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तमिलनाडु: हिरासत में मौत के मामले में क्यों घिर गई स्टालिन सरकार?

तमिलनाडु में पुलिस हिंसा को राजनैतिक लाइसेंस हासिल होने की कड़वी सचाई फिर सामने आई

अजित नाम के शख्स की पुलिसिया पिटाई का वीडियो वायरल
अपडेटेड 8 अगस्त , 2025

तमिलनाडु के कथित सुशासन मॉडल पर दाग हर बार पुलिस हिंसा की नई घटना के साथ और गहरे, गाढ़े और ताजे हो जाते हैं. जून के अंत में शिवगंगा जिले में एक मंदिर के सुरक्षा गार्ड 27 वर्षीय अजित कुमार की हिरासत में मौत के साथ पुलिस का क्रूर चेहरा फिर सुर्खियों में आ गया.

घटना पर बवाल के बीच  चिंताजनक तस्वीर यह उभरी कि राजनैतिक संस्कृति कानून के पालन के नाम पर कानून तोड़ने को संरक्षण देती है, सरकार भले ही किसी भी पार्टी की क्यों न हो. यह पहला मौका नहीं है, जब सत्तारूढ़ द्रमुक पर पुलिस को संरक्षण देने वाला माहौल बनाने का आरोप लगा है.

2023 में अंबासमुद्रम को हिरासत में यातनाएं दिए जाने का मामला लोग अभी तक भूले नहीं हैं. हालांकि, इस बार द्रमुक सरकार ने अपेक्षाकृत तेज कार्रवाई की. पांच पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया, छह को निलंबित किया गया; सीबीआइ जांच के आदेश दिए गए; और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने अजित की मां को फोन करके माफी मांगी, मुआवजा और सरकारी नौकरी देने का वादा भी किया.

विपक्ष का पहला पत्थर

विपक्ष ने मौके का फायदा उठाने में जल्दबाजी दिखाई. अन्नाद्रमुक महासचिव तथा पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पडी के. पलानीस्वामी ने अजित की मौत को 'पुलिस हत्या' का मामला बताया. लेकिन, जैसा नागरिक समाज कार्यकर्ताओं का कहना है, यह उनकी अपनी ही पार्टी के दागदार रिकॉर्ड के कारण राजनैतिक तौर पर बहुत असरदार नहीं है.

2020 में सथानकुलम में हिरासत में मौतों पर देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन और इन घटनाओं के मीडिया की सुर्खियों में छाने के दौरान ईपीएस की अगुआई वाली अन्नाद्रमुक सरकार कठघरे में थी. हालांकि, आज जब वह ऐसी ही घटना को लेकर सवाल खड़े कर रही है तो साथ देने वालों में (सियासी प्रतिस्पर्धी) अभिनेता-नेता विजय भी शामिल हैं. विजय ने पीड़ित परिवार से मिलकर मदद का वादा भी किया है.

दूसरी तरफ, द्रमुक ने मुख्यमंत्री के व्यक्तिगत संपर्क के जरिए अपनी जवाबदेही की भावना दिखाने की कोशिश की. मंत्री टी.आर.बी. राजा ने कहा, ''तमिलनाडु के राजनैतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है.'' जाहिर है, 2026 के विधानसभा चुनाव की खुमारी छाने लगी है और यही राजनीति की दशा-दिशा तय कर रही है, जिसमें अजित की मौत एक सांकेतिक प्रतीक बन गई है.

हालांकि मौत का पूरा घटनाक्रम पुराने, निराशाजनक ढर्रे वाला ही है. तिरुप्पुवनम के एक मंदिर में चौकीदार अजित को 27 जून को आभूषणों की चोरी के सिलसिले में पूछताछ के लिए बुलाया गया. न गिरफ्तार किया गया, न किसी प्राथमिकी में ही उसका नाम दर्ज किया गया. जानकारी के मुताबिक, उसे मंदिर के पास एक गोशाला में ले जाया गया, जहां कथित तौर पर चोरी का सामान छिपाए जाने का संदेह था. और, उसके साथ बेरहमी से मारपीट की गई.

अगले दिन, एक अस्पताल ने उसे 'मृत' लाया घोषित कर दिया. पुलिस ने शुरू में दावा किया कि भागने की कोशिश करते समय अजित को मिर्गी का दौरा पड़ा था. लेकिन दावे की कलई तभी खुल गई जब एक वीडियो ऑनलाइन सामने आया, जिसमें एक अधिकारी अजित को जमीन पर घुटनों के बल गिराकर पीटते दिख रहा. पोस्टमॉर्टम में 40 से ज्यादा चोटें लगी होने की बात सामने आई है, जिनमें कुंद आघात और आंतरिक रक्तस्राव भी शामिल था. फिर, अदालतों ने कहा, ''अमूमन हत्यारा भी ऐसे चोटें नहीं पहुंचाता.''

नागरिक समाज चेता रहा है कि यह सड़ांध ''पूरी व्यवस्था में गहराई तक समाई है.'' 2020 में सथानकुलम में हिरासत में दो मौतों की घटना की जांच भी सीबीआइ को सौंपी गई थी लेकिन तभी जब दबाव बढ़ा और न्यायिक हस्तक्षेप हुआ. यह अभी लंबित है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि 2022 में तमिलनाडु में हिरासत में पांच मौतें हुईं लेकिन मदुरै स्थित समूह पीपल्स वॉच के मुताबिक, यह आंकड़ा 11 था, जिनमें एक 17 वर्षीय किशोर की मौत भी शामिल है. पीपल्स वॉच से जुड़े आइ. आशीर्वादम कहते हैं, ''यातनाओं को रोकने लिए कोई अलग कानून नहीं है. अदालतें भी खुलकर इस पर कुछ कहने से हिचकिचाती हैं. इससे वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी भी जवाबदेही से बच निकलते हैं.'' अंबासमुद्रम मामले में आरोपी सहायक अधीक्षक निलंबित है और मई 2025 में सुनवाई के दौरान भी हाजिर नहीं हुआ.

अजित की मौत पुलिस के उस क्रूर चेहरे की ही अगली कड़ी है, जो दशकों पहले वीरप्पन की तलाश के दौरान नजर आई थी. आशीर्वादम कहते हैं, ''पुलिस में मानवाधिकार शिक्षा अनिवार्य करने की जरूरत है.'' ऐसा नहीं हुआ तो हिरासत में मौतों में अजित का नाम आखिरी तो नहीं ही होगा.

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