जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 लागू करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहला था, फिर भी इस नीति के त्रिभाषा सूत्र के खिलाफ हंगामे और इस संदेह से अछूता रहा कि यह 'हिंदी थोपने' का संकेत है. मगर वह भाषा को लेकर सियासी गतिरोध को लंबे वक्त तक टाल न सका. नायब तहसीलदार के 75 पदों के लिए 9 जून को जारी उस नोटिफिकेशन ने विवाद खड़ा कर दिया जिसमें 50 अंकों का उर्दू का टेस्ट अनिवार्य है.
वहां के राजस्व महकमे की नौकरियों के लिए उर्दू जानना अनिवार्य माना जाता है, यह कश्मीर की अकेली आधिकारिक भाषा रही है और इलाके के सदियों पुराने राजस्व, जमीन और प्रशासनिक अभिलेख उर्दू में हैं. मगर 2019 में जम्मू-कश्मीर के दर्जे में बदलाव के साथ इसके मूल निवास और जमीन से जुड़े कानूनों में भी अहम बदलाव कर दिए गए और आधिकारिक भाषा की फेहरिस्त में कश्मीरी, हिंदी, डोगरी और अंग्रेजी भी जोड़कर उसे पांच तक बढ़ा दिया गया.
इसी आधार पर विपक्षी भाजपा उर्दू परीक्षा की अनिवार्यता को लेकर उमर अब्दुल्ला सरकार को घेर रही है. उसने इसे जम्मू को दरकिनार करने के बराबर बताया, जहां बहुसंख्यक आबादी पहाड़ी और डोगरी बोलती है. जम्मू-कश्मीर के भाजपा अध्यक्ष सत शर्मा कहते हैं, ''हमारे यहां पांच भाषाएं हैं; यह एक इलाके को दूसरे पर प्राथमिकता देने की तरह है.''
राजस्व विभाग में 2021 की पिछली भर्तियों में भी उर्दू की परीक्षा अनिवार्य थी. तब भाजपा ने उसका विरोध नहीं किया था. शायद इसलिए कि तब जम्मू-कश्मीर सरकार दिल्ली की ओर से नियुक्त उपराज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा के सख्त नियंत्रण में थी. इस बार सत शर्मा और नेता विपक्ष भाजपा के सुनील शर्मा 12 जून को एलजी से मिले और परीक्षा में अन्य भाषाओं को जोड़ने की मांग की.
वहीं सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक और राष्ट्रीय प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा, ''उर्दू इस इलाके की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है. यह हमारे राजकाज, राजस्व, न्यायपालिका, जमीन व्यवस्था की रीढ़ है तथा यह सिर्फ कश्मीर और जम्मू की नहीं लद्दाख की भी है.'' उन्होंने भाजपा के ऐतराज को क्षेत्र में फूट डालने की 'ओछी सियासत' कहा. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) इस मामले में नेशनल कॉन्फ्रेंस के रुख के पक्ष में है.
महाराजा प्रताप सिंह के शासन के दौरान 1889 में फारसी की जगह उर्दू तत्कालीन जम्मू-कश्मीर रियासत की आधिकारिक भाषा बनी. हाल के दशकों में मुख्यधारा की शिक्षा में अंग्रेजी के वर्चस्व ने उर्दू के असर को कुंद कर दिया. राजस्व और जमीन के कई अभिलेखों का अंग्रेजी अनुवाद और डिजिटलीकरण हो गया है, पर जमीन की विस्तृत पहचान और पैमाइश के लिए उर्दू अनिवार्य है.
इस बीच एक और मोर्चा खुल रहा है. सरकारी नौकरियों में बड़ी तादाद में आरक्षण ने कश्मीरी युवाओं को नाराज कर दिया है. 2015 में नायब तहसीलदारों की भर्ती के वक्त 38 फीसद कोटा था; 2025 में यह 60 फीसद हो गया है. सामान्य श्रेणी के कश्मीरियों के दबाव में आरक्षण की जांच कर रही सरकार की तीन सदस्यीय समिति ने 18 जून को अपनी रिपोर्ट मंत्रिमंडल को सौंपी, जिसे कानूनी राय के लिए राज्य के कानून महकमे को भेजा गया है. खफा छात्रों ने इसे महज वक्त हासिल करने की कवायद कहा है. सादिक भरोसा दिलाते हैं, ''बिना देरी किए जवाब देना कानून महकमे के लिए बाध्यकारी है. सबको इंसाफ मिलेगा.''
कलीम गीलानी