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जम्मू कश्मीर: 15 हजार हेक्टेयर सूखी जमीन; मुरझाए धान के पौधे कहीं अकाल की आहट तो नहीं?

दक्षिण कश्मीर में सूखे और मुरझाए धान के फसल खाद्य सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर रहे हैं

बांदीपोरा में सूखते धान के खेत में एक किसान
अपडेटेड 8 अगस्त , 2025

कश्मीर के दक्षिणी किनारे पर स्थित अनंतनाग में राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर धान की खेती दम तोड़ती जा रही है क्योंकि पानी ही नहीं मिल पा रहा. बिजबेहरा के जबलीपोरा में मोहम्मद शफी मलिक के 30 कनाल के खेत की मिट्टी में दरारें पड़ चुकी हैं और वह एकदम से सूख गई है, धान के पौधे मुरझा गए हैं.

इस हिमालयी क्षेत्र में पानी की समस्या इतनी विकराल पहले कभी नहीं थी. 54 वर्षीय मलिक हाइवे पर ऐसे स्थान पर खड़े होकर इंडिया टुडे से बात कर रहे थे, जो मौके-बेमौके हवाई पट्टी का भी काम करता है. मलिक को अपने लगभग 90 क्विंटल चावल से अच्छे दिनों में पांच लाख की कमाई हो जाती थी लेकिन उनके परिवार के लिए आजीविका का यह स्रोत पूरी तरह से बर्बाद हो रहा है.

उनके परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा है. मलिक बताते हैं कि परंपरागत रूप से यही हमारी आजीविका का स्रोत है, हमें नहीं पता कि भविष्य में हमारा गुजर-बसर कैसे होगा.

उनकी तरह, कश्मीर भर में धान उगाने वाले हजारों किसान अपनी फसलों की बर्बादी और अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहे हैं. भीषण गर्मी ने उन नहरों को सुखा दिया है जो आमतौर पर घाटी में बहने वाली ग्लेशियर से पोषित नदियों और नालों से खेतों तक पानी पहुंचाती हैं. जून और जुलाई में भीषण गर्मी ने इस साल 70 और 50 साल पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. कुछ किसान बताते हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इतना भयंकर सूखा कभी नहीं देखा.

कश्मीर में जुलाई की शुरुआत में लगभग 100 फीसद बारिश की कमी चल रही है. प्रारंभिक गणना के अनुसार, जून के उत्तरार्द्ध में लगभग 75 फीसद की कमी हुई थी. झेलम नदी के खाली होने के कारण दक्षिणी कश्मीर, खासकर अनंतनाग और कुलगाम में बारिश कम हो रही है. वैशॉ, ब्रेंगी, सैंड्रान और लिद्दर नदियों को घेरने वाली यह नदी-जुड़ाव योजना पांच साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है. 5 जुलाई को अनंतनाग में प्रमुख संगम पर गेज माइनस 0.11 फुट तक पहुंच गया.

इससे सिंचाई सुविधाओं का कोई अर्थ नहीं रह गया है. कश्मीर भर में संचालित कुल 1,001 योजनाओं में से 19 लिफ्ट योजनाएं पूरी तरह से बंद पड़ी हैं और 41 आंशिक रूप से काम कर रही हैं. नदी तल की सामग्री का बड़े पैमाने पर अवैध खनन स्थिति को और भी बदतर बना रहा है. यह कश्मीर में एक नया फलता-फूलता रात्रिकालीन उद्योग बन चुका है.

इन खनिज-समृद्ध जलस्रोतों में रेत, बजरी और चट्टानों के बेरोकटोक खनन ने पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़कर रख दिया है, बाढ़ की आशंका को बढ़ा दिया है और सिंचाई योजनाओं को भी हानिकारक ढंग से प्रभावित किया है. एक वरिष्ठ सिंचाई अधिकारी कहते हैं कि स्थिति चिंताजनक है और हमारे लोग दिन-रात काम कर रहे हैं. सूखे से निबटने के लिए पंप की व्यवस्था करने, गाद हटाने और नहर की फौरी बहाली जैसे उपाय किए जा रहे हैं.

कश्मीर में कुल 1.32 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है. सिंचाई विभाग का अनुमान है कि इसमें से 15,000 हेक्टेयर भूमि वर्तमान में सूखी है. यह मौजूदा संरचनात्मक कमी के अतिरिक्त है. कश्मीर में चावल मुख्य भोजन है. लेकिन इसकी 5 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा स्थानीय फसल की पूर्ति के लिए भारतीय खाद्य निगम से 7 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त प्राप्ति की आवश्यकता है. थोड़ी-सी भी बारिश राहत का एहसास करा सकती है.

शहरीकरण और सेब जैसी नकदी फसलों की ओर रुख के कारण धान का रकबा पहले ही कम हो रहा है. जल संकट इस समस्या को और बढ़ा रहा है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन यहां एक कठोर स्थानीय वास्तविकता है, जिससे हिमालय के ग्लेशियर तट पर अनगिनत दबाव पड़ रहे हैं. 2025 का सूखा खाद्य सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक खतरे का संकेत देता है. 

एक अफसर कहते हैं कि दीर्घकालिक समाधानों की तलाश करने की जरूरत है. वे आपातकालीन आकस्मिक उपायों के साथ-साथ समझदारी-भरे जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को भी शामिल किए जाने की बात करते हैं. वे कम पानी की जरूरत वाली फसलों की ओर रुख, लेकिन साथ ही बांधों, जल संचयन जलाशयों आदि का तत्काल निर्माण भी जरूरी मानते हैं. यह सब एक और अकाल की याद दिलाता है—धन का अकाल. पिछले चार साल में केंद्रीय कोष समाप्त हो गया है, और 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की देनदारी बनी हुई है.

खास बातें

> कश्मीर लंबे समय से जारी सूखे की चपेट में है, जहां तापमान ने 50 और 70 साल पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.

> जून-जुलाई में वर्षा की कमी 75 फीसद के आसपास दर्ज की गई.

> कश्मीर के 1,32,000 हेक्टेयर धान के खेतों में से 11 फीसद पूरी तरह सूखे पड़े हैं.

> योजना: बांधों और टैंकों का निर्माण, और अंतत: दूसरी फसलों की ओर बदलाव.

- कलीम गीलानी

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