scorecardresearch

बिहार: फिर कोई घर जलाएंगे या खुद का रौशन करेंगे चिराग?

चारेक महीने दूर विधानसभा चुनाव से पहले लोजपा (रामविलास) नेता चिराग पासवान की बढ़ी सक्रियता से पक्ष-विपक्ष दोनों खेमे असहज और चौकन्ने हैं

शाहाबाद में आयोजित लोजपा (रावि.) की एक रैली में चिराग पासवान
अपडेटेड 18 जुलाई , 2025

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सांसद और पार्टी के बिहार प्रभारी अरुण भारती ने 9 जून को अपने फेसबुक पेज पर लिखा, ''शाहाबाद से उठी हुंकार, है स्वीकार, है स्वीकार. नव संकल्प से नव नेतृत्व.''

यह पोस्ट एक दिन पहले आरा में हुई पार्टी की नव संकल्प महासभा में उनके संबोधन की अगली कड़ी थी. उन्होंने कहा था, ''मैं कई मंचों से बोलता आया हूं, चिराग पासवान जी को बिहार आकर बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. बिहार का नेतृत्व करना चाहिए.''

अब वे कहना चाह रहे थे कि शाहाबाद की जनता ने चिराग पर मुहर लगा दी है. यह पोस्ट महत्वपूर्ण है, क्योंकि पार्टी के ही लोगों के मुताबिक, ''चिराग क्या चाह रहे हैं, इसका पता उनकी बातों से ज्यादा अरुण भारती के बयानों में मिलता है क्योंकि वे सिर्फ बिहार के प्रभारी नहीं, चिराग के बहनोई भी हैं. वे वही कहते हैं, जो चिराग कहना चाहते हैं मगर गठबंधन की मजबूरियों की वजह से खुलकर कह नहीं पाते.''

कुछ दिन पहले भारती की एक और पोस्ट बहस का मुद्दा बनी थी. उन्होंने लिखा था, ''मैं प्रदेश प्रभारी के रूप में गांव-गांव गया. हर जगह लोगों की एक ही मांग थी, 'चिराग जी को बिहार में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए.' कार्यकर्ताओं की भावना है कि इस बार वे किसी आरक्षित सीट से नहीं, सामान्य सीट से लड़ें ताकि संदेश जाए कि वे सिर्फ एक वर्ग नहीं, पूरे बिहार का नेतृत्व करने को तैयार हैं. जब नेता पूरे बिहार का है, तो सीट का दायरा क्यों सीमित हो?''

बहस इस पर भी छिड़ी कि अबकी चिराग सचमुच गंभीर हैं या फिर 2020 की तरह इस बार भी जद (यू) को नुक्सान पहुंचाने के लिए अकेले चुनाव लड़ेंगे? हालांकि, आरा की सभा में चिराग ने इस मुद्दे पर खुलकर बात की: ''2020 में सिर्फ बिहार की अस्मिता और स्वाभिमान के लिए मैंने बिना सोचे, अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था क्योंकि आप लोग चाहते थे कि मैं अकेला चुनाव लडूं. 2024 में भी फैसला आप लोगों का था, उस वक्त भी मैंने कहा था कि मेरा गठबंधन सिर्फ बिहार की जनता के साथ है.''

फिर उन्होंने जोड़ा, ''मैं बिहार की 243 सीटों पर चुनाव लडूंगा. मैं बिहार से नहीं बल्कि बिहार के लिए चुनाव लडूंगा. बिहार की हरेक सीट से बिहार और बिहारियों को फर्स्ट बनाने के लिए चुनाव लड़ूंगा.'' हालांकि उन्होंने मोदी और नीतीश के काम की तारीफ की और इशारा किया कि गठबंधन में रहते हुए ही वे चुनाव लड़ेंगे.

रैली के फौरन बाद इंडिया टुडे से बातचीत में शाहाबाद निवासी उनकी पार्टी के नेता हुलास पांडेय कहते हैं, ''आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की एक मजबूत सरकार बने, हम 225 सीटें जीतने का लक्ष्य हासिल करें, इसलिए हम 243 सीटों पर तैयारी रखेंगे, ताकि एनडीए के जो उम्मीदवार जहां चुनाव लड़ें, उनको जिताने में पार्टी की अहम भूमिका हो.'' पर यह साफ नहीं हो सका कि चिराग की बिहार को लेकर बढ़ती महत्वाकांक्षा की वजह क्या है? इसकी आखिरी सीमा क्या होगी? उनकी इस अति-सक्रियता ने पक्ष और विपक्ष दोनों के कान खड़े कर दिए हैं.

लोजपा के मुख्य प्रवक्ता राजेश कुमार भट्ट कहते हैं, ''बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट हमारी पार्टी का विजन है. इसी वजह से उन्होंने कहा है कि बिहार उन्हें बुला रहा है और केंद्र की राजनीति में वे ज्यादा दिन नहीं रहेंगे. वे बिहार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. यह पार्टी के पदाधिकारियों की भी आकांक्षा है. वे बिहार की राजनीति में आते हैं तो इससे नेताओं-कार्यकर्ताओं का उत्साह ही बढ़ेगा.''

उनके तेवरों पर विपक्ष के अपने सवाल हैं. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, ''एनडीए के 20 साल के शासन के बाद भी अगर चिराग कह रहे हैं कि 'बिहार में बेरोजगारी, पलायन और गरीबी है' तो वे एनडीए का साथ छोड़ें, कुर्सी को लात मारें फिर बिहार के भविष्य के लिए लड़ें. एनडीए में वैसे भी उनको तवज्जो नहीं मिल रही. सत्ता की मलाई तो भाजपा और जद (यू) खा रहे हैं. उन्हें भाजपा कितनी सीटें देगी, इस पर भी असमंजस है.''

सीटों का सवाल बड़ा है. चिराग इस चुनाव में पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें चाह रहे हैं. पहले 50 सीटों पर दावा कर रहे थे, अब पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अपनी पांच लोकसभा सीटों के हिसाब से हर सीट के लिए छह यानी 30 सीटें चाहते हैं. मुख्यमंत्री पद पर तो निगाह है ही. चिराग के एक बहनोई अनिल साधु से उनकी वैचारिक असहमति रहती है. वे राजद में हैं. साधु की राय में, ''सारा खेल सीटों की सौदेबाजी का है.'' उनका सवाल है, ''2005 में अटल बिहारी वाजपेयी मेरे ससुर रामविलास पासवान को बिहार का सीएम बनाना चाहते थे तब तो इनकी मां और इन्होंने यह कहकर रोक दिया कि उन्हें केंद्र की ही राजनीति करनी चाहिए. अब वे क्यों बिहार आना चाहते हैं?''

चिराग की खातिर बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के प्रचार अभियान का दृश्य

सीटों के मसले को थोड़ा और साफ करते हुए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, ''एक तो चिराग खुद को बिहार का नेता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरा, वे एनडीए में बड़ी भूमिका के साथ बिहार में पार्टी को बड़ा करना चाहते हैं. तीसरा, चुनाव के बाद कमोबेश नीतीश कुमार की पारी समाप्त होने के संकेत मिल रहे हैं और इस वक्त एनडीए में लीडरशिप का वैक्यूम है. इसलिए वे खुद को बड़े दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं. मगर इस सबके लिए वे जद (यू) और भाजपा को नाखुश करने का खतरा नहीं ले सकते. इसलिए मोदी और नीतीश की तारीफ कर रहे हैं और उनका आशीर्वाद भी मांग रहे हैं.''

ज्यादा सीटों के लिए उनकी निगाहें शाहाबाद क्षेत्र पर हैं, जहां पिछले चुनाव में एनडीए को 22 में से महज दो सीटें मिली थीं. वे एनडीए में मैसेज देना चाहते हैं कि अगर उनका शाहाबाद का इलाका कमजोर है तो यह उन्हें दे दिया जाए. अरुण भारती और हुलास पांडेय भी वहां के बड़े नेता हैं. उन्होंने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत भी शाहाबाद से ही की है. हुलास कहते हैं, ''पिछली बार पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने से शाहाबाद में वोट बंट गए थे. इसी का फायदा विपक्षी दलों को मिला. अब यह होने वाला नहीं. गठबंधन एकजुट है. इसका मतलब यह नहीं कि हम शाहाबाद पर दावा कर रहे हैं. हम अपनी तैयारी कर रहे हैं, ताकि जो चुनाव लड़ने आए उसे पूरी ताकत से मदद कर सकें.''

चिराग की मांगें नहीं मानी गईं तो वे क्या करेंगे? अकेले चुनाव लड़ने का रिस्क उठाएंगे? हाल के दिनों में उनकी जनसुराज पार्टी के साथ वैचारिक सहमति की खूब चर्चा है. क्या उसके साथ जाएंगे? या इस बार भी नीतीश को नुक्सान पहुंचाने की कोशिश करेंगे? इसकी संभावना कम लगती है. हाल के दिनों में चिराग के संबंध नीतीश से बेहतर हुए हैं. वे कई बार नीतीश से मिल चुके हैं. हाल में पुनर्गठित महादलित आयोग की अध्यक्षता नीतीश ने उनके बड़े बहनोई मृणाल पासवान को दी है.

2020 के चुनाव में जद (यू) की सीटें घटने को लेकर चिराग को जिम्मेदार माना गया था, जिन्होंने 137 सीटों पर चुनाव लड़ा और ज्यादातर सीटें जद (यू) के खिलाफ थीं. जद (यू) मानता रहा है कि उनकी पार्टी इसी वजह से 43 पर सिमट गई. इसको लेकर दोनों के बीच काफी कटुता रही. वह कटुता अब कम होती नजर आ रही है. जद (यू) प्रवक्ता अंजुम आरा कहती हैं, ''पिछले अनुभवों को इस बार से जोड़ना ठीक नहीं होगा. लक्ष्य बड़ा हो तो कई छोटी चीजें खत्म हो जाती हैं. हमारा आपसी विश्वास बढ़ा है. इस बार एनडीए की पांचों पार्टियां एकजुट हैं. पांचों ने मिलकर जिलास्तरीय सम्मेलन सफलतापूर्वक किया है और अब विधानसभा सम्मेलन साथ करने जा रहे हैं. इन सम्मेलनों में पांचों पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष शामिल रहते आए हैं.''

पुष्पेंद्र का मानना है, ''मुझे नहीं लगता चिराग इस बार खुद को वोटकटुआ की भूमिका में रखना पसंद करेंगे. पिछली बार उन्होंने ऐसा करके अपनी महत्ता साबित कर दी. ज्यादा सीटें उनकी प्राथमिकता होगी. इसके लिए शाहाबाद अच्छी जगह है.'' पर आखिर में वे जोड़ते हैं, ''मुझे संशय है कि भाजपा इन्हें अनुग्रहीत करेगी. भाजपा कोई दूसरा नीतीश खड़ा नहीं करना चाहेगी. नीतीश को आगे बढ़ाने के कारण उन्हें 20 साल इंतजार करना पड़ा है. अब भाजपा के लिए भी अपना सीएम बनाने का मौका है. वह अब रिस्क नहीं लेगी.'' 

Advertisement
Advertisement