
यह क्या बस एक राज्य का मुद्दा है? एक क्षेत्रीय मुद्दा जो केवल दक्षिण भारत से संबंधित है? या फिर ऐसा जो भारत की धुरी को हिला सकता है? राष्ट्रीय से स्थानीय तक, सभी मुद्दे पिछले हफ्ते एक हाइ-वोल्टेज दौरे में एक-दूसरे से मिलते नजर आए. अगले साल तमिलनाडु में भगवा सरकार आने का दावा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शहर में थे.
मदुरै में उनके भाषण में सैन्य पराक्रम का बखान, द्रमुक पर भ्रष्टाचार के आरोप और विपक्ष के उठ खड़े होने का आह्वान गूंज उठा. मगर आक्रामकता के बीच, एक चीज पर चुप्पी भी शोर कर रही थी—परिसीमन का कोई उल्लेख नहीं किया गया.
यह कोई गूढ़ विषय नहीं रह गया है. 2026 से जनगणना शुरू होना तय हो चुका है. राज्यों को दिए गए राजनीतिक वजन के 'नए सिरे से संतुलित करने' की अनिवार्यता से दक्षिण का असर कम होने का अंदेशा है—अगर यह आबादी के नए आंकड़ों के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या निर्धारित करने के तर्क का पालन करता है. इससे नाराज होने वाले राज्यों में सबसे बड़ा तमिलनाडु है और यहां यह मसला तेजी से उभर रहा.
सत्तासीन द्रमुक के लिए शाह की चुप्पी इसकी रणनीतिक पुष्टि है कि भाजपा की मंशा 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले परिसीमन को आगे बढ़ाने की है. मार्च में दक्षिणी राज्यों के कॉन्क्लेव में भाग लेने के बाद अन्नाद्रमुक भाजपा की अगुआई वाले एनडीए में वापस लौट आई और वह भी आबादी आधारित परिसीमन के खिलाफ थी.
ऐसे में उसके लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है. आखिरकार यह विषय भी जीएसटी, नीट और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तरह तमिल राजनीति पर बड़ा असर डालने वाला मुद्दा बन सकता है. और यह मुद्दा 2026 विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अब खत्म होने वाला नहीं.

घटती ताकत?
तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीटें हैं—सदन का 7.2 फीसद. ताजा आबादी डेटा के अनुसार, यह घटकर 31 तक पहुंच सकती है. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एक संवैधानिक गारंटी की मांग की है कि तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व कम नहीं हो. 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन ने 1971 की जनगणना के आधार पर हर राज्य की लोकसभा सीटों की संख्या को 25 वर्षों के लिए स्थिर कर दिया.
उसका उद्देश्य परिवार नियोजन लागू करने वाले राज्यों को नुक्सान से बचाना था. 2002 में 84वें संशोधन ने उसे 2026 तक बढ़ाया. वह 50 साल पुरानी स्थिति अब बदल सकती है, मगर इसका बुनियादी विरोधाभास अनसुलझा है. फिसड्डी उत्तर को लाभ होने वाला है जिसकी जनसंख्या बेतहाशा बढ़ रही.
एक विश्लेषक कहते हैं, ''परिसीमन से आबादी नियंत्रण के लक्ष्यों को पाने वाले राज्यों को सजा और नाकाम राज्यों को लाभ नहीं मिलना चाहिए. यह सिर्फ संख्या की बात नहीं—यह प्रदर्शन को प्रोत्साहित नहीं करता. इन राज्यों ने प्रजनन दर को कम किया, मातृ मृत्यु दर घटाया, महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार किया. केंद्र का कहना है कि दक्षिण को कोई नुक्सान नहीं होगा मगर बिना किसी पद्धति के आश्वासन का क्या मतलब है?''
मार्च के कॉन्क्लेव में दक्षिण ने 2051 तक रोक को बढ़ाने की मांग की थी. स्टालिन का कहना है कि भाजपा संघवाद को कमजोर कर रही और उसमें अन्नाद्रमुक की मिलीभगत है. अन्नाद्रमुक महासचिव पलानीस्वामी जवाब देते हैं कि स्टालिन झूठ फैला रहे हैं. मगर नई दिल्ली से स्पष्टता के अभाव ने द्रमुक को एक नया सियासी अवसर दे दिया है जो एक नीतिगत चुनौती से लिपटा हुआ है.