
राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (RCA) में इन दिनों सत्ता की जंग चल रही है जिसमें बल्ले की जगह आरोप-प्रत्यारोप और गेंद की जगह सियासी दांव-पेच खेले जा रहे हैं. इस सियासी खेल की शुरुआत दिसंबर 2023 में सूबे में सत्ता परिवर्तन के साथ ही हो गई थी.
भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनते ही सत्तारुढ़ दल के नेताओं ने आरसीए पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी. आरसीए के तत्कालीन अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को 26 फरवरी, 2024 को पद छोड़ना पड़ा.
राज्य के 44 में से 29 जिला क्रिकेट संघों के अविश्वास के बाद वैभव गहलोत ने अपना कार्यकाल समाप्त होने से दस माह पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद भाजपा विधायक और श्रीगंगानगर जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष जयदीप बिहाणी के संयोजन में आरसीए में छह सदस्यीय एडहॉक कमेटी अस्तित्व में आई मगर छह माह के भीतर ही इस कमेटी में भी सियासी घमासान शुरू हो गया.
आपसी खींचतान के चलते आरसीए के चुनाव लगातार टाले जा रहे हैं. एडहॉक कमेटी का कार्यकाल भी दो बार बढ़ाया जा चुका है. कमेटी के संयोजक बिहाणी और राज्य के चिकित्सा तथा स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के पुत्र धनजंय सिंह खींवसर के बीच आरसीए की सत्ता पर कब्जे को लेकर सियासी उठापटक चल रही है.
23 अप्रैल, 2025 को धनंजय सिंह जोधपुर जिला क्रिकेट संघ के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए. इससे पहले 11 अगस्त, 2022 को धनंजय सिंह नागौर जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष चुने गए थे. बिहाणी ने धनंजय को नोटिस जारी कर दो जगह पर अध्यक्ष पद रखने के संबंध में जवाब मांगा. उन्होंने जोधपुर जिला संघ से धनंजय के निर्वाचन को यह कहकर गलत बताया कि उन्होंने नागौर जिला संघ से इस्तीफा दिए बिना जोधपुर जिला संघ चुनाव लड़ा जो नियमों के खिलाफ है.
बिहाणी के इन आरोपों पर धनंजय कहते हैं, ''बिहाणी आरसीए को तानाशाही तरीके से चलाना चाहते हैं जिसका हम विरोध कर रहे हैं. मैंने नागौर जिला संघ से एक माह पहले ही इस्तीफा दे दिया था और चुनावी प्रक्रिया का पालन करते हुए जोधपुर जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा.''
धनंजय ने बिहाणी पर तालिबानी तरीके से आरसीए को चलाने और राजस्थान रॉयल्स से 10 लाख रुपए मांगने का भी आरोप लगा दिया. क्रिकेट की इस लड़ाई में अब राज्य खेल परिषद भी कूद गई है. परिषद के सचिव राजेंद्र सिंह ने सहकारिता रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर बिहाणी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.
खेल मामलों के जानकार दिनेश शर्मा कहते हैं, ''राजस्थान में क्रिकेट के 44 जिला संघों में जिसे बहुमत मिलेगा वही आरसीए का अध्यक्ष चुना जाएगा. धनंजय सिंह नागौर छोड़कर जोधपुर इसलिए पहुंचे हैं ताकि उन्हें दो जिलों का समर्थन हासिल हो सके. नागौर में अब वे अपने व्यक्ति को अध्यक्ष बनाएंगे.''
यह सियासत नागौर और जोधपुर जिला क्रिकेट संघों को लेकर ही नहीं चल रही बल्कि और जिले भी इसकी जद में आ चुके हैं. 8 जनवरी, 2025 को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नजदीकी रिश्तेदार प्रमोद शर्मा गुपचुप तरीके से बाड़मेर जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष चुन लिए गए. प्रमोद शर्मा के अध्यक्ष चुने जाने पर खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि चुनाव के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है और न चुनाव के लिए हमने कोई ऑब्जर्वर भेजा था.

पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ के पुत्र पराक्रम सिंह राठौड़ 21 फरवरी, 2024 को चूरू जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बने तब भी खूब आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला. इस सियासी घमासान पर पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास चुटकी लेते हैं, ''इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि क्रिकेट की सत्ता के लिए भाजपा आपस में लड़ रही है. स्टेडियम, क्रिकेट और खेल संसाधनों पर कब्जे के लिए भाजपा नेताओं के बीच वार चल रही है. इन्हें न राजस्थान की जनता से कोई मतलब है और न क्रिकेट से, इन्हें तो सिर्फ अपने लोगों को फिट करना है.''
सिरोही जिला क्रिकेट संघ के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व विधायक संयम लोढ़ा का कहना है, ''भाजपा सरकार के कई मंत्री/पदाधिकारी अपने बेटों को आरसीए का अध्यक्ष बनाना चाह रहे हैं तो एक मंत्री अपनी पत्नी को अध्यक्ष बनाने की कोशिश में जुटे हैं. जिन लोगों ने कभी क्रिकेट नहीं खेला, वे अध्यक्ष बनने की होड़ में हैं.'' लोढ़ा के इस बयान पर पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा, ''अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत ने कौन-सा क्रिकेट खेला था जो उन्हें चार साल तक आरसीए का अध्यक्ष रखा गया.''
दिनेश शर्मा कहते हैं, ''पिछले कुछ वर्षों में छात्रसंघ चुनाव की तर्ज पर क्रिकेट भी राजनीति में एंट्री का जरिया बन गया है.'' हालात ऐसे हैं कि राजस्थान के 44 जिला संघों में से आधे संघों में मंत्री, विधायक और नेता पुत्रों का कब्जा है. आरसीए के लिए चल रही खींचतान केवल सियासी लड़ाई नहीं है, बल्कि यह सूबे में क्रिकेट के भविष्य पर भी ग्रहण लगा रही है.
खास बातें
> 2005 में किशोर रुंगटा को एक वोट से हराकर ललित मोदी पहली बार आरसीए के अध्यक्ष बने थे.
> वसुंधरा राजे की सरकार जाने के बाद कांग्रेस नेता डॉ. सी.पी. जोशी ललित मोदी को पछाड़कर आरसीए के अध्यक्ष बने.
> 2014 में ललित मोदी फिर आरसीए के अध्यक्ष बने मगर एक साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए.
> अक्तूबर 2014 में अमीन पठान के नेतृत्व में अविश्वास प्रस्ताव के बाद ललित मोदी को आरसीए अध्यक्ष पद से हटा दिया गया.
> 2016 में ललित मोदी ने अपने पुत्र रुचिर मोदी के जरिए एक बार फिर आरसीए पर कब्जे की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाए.