मदुरै ने 22 जून को भगवान मुरुगन के भक्तों के विशाल समागम मुरुगा भक्तरगल मनाडु की मेजबानी की. भाजपा से जुड़े दक्षिणपंथी संगठन हिंदू मुन्नानि की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में भक्ति संगीत और मुरुगन के छह पवित्र धामों यानी अरुपदै वीडू की अलंकृत प्रतिकृतियों के साथ सियासी संदेश की एक अंतर्धारा भी शामिल थी.
इसे आध्यात्मिक समागम के तौर पर प्रचारित किया गया, पर इसका वैचारिक मतलब किसी से छिपा नहीं. तमिलनाडु में लंबे वक्त से जद्दोजहद कर रही भाजपा ने हाल में भगवान मुरुगन को अपनी हिंदुत्व की राजनीति से जुड़े सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक के रूप में नए सिरे से ढालने की कोशिश की है. मदुरै का आयोजन उसी रणनीति का सबसे विस्तृत दोहराव था.
भाजपा ने 2020 में वेल यात्रा शुरू की जो मुरुगन के दिव्य भाले के नाम पर निकाली गई धार्मिक शोभायात्रा थी. उसके समापन की तारीख भी सियासी निहितार्थों से भरी 6 दिसंबर तय की गई, जो बाबरी मस्जिद विध्वंस की वर्षगांठ और डॉ. बी.आर. आंबेडकर की पुण्यतिथि भी है. तब की अन्नाद्रमुक सरकार ने यात्रा की मंजूरी देने से मना कर दिया, पर भाजपा नेताओं ने फिर भी यात्रा निकाली और कई गिरफ्तारियां हुईं.
विश्लेषकों ने माना कि उत्तर भारत में भगवान राम के इर्द-गिर्द भावनात्मक गोलबंदी के जरिए जो किया गया, वही वेल यात्रा के जरिए दक्षिण भारत में किया गया—यानी तमिल मुहावरे के भीतर धार्मिक पहचान का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश. मदुरै का आयोजन इसी नजरिए को आगे ले गया. इसमें शामिल प्रमुख लोगों में भाजपा नेता एल. मुरुगन और के. अन्नामलै थे, तो आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण भी. जुलूस और सियासी भाषणों पर रोक जैसी अदालती पाबंदियों के बावजूद आयोजकों ने छह प्रस्ताव पारित किए, जिनसे उनके सियासी मकसदों को लेकर कोई संदेह नहीं रह गया.
एक प्रस्ताव में मंदिरों को हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग से मुक्त करने की मांग की गई. यह भाजपा-आरएसएस का लंबे वक्त से चला आ रहा रुख है, जिसका इरादा मंदिरों के वित्तीय और प्रशासनिक मामलों से सरकार की देखरेख को खत्म करना है. आलोचकों का कहना है कि इससे दशकों के सामाजिक सुधार चौपट हो जाएंगे. विदुतलै चिरुतैगल काचि के उपमहासचिव वन्नी अरासु कहते हैं, ''यह मांग ओबीसी और हाशिए पर पड़े समुदायों पर सीधा हमला है. यह विभाग मंदिरों पर ब्राह्मणवादी एकाधिकार को ध्वस्त करने के लिए बनाया गया था.''
एक और प्रस्ताव में हिंदुओं को वोटिंग ब्लॉक के रूप में एकजुट होने का आग्रह किया गया. तीसरे में 19वीं सदी के तमिलों के लोकप्रिय भक्ति भजन कंधा षष्ठी कवसम के सामूहिक गान को प्रोत्साहित किया गया और धार्मिक एकता के औजार के तौर पर पेश किया गया, वैसे यह केवल हिंदू-केंद्रित है.
आयोजन के लिए मदुरै का चयन भी रणनीतिक था. मंदिरों के शहर के तौर पर प्रख्यात मदुरै द्रविड़ सियासी पहचान का केंद्र भी है. हाल के वर्षों में यह सियासी मंच बनकर उभरा जब इसने अभिनेता विजय की तमिलगा वेत्रि कडगम (टीवीके) की रैली, अन्नाद्रमुक के सम्मेलन, मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की अगुआई में द्रमुक के रोडशो और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे की मेजबानी की.
इस आयोजन से पहले भी मुदरै रिलीजियस हार्मनी फेडरेशन सहित सिविल सोसाइटी समूहों ने ऐतराज जताया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को लेकर आगाह किया. अब वे अंतरधार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए 29 जून को 'जन एकता सम्मेलन' करने का मंसूबा बना रहे हैं.
भगवान मुरुगन का प्रतीकात्मक महत्व तमिलनाडु के लिए नया नहीं है. उन्हें तमिल प्रवासियों के पंथनिरपेक्ष सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में पेश करने के लिए द्रमुक सरकार ने 2024 में ग्लोबल मुरुगन कॉन्फ्रेंस आयोजित किया. भाजपा की कोशिश बहुसंख्यकवादी है, जो इस लोक देवता को राम की तरह एकजुट करने वाले धार्मिक अधिष्ठाता में बदलने की उम्मीद कर रही है. नैरेटिव की इस जंग में मदुरै प्रतीक और मंच दोनों बन गया है.