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झारखंड: अरब और अफ्रीकी देशों में गए सैकड़ों मजदूर वहां कैसे फंस गए?

झारखंड के सैकड़ों मजदूर अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देने की उम्मीद में अरब और अफ्रीकी देशों में काम करने जाते हैं. मगर उनकी हिफाजत और निगरानी की ठोस व्यवस्था नहीं होने के कारण उनकी राह में चुनौतियां हजार

नाइजर में अगवा हुए मजदूरों के परिजन
अपडेटेड 23 जुलाई , 2025

हजारीबाग जिले के बंदखारो की रहने वाली गीतांजलि देवी के पति धनंजय महतो बीते 11 महीने से सऊदी अरब में मजदूरी कर रहे थे. वे वहां ट्रांसमिशन लाइन के लिए टावर लगाने के काम में थे. 24 मई को कंटेनर के ऊपर से गिरने से उनकी मौत हो गई. उनका पार्थिव शरीर अभी तक लाया नहीं जा सका है. धनंजय वहां लार्सन ऐंड टुब्रो कंपनी के लिए काम कर रहे थे.

गीतांजलि के मुताबिक, कंपनी की ओर से सिर्फ मौत की सूचना देने के लिए फोन आया था. उसके बाद से वे खुद दो-चार दिन पर फोन करके डेड बॉडी के आने को लेकर पूछताछ कर रही हैं. मगर उन्हें नहीं पता कि कहां गुहार लगाने से उनके पति का पार्थिव शरीर घर पहुंच पाएगा. यह केवल उनकी नहीं, झारखंड के कई परिवारों की ऐसी ही कहानी है.

बीते 25 अप्रैल को अफ्रीकी देश नाइजर में पांच भारतीयों का स्थानीय उग्रवादी समूह ने अपहरण कर लिया. ये सभी मजदूर गिरिडीह जिले के रहने वाले हैं और कल्पतरु नाम की भारतीय कंपनी की ओर से वहां काम कर रहे थे. अभी तक उनका अता-पता नहीं चला है. वहीं दिसंबर 2024 में कैमरून में झारखंड के 47 मजदूर फंस गए थे. उन्हें तीन महीने तक वेतन नहीं मिला था और वे झारखंड वापस आना चाहते थे. मगर बिचौलिये ने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया. फिर राज्य सरकार के दखल के बाद इन्हें सुरक्षित वापस लाया गया.

झारखंड के गिरिडीह, बोकारो, चतरा, कोडरमा और हजारीबाग ऐसे जिले हैं, जहां से हजारों की संख्या में लोग अरब और अफ्रीकी देशों में काम करने जाते रहते हैं. 21 जुलाई, 2023 को संसद में विदेश मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, झारखंड के 8,704 मजदूर केवल इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ईसीआर) कंट्री में काम करने जा चुके थे. मंत्रालय के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कतर, सऊदी अरब, अफगानिस्तान सहित कुल 18 देश ईसीआर के तहत आते हैं. इमिग्रेशन ऐक्ट 1983 के मुताबिक, अगर कोई भारतीय इन देशों में रोजगार के लिए जाते हैं, तो उसे यात्रा से पहले इमिग्रेशन क्लियरेंस लेना होता है. यानी उन्हें वर्क वीजा दिखाना होता है क्योंकि इन देशों को मजदूरों के लिए कामकाज के लिहाज से असुरक्षित माना जाता है.

गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड के लोग सबसे ज्यादा संख्या में इन देशों में जाते हैं. इलाके के पूर्व विधायक विनोद सिंह कहते हैं, ''राज्य के इन इलाकों में कोई उद्योग नहीं है. देश भर में सबसे कम मनरेगा मजदूरी (255 रुपए) झारखंड में है. हमारे पास श्रम ही तो है, वही बेचने लोग जा रहे हैं.''

विदेश मंत्रालय के तहत आने वाले उत्प्रवासी संरक्षण कार्यालय का मुख्य काम ईसीआर देशों में जानेवाले मजदूरों के मूवमेंट पर निगरानी रखना है. रांची में इस कार्यालय की स्थापना 2023 में हुई है. इसके मुख्य अधिकारी प्रोटेक्टर ऑफ इमिग्रेंट (पीओई) सुशील कुमार कहते हैं, ''नियम के मुताबिक इन मजदूरों को वे हायर कर सकते हैं जिन्हें मंत्रालय की तरफ से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) मिला हुआ है.'' मगर, झारखंड में मजदूर हायर करने वाली ऐसी कंपनियां दक्षिण भारतीय या मुंबई की हैं. वे एजेंटों के जरिए मजदूरों को मुंबई या तमिलनाडु जैसे जगहों पर बुलाती हैं और बाकी कागजी कार्रवाई वहीं होती है. धनंजय भी सूद पर लिए 70,000 रुपए स्थानीय एजेंट को देकर कमाने गए थे.

इन जैसे मजदूरों के देश के बाहर काम करने जाने से पहले उत्प्रवासी कार्यालय इन्हें इनके अधिकारों और मुश्किल में फंसने पर सहायता संबंधी जानकारी देने के लिए भी जिम्मेदार है. मगर रांची उत्प्रवासी कार्यालय में कार्यरत हेमंत कुमार कहते हैं, ''इन मजदूरों के जाने से पहले जानकारी ही नहीं होती है, तो हम इन्हें ट्रेनिंग कैसे देंगे.'' नाइजर में अपहृत मजदूरों को लेकर उत्प्रवासी कार्यालय ने विदेश मंत्रालय के माध्यम से नाइजर सरकार से संपर्क स्थापित किया था. बीती 22 मई को नाइजर सरकार ने बताया है कि उनकी सुरक्षा एजेंसी इस मामले को देख रही है मगर और कोई अपडेट नहीं दिया गया.

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