
वाकया 2021 की भीषण गर्मियों और कोविड-19 की दूसरी लहर का है. गोरुखुटी में बुलडोजर पहुंचे. दावा किया गया कि जमीन पर अवैध अतिक्रमण है. असम के दरांग जिले के इस इलाके में बुलडोजरों की कार्रवाई में सैकड़ों परिवार अपना घर-बार गंवा चुके थे, जिसमें ज्यादातर संदिग्ध नागरिकता वाले बांग्ला भाषी मुसलमान थे.
खाली कराई गई जमीन पर एक महत्वाकांक्षी सियासी वादा रोपा गया, और वह था गोरुखुटी बहुमुखी कृषि प्रकल्प (जीबीकेपी). इसे मूल निवासी किसानों के लिए एक आदर्श परियोजना बताया गया. मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने यहां से लोगों के विस्थापन के बाद फिर से लहलहाती खेती का सपना दिखाया. अब तीन साल बाद यह सपना एक घोटाले में बदलता दिख रहा है.
परियोजना के तहत मुख्य रूप से असम के डेयरी क्षेत्र को गति देने के लिए दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध गिर गायों को गुजरात से यहां लाया जाना था. कम से कम योजना तो यही थी. आज 17 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद नतीजा बस सवाल, विवाद और पशु मृत्यु दर के रूप में सामने आया है.
कोई गोमाता नहीं
आखिर यह सब हुआ कैसे? एक साल बाद परियोजना का नियंत्रण सूटिया विधायक पद्मा हजारिका की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय 'सोसाइटी' को सौंप दिया गया. इस समिति में सांसद तथा राज्य पार्टी प्रमुख दिलीप सैकिया जैसे बड़े भाजपा नेता और शीर्ष नौकरशाह थे. खरीद तीन चरणों में की गई. दो चरणों तक ठीक चला—2021 में 82 लाख रुपए में 98 गायें खरीदी गईं; फिर जनवरी, 2022 में विश्व बैंक के फंड से 24 गायें और एक सांड़ की खरीद हुई. तीसरे चरण में सब बदल गया.
अप्रैल 2022 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को 300 गिर गायें देनी थीं. मार्च, 2023 में राज्य के कृषि मंत्री अतुल बोरा ने विधानसभा को बताया कि सभी 300 गायें लौटा दी गईं, और धनराशि खर्च नहीं हुई. लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि उन्होंने सदन को गुमराह किया. 210 गायें लाई गई थीं और एनडीडीबी को भुगतान भी किया गया. बाद में अच्छी किस्म की नहीं होने की वजह से 154 गायें लौटा दी गईं जबकि 56 की मौत हो गई.
बाकी 90 गायों की कहानी तो एकदम अलग है. एक आरटीआइ से पता चला कि हजारिका की सलाह पर सात 'जन प्रतिनिधि' उन्हें किसानों में बांटने वाले थे. सूची असम के राजनैतिक दिग्गजों की थी. दो गायें भाजपा अध्यक्ष सैकिया ने लीं. तीन विधायकों के खाते में 16 गायें आईं—भुबन पेगु (10), उत्पल बोरा (4), दिगंत कालिता (2).
सबसे ज्यादा गायें ऐसे दो लोगों को मिलीं, जिनके पास कोई आधिकारिक पद नहीं था, और सूची में एक नाम निजी फर्म का भी था. हजारिका के करीबी बताए जाने वाले बाबुल नाथ और नीरज बोरा को 30-30 गायें मिलीं. मंत्री जयंत मल्ला बरुआ की पत्नी जूली डेका बरुआ की डेयरी फर्म जेएमबी एक्का एग्रो को 20 गायें मिलीं. इसके लिए न तो विज्ञापन दिया गया और न ही कोई चयन मानदंड रखा गया.

बदतर यह है कि बहुमूल्य 90 गायें बांटी ही नहीं गईं. वे सीधे निजी हाथों में चली गईं. हजारिका ने पहले कहा कि सातों ने एनडीडीबी को सीधे भुगतान करके गायें 'खरीदी' थीं. लेकिन कागजी कार्रवाई इसे गलत साबित करती है. नाथ और बोरा ने एनडीडीबी को सीधे भुगतान किया था. 50 लाख रुपए की सब्सिडी पाने वाले जीबीकेपी ने 20 'गर्भवती' गायों के लिए 13.2 लाख रुपए का भुगतान किया. जब जांच-पड़ताल शुरू हुई तो बचाव की मुद्रा में आए सैकिया ने खुद को सिर्फ 32,000 रुपए की मामूली छूट की बात कही. क्या यह रकम मामूली होती है? कम से कम विपक्ष के लिए नहीं ही होती है, जो दूध से निकली मलाई छानने में जुटा है.
खास बातें
> असम के डेयरी प्रोजेक्ट को मजबूती देने का मकसद घोटाले में घिरा
> कृषि मंत्री ने विधानसभा में कहा, गायें लौटा दी गईं, पैसा नहीं दिया गया. सरकारी रिकॉर्ड कुछ और ही कहानी बताते हैं
> राज्य भाजपा अध्यक्ष, मंत्री गुजरात से आईं गिर गायों को खपा गए
- नंदिता बोरा और अचिंत्य पतंगिया