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पश्चिम बंगाल: जगन्नाथ मंदिर के जरिए कैसे PM मोदी की दिखाई राह पर ही आगे बढ़ रही ममता बनर्जी?

पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व को लेकर प्रतिस्पर्धा चरम पर है. एक अदद नए जगन्नाथ मंदिर के जरिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा की बढ़त को खत्म करने और शायद अपनी पुरानी गलतियां दुरुस्त करने की कोशिश कर रही हैं

29 अप्रैल को दीघा के जगन्नाथ मंदिर में ममता बनर्जी.
अपडेटेड 2 जून , 2025

ममता बनर्जी अप्रैल की तपती दोपहर में गर्म हवा के झोंकों के बीच दीघा में हाथ जोड़े खड़ी थीं. मंदिर में अभिषेक के बहुप्रतीक्षित अंतिम चरण में पुरी से आए दो सेवायत पवित्र ध्वज लगाने के लिए 210 फुट ऊंचे शिखर पर चढ़ रहे थे. उनकी उपस्थिति चमचमाते जगन्नाथ मंदिर के नए स्वरूप को पावन बना रही थी.

एक दिन बाद 30 अप्रैल को करीब दो लाख लोग दर्शन करने पहुंचे और अगले दिन ही संख्या बढ़कर पांच लाख हो गई. बहरहाल, आयोजन में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री केंद्रीय भूमिका में थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में जो भूमिका निभाई थी, कुछ उसी तर्ज पर पूरी गंभीरता के साथ यजमान बनीं ममता ने पक्का किया कि सबकी आंखें उन पर टिकी रहें.

प्रशासन और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इस आयोजन को राज्य के हर कोने में सीधे प्रसारित कराने के इंतजाम किए. जगह-जगह लगाई गई होर्डिंग्स में भाजपा के 'हजार साल बाद' जैसे जुमलों को दोहराया गया. बंगाल के हर घर तक प्रसाद (और मंदिर की तस्वीरें) वितरित करने की व्यवस्था की गई. यह अयोध्या में आरएसएस की अपनाई व्यापक प्रचार अभियान की ही पुनरावृत्ति है. भगवान जगन्नाथ या उनकी दिव्य प्रतिकृति 300 किमी दूर ओडिशा के पुरी से यहां एक विशेष प्रयोजन के साथ लाई गई.

सियासी बाजीगरी
अक्सर 'हिंदू विरोधी' राजनीति का आरोप झेलने वाली ममता ने इस भव्य प्रदर्शन के साथ हिंदू प्रतीकवाद को अब तक के सबसे स्पष्ट रूप में अपनाया है. पहले तृणमूल के क्षत्रपों को स्थानीय अनुष्ठानों में शामिल होने देने या दुर्गा पूजा पंडालों को प्रायोजित करने मात्र से संतुष्ट हो जाने वाली ममता ने अब सीधे तौर पर धार्मिक चोला पहन लिया है. वे एकदम खुलकर मैदान में उतर चुकी हैं. दीघा का मंदिर दो बातों का स्पष्ट प्रतीक नजर आता है.

एक, भाजपा से उसका प्रमुख मुद्दा छीनना और दूसरा, हिंदुत्व के नाम पर उसे मिलने वाली किसी भी बढ़त को बेअसर करना. वैसे, ऐसा लगता है कि तृणमूल सरकार अपना धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बनाए रखने पर जोर देगी लेकिन ममता इसके साथ प्रतीकात्मक तुष्टीकरण के लिए स्पष्ट नजरिया अपनाती दिख रही हैं.

माना जा रहा है कि 250 करोड़ रुपए खर्च करके गुलाबी बलुआ पत्थरों से निर्मित वास्तुकला का यह बेहतरीन नमूना मुर्शिदाबाद, वक्फ पर छिड़ी बहस या स्कूल भर्ती घोटाले जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाएगा. अयोध्या/काशी की तर्ज पर इससे भी अच्छे लाभ की उम्मीद की जा रही है. मंदिर को एक धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में देखा जा रहा है, जहां सालाना दस लाख लोग आएंगे.

परियोजना का शुरुआती खाका 2018 में बना और इसके पूर्ण होने का समय ममता के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है क्योंकि 2026 के विधानसभा चुनाव के लिए सियासी पारा गर्म होने लगा है. मंदिर में पूजा-अर्चना का जिम्मा वैसे तो इस्कॉन के पास है लेकिन तमाम गतिविधियों में ममता ही केंद्रबिंदु बनी हुई हैं.

उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा के लिए एक भक्ति गीत लिखा और रथ यात्रा के लिए पांच लाख रुपए की सोने की झाड़ू भी दान की. 27 जून को तीन सजे-धजे रथों का उद्घाटन किया जाएगा और यहां पुरी के वार्षिक आयोजन जैसी ही छठा बिखेरने की कोशिश की जाएगी.

ममता के इस हिंदूवादी चेहरे को भाजपा भले नजरअंदाज कर रही हो मगर ओडिशा में उसकी सरकार इसकी जांच के आदेश दे चुकी है कि पुरी से सेवायत और सामग्री वहां तक कैसे पहुंची. सबसे अहम यह कि दीघा का इलाका सुवेंदु अधिकारी के पूर्वी मेदिनीपुर में आता है. ममता के पूर्व सहयोगी से अब कट्टर विरोधी बन चुके भगवा खेमे के आक्रामक नेता सुवेंदु इस मंदिर के खिलाफ मुखर रहे हैं. तृणमूल के एक अंदरूनी सूत्र का कहना है, ''स्थानीय धार्मिक पर्यटन में उछाल से सुवेंदु को यहां पर मात देने में मदद मिलेगी.'' माकपा धार्मिक कार्य के लिए सरकारी धन के उपयोग की आलोचना कर रही है, मगर इससे ममता की सेहत पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा.

खास बातें
हिंदुत्व को साधने की ममता की जबरदस्त कोशिश के तहत दीघा में एक नया जगन्नाथ मंदिर.

अयोध्या में हुए आयोजन की कॉपी. लाइव-स्ट्रीम यजमानी से लेकर पर्यटन केंद्र बनाने तक के लक्ष्य.

अकर्मय दत्ता मजूमदार

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