यह गंदा नाला है! कूड़ेदान है! नहीं, यह नदी का तल है! साबरमती के बहुचर्चित रिवरफ्रंट से लगी 11.5 किमी की पट्टी पानी से खाली हो गई है. कैसे और क्यों? पहले प्रश्न का उत्तर आसान है. बारहमासी नदी की तो बात ही छोड़ दें, साबरमती प्राकृतिक जलप्रवाह से कल-कल करती नदी की आदर्श परिभाषा में भी पूरी तरह नहीं अटती.
रिवरफ्रंट के ऊपर एक नहर से 20 किमी धारा के प्रतिकूल नर्मदा का पानी इसमें लाया गया है, और दूसरे सिरे पर बांध इसे रोकता है. इसलिए यह व्यावहारिक तौर पर मानव नियंत्रित लंबी झील है. लिहाजा इसे खाली किया जा सकता है.
टनों कीचड़
'क्यों' से ज्यादा पहेलीनुमा जवाब मिलता है. ऐसा शायद पहले कभी नहीं देखा गया, जब एक खाली नदी की हाथों से सफाई की जा रही हो. अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के नेकदिल और अथक दस्ते नदी के तल से गंदगी उठा रहे हैं. साबरमती रिवरफ्रंट को शहरी अचंभे के तौर पर पेश किया जाता रहा है, लेकिन एक सचाई इश्तहारों में कभी नहीं बताई गई.
इस पवित्र और प्रतिष्ठित जलाशय में, जिसका नाम भर ही महात्मा के आत्मशुद्धि के लोकाचार का आह्वान करता है, शहर के भीतर से 43 नालों के जरिए बहकर आती अशोधित गंदे पानी की समूची नदियां समाई हैं. एएमसी ने रोज करीब 78.64 करोड़ लीटर कीचड़ बहकर आने का अनुमान लगाया है. इसमें प्लास्टिक का कचरा, फेंके गए कपड़े और धार्मिक झंडे भी जोड़ लें, तो आप समझ सकते हैं कि महीने भर लंबे अभियान के पहले चार दिनों में ही नदी के तल से 251 मीट्रिक टन कचरा क्यों हटाया गया.
गर्मी का मौसम अच्छी तरह सफाई का मौका लेकर आया. करई बांध पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो वासना बैराज पानी को शहर के भीतर रखता है. एएमसी के कमिशनर बांछा निधि पाणि कहते हैं, ''बांध के एक दरवाजे की मरम्मत करनी थी, इसलिए महीने भर के लिए पानी खाली करना पड़ा. मैंने आपदा को अवसर में बदला. नदी के तल की सफाई में मदद के लिए स्वयंसेवियों को बुलाया. हर सुबह 2,500 स्वयंसेवी आते हैं और रविवार को उनकी संख्या 10,000 पर पहुंच जाती है.'' तो इसने वाकई स्थानीय समुदाय के दिलों को छुआ है.
यह मरम्मत का अनोखा काम है जो मूल समस्या को जहां का तहां छोड़ देता है. नदी वस्तुत: सड़ांध से त्रस्त है. कथित 'शोधित' गंदे पानी, उद्योगों से बहकर आने वाले अशोधित गंदे पानी, जिसकी शुद्धता का तो कोई दावा भी नहीं है, और एएमसी के जलनिकासी के नेटवर्क से जुड़े हजारों अवैध कनेक्शनों को लीजिए.
शहर करीब 1,693 एमएलडी गंदा पानी पैदा करता है. इसके 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता 1,252 एमएलडी है. रोज 1,080 एमएलडी से ज्यादा शोधित नहीं किया जाता क्योंकि एसटीपी समय-समय पर खराब हो जाते हैं या रखरखाव की वजह से बंद रहते हैं. नरोदा, वाटवा और ओधव इंडस्ट्रियल एस्टेट से 120.8 एमएलडी शोधित पानी निकालने के लिए 27 किमी लंबी मेगा पाइपलाइन है, लेकिन पांच कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट या तो काम नहीं करते या उनकी क्षमता कम है.
अध्ययनों से कार्बनिक प्रदूषकों की मौजूदगी और जलीय जीवन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं होने का पता चला है. कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी रिसकर उस भूमिगत जल में मिल जाता है जिसका इस्तेमाल करीब 5,00,000 घर पीने का पानी निकालने के लिए करते हैं.
पर्यावरण मित्र नामक एनजीओ चला रहे पर्यावरण इंजीनियर महेश पंड्या कहते हैं, ''हिसाब में नहीं लिया गया गंदा पानी तो एसटीपी से गुजारा भी नहीं जाता.'' मुद्दा अहमदाबाद का शहरी फैलाव है. इसकी आबादी 2000 के बाद दोगुनी होकर 90 लाख हो गई, जिनमें जरूरी सुविधाओं से वंचित बस्तियों में लाखों लोग रहते हैं. ''लेकिन मुख्य बुनियादी ढांचा बढ़ा नहीं. यह गहरी जड़ें जमाए सामाजिक-राजनैतिक समस्या है.''
गुजरात हाइकोर्ट की 2021 की स्वप्रेरित पीआइएल की बदौलत कुछ काम हुआ. एएमसी जैवोपचारण यानी बैक्टीरिया के समूह का इस्तेमाल करके गंदे पानी का आंशिक शोधन शुरू कर रही है, लेकिन 1 मार्च की पहली समयसीमा चूक गई. यह इसलिए और भी जरूरी हो गया है क्योंकि शहर की महत्वाकांक्षा खेलों की वैश्विक राजधानी के तौर पर उभरने की है और 2036 का ओलंपिक उसके दिमाग में है.
खास बातें
> मशीनों की बजाय हाथों से साबरमती की गाद की सफाई के अभियान में हजारों नागरिक आगे आए.
> लेकिन इसमें 78.6 करोड़ लीटर सीवेज रोज डाला जा रहा. ऐसे में समस्या हल हो नहीं पा रही.