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यूपी : फर्जी डिग्री बेच रहे थे विश्वविद्यालय, कैसे आए गिरफ्त में?

उत्तर प्रदेश में फर्जी डिग्री और मार्कशीट बांटते हुए पकड़े गए कई विश्वविद्यालय. कई राज्यों में फैला यह गोरखधंधा. सरकारी निगरानी तंत्र पर खड़े हुए सवाल

पैसे लेकर सीधे डिग्री बेचने के आरोपी हापुड़ स्थित मोनाड विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ता पुलिस की गिरफ्त में
पैसे लेकर सीधे डिग्री बेचने के आरोपी हापुड़ स्थित मोनाड विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ता पुलिस की गिरफ्त में
अपडेटेड 18 जून , 2025

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में मौजूद स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के दफ्तर को सितंबर, 2024 में एक शिकायती पत्र मिला. इसमें हापुड़ जिले के मोनाड विश्वविद्यालय से फर्जी मार्कशीट और डिग्री रैकेट चलने की जानकारी दी गई थी.

इसके बाद यही कोई 10 बार एसटीएफ की टीम गुपचुप तरीके से हापुड़ आई, मोनाड विश्वविद्यालय की हर गतिविधि की जांच की, विद्यार्थियों से भी बात की और सुराग तलाशे गए. पता चला कि मोनाड विश्वविद्यालय और हरियाणा के संदीप सेहरावत तथा उनके सहयोगी राजेश फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां बनाकर उन्हें मोटी रकम में बेच रहे हैं.

इंस्पेक्टर ओमशंकर शुक्ला के नेतृत्व में एसटीएफ की दो टीमें गठित की गईं. एसटीएफ को पता चला कि फर्जी मार्कशीट और डिग्री के लिए संदीप 17 मई को हापुड़ आने वाला है. एसटीएफ ने संदीप को मोनाड विश्वविद्यालय के पास ही उसकी कार से गिरफ्तार कर लिया. उसके पास मोनाड विश्वविद्यालय की आठ फर्जी मार्कशीट मिलीं.

पूछताछ में संदीप ने विश्वविद्यालय के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा और दूसरे सहयोगियों के साथ मिलकर फर्जीवाड़े को अंजाम दिए जाने का खुलासा किया. एसटीएफ ने मोनाड विश्वविद्यालय के सी-ब्लॉक में छापा मार वहां से हुड्डा समेत नौ लोगों को हिरासत में ले लिया.

इनके पास से 1,372 संदिग्ध मार्कशीट और डिग्रियों के अलावा 262 प्रोविजनल और माइग्रेशन सर्टिफिकेट, 14 मोबाइल फोन, एक आईपैड, सात लैपटॉप, 26 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और 6,54,800 रुपए नकद बरामद किए गए. जांच में पता चला कि बरामद दस्तावेज फर्जी हैं क्योंकि इनमें प्रयुक्त एनरोलमेंट नंबर विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड से मेल नहीं खा रहे थे.

मोनाड यूनिवर्सिटी

इन दस्तावेजों पर विश्वविद्यालय का नाम और डिजिटल हस्ताक्षर थे, जो फर्जी पाए गए. फर्जीवाड़े के पुख्ता साक्ष्य जुटाने के बाद शाम करीब चार बजे एसटीएफ ने आरोपियों को हापुड़ स्थित अपर सिविल जज सीनियर डिविजन द्वितीय के कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

यूपी के किसी विश्वविद्यालय से फर्जी डिग्री और मार्कशीट का रैकेट चलने का यह पहला मामला नहीं था. मोनाड विश्वविद्यालय का फर्जीवाड़ा पकड़े जाने से ठीक 70 दिन पहले शिकोहाबाद की जेएस यूनिवर्सिटी में भी ऐसे ही एक बड़े गिरोह की धरपकड़ हुई थी. मामला पड़ोसी राज्य राजस्थान से जुड़ा था. यह राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड की शारीरिक शिक्षा अध्यापक भर्ती परीक्षा-2022 से जुड़ा था.

परीक्षा में चयनित अभ्यर्थियों की मार्कशीट और डिग्री फर्जी पाई गई थी. दलालों के जरिए फर्जी तरीके से बैक डेट में डिग्री के मामले में एक केस 2024 में जयपुर के एसओजी (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) थाने में दर्ज कराया गया था. जांच में जेएस विश्वविद्यालय का भी नाम सामने आया.

भर्ती परीक्षा के चयनित अभ्यर्थियों में से 107 ने जेएस विवि की बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन) डिग्री बोर्ड के सामने पेश की थी, जबकि उस सत्र के लिए विश्वविद्यालय में बीपीएड की 100 सीटों की ही मान्यता थी. इतना ही नहीं, भर्ती परीक्षा के आवेदन देने वालों में से कुल 2,067 अभ्यर्थियों ने अपनी बीपीएड डिग्री जेएस विवि की ही लगाई थी. यह शुद्ध अति के अलावा क्या कहें.

जेएस विश्वविद्यालय

खास बात यह भी थी कि ये सभी छात्र राजस्थान के ही थे. इसलिए एसओजी का शक गहरा गया और उसने शिकंजा कसना शुरू कर दिया. जेएस विवि के तत्कालीन कुलाधिपति सुकेश यादव को इसकी भनक लग गई और वह झोला-झंडा लेकर विदेश निकल भागने की जुगत में लग गया. लेकिन जयपुर एसओजी ने उसे दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया. रजिस्ट्रार नंदन मिश्रा और दलाल अजय भारद्वाज को एसओजी पहले ही दबोच चुकी थी.

तीन महीने के भीतर मोनाड विश्वविद्यालय और जेएस विश्वविद्यालय में पकड़े गए फर्जी डिग्री रैकेट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. शैक्षिक संस्थाओं की गड़बड़ियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट और एडवोकेट शैलेंद्र सिंह कहते हैं, ''फर्जी डिग्रियों से जुड़े ज्यादातर मामले निजी विश्वविद्यालयों से सामने आ रहे हैं. सरकारी ढील का फायदा उठाकर कई निजी विश्वविद्यालयों के प्रबंधन से ऐसे लोग जुड़ गए हैं जो पहले भी कई प्रकार की आपराधिक गड़बड़ियों में शामिल रहे हैं. अब फर्जी डिग्रियों के जरिए ये अपने मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं."

मोनाड विश्वविद्यालय 2011 में चालू हुआ था. उसके बाद यह दो बार बिक चुका है. 2022 में इसे विजेंद्र सिंह हुड्डा ने खरीदा. हुड्डा ग्रेटर नोएडा के चर्चित 15,000 करोड़ रुपए के बाइक बोट घोटाले का आरोपी भी रहा है. शैलेंद्र बताते हैं, ''पुलिस ने जिस अपराधी की गिरफ्तारी पर 5 लाख रुपए का इनाम घोषित किया हो और उसके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी हो, उसे आसानी से जमानत मिल जाए और वह दूसरे फर्जीवाड़े में लग जाए. ऐसे में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े होना लाजमी है."

फर्जी डिग्री बेचने वाले इसके कुलाधिपति सुकेश यादव तथा अन्य

इसी तरह जेएस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे सुकेश यादव पर पहले भी गड़बड़ियों के आरोप लगते रहे हैं. शिकोहाबाद के ही भदावर विद्या मंदिर इंटर कॉलेज और भदावर विद्या मंदिर डिग्री कॉलेज के एक ट्रस्टी ने सुकेश और उनकी पत्नी पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी का आरोप लगाते हुए राज्यपाल और मुख्यमंत्री को इसकी शिकायत भेजी थी. उस पर कोई जहमत नहीं उठाई गई.

मोनाड विश्वविद्यालय की जांच आगे बढ़ने के साथ ही उसके फर्जीवाड़े की परतें खुलती जा रही हैं. एसटीएफ और पुलिस को जांच में पता चला कि विश्वविद्यालय से पांच साल में करीब 2,700 लोगों को पीएचडी की डिग्री दी गई है जबकि तीन हजार लोगों को फर्जी डिग्री पर गुरुग्राम की प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए विदेश भेजा गया है.

चौंकाने वाली बात यह है कि स्नातक किए कर्मचारियों को मास्टर और बीएड की फर्जी डिग्री थमाकर उन्हें मोनाड विश्वविद्यालय में ही नौकरी दी गई. जांच टीम को यहां से एक लाख से ज्यादा फर्जी डिग्री और मार्कशीट बेचने के सबूत मिले हैं. इन डिग्रियों की बिक्री देश में करीब नौ राज्यों में बड़े स्तर पर की गई. एसटीएफ की छापामारी में कुछ रजिस्टर मिले थे. इनमें अलग-अलग जिलों और राज्यों के सौ से ज्यादा लोगों के नाम-पते दर्ज हैं. उनके आगे लेनदेन का हिसाब भी लिखा है.

जांच एजेंसियों के सामने अभियुक्तों ने कबूल किया है कि वे संगठित गिरोह के रूप में काम करते थे और एक मार्कशीट या डिग्री के लिए 50,000 से चार लाख रुपए तक लेते थे. संदीप सेहरावत ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह फर्जी मार्कशीट और डिग्री विश्वविद्यालय के चेयरमैन हुड्डा के कहने पर छापता था.

उसका सहयोगी राजेश छपी हुई मार्कशीट और डिग्री को विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को पीले रंग के पैकेटों में अलग-अलग देकर जाता था. इस बात की गारंटी होती थी कि कोई भी डिग्री के नकली होने की पहचान नहीं कर सकेगा. संदीप ने यह भी बताया कि जब कोई एजेंसी अपने यहां चयनित अभ्यर्थी की फर्जी डिग्री सत्यापित करने के लिए मोनाड विश्वविद्यालय भेजती थी तो यहां से फौरन उसके वैध होने की पुष्टि कर दी जाती थी.

एसटीएफ को अंदेशा है कि मोनाड विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियों के जरिए बड़ी संख्या में लोग उत्तर प्रदेश तथा दूसरे राज्यों में सरकारी नौकरी कर रहे हैं. अब एसटीएफ और प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने मोनाड विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक यहां से जारी सभी डिग्रियों की जांच करने का निर्णय लिया है.

हापुड़ में पिलखुआ थाना प्रभारी पटनीश कुमार का दावा है कि ''मोनाड विश्वविद्यालय जितना बड़ा फर्जी डिग्री और मार्कशीट से जुड़ा मामला पूरे उत्तर भारत में पहले कभी सामने नहीं आया. पुलिस सभी रिकॉर्ड का गहनता से अध्ययन कर रही है और जल्द ही फर्जी डिग्री रैकेट से जुड़े कई अन्य सरगना भी गिरफ्त में होंगे."

प्रदेश में फर्जी डिग्री मुहैया कराने वाले गिरोहों के सामने आने के बाद उच्च शिक्षा विभाग इनसे निबटने के इंतजाम में जुट गया है. फर्जी डिग्री और मार्कशीट का गोरखधंधा रोकने के लिए करीब दो साल पहले कानपुर विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षा विभाग को सुझाव सौंपे थे.

कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक बताते हैं, ''फर्जी डिग्री और मार्कशीट के मामले निजी विश्वविद्यालयों से ही जुड़े हुए हैं. इनमें विद्यार्थियों के पंजीकरण की कोई समय सीमा नहीं होती. सरकार को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे यह जानकारी रहे कि निजी विश्वविद्यालयों के विभिन्न पाठ्यक्रमों में कौन-कौन छात्र प्रवेश ले रहे हैं. ऐसा न होने पर संस्थान आए बिना पैसा देकर फर्जी डिग्री थमा दी जाती है."

पाठक के मुताबिक, ज्यादातर फर्जी डिग्रियां बीएड, बीपीएड, पीएचडी और अन्य व्यावसायिक कोर्सों से संबंधित होती हैं. इन डिग्रियों की शुचिता के लिए तकनीक के उपयोग के साथ निजी विश्वविद्यालय के नियमित ऑडिट की व्यवस्था होनी चाहिए. हालांकि संदेह पैदा करने वाली निगरानी व्यवस्था के बीच कड़े नियम कामयाब हो पाएंगे, इसमें संदेह की पूरी गुंजाइश है.

फर्जीवाड़े की फेहरिस्त

● गोरखपुर के खोराबार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात डॉक्टर और उसके साथी को फर्जी मेडिकल डिग्री बेचने के आरोप में पुलिस ने 23 फरवरी को गिरफ्तार कर जेल भेजा था. एम्स क्षेत्र के आवास विकास कॉलोनी निवासी डॉ. राजेश कुमार और उसके साथी संतकबीरनगर के खलीलाबाद कोतवाली थाने के पठान टोला निवासी सुशील कुमार चौधरी के पास से पुलिस ने एमबीबीएस, बीएमएस और डीफॉर्मा की 21 फर्जी डिग्रियां और चार मोबाइल फोन भी बरामद किए थे. 

● आगरा और आसपास के जिलों में फर्जी प्रमाणपत्र बनाए जाने की सूचना मिलने पर एसटीएफ ने आगरा के अजीत नगर गेट के पास से किराए की दुकान में चार विश्वविद्यालयों की फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट तैयार करने के मास्टरमाइंड धनेश मिश्रा को गिरफ्तार किया था. आरोपी ने कई विश्वविद्यालयों के एडमिशन कोड हासिल कर रखे थे. वह 2.40 लाख रुपए में एमबीए, 40,000 रुपए में बीकॉम-बीएससी, 25,000 रुपए में हाइस्कूल की मार्कशीट बेच रहा था.

● गोरखपुर के गुलरिहा थाने की पुलिस ने 6 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज क्षेत्र से लखनऊ निवासी विवेक सिंह को गिरफ्तार कर मेडिकल की फर्जी डिग्री देने के रैकेट का भंडाफोड़ किया था. विवेक ने गोरखपुर के अर्पित हॉस्पिटल के संचालक प्रवीन सिंह को आर्मेनिया के मेडिकल कॉलेज की फर्जी डिग्री मुहैया कराई थी. जांच में पता चला कि विवेक सिंह और उसके साथी आर्मेनिया और कजाकिस्तान की फर्जी मेडिकल डिग्री 5 से 10 लाख रुपए में मुहैया कराते थे.

● फर्जी डिग्री से सरकारी नौकरी हासिल करके और अब रिटायर हो चुके एक अधिकारी की जांच करने कर्नाटक पुलिस 12 मई को लखनऊ के मटियारी इलाके में पहुंची. अधिकारी की फर्जी डिग्री यहीं के पते पर संचालित भारतीय शिक्षा परिषद से जारी हुई थी. पुलिस को वेबसाइट पर दर्ज पते पर ऐसी कोई संस्था नहीं मिली. जांच में पता चला कि भारतीय शिक्षा परिषद को सरकार पहले ही फर्जी घोषित कर चुकी है फिर भी संस्था विभिन्न कोर्स की फर्जी डिग्रियां बांट रही है.

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