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मोदी सरकार ने पश्चिम बंगाल का मनरेगा फंड क्यों रोक दिया?

भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर केंद्र ने तीन साल पहले बंगाल में इस रोजगार योजना का फंड रोक दिया था. अब चुनाव से पहले इसको लेकर तीखी बहस छिड़ गई है

पसीना बहाते लोग पश्चिम बंगाल के मेमारी में नरेगा मजदूर
अपडेटेड 17 जुलाई , 2025

इस बहस पर बहुत पसीना बहाया जा चुका है, मगर यह मसला सुलझ नहीं सका और इसमें पूंजी अटकी हुई है. 40 महीने पहले नई दिल्ली की ओर से अकेला छोड़ दिए जाने के बाद पश्चिम बंगाल को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) के तहत कामों को जारी रखने के लिए खुद के सीमित कोष का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.

यह राज्य के 1.38 करोड़ सक्रिय जॉब कार्ड धारकों के लिए नाकाफी है. अनियमितताओं का हवाला देकर केंद्र की ओर से नरेगा फंड पर रोक लगाने के बाद मार्च, 2022 से बंगाल केवल 80.99 करोड़ रोजगार दिवस सृजित करने में कामयाब रहा, जो उसके पिछले 'सामान्य' वर्ष में हासिल 41.45 करोड़ रोजगार दिवसों का बमुश्किल दोगुना है. उस वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी 1.12 करोड़ लोगों को काम मिला था. यह अगले तीन वर्षों में कुल मिलाकर 1.81 करोड़ तक गिर गया.

उपेक्षा बनाम जवाबदेही
एक सकारात्मक पहलू है: राज्य से वित्तपोषण के दौरान कार्य दिवसों में साल दर साल ठीकठाक वृद्धि हुई है—जो नरेगा में एक अलग मानदंड है और काम पाने वाले लोगों की संख्या गिनने वाले 'कार्य दिवसों' के विपरीत पूरे आठ घंटे की शिफ्ट पूरी होने को मापता है. मगर यह थोड़ी-सी प्रगति नई दिल्ली की रोक से पैदा हुए वित्तीय अकाल को हल नहीं कर पाती. आखिरी किस्त दिसंबर, 2021 में आई थी.  

राज्य की बार-बार अपील नाकाम रही. बंगाल की तृणमूल कांग्रेस इसके पीछे सियासी मकसदों को जिम्मेदार ठहराती है; जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र का दावा है कि वह जवाबदेही तय कर रहा है. खासकर पूर्वी वर्धमान, हुगली, मालदा और दार्जिलिंग में भ्रष्टाचार और प्रक्रिया में चूक के आरोप के बाद 2022 में रोक लगी थी. इस साल अप्रैल में कलकत्ता हाइकोर्ट ने कहा कि अनिश्तिकालीन रोक की जरूरत नहीं थी या वह तर्कसंगत नहीं था. उसने केंद्र से पूछा कि उन जिलों को छोड़कर राज्य के लिए नरेगा फंड को फिर शुरू क्यों नहीं किया जा सकता? 

राज्य के अहम चुनावी साल की ओर बढऩे के साथ यह मसला और भी जरूरी हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीपुरद्वार में एक हालिया रैली में टीएमसी शासन पर विकास परियोजनाओं को रोकने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. इसके जवाब में, टीएमसी ने नरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाइ) के बकाया को बतौर सबूत हवाला देते हुए केंद्र पर राज्य की उपेक्षा करने का आरोप लगाया.  

बंगाल के प्रशासनिक मुख्यालय, नबान्न के मुताबिक, लोग अभी भी दिसंबर, 2021 तक पूरे किए गए अपने कार्य के भुगतान का इंतजार कर रहे हैं. केवल मजदूरी का बकाया ही 3,732 करोड़ रुपए है. सामग्रियां, ठेकेदारों, प्रशासनिक लागत को जोड़ने पर कुल बकाया 6,907 करोड़ रुपए हो जाता है. राज्य ने अपने खुद के बजट से बकाया मजदूरी का भुगतान किया है. इसने पीएमएवाइ के बकाए का भुगतान भी खुद करना शुरू कर दिया है. मगर इसने राज्य पर वित्तीय दवाब डाल दिया है.

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