसे पिछले साल के राज्यसभा चुनावों में छह विधायकों की क्रॉस-वोटिंग अभी भी याद है. आलाकमान अभी तक यही कर पाया है कि फरवरी में राजीव शुक्ल की जगह राज्यसभा सांसद रजनी पाटील को राज्य प्रभारी बनाया गया. यह कदम जमीन की ज्वालाओं को बुझाने के लिए काफी नहीं.
खास बातें
> बाढ़ राहत से सभी के लिए राजनैतिक दिखावे का मौका बना.
> सुक्खू ने अपनी सक्रियता से ध्यान खींचा.
> इससे पार्टी में जमीनी स्तर पर टूट-फूट नही छुपती, अभी भी जिला और ब्लॉक स्तर की इकाइयां भंग.
> सार्वजनिक रूप से सुक्खू तालमेल बनाकर चलने का वादा करते हैं लेकिन असलियत में वह नहीं हो पाता.
> पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राज्य भर में घूम-घूम कर भाजपा के राहत प्रयासों को बल दे रहे हैं.