
मरुभूमि राजस्थान में जिस खेजड़ी के पेड़ को बचाने के लिए 295 साल पहले खेजड़ली बलिदान जैसी अमर गाथा रची गई, वही आज बेतरतीब विकास की भेंट चढ़कर अपने अस्तित्व का संकट झेल रहा है. खेजड़ली गांव के 363 लोगों के बलिदान को बिसराकर रेगिस्तान में सोलर और विंड प्रोजेक्ट के नाम पर आए दिन खेजड़ी के हजारों पेड़ों की बलि ली जा रही है.
पर्यावरणविदों का आकलन बताता है कि पिछले 15 साल में राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिलों में सोलर और विंड प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए करीब 25 लाख पेड़ों की बलि ली जा चुकी है. गौरतलब है कि पिछले डेढ़ दशक में राजस्थान में डेढ़ लाख बीघा क्षेत्र में 28,620 मेगावाट क्षमता के सोलर और विंड प्रोजेक्ट लगाए गए हैं.
इनके लिए यहां वर्षों से मौजूद खेजड़ी, जाल, रोहिड़ा और देशी बबूल जैसे पेड़ों का सफाया किया जा चुका है. सरकार ने आने वाले पांच साल में सूबे में 90,000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इसके लिए तीन लाख बीघा अतिरिक्त जमीन की जरूरत होगी. ऐसे में 45-50 लाख पेड़ों की बलि और चढ़ सकती है. रेगिस्तान में एक बीघे में खेजड़ी, बबूल, जाल और रोहिड़े के औसतन 15-16 पेड़ होते हैं. विडंबना ही है कि हरे-भरे पेड़ों की बलि ग्रीन एनर्जी के नाम पर ली जा रही है.
बीकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रभारी प्रोफेसर अनिल कुमार छंगाणी कहते हैं, ''अनियोजित सोलर और विंड प्रोजेक्ट के कारण रेगिस्तान की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है. लाखों पेड़ काटकर सोलर पैनल लगाए जाने से इनके आस-पास के क्षेत्रों का तापमान 2 से 5 डिग्री तक बढ़ा है. सोलर पार्क के लिए पेड़ों की बलि देना रेगिस्तान के जन-जीवन को खतरे में डालना है.''
छंगाणी के दावों में इसलिए दम नजर आता है क्योंकि जिन इलाकों में सोलर प्लांट लगाए गए हैं वहां तितलियां, मधुमक्खी, सांप, चूहे और बहुत-से कीट-पतंगे गायब हो गए हैं. मधुमक्खियों और तितलियों के गायब होने से जो पेड़ बचे हैं, उनमें भी तने, शाखा, पत्तियों, कलियों और फूलों का विकास रुक गया है. सोलर प्लांट को साफ और ठंडा रखने के लिए इन पर हर हफ्ते चार करोड़ लीटर पानी खर्च हो रहा है. पानी का संकट झेल रहे रेगिस्तान में इतना पानी तीन लाख लोगों की प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त है.
प्रदेश में सोलर और विंड प्रोजेक्ट के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का जमकर विरोध हो रहा है. प्रदेश में ट्री प्रोटेक्शन कानून बनाए जाने की मांग को लेकर बीकानेर की कोलायत तहसील के खेजड़ला गांव के ग्रामीण 18 जुलाई, 2024 से धरने पर बैठे हैं. इस आंदोलन के अगुआ और प्रकृति बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधि रामगोपाल विश्नोई कहते हैं, ''संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में भी खेजड़ी के पेड़ की कटाई रोकने के लिए सख्त कानून और भारी जुर्माने का प्रावधान है मगर राजस्थान में एक हजार रुपए का मामूली जुर्माना अदा कर आसानी से पेड़ काटे जा सकते हैं. ट्री प्रोटेक्शन कानून और सोलर प्लांट के नाम पर पेड़ों की कटाई रोकने जैसी मांगों को लेकर हम पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे हैं मगर सरकार आंख मूंदकर बैठी है.''
कुछ ऐसे ही आंदोलन प्रदेश के जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर और जोधपुर इलाकों में भी चल रहे हैं. जैसलमेर के शिव से विधायक रवींद्र सिंह भाटी ऐसे कई आंदोलनों की अगुआई कर रहे हैं. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी सुप्रीमो और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल संसद में और कोलायत विधायक अंशुमान सिंह भाटी राजस्थान विधानसभा में खेजड़ी समेत दूसरे पेड़ों की कटाई का यह दर्द बयान कर चुके हैं.
सोलर और विंड प्रोजेक्ट के नाम पर पेड़ों की कटाई पर राजस्थान सरकार में ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर कहते हैं, ''हम जल्द ही एक ऐसी नीति लाने जा रहे हैं जिसमें किसी भी प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने के बदले उससे ज्यादा पेड़ लगाना अनिवार्य किया जाएगा. सोलर प्लांट लगाने के लिए जितने पेड़ काटे जाएंगे, उससे ज्यादा पेड़ जमीन की बाउंड्री पर लगाने होंगे.''

सरकार की यह नीति तो न जाने कब अमल में आएगी, मगर पेड़ों की कटाई से ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक ढांचा जरूर गड़बड़ा रहा है. राजस्थान में 25 लाख हरे पेड़ों की कटाई से अरबों रुपए का नुक्सान हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस.ए. बोबडे की खंडपीठ की ओर से बनाई गई विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आकलन को आधार मानें तो राजस्थान में पेड़ों की कटाई से 1,800 अरब रुपए से भी ज्यादा का नुक्सान हो चुका है. इस समिति ने एक पेड़ का एक साल का आर्थिक मूल्य 74,500 रुपए माना है. यह कीमत पेड़ से पैदा होने वाले ऑक्सीजन, लकड़ी, ईंधन, फल, पत्तियों और दूसरे लाभों पर आधारित थी. समिति ने यह भी माना कि पेड़ जितना पुराना होगा, उसकी कीमत उतनी ही बढ़ जाएगी. इस लिहाज से राजस्थान में 25 लाख पेड़ काटे जाने से 1,862 अरब रुपए का नुक्सान हो चुका है.
प्रदेश में पेड़ों की कटाई रोकने का जिम्मा राजस्व विभाग के पास है. इस विभाग की कार्रवाई का जरा अंदाजा लगाइए! बीकानेर के कोलायत क्षेत्र से विधायक अंशुमान सिंह भाटी ने पिछले दिनों विधानसभा में सवाल पूछा कि सोलर प्लांट के लिए कितने पेड़ काटे गए हैं? इस पर विभाग की ओर से इसका जवाब दिया गया: शून्य. सोलर और विंड प्लांट के लिए पेड़ों की कटाई किए जाने के दौरान अगर राजस्व विभाग का कोई कर्मचारी आ भी जाता है तो भी जुर्माने का प्रावधान इतना कम है कि इसे अदा करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होता. पेड़ काटने पर तहसीलदार राजस्व ऐक्ट के तहत महज 100 रुपए का जुर्माना कर सकता है.
नियम के मुताबिक, सोलर पार्क के लिए भूमि गैर-कृषि, बंजर या कम उत्पादक होनी चाहिए मगर बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर और जैसलमेर में उपयोगी जमीन पर भी सोलर प्लांट लगाए जा रहे हैं. सोलर पार्क के लिए पर्यावरण प्रभावों का भी आकलन होता है. लीज एग्रीमेंट में भी यह लिखा जाता है कि जहां सोलर प्लांट लगाया जा रहा है वहां पहले से कोई निर्माण, फसल और पेड़, पौधे और वनस्पति नहीं हैं. ऐसे में जब प्लांट लगाने के लिए पेड़ काटे जाते हैं तो कंपनी साफ तौर पर बच जाती है. अगर सोलर पार्क के लिए वृक्ष कटाई आवश्यक है तो वन विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य है मगर राजस्थान में अधिकांश प्रोजेक्ट में बिना अनुमति के ही पेड़ों की कटाई की जा रही है.
पर्यावरणविद् सुमेर सिंह सांवता कहते हैं, ''खेजड़ी का एक पेड़ एक परिवार के जीवन का आधार है. खेजड़ी के पेड़ की औसत आयु 200 से लेकर 800 साल तक मानी गई है जबकि सोलर पैनल की उम्र 15-20 साल ही है. ऐसे में 15-20 साल के विकास के लिए 100 साल पुराने पेड़ों को समाप्त करना बड़ी भूल है.''
संयुक्त राष्ट्र की ओर से भूमि संरक्षण के सर्वोच्च सम्मान 'लैंड फॉर लाइफ अवॉर्ड' से सम्मानित प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी कहते हैं, ''ग्रीन और रिन्यूएबल एनर्जी आज की आवश्यकता है, मगर इसके लिए हमें ऐसे विकल्प भी तलाशने होंगे जिससे पर्यावरण को नुक्सान की जगह फायदा पहुंचे. इसके लिए पहला उपाय यह है कि 600 किलोमीटर लंबी इंदिरा गांधी नहर की मुख्य शाखा और 10,000 किलोमीटर लंबी इसकी वितरिकाओं के ऊपर तथा किनारों पर सोलर फार्मिंग की जाए. नहर को ढकने से जहां वाष्पीकरण से बचाव के जरिए पानी बचेगा वहीं सोलर प्लेट धुलाई का पानी भी वापस काम आ सकेगा. राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के किनारे भी इसी तरह की ब्लॉक सोलर फार्मिंग की जाए और सभी सरकारी परिसरों की सड़कों और छतों को सोलर पैनल से ढका जाए.''
पर्यावरणविदों के पास खेजड़ी और दूसरे पेड़ों को कटने से बचाने के उपाय और सुझाव हैं लेकिन इन्हें लागू करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है. मरुभूमि के संवेदनशील पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना सरकार, कंपनियों और आम लोगों की जिम्मेदारी है क्योंकि यह उनके अस्तित्व से जुड़ा हुआ है.
खेजड़ली बलिदान की गाथा
राजस्थान में जोधपुर से 18 किलोमीटर दूर बसा खेजड़ली गांव आज भी सन् 1730 के ऐतिहासिक बलिदान की गूंज से जीवंत है. 12 सितंबर, 1730 को खेजड़ली गांव में पर्यावरण और जीवप्रेमी अमृता बिश्नोई के नेतृत्व में खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए 83 गांवों के 363 लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी. यह कहानी उस वक्त की है जब जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने अपने महल के निर्माण के लिए लकड़ी की जरूरत के चलते खेजड़ली के पेड़ों को काटने का आदेश दिया. खेजड़ी बिश्नोई समुदाय के लिए जीवन का आधार और आस्था का प्रतीक था. महाराजा के मंत्री गिरधारी सिंह भंडारी के नेतृत्व में सैनिक और श्रमिक वृक्ष काटने के लिए खेजड़ली गांव पहुंचे तो गांव की अमृता देवी खेजड़ी बचाने के लिए पेड़ से चिपक गईं. सैनिकों ने उनका सिर काटने की धमकी दी तो अमृता देवी ने नारा दिया, ''सर साटे, रुख रहे, तो भी सस्तो जाण'' अर्थात सिर कट जाए, पर पेड़ बचे, तो भी यह सौदा सस्ता है.
सैनिकों ने पहले अमृता देवी और उनकी तीन बेटियों को मार डाला और उसके बाद पेड़ों से चिपके हुए गांव के 363 बिश्नोई पुरुष, महिलाएं और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया. जब इस कत्लेआम की खबर महाराजा अभय सिंह तक पहुंची तो वे पश्चात्ताप की आग में जल उठे. उन्होंने ताम्रपत्र पर यह आदेश निकाला कि भविष्य में बिश्नोई समुदाय के किसी भी गांव में खेजड़ी का पेड़ नहीं काटा जाएगा. खेजड़ली के जंगलों को संरक्षित करने का फरमान जारी किया. इस बलिदान की गूंज आजाद भारत में भी कई बार सुनाई दी. खेजड़ली का वह बलिदान पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में 1973 में हुए 'चिपको आंदोलन' की प्रेरणा बना. 1982 में बिहार-झारखंड का जंगल बचाओ आंदोलन और कर्नाटक के पश्चिम घाट में अप्पिको चालुवली आंदोलन के पीछे भी इसी की प्रेरणा थी. बीकानेर जिले के खेजड़ला गांव की महिलाएं पेड़ों से चिपककर सोलर प्लांट का विरोध कर रही हैं, उसकी प्रेरणा भी खेजड़ली आंदोलन ही है.
बिश्नोई (बीस-नौ) समुदाय का नाम गुरु जम्बेश्वर की ओर से स्थापित 29 (बीस और नौ) नियमों पर आधारित है. इन 29 नियमों में से 9 नियम प्रकृति और पशु प्रेम पर आधारित हैं. अमृता देवी बिश्नोई के नाम पर वन्यजीव संरक्षण के लिए 2001 से राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है.

खेजड़ी को क्यों माना गया कल्पवृक्ष
खेजड़ी को 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था. इसे राजस्थान का कल्पवृक्ष और रेगिस्तान का गौरव भी कहा जाता है. खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस सिनेरेरिया है और स्थानीय बोली में इसे खिजरो, जांट, झंड, खार, कांडा और जम्मी जैसे नामों से भी जाना जाता है. खेजड़ी का व्यापारिक नाम कांडी है.
इस पेड़ की लकड़ी काफी मजबूत होती है, जिसका इस्तेमाल ईंधन, फर्नीचर और यज्ञ पूजन में किया जाता है. इसकी जड़ से किसान हल बनाते हैं. इसकी विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति के कारण खेजड़ी के पेड़ से पैदा होने वाली सांगरी को हाल ही में जीआइ टैग से नवाजा गया है.
सांगरी में 15 प्रतिशत तक प्रोटीन, 8 से 12 प्रतिशत फाइबर, 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 8 से 15 प्रतिशत शुगर के साथ ही केवल 2 से 3 प्रतिशत ही वसा या फैट होता है. कैल्शियम, आयरन और अन्य पौष्टिक तत्व होने के चलते सांगरी को काफी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. केर सांगरी की सब्जी राजस्थान में खासी लोकप्रिय है.