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गुजरात: हीरा तराशने वाले मजदूर आत्महत्या और पलायन के लिए क्यों हुए मजबूर?

सूरत में हीरा उद्योग में काम करने वाले मजदूरों का पलायन और आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाएं एक खौफनाक साया बनकर मंडरा रहीं हैं

सूरत के एक हीरा लैब में काम करते मजदूर
अपडेटेड 11 अगस्त , 2025

दरअसल बेरोजगारी क्या पेशेगत खतरा है? हां, और ऐसा लगता है कि इन दिनों सूरत के हीरा उद्योग में मशीनों पर काम करने वालों के लिए यह जानलेवा भी हो सकती है. पिछले जुलाई में 21 वर्षीय सागर मकवाना नामक पॉलिशर ने नौकरी छूटने के बाद खुदकशी कर ली. सितंबर आते-आते तीस वर्षीय निकुंज टांक ने भी गहरे अवसाद के दौर से गुजरने के बाद मौत की यही राह पकड़ी.

वे अपने पीछे दो बच्चे और पत्नी छोड़ गए. मई में 45 वर्षीय कपिल निमावत नाम के एक और बेरोजगार हीरा मजदूर की मौत हो गई. उनके दो बच्चे स्कूल जाते थे. डायमंड वर्कर्स यूनियन ऑफ गुजरात (डीडब्ल्यूयूजी) पिछले तीन साल में 100 से ज्यादा मौतों की बात कहती है—जिनमें अकेले पिछले साल की 55 आत्महत्याएं शामिल हैं.

हमारी यह हालत कैसे हुई? हीरा उद्योग महागंभीर संकट के दौर में है. कोविड महामारी के बाद प्राकृतिक हीरों की बिक्री में भारी गिरावट आई है. प्रयोगशाला में बने हीरे (एलजीडी)—जो 70 फीसद सस्ते हैं—अधिक लोकप्रिय हो गए हैं. अब वैश्विक बाजार में प्राकृतिक हीरों की तगड़ी भरमार है. पिछले तीन साल में निर्माताओं को अपने उत्पादन में भारी कटौती करनी पड़ी है.

आर्थिक संकट के ऐसे दौर में दर्द का असर मुख्य रूप से नीचे तक पहुंचता है: इस संकट में शामिल हैं, सूरत के आठ लाख हीरा कारीगर, जो अक्सर सौराष्ट्र और अन्य जगहों से आए लोग हैं और जो गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के लगभग 12 लाख कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा हैं. सूरत के पांच दशक पुराने हीरा पॉलिश उद्योग के इतिहास में संभवत: पहली बार 500 मजदूरों ने मजदूरी में 30 फीसद वृद्धि की मांग करते हुए मार्च में दो दिन की हड़ताल की.

मई में गुजरात सरकार ने उद्योग के लिए सहायता पैकेज की घोषणा की जो इस बात की पहली स्वीकारोक्ति था कि वाकई यह उद्योग संकट में है. प्रमाणित हीरा तराशने वालों के बच्चों को 13,500 रुपए की स्कूल फीस के साथ-साथ छोटी इकाइयों को बिजली और ब्याज सब्सिडी का ऐलान किया गया. लेकिन डीडब्ल्यूयूजी के उपाध्यक्ष भावेश टांक इसे निरर्थक बताते हैं. वे कहते हैं, ''ज्यादातर कंपनियां कारीगरों को अनौपचारिक अनुबंध के आधार पर नियुक्त करती हैं. इसलिए यह साबित करना लगभग असंभव होगा कि आप वास्तविक कर्मचारी हैं.''

शुल्क पैकेज में एक तरह से युवा, अविवाहित तराशी कारीगरों को छोड़ दिया गया है—यह मानते हुए कि उन पर कोई आश्रित नहीं है. टांक कहते हैं, ''अविवाहित तराशी कारीगरों पर छोटे भाई-बहन और बूढ़े माता-पिता आश्रित होते हैं,'' उनको मिलने वाली सहायता इस बात पर निर्भर करती है कि वे यह साबित करें कि उनके स्कूल जाने वाले आश्रित भाई-बहन हैं. ''इसके अलावा छोटी इकाइयों को प्रोत्साहन बुरी तरह प्रभावित कारीगरों तक नहीं पहुंच पाएंगे क्योंकि उद्योग को समझ आ गया है कि हीरों की आपूर्ति कम की जाए. वे सरकारी लाभ तो ले लेंगे लेकिन काम के घंटे या मजदूरी नहीं बढ़ाएंगे.''

कारीगरों के लिए गुजारा करना मुश्किल हो रहा है. लिहाजा, कम से कम एक-चौथाई प्रशिक्षित कारीगर सौराष्ट्र के अमरेली और भावनगर जिलों में अपने गांवों को लौट गए हैं. पहले कभी पानी की कमी से जूझते उनके इलाकों में नर्मदा का पानी पहुंचने से खेतों में फिर से हरियाली आ गई है. लेकिन टांक कहते हैं, ''जलवायु संबंधी खतरों और उपज की बाजार कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण सीमांत किसानों के लिए खेती करना जोखिम भरा है.''

उनके लिए अतिरिक्त काम क्या है? सब जगह मौजूद लैब वाले हीरों के उद्योग में टुकड़ा-टुकड़ा काम. एलजीडी काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष शशिकांत शाह कहते हैं कि इन जिलों के लगभग हर दूसरे गांव में एक दर्जन से ज्यादा 'घंटियां' (हीरा पॉलिश करने वाले पहिये) हैं. वे मानते हैं कि कामगारों को वहां काम पर रखकर, ''हीरा कारोबारी प्रशिक्षित कर्मचारियों को रखते हुए उत्पादन लागत कम करने की कोशिश कर रहे हैं.''

प्राकृतिक हीरे बेचने पर जोर हालांकि लगभग हर निर्यातक और व्यापारी अब लैब वाले हीरों का कारोबार करता है, शाह कहते हैं कि कुछ इसे स्वीकार करते हैं और ज्यादातर नहीं. एलजीडी काउंसिल के अनुसार, सूरत में ही 14,000-15,000 एलजीडी मशीनें हैं. मुंबई में 400, जयपुर में 200, दिल्ली में 25 ऐसी मशीनें हैं और हैदराबाद में 200 की योजना है. वे कहते हैं, ''नई कंपनियों और अलग ब्रांड नामों के साथ विदेश में शिक्षित युवा पीढ़ी लैब वाले हीरों की ओर बढ़ रही है. लेकिन 30 से ज्यादा बड़े हीरा व्यापारियों में हरेक के पास 200 करोड़ रुपए के प्राकृतिक हीरों का भंडार है. इसलिए वे पारंपरिक प्रणाली का आक्रामक रूप से बचाव करते हैं.''

इससे एक विरोधाभासी बात हुई है: लैब वाले हीरों के बजाए प्राकृतिक हीरों की मार्केटिंग के लिए संसाधन लगा दिए गए हैं, इस अभियान के कुछ नतीजे मिल भी रहे हैं. सुस्त वैश्विक बाजार में भारत प्राकृतिक हीरों के दूसरे सबसे बड़े गंतव्य के रूप में चीन से आगे निकल गया है. लेकिन शाह का मानना है कि भविष्य की संभावनाएं लैब में बने हीरों में ही है. सभी हितधारकों के लिए अस्तित्व महत्वपूर्ण है, चाहे वे इस उद्योग में कारोबारी हों या कारीगर.

खास बातें

> सिर्फ पिछले एक साल में सूरत में बेरोजगार हीरा कारीगरों में से 55 ने आत्महत्या की हैं.

> 8 लाख मजदूरों के लिए घोषित राहत पैकेज पर्याप्त नहीं हैं, जो उन्हें घर वापसी के पलायन से रोक सके.

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