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मध्य प्रदेश: कर्नल सोफिया कुरैशी को अपमानित करने वाले मंत्री पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही BJP?

अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को चुना. लेकिन, उन्हें अपमानित करने वाले मंत्री अब भी पद पर बने हुए हैं

मंत्री कुंवर विजय शाह (फाइल फोटो)
अपडेटेड 5 जून , 2025

इस समय में हर तरफ रक्षा और भू-राजनैतिक परिदृश्य पर केंद्रित चर्चाएं छाई हैं. जहां तक सामाजिक मोर्चे की बात है तो बेशक पहलगाम हमले के बाद हिंदू-मुस्लिम एकजुटता एक अलग स्तर पर दिखी है.

मानवीय सोच-समझ के लिहाज से ऐसा स्वाभाविक भी है. 22 अप्रैल को पर्यटकों की हत्या की घटना की सभी समुदायों में समान रूप से कड़ी निंदा की.

केंद्र सरकार ने भी प्रतीकात्मक रूप से बेहद स्पष्ट तरीके से इसे सामने रखा और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में मीडिया को जानकारी देने के लिए दो महिला अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को चुना. 'नाम में क्या रखा है?', जाहिर है कि किसी को ऐसा सवाल उठाने की जरूरत ही नहीं थी.

संकट के समय एकजुटता बढ़ाने वाले प्रयासों के बीच कुछ ही समय में बेतुके बोलों ने किए-कराए पर पानी फेर दिया. 11 मई को मध्य प्रदेश के आदिवासी कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह ने महू के पास एक कार्यक्रम में माइक संभाला और कर्नल कुरैशी के बारे में अनाप-शनाप बातें करने लगे. यह भाषण तेजी से वायरल हो गया. भाषा इतनी आपत्तिजनक थी कि मध्य प्रदेश हाइकोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना पड़ा. और 14 मई को जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस आराधना शुक्ला ने मामला टरकाने के राज्य के प्रयासों को दरकिनार करते हुए बयान की भाषा को बेहद आपत्तिजनक करार दिया और उसी दिन डीजीपी को सख्त धाराओं के तहत केस दर्ज करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा, ऐसा न करने को अवमानना माना जाएगा.

आखिरकार एफआइआर दर्ज हुई. लेकिन पीठ ने इसकी भाषा को सुरक्षित, हानिरहित मानकर खारिज कर दिया. मामला कानूनी तौर पर आगे बढ़ा और सुप्रीम कोर्ट ने भी वैसे ही सख्त तेवर दिखाए. 19 मई को शीर्ष कोर्ट ने कहा, 'पूरा देश शर्मिंदा है.' उसने शाह की 'माफी' को दरकिनार कर दिया और एफआइआर की ही जांच के लिए एसआइटी बनाने का आदेश दिया!

यह पहला मौका नहीं था जब शाह की जुबानी फिसली हो. वे महिलाओं पर अपमानित टिप्पणी के मामले में आदतन अपराधी हैं. उन्हें 2013 में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान की पत्नी पर टिप्पणी के बाद अस्थायी रूप से बर्खास्त किया जा चुका है. फिर, भाजपा उन्हें क्यों बर्दाश्त करती है? यह एक मौजूं सवाल है. आठ बार विधायक रहे शाह मकड़ाई के सामंतों के वंशज हैं, जो गोंड अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. 

 

कर्नल सोफिया कुरैशी

यही उनकी सबसे बड़ी राजनैतिक पूंजी है. भाजपा के लिए तो यह और भी ज्यादा मायने रखता है क्योंकि आदिवासी उसके लिए बड़ा वोट बैंक हैं. अगर 2018-20 में कांग्रेस के संक्षिप्त कार्यकाल को छोड़ दें तो शाह 2003 से लगातार कैबिनेट मंत्री हैं. भाजपा किसी 'वरिष्ठ आदिवासी नेता' को हाथ लगाने की जुर्रत नहीं करती. उन्होंने बयान पर विवाद बढ़ने पर बेचैन होकर राज्य भाजपा प्रमुख वी.डी. शर्मा से संपर्क साधा और माफी भी मांगी. तब तक हाइकोर्ट उन पर ऐसी धाराओं के तहत एफआइआर दर्ज करने को कह चुका था जिसमें उम्रकैद का प्रावधान है. शर्मा ने सीएम मोहन यादव से बात कर शाह से इस्तीफा देने को कहा. सूत्रों के मुताबिक, शाह ने इस्तीफा देने से साफ मना कर दिया है.

भाजपा ने जल्द ही उन अन्य पार्टियों के खिलाफ जवाबी हमला बोला, जिनके नेता एफआइआर के बावजूद पद पर बने हैं. मुख्यमंत्री यादव ने कहा, ''हम कोर्ट के निर्देशानुसार काम करेंगे.'' प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है. 19 मई को एसआइटी का गठन कर दिया गया. हालांकि, 22 मई तक शाह को न तो बर्खास्त किया गया और न ही गिरफ्तार किया गया.

खास बातें

> एमपी के आदिवासी कल्याण मंत्री ने कर्नल सोफिया पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की, वीडियो वायरल.

> मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर कड़ी धाराओं में केस दर्ज करने का आदेश डीजीपी को दिया.

> पुलिस ने हल्की धाराओं में एफआइआर दर्ज की, हाइकोर्ट ने खारिज किया, केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

> सुप्रीम कोर्ट के तेवर भी सख्त, जांच के लिए एसआइटी बनाने का आदेश.

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