
लखनऊ के गोमतीनगर इलाके के विश्वास खंड में एक पुरानी बदहाल-सी इमारत के दूसरे तले पर महानिरीक्षक (आइजी) स्टांप और निबंधन के कार्यालय में सन्नाटा पसरा है.
मल्टीस्टोरी बिल्डिंग 'विश्वास कॉम्प्लेक्स' में चल रहा यह दफ्तर उस वक्त चर्चा में आया जब यहां से किए गए विभागीय तबादले विश्वसनीयता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे.
नतीजा: स्टांप और पंजीयन विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल ने अपने ही विभाग के तत्कालीन आइजी स्टांप समीर वर्मा पर खुलेआम भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया. 18 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में जायसवाल ने लिखा कि उन्हें समूह 'ख' और 'ग' श्रेणी के 210 अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले में भ्रष्टाचार की शिकायत मिली थी.
पूर्व आइजी स्टांप ने तमाम भ्रष्ट और जांच में घिरे अधिकारियों को बड़े जिलों में तैनाती दे दी. इसके लिए पैसों के लेनदेन की जानकारी भी मंत्री को मिली थी. मुख्यमंत्री को भेजी चिट्ठी में जायसवाल ने यह भी लिखा कि आइजी ने सभी तबादले 13 जून को ही कर दिए थे और खानापूर्ति के लिए 15 जून को उनके सामने तबादला सूची रखी गई. जायसवाल बताते हैं, ''महत्वपूर्ण कार्यालयों में प्रभारी उपनिबंधकों और लिपिक से प्रदोन्नत उपनिबंधकों को मानक के विपरीत तैनात किया गया.''
केवल इंटर पास बाबू को नियम विरुद्ध रजिस्ट्रार बनाकर बड़े जिले का चार्ज दे दिया गया. बार-बार मांगने पर भी तत्कालीन आइजी ने उपनिबंधकों की तैनाती का प्रस्ताव उपलब्ध नहीं कराया.'' मामला सामने आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन आइजी स्टांप वर्मा को हटाकर वेटिंग लिस्ट में डाल दिया.
प्रदेश में तबादलों को लेकर घमासान मचा हुआ है. चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण महानिदेशालय की ओर से 2,000 से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों की तबादला सूची को उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने मंजूरी देने से मना कर दिया. पाठक ने तबादला सूची वाली फाइल पर सिर्फ ''सीन'' (संज्ञान लिया) लिखकर छोड़ दिया. तबादला सत्र 15 जून को खत्म होना था लेकिन उससे पांच दिन पहले पाठक ने उनकी अनुमति के बिना कोई भी तबादला न करने का फरमान सुना दिया था.
इसी बीच 19 जून को शासन ने स्वास्थ्य विभाग में तत्कालीन निदेशक (प्रशासन) भवानी सिंह खंगारौत को हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया. माना जा रहा है कि विभागीय मंत्री की अनुमति के बिना ही तबादला सूची फाइनल करने की शिकायत की गाज उन पर गिरी. नतीजा: स्वास्थ्य महकमे में लगातार तीसरे साल तबादला सत्र शून्य घोषित हुआ. हालांकि 10 दिन बाद खंगारौत को विशेष सचिव राजस्व के महत्वहीन पद पर तैनात कर दिया गया.
तबादले में भ्रष्टाचार और मनमानी के आरोप केवल स्टांप और पंजीयन और स्वास्थ्य महकमे में ही सामने नहीं आए हैं, बेसिक शिक्षा विभाग, वन विभाग, पशुपालन विभाग, आयुष विभाग के कुल मिलाकर 5,000 से ज्यादा तबादला प्रस्ताव जांच के दायरे में आ गए हैं. इनमें आधे से ज्यादा तबादले निरस्त भी किए जा चुके हैं. योगी सरकार ने 6 मई को 2025-26 के लिए तबादला नीति जारी की थी.
इसके मुताबिक, 15 मई से 15 जून के बीच समूह 'क' और 'ख' के अधिकतम 20 प्रतिशत अधिकारियों तथा समूह 'ग' और 'घ' के अधिकतम 10 प्रतिशत कर्मियों का तबादला होना था. मंडलीय कार्यालयों में तैनाती की अधिकतम अवधि तीन वर्ष होगी तथा ज्यादा समय से कार्यरत पुराने अधिकारियों के तबादले प्राथमिकता के आधार पर किए जाएंगे. समूह 'ग' और 'घ' के 10 फीसद से ज्यादा कर्मियों के तबादले के लिए विभागीय मंत्री की अनुमति लेना जरूरी किया गया. समूह 'ख' और 'ग' के अधिकारियों के तबादले ऑनलाइन करने का प्रावधान भी किया गया.
हालांकि जिस तरह बड़े पैमाने पर विभिन्न विभागों में तबादलों में गड़बड़ियां पकड़ी गई हैं उसने सरकार की स्थानांतरण नीति पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन बताते हैं, ''ऐसा देखा जा रहा है कि विभिन्न महकमे तबादला नीति में मौजूद गाइडलाइंस के इतर अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले करते हैं.
तबादला नीति के प्रावधानों को सख्ती से लागू न किए जाने से 'पिक ऐंड चूज' की प्रवृत्ति बढ़ रही है.'' इसी की बानगी आयुष विभाग के तबादलों में देखी जा सकती है. कार्यवाहक क्षेत्रीय आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी डॉ. राजकुमार यादव पिछले 15 वर्ष से लखनऊ में तैनात हैं. वहीं चिकित्साधिकारी डॉ. तृप्ति सिंह भी 16 वर्ष से लखनऊ मंडल में तैनात हैं.

तबादला नीति के प्रावधानों में आने के बावजूद ये डॉक्टर अपनी कुर्सी पर जमे रहे जबकि दो साल पहले ट्रांसफर होकर लखनऊ आए डॉ. गुरमीत का तबादला झांसी कर दिया गया. इस प्रकार आयुष विभाग के तबादलों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आने के बाद निदेशक मानवेंद्र सिंह ने शुद्धि पत्र भी जारी किया लेकिन विवाद बदस्तूर जारी रहे. आलोक रंजन बताते हैं, ''तबादला नीति में इस बात का तो जिक्र है कि कितने अधिकारियों और कर्मचारियों का तबादला होगा लेकिन इनको कहां भेजा जाएगा, इसका कोई प्रावधान नहीं होता. तबादले की जद में आने वाले धन और पैरवी के जरिए मनमाफिक जगहों पर तैनात होना चाहते हैं. यहीं से खेल शुरू होता है.
तबादले और मनचाही पोस्टिंग दिलाने का दावा करने वाले दलालों का अधिकारियों-कर्मचारियों से गठजोड़ बनता है. पैसों से मनचाही पोस्टिंग खरीदी जाती है.'' स्टांप और पंजीयन विभाग में तबादलों की गड़बड़ी की जांच में पता चला है कि उच्च पदस्थ अधिकारी का करीबी मेरठ का एक बिल्डर निबंधक, उपनिबंधक से लेकर बाबुओं की तैनाती तक का ठेका ले रहा था. नोएडा में रहने वाले इस बिल्डर ने बड़े जिलों में पोस्टिंग करवाने की एवज में निबंधकों से 50 से 75 लाख रुपए तक का रेट तय किया था. विभाग को इस बिल्डर के संपर्क में रहे डेढ़ दर्जन अधिकारियों की जानकारी मिली है.
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे.एन. तिवारी बताते हैं, ''अब गड़बड़ी मिलने पर डेढ़ दर्जन से ज्यादा महकमों में तबादला सत्र शून्य कर देने से उन अधिकारियों-कर्मचारियों को फायदा पहुंचा जो किसी भी तरह अपना तबादला रुकवाने के जुगाड़ में लगे हुए थे.'' हालांकि तबादला सत्र शून्य वाले विभागों में दांपत्य नीति, बीमारी, विकलांगता के चलते तबादले के लिए प्रयासरत अधिकारियों और कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी. वहीं प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में भी शिक्षकों के तबादलों को लेकर असंतोष है. शिक्षक तबादले की ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं. शिक्षकों की मांग है कि तबादले के लिए स्कूल की प्रबंध समिति से एनओसी या संकल्प पत्र की शर्त ने गड़बड़ी की नींव रखी है. कई मामलों में विद्यालयों की प्रबंध समिति ने योग्य आवेदनों को मनमाने ढंग से खारिज किया है और कई को तमाम कमियों के बावजूद अनुमति दी है. माध्यमिक शिक्षक संघ ने निदेशक को एक ज्ञापन देकर शिक्षकों की तबादला प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की मांग की है.
इस तरह भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली योगी सरकार के लिए तबादला प्रक्रिया को पटरी पर लाना टेढ़ी खीर ही साबित हो रहा है.
लगातार सामने आ रहीं गड़बड़ियां
> पशुपालन विभाग पशुपालन महकमे में 250 से ज्यादा पशुचिकित्सा अधिकारियों और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के तबादले में गड़बड़ी की शिकायत मिली थी. जांच में पाया गया कि तत्कालीन निदेशक ने 31 मई को अपने रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले ही बड़े पैमाने पर तबादले कर दिए थे. बाद में सभी तबादले निरस्त करते हुए तबादला सत्र को शून्य घोषित कर दिया गया.
> बेसिक शिक्षा विभाग इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 7 नवंबर, 2024 को बेसिक शिक्षा विभाग में जून, 2024 को लाई गई ''लास्ट कम, फर्स्ट आउट'' की तबादला नीति को निरस्त कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इससे जूनियर शिक्षकों का ही तबादला होता रहेगा और सीनियर शिक्षक लंबे समय तक स्कूल में बने रहेंगे. यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप नहीं है.
> वन विभाग तत्कालीन वन विभागाध्यक्ष ममता संजीव दुबे ने 35 करोड़ पौधरोपण अभियान के दौरान 27 जुलाई, 2023 को बड़ी संख्या में रेंजरों के तबादले कर दिए थे. सेवानिवृत्ति के चार दिन पहले दुबे के हाथों भारी संख्या में रेंजरों के तबादलों पर सरकार ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए सभी आदेशों को रद्द कर दिया था और विभागीय जांच के आदेश दिए थे.
> लोक निर्माण विभाग प्रदेश सरकार ने तबादले में गड़बड़ी के सामने आने पर लोक निर्माण विभाग (पीडब्यूशोडी) के तत्कालीन विभागाध्यक्ष मनोज कुमार गुप्ता समेत पांच अधिकारियों-कर्मचारियों को 19 जुलाई, 2022 को निलंबित कर दिया था. इससे पहले लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन मंत्री रहे जितिन प्रसाद के ओएसडी अनिल कुमार पांडेय पर भी कार्रवाई हुई थी.
> स्वास्थ्य विभाग स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत नर्स, लैब टेक्नीशियन, फार्मासिस्ट, समेत विभिन्न संवर्गों के 2,000 से ज्यादा कर्मचारियों और अधिकारियों के तबादले में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाए जाने पर सरकार ने तत्कालीन संयुक्त निदेशक, दो अपर निदेशक और एक प्रशासनिक अधिकारी को निलंबित कर विभागीय जांच के आदेश दिए थे.
इसलिए खड़े हो रहे सवाल
> राजनैतिक हस्तक्षेप: उत्तर प्रदेश में राजनेताओं का अफसरों के तबादले में दखल देना एक बड़ी समस्या रही है. जनप्रतिनिधि अपने पसंदीदा अधिकारियों को मनचाही जगह पर तैनात करवाने की कोशिश करते हैं.
> रिश्वतखोरी का खेल: तबादलों को लेकर रिश्वतखोरी की शिकायतें लगातार आई हैं. कुछ अफसर अपनी पसंदीदा जगह पर पोस्टिंग पाने के लिए पैसे खर्च करते हैं या राजनैतिक संरक्षण का सहारा लेते हैं.
> नीति की अनदेखी: राज्य सरकार की तबादला नीति का पालन नहीं किया जाता. कुछ अधिकारियों को नियमों के विपरीत जल्दी या बिना कारण हटा दिया जाता है, जबकि कुछ वर्षों तक एक ही जगह टिके रहते हैं.
> पारदर्शिता की कमी: तबादला प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है. यह प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन और सार्वजनिक नहीं होती, जिससे मनमानी और पक्षपात की आशंका बनी रहती है. उसी से विवाद उठ खड़े हो रहे हैं.
> लामबंदी और गुटबाजी: कुछ अधिकारी अपने पसंदीदा जूनियर अधिकारियों को लाभ पहुंचाने के लिए लामबंदी करते हैं, जिससे निष्पक्षता प्रभावित होती है. अफसरों में अपने साथ पसंदीदा स्टाफ रखने की प्रवृत्ति ने भी समस्या को बढ़ाया.
> प्रभावी व्यक्तिगत हित: तबादलों का उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता बढ़ाना होता है, लेकिन यह उद्देश्य गौण हो गया है. नेता, अधिकारी और दलालों के गठजोड़ ने प्रदेश में एक ''तबादला इंडस्ट्री'' खड़ी कर दी है.