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बिहार: क्यों घुमक्कड़ों के लिए किसी खजाने से कम नहीं है बुद्ध की धरती?

बुद्ध के जीवन से जुड़े स्थानों और उनके समृद्ध इतिहास की धरती बिहार का भ्रमण उन लोगों के लिए किसी खजाने से कम नहीं, जिनकी बौद्ध दर्शन में गहरी दिलचस्पी है.

बोधगया में भगवान बुद्ध की प्रतिमा
अपडेटेड 5 अगस्त , 2025

बिहार को लंबे समय से बौद्ध धर्म का केंद्र माना जाता रहा है. तीर्थयात्रियों और इतिहास प्रेमियों के लिए यहां बहुत सी अद्भुत जगहें हैं जिन्हें देखना जरूरी है. पेश हैं कुछ ऐसी जगहें जिन्हें हर घुमक्कड़ को अपनी बिहार यात्रा में जरूर शामिल करना चाहिए...

जहानाबाद: यहां की बराबर हिल की गुफाएं भारत की सबसे पुरानी चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं में गिनी जाती हैं. ये तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व सम्राट अशोक के समय की मानी जाती हैं.

ग्रेनाइट पत्थर में तराशी गई इन गुफाओं का आंतरिक हिस्सा 'मौर्य पॉलिश' का बेमिसाल नमूना है, जिसके पीछे सिकंदर महान के प्रभाव की चर्चा होती है. करण चौपार, लोमस ऋषि, सुदामा और विश्वकर्मा नाम की चार गुफाओं में प्राचीन मूर्तियां और अभिलेख देखे जा सकते हैं. और भी गहराई में जाने की चाह हो तो नागार्जुनी पहाड़ी समूह की गोपिका, वेदाथिका और वापिया नाम की कुछ और गुफाएं देख सकते हैं जो कालक्रम में कुछ बाद की हैं.

बोधगया: यह स्थान बिहार के बौद्ध सर्किट का सबसे महत्वपूर्ण स्थल है. यहीं पर गौतम बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था और वे बुद्ध बने. यहां गुप्तकालीन महाबोधि मंदिर है, जिसे शिखर की ऊंचाई 170 फुट है और जहां सातवीं से दसवीं सदी के बीच श्रीलंका, म्यांमार और चीन जैसे देशों से आए तीर्थयात्रियों की मौजूदगी के सबूत हैं. यह अब यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है. बुद्ध के ध्यानस्थ स्थलों, स्तूपों और बौद्ध साम्राज्यों की ओर से निर्मित मठों को देखना न भूलें. अगर आकार की बात करें तो 80 फुट ऊंची बुद्ध प्रतिमा (1989 की) भी देखने लायक है.

 

वैशाली का अशोक स्तंभ

नालंदा: पांचवीं सदी का यह विश्वविद्यालय अपने भग्नावशेषों के बावजूद आज के आधुनिक मानकों पर भी बेहद प्रभावशाली है जिससे यह एक अवश्य देखने वाली यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट हो जाती है. लाल ईंटों के विशाल भवनों को देखकर आप उन कल्पनाओं में डूब जाते हैं कि कभी यहां 2,000 शिक्षक 10,000 से ज्यादा छात्रों को पढ़ाते थे. यह बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था और दुनियाभर से विद्वान यहां आते थे. पास ही नालंदा पुरातत्व संग्रहालय है, जहां प्राचीन मूर्तियों और रोजमर्रा की चीजों का भव्य संग्रह है. यहां से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर है राजगीर, जिसे प्राचीनकाल में राजगृह कहा जाता था. यह कई राजवंशों की राजधानी था और भगवान बुद्ध तथा भगवान महावीर दोनों ने यहां वर्षों बिताए थे. यहां की 40 किलोमीटर लंबी 'साइक्लोपियन वॉल' भी देखनी चाहिए. चूना पत्थर की यह दीवार 2,500 साल पहले आक्रमणों से शहर को बचाने के लिए बनाई गई थी.

वैशाली: यहां जो खुदाई हुई हैं उससे छठी सदी ईसा पूर्व के एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में वैशाली का इतिहास सामने निकलकर आता है. अगर आप भगवान बुद्ध के पदचिन्हों पर चल रहे हैं, तो यहां जरूर आएं, जहां उन्होंने उपदेश दिए थे. पास में कोल्हुआ वह जगह है जहां उन्होंने आखिरी बार सार्वजनिक रूप से प्रवचन दिया था. उनके बाद सम्राट अशोक ने यहां एक सिंह स्तंभ भी स्थापित करवाया, जो आज भी खड़ा है. यह चमकदार लाल बलुआ पत्थर से बना, ऊंचे अभिलेखों वाला है. आस्थावान हैं तो उन दो प्राचीन स्तूपों पर भी जाएं जिनमें कभी बुद्ध के अवशेष रखे गए थे.

पटना: दुनिया के सबसे पुराने और अभी तक राजधानी के रूप में कायम शहरों में से एक पटना में शांत-सा बुद्ध स्मृति पार्क और करुणा स्तूप है. यहां दो पेड़ हैं, जिन्हें दलाई लामा ने लगाया था—एक बोधगया से और दूसरा श्रीलंका के अनुराधापुर से लाया गया बोधिवृक्ष का वंशज. बिहार म्यूजियम को देखना न भूलें, जो प्रागैतिहासिक काल से लेकर विभिन्न शासक वंशों तक की वस्तुओं को खूबसूरती से प्रदर्शित करता है. साथ ही, पुराने पटना म्यूजियम की भी अपनी अलग भव्यता है.

प्रमुख स्थलों से आगे बौद्ध बिहार
कहा जाता है कि पश्चिमी चंपारण में अनोमा नदी (अब हरबोरा) के किनारे स्थित रमपुरवा वह जगह है, जहां राजकुमार सिद्धार्थ ने गृहत्याग कर तपस्वी जीवन अपनाया था. आज भले आप रमपुरवा और लौरिया नंदनगढ़ में खुदाई से प्राप्त अशोक स्तंभों को न देख पाते हों, फिर भी ये स्थल भगवान बुद्ध की गाथा में विशेष माने जाते हैं.

पूर्वी चंपारण में स्थित अनूठी शैली वाले केसरिया स्तूप को संभवत: दुनिया का सबसे ऊंचा स्तूप माना जाता है. यह 104 फुट ऊंचा, 1,400 फुट की परिधि वाला, छह छतों से युक्त भव्य निर्माण है जो 200 वर्ष ईसा पूर्व का है.

प्रिया पाथियान

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