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ममता बनर्जी ने अभिषेक को मनाकर कैसे साधा पार्टी में संतुलन?

ममता बनर्जी की पुरानी टीम और अभिषेक बनर्जी के सुधारवादी गुट के बीच समझौता हो गया है. तय हुआ कि 2026 के विधानसभा चुनाव की चुनौती से निबटने को किसे किन जिलों की कमान मिलेगी

ममता बनर्जी के साथ अभिषेक बनर्जी (फाइल फोटो)
अपडेटेड 19 जून , 2025

अपने नाम से 'जमीनी लोग' अथवा 'जनसाधारण' का बोध कराने वाली तृणमूल कांग्रेस के लिए जिला अध्यक्षों और इसी तरह की सूची सामान्य एचआर मामला लग सकता है.

इस नई सूची के 2024 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद आने की उम्मीद थी. इसके साल भर तक सामने न आने के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के बीच तनाव ही नजर आ रहा था.

इसे 'संतुलित' पुनर्गठन और तालमेल कहा जा रहा है. ममता के पुराने सिपहसालारों और अभिषेक के 'सुधारवादी' गुट के बीच संघर्ष विराम. 2026 का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है और अरसे से लंबित संगठनात्मक पुनर्गठन बुनियादी जरूरत प्रतीत होता है. पार्टी ने पिछली गर्मियों में बंगाल की 41 लोकसभा सीटों में से 29 सीटें हासिल कर ली थी और दो फीसद स्विंग वोट अपने पक्ष में कर लिया था.

इसे नवंबर के उपचुनाव में बढ़ाकर उसने 14 फीसद से ज्यादा कर लिया था और यहां तक की भाजपा की झोली से भी दो सीटें झटककर सभी छह सीटें जीत ली थीं. ऐसी शानदार कामयाबी के बावजूद पुनर्गठन की सख्त दरकार का पहलू अहम हो गया है.

दामन पर नए छींटें
भले ही भ्रष्टाचार के मामलों ने टीएमसी को किसी तरह का चुनावी नुक्सान नहीं पहुंचाया है, मगर एक नई मुश्किल अब साफ नजर आ रही है. उस सूची के ऐलान से एक दिन पहले साल्ट लेक में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) के प्रदर्शनकारी शिक्षकों पर पुलिस कार्रवाई को लेकर लोगों में काफी नाराजगी थी.

स्थिति और बिगड़ गई जब टीएमसी के पूर्व विधायक सब्यसाची दत्ता को कथित रूप से प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों पर हमला करते हुए देखा गया. नौकरी से हटाए गए शिक्षक खुद को 2016 के भर्ती घोटाले में गलत तरीके से शिकार हुए पीड़ित मानते हैं. सारदा और रोज वैली चिटफंड घोटाले से लेकर कोयला और मवेशी तस्करी के रैकेट तक, कई घोटालों ने राज्य को झकझोर दिया.

साल 2021 में 'कट मनी' और 'सिंडिकेट राज' के इर्द-गिर्द केंद्रित भाजपा का जोरदार प्रचार अभियान टीएमसी को जीत से रोकने में नाकाम रहा. मगर इस बार पार्टी में नजर आ रही निष्क्रियता, लंबे वक्त तक फैसलों में गतिरोध और उसमें बढ़ती हेकड़ी तथा घमंड की धारणा ने रणनीतिक संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है.

जिले के पदाधिकारियों को लेकर किए गए समझौते का मकसद इस स्थिति को बदलना है. हावड़ा शहरी संगठनात्मक जिला समझौते का सबसे ज्वलंत उदाहरण है, जहां अनुभवी नेता और मंत्री अरूप रॉय को अध्यक्ष नियुक्त किया गया. किसी अन्य नेता पर आम सहमति न बन पाने के कारण, ममता ने अपने कैबिनेट साथी के चुनाव पर जोर डाला और अभिषेक उस पर सहमत हो गए.

उत्तर कोलकाता में नवगठित नौ सदस्यीय केंद्रीय समिति में दोनों गुटों के चेहरे शामिल हैं. मसलन, अभिषेक के करीबी माने जाने वाले जीवन साहा जबकि सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को अध्यक्ष बनाया गया है. राज्य के 35 संगठनात्मक जिलों में से 16 को नई नियुक्तियां मिली हैं. दो अभी लंबित है: दार्जिलिंग (मैदानी) और उत्तर 24 परगना (बारासात).

टीएमसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं, ''कदम उठाने की बेहद सख्त जरूरत थी. अगर पुनर्गठन नहीं होता, तो कोई भी काम आगे नहीं बढ़ता.'' राजनैतिक विश्लेषक विश्वजीत भट्टाचार्य कहते हैं, ''अगर आप याद करें तो 2020 में इस समय तक टीएमसी 2021 के लिए महामारी के बावजूद चुनावी मोड में आ चुकी थी. मगर इस बार वे पहले ही काफी देर कर चुके हैं.''

खास बातें
टीएमसी ने आखिरकार 2026 के चुनाव की आहट के बीच जिलाध्यक्षों की अहम सूची जारी कर दी.

ममता और अभिषेक के बीच कार्यशैली को लेकर मतभेदों के चलते यह सूची एक साल से अटकी हुई थी.

अंतिम चयन देरी से हुआ लेकिन सावधानीपूर्वक किया गया एक समझौता दर्शाता है.

घोटालों की बाढ़ के चलते बेचैनी बढ़ गई है.

अर्कमय दत्ता मजूमदार

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