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बिहार: मुख्यमंत्री पद के लिए 'नीतीश' के नाम पर मुहर लगाने से क्यों बच रहे पीएम मोदी?

ब्रांड नीतीश' की जो भी साख है, भाजपा बिहार चुनाव में उसे तो बरकरार रखना चाहती है. लेकिन इससे ज्यादा उसे और कुछ गवारा नहीं है

काराकाट में 30 मई को एक समारोह के दौरान नीतीश का अभिवादन करते पीएम मोदी
अपडेटेड 23 जून , 2025

पहलगाम से पटना. सियासी फलक पर वे हजार से ज्यादा मील दूर हैं. मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल को इस दूरी को पाट दिया, जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई का वादा करने के लिए अप्रत्याशित तौर पर मधुबनी का मंच चुना.

मई के आखिर में जब वे बिहार लौटे तो लोगों के बीच ऑपरेशन सिंदूर के छींटे पड़े थे. ऐसे में उनके लिए माहौल बिल्कुल मुफीद था कि वे मिशन पूरा होने का वास्ता दें और बिहार को ज्यादा बड़े नैरेटिव की कताई करते चरखे में लगा दें.

यह सब गूढ़ या ख्याली भी नहीं था. रोहतास जिले के बिक्रमगंज में 32 मिनट के अपने भाषण में मोदी ने स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों को एक ताने-बाने में पिरोया, वृद्धि, जनकल्याण, माओवाद के खात्मे वगैरह पर लंबी-चौड़ी बातें कीं. कुछ ऐसा भी था जिसका न होना साफ दिखाई दिया: मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार के नाम पर दोटूक मोहर.

तो अब दूल्हे नहीं रहे?

जद (यू) को दरअसल ताजपोशी की उम्मीद थी, तब तो और भी जब बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं. प्रधानमंत्री ने नीतीश की तारीफ जरूर की लेकिन ऐन उस रहस्यमयी कगार पर ही रुक गए. शायद इसलिए कि यह आधिकारिक यात्रा थी, जिसमें मोदी ने 29 मई को पटना हवाई अड्डे के नए टर्मिनल का उद्घाटन और 50,000 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का अनावरण किया.

हालांकि, पटना में रोडशो के साथ उन्होंने भरपूर राजनैतिक गलबहियां भी कीं. फिर, जैसा कि जद (यू) के नेताओं ने दुख के साथ माना, उनके बिक्रमगंज के भाषण में देर तक राजद और कांग्रेस पर गोले भी बरसाए गए, यानी ऐसा नहीं था कि उन्होंने राजनीति से परहेज किया. तब तो यह साफ चूक थी.

यह 2025 में मोदी की तीसरी बिहार यात्रा थी. अक्तूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव की सरगर्मी बढ़ रही है. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी चार बार यहां आ चुके हैं. साफ है कि दांव ऊंचे हैं. बिहार के राजनैतिक इतिहास में पहली बार भाजपा 243 में से 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर मैदान में उतर रही है. आरजेडी के पास 77 सीटें हैं, तो जेडी(यू) 45 विधायकों के साथ तीसरे पायदान पर है.

बिहार हिंदी पट्टी का अकेला राज्य है जहां भाजपा ने कभी अपने दम पर सरकार नहीं बनाई. और भगवा रणनीतिकार जानते हैं कि वे इतिहास के इस हिस्से को नए सिरे से लिखने के कगार पर खड़े हैं. 2020 की उसकी 19.46 फीसद वोट हिस्सेदारी अपने आप में तो अच्छी-खासी है ही, यह उसकी एक ज्यादा गहरी लोकप्रियता को छिपा लेती है, और वह यह कि उसने जिन 110 सीटों पर चुनाव लड़ा, वहां उसकी वोट हिस्सेदारी 42.56 फीसद थी.

इसी की बदौलत उसे जद (यू) को अपनी  लड़ी 115 सीटों पर मिले 32.83 फीसद वोटों पर खासी बढ़त हासिल है. यही बात मुख्यमंत्री की कुर्सी के बड़े इनाम पर भाजपा के अघोषित दावे को जायज बना देती है.

एक और हकीकत को हिसाब में लें तो उसका दावा और वजनदार हो जाता है. 2015 उस सिलसिले में एकमात्र अपवाद था जिसमें भाजपा और जद (यू) ने हमेशा गठबंधन में चुनाव लड़ा. हर बार अपनी लड़ी सीटों पर उनकी वोट हिस्सेदारी के प्रतिशत तकरीबन एक जैसे थे: फरवरी 2005 में 24.91/26.41; अक्तूबर 2005 में 35.64/37.14; और 2010 में 39.56/38.77. 2020 में 9.73 फीसद अंकों के भारी अंतर से वह संतुलन गड़बड़ा गया. उस वक्त जो भविष्य दूर दिखाई देता था, वह अब पहुंच के भीतर है.

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प्लान बी पहले

मंसूबा यह दिखाई देता है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी के इर्दगिर्द बने आभामंडल को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए, और इस तरह नीतीश की अहमियत और वजन में आई साफ कमी की भरपाई की जाए, वहीं उस पुल को भी न टूटने दिया जाए जिसके जरिए उनके ईबीसी, महिला और ओबीसी वोटरों के मूल मतदाता मंडल तक पहुंचा जा सकता है. यह बात भाजपा के एक बड़े नेता ने स्वीकार भी की: उन्हें 'छोड़ने की कोई संभावना नहीं' है, लेकिन चुनाव के बाद नतीजे भगवा खेमे के पक्ष में आने पर उनकी पार्टी मुख्यमंत्री के पद पर दावा कर सकती है.

उस स्थिति में कौन-से चेहरे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हो सकते हैं? उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और केंद्रीय राज्यमंत्री नित्यानंद राय संभावित चेहरे हैं. लोजपा के युवा वारिस चिराग पासवान भी हैं, जो छुपे रुस्तम के बजाए खेल बिगाड़ू दांव ज्यादा हैं. ज्यादा सीटों (जिसमें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर खुद को पेश करना निहित है) पर उनके जोर देने का इस्तेमाल नीतीश की सीट हिस्सेदारी को 100 के आसपास समेट देने के लिए किया जा रहा है. असल मोड़ चुनाव के बाद आ सकता है, अगर भाजपा और उसके गैर-जद (यू) सहयोगी साधारण बहुमत हासिल कर लें या उसके करीब पहुंच जाएं.

खास बातें
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मोदी ने साफ तौर पर नीतीश को एक बार फिर एनडीए का सीएम चेहरा घोषित करने से परहेज किया.

> यह उसकी अपने रेज्यूमे में बड़ा अंतर दूर करने की योजना के माकूल है: बिहार में एकछत्र राज

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