खालिस वन संरक्षण के नजरिए और वन क्षेत्रों में लोगों की रिहाइश के अधिकार के बीच कोई फैसला आसान नहीं है. यह मुद्दा पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश के सियासी मैदान में भूचाल की वजह बना. दूसरे शब्दों में कहें तो स्थिति कुछ ऐसी थी कि जैसे जंगल से स्थानांतरित किया गया शेर फिर अपनी शिकारगाह में वापस लौट आया हो.
दरअसल, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने लोकसभा क्षेत्र विदिशा के आदिवासियों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व संभाला, जो वन भूमि पर अतिक्रमण हटाकर नया वन्यजीव अभयारण्य बनाने का विरोध कर रहे थे. मुख्यमंत्री मोहन यादव को कदम पीछे खींचने पड़े और एक वन अधिकारी का तबादला करना पड़ा.
राजनीति का जंगल
वन संरक्षण आखिर लड़ाई का विषय कैसे बना? यह राजनीति का विरोधाभास ही है. चौहान ने अपने 16 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में एक भी नया अभयारण्य नहीं बनाया लेकिन यादव ने 18 महीने में ही बड़े वन संरक्षण के पैरोकार की छवि बना ली है. उन्होंने दो नए बाघ अभयारण्यों और दशकों से लंबित एक वन्यजीव अभयारण्य को मंजूरी दी है. इससे राजनीति का लोकलुभावन मॉडल खतरे में आ गया.
शायद यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री मूल एजेंडे को बचाए रखने की कवायद में जुट गए हैं. उन्होंने पीड़ितों के पक्ष में आंदोलन का झंडा उठा लिया और पदयात्रा शुरू कर रहे हैं. इससे यादव के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. 23 जून को देवास के खिवनी अभयारण्य में कुछ झोपड़ियां गिरा दी गई थीं. बेदखल किए गए 51 परिवार खिवनी खुर्द गांव में रहते हैं; इसमें 49 के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के घर भी हैं. 2015 में उन्होंने वन भूमि पर खेती शुरू की थी.
लेकिन चौहान के सक्रिय होने के पीछे भी एक लंबी कहानी है. खिवनी अभयारण्य प्रबंधन मौजूदा 13,400 हेक्टेयर क्षेत्र में 6,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र को जोड़ना चाहता है. वहीं, 2019 में कांग्रेस शासन ने प्रस्ताव दिया था कि निकटवर्ती सीहोर जिले में स्थित इच्छावर रेंज को सरदार पटेल अभयारण्य (एसपीएस) के तौर पर तैयार किया जाए. यह प्रस्ताव तत्कालीन वन मंत्री और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष, आदिवासी और कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने रखा था. सीहोर डीएफओ ने आदेशों पर अमल की कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी थी. इससे तमाम स्थानीय लोगों को आवासीय अधिकार खत्म होने का अंदेशा था.
29 जून को सीहोर में आंदोलन हुआ. चौहान ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री से मुलाकात की. यादव पर सीहोर के डीएफओ मगन सिंह डाबर (जो खुद आदिवासी हैं) के तबादले का दबाव डाला. 5 जुलाई को पूरे जोश से भरे चौहान भारी बारिश में पैदल चलकर और ट्रैक्टर से खिवनी खुर्द पहुंचे. उन्होंने कहा, ''कुछ अधिकारी असंवेदनशील हो गए हैं. अगर उनके बच्चे बारिश में खुले में छोड़ दिए जाएं तो उन्हें कैसा लगेगा?''
10 बाघों वाले खिवनी को औपचारिक तौर पर एक अभयारण्य माना जाता है. 100 किलोमीटर दूर रातापानी अभयारण्य में 60 से ज्यादा बाघ हैं. एसपीएस से दोनों जुड़ जाते. लेकिन राज्य की 94 लाख हेक्टेयर वन भूमि में से 11 लाख हेक्टेयर पर अतिक्रमण है (विदिशा में स्थिति सबसे खराब है). पट्टे के तौर पर दी गई 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि को पुन: हासिल किया जा सकता है. खिवनी में ज्यादातर भील, भिलाला और बरेला आदिवासी हैं, जो सीहोर की तरह ही गैर-मूल निवासी हैं. लेकिन उनके पास वोट है, बाघ तो वोट नहीं दे सकते.
खास बातें
> खिवनी से 51 परिवारों को 23 जून को हटाया गया
> खिवनी के पास नया अभयारण्य बनाने की योजना से लोगों के वनाधिकार पर खतरे की आशंका से शिवराज चौहान ने आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन की अगुआई की.
> मोहन यादव ने दो नए बाघ और एक वन्य अभयारण्य को मंजूरी दी थी.
> चौहान और यादव के बीच टकराव को राज्य भाजपा में बढ़ते संघर्ष के रूप में देखा जा रहा है.