
ताड़ के पेड़ से नीरा और गुड़ तैयार करने का लाइसेंस हाथ में लिए सारण जिले के मीठेपुर गांव के हरेंद्र चौधरी कहते हैं, ''यह लाइसेंस हम 2017 में बनवाए थे. तब सरकार के लोग बोले थे कि गांव में नीरा कलेक्सन का सेंटर खुलेगा. हमें 13 पेड़ों का लैसंस मिला, पैसा भी लगा. मगर न कोई सेंटर खुला और न ही कोई नीरा लेने आया."
इसके आगे हरेंद्र चौधरी ने कहा, "2018 में हम लोगों ने फिर से लैसंस का रेनुअल करवाया. तब उत्पाद विभाग के अधिकारियों ने कहा, हम लोग गाड़ी से नीरा भरकर ले आएंगे. वह वादा भी फेल हो गया. अब सरकार फिर नीरा खरीदने की बात कहती है, मगर हम लोग कैसे भरोसा करें?’’
उनके साथ खड़े पंकज चौधरी कहते हैं, ''नीरा का काम शुरू होगा या नहीं, क्या पता! सरकार कहती है ताड़ी के बदले नीरा निकालो, मगर हमने आज तक एक बूंद नीरा नहीं बेचा. इसलिए सबसे पहले ताड़ी पर से रोक हटना चाहिए. हम लोगों के पूर्वज ताड़ी बेचते आए हैं, हमारा खानदानी पेशा है. ताड़ी न बेचें तो घर कैसे चले. शराबबंदी के बाद ताड़ी पर रोक लग गई है. फिर लोग बेचते हैं. पुलिस आती है, पकड़कर ले जाती है. पैसे लेती है. बरतन फोड़ देती है. मेरे खुद के चचा तीन बार जेल गए हैं. ऐसे कैसे चलेगा.’’
मीठेपुर गांव के पासी जाति के इन दो व्यक्तियों की टिप्पणी से जाहिर है कि शराबबंदी के बाद वे ताड़ी (फर्मेंटेड नीरा) और नीरा के ऐसे द्वंद्व में फंसे हैं, जिसका समाधान नहीं निकल रहा. इस बात को लेकर पासी जाति में नाराजगी और कशमकश है. इसका फायदा लेने के लिए राजद नेता तेजस्वी यादव ने 27 अप्रैल को पासी समाज की ओर से आयोजित ताड़ी व्यवसायी महाजुटान में घोषणा की, ''आप हमारी सरकार बनाइए, हम सरकार बनते ही ताड़ी को शराबबंदी कानून से बाहर करेंगे.
इस कानून की वजह से पासी समाज के लोगों पर जो मुकदमे हुए हैं, उन्हें वापस लेंगे. साथ ही ताड़ी को उद्योग का दर्जा भी देंगे.’’ पासियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए तेजस्वी यादव ने ताड़ी की लबनी (लट्ठे में बंधी हांडी) भी उठाई. वे बोले, ''जब शराबबंदी कानून लागू हो रहा था तब नीतीश जी से हम लोगों ने कहा था कि ताड़ी को इस कानून से बाहर रखिए. उन्होंने कहा था कि नीरा उद्योग (की नीति) लागू कर हम पासी समाज के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराएंगे. नीरा फेल हो गया और 76 फीसद भूमिहीन आबादी वाले पासी समुदाय को अपराधी बना दिया गया. हम इसे खत्म करेंगे.’’

तेजस्वी के इस बयान को राज्य में लगभग एक फीसद आबादी वाली पासी जाति को अपने पाले में करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. जद (यू) में अशोक चौधरी जैसे बड़े नेता इसी समाज से हैं.
दिलचस्प है कि तेजस्वी के इस बयान के बाद बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री नीरा संवर्धन योजना का ऐलान कर दिया. सरकार की तरफ से कहा गया कि इस योजना के तहत राज्य में ताड़ से नीरा उतारने वाले 20,000 टैपर्स को प्रति लीटर आठ रुपए की दर से और ताड़ पेड़ के मालिक को तीन रुपए प्रति लीटर की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. इसके तहत राज्य में ताड़ के दो लाख पेड़ चिन्हित कर इस सीजन में 3.90 करोड़ लीटर नीरा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.
हालांकि इस साल ताड़ के पेड़ों से रस निकालने के सीजन की शुरुआत काफी पहले हो चुकी है. लगभग दो महीने का सीजन होता है. इस घोषणा के बावजूद कहीं नीरा उठाव की व्यवस्था नहीं दिखती. खासकर सारण जिले में तो बिल्कुल नहीं. अंदरूनी खबर यह है कि तेजस्वी के दावे को काउंटर करने के लिए इस योजना को आनन-फानन लागू कराया गया है.
हालांकि बिहार सरकार ने नीरा उत्पादन और बिक्री का यह प्रयास पहली बार नहीं किया है. शराबबंदी के बाद सरकार ने उद्योग विभाग, उत्पाद विभाग और जीविका मिशन के साझा प्रयास से नीरा परियोजना की शुरुआत की थी. तब नालंदा और हाजीपुर में नीरा उत्पादन की फैक्ट्री भी लगी थी. राज्य में 32,000 ताड़ी उत्पादकों का पंजीकरण कराया गया. सुधा की दूध डेयरी के बूथों पर इसे बेचने की व्यवस्था की गई. साथ ही कई जीविका महिलाओं को इसके स्टॉल दिए गए. मगर उठाव और वितरण की व्यवस्था ठीक न होने के कारण यह परियोजना दिखावे की रह गई.
राजधानी पटना में 40 से 50 जगहों पर इसके स्टॉल खोले गए थे मगर अभी इक्का-दुक्का स्टॉल पर ही नीरा मिलती है. संजय गांधी जैविक उद्यान के गेट नंबर दो के सामने ऐसे ही एक स्टॉल वाले जितेंद्र कुमार कहते हैं, ''हम अपने ग्राहकों को 210 ग्राम के ग्लास में 20 रुपए प्रति ग्लास की दर से नीरा बेचते हैं. दिन भर में 40 लीटर नीरा बेच लेते हैं. अगर कोई ग्राहक एक लीटर नीरा खरीदता है तो उसे हम 80 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचते हैं.’’
जाहिर है नीरा की कीमतों में बड़ा फर्क है. जहां सरकार नीरा उत्पादकों से 25 रुपए प्रति लीटर की दर से नीरा खरीद रही है, वहीं स्टॉल पर यह 80-100 रुपए प्रति लीटर की दर से बिक रही है.
मीठेपुर गांव के नीरा उत्पादक चंदन चौधरी कहते हैं, ''सरकार को रेट बढ़ाना चाहिए. हम पेड़ पर चढ़ने का खतरनाक काम करते हैं. गिरते हैं तो हड्डी टूटती है और कई बार तो लोगों की मौत भी हो जाती है. जब हमारा लाइसेंस बना तो कहा गया था कि हमारा इंश्योरेंस भी होगा. मगर हुआ नहीं.’’ चंदन आगे जोड़ते हैं, ''पहले इस गांव में 150 आदमी ताड़ी उतारने का काम करते थे, इनमें से ज्यादातर लोगों ने लाइसेंस बनवाया था, रीन्यूअल भी कराया. मगर नीरा सेंटर खुला नहीं और ताड़ी बेचने पर पुलिस परेशान करने लगी. ऐसे में अब 40-50 लोग ही इस पेशे में बचे हैं.’’
मीठेपुर गांव जद (यू) नेता और बिहार सरकार में मंत्री रहे मुनीश्वर चौधरी का भी गांव है. वे भी पासी जाति से हैं. इस पूरे मसले को वे थोड़ा अलग निगाह से देखते हैं: ''यह ठीक है कि पासी समाज का पेशा ताड़ी बेचना रहा है, मगर एक नेता के तौर पर हम समझते हैं कि इससे समाज पर, खास कर महिलाओं पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए अगर नीरा बेचेंगे तो पासी लोग इज्जत के साथ अपना पेशा कर पाएंगे.
इसी वजह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पासी समाज को स्वाभिमान के साथ जोड़ने के लिए नीरा परियोजना की शुरुआत की थी.’’ वे कहते हैं कि नीरा परियोजना को लागू करने में जो दिक्कतें आ रही हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाएगा. चाहे वह रेट का सवाल हो या नीरा के उठाव का. वे दावा करते हैं कि ''हमारे पूर्वज स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी ने 1937 में ही बिहार की प्रांतीय सरकार के मंत्री रहते ताड़ी पर रोक लगाई थी और ताड़ से गुड़ बनाने का धंधा शुरू करवाया था. वे हमारे दादा लगते थे. हम उनसे प्रेरणा लेकर काम करते हैं.’’
चौधरी 1937 की श्रीकृष्ण सिंह सरकार के तीन मंत्रियों में से एक थे और उन्हें आबकारी विभाग मिला था. बिहार में पहली बार मद्यनिषेध लागू कराने का श्रेय उन्हें ही जाता है. उनके पिता मुसन चौधरी ने ताड़ी बेचकर उन्हें पढ़ाया था मगर उन्हें इस पेशे से दूर रखा. उन्होंने राज्य के पांच जिलों में मद्यनिषेध लागू किया, जिनमें से एक उनका जिला सारण भी था.
सारण के गरखा कस्बे में आज भी उनके वृहद परिवार के लोग रहते हैं, मगर उन्होंने ताड़ी बेचना छोड़ दिया है. वहां उनके परिवार के सदस्य विनोद कुमार चौधरी अपनी कपड़े की दुकान पर मिलते हैं. उनका कहना है, ''सरकार अगर नीरा पर ध्यान दे तो बहुत अच्छा है. ताड़ी, दारू, शराब सबको बंद करें, शिक्षा को आगे बढ़ाना चाहिए. हालांकि नीरा यहां नहीं चलता. सरकार की तरफ से सारण जिले में इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. मगर गरखा में मेरे परिवार का कोई व्यक्ति यह काम नहीं करता. यहां अब पासवान जाति के लोग इस काम में जुटे हैं.’’
जैसे-जैसे आर्थिक समृद्धि आती जा रही है, पासी जाति के कई परिवार इस पारंपरिक पेशे को छोड़ रहे हैं. बैंक में नौकरी करने वाले एक सज्जन नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं, ''हमने बचपन से ही देखा है कि हमारे यहां के लोगों ने ताड़ पर चढ़ना छोड़ दिया था. तब यह काम करने के लिए बाहर से गछुआ बुलाए जाते थे. अब तो यह पेशा भी हमने छोड़ दिया. अब हम देखते हैं कि दूसरी जाति के लोग इस पेशे में आने लगे हैं.’’
ऐसे में तेजस्वी की यह कोशिश पासी जाति को कितना लुभा पाएगी, कहना मुश्किल है. इस संबंध में बात करने पर राजद नेता और महाजुटान की आयोजक प्रेमा चौधरी कहती हैं, ''हमारे स्वजातीय लोग ताड़ी व्यवसाय को एक कुटीर उद्योग के रूप में अपनाते रहे हैं. इसी व्यवसाय से वे अपना भरण-पोषण और अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई करते हैं. वे भी चाहते हैं कि इज्जत का पेशा करें.

मगर सरकार ने जिस नीरा परियोजना का विकल्प दिया वह फेल रही. इसे बिना तैयारी शुरू कर दिया था. हम लोग कहते हैं कि गांव-गांव में दूध की तरह नीरा कलेक्शन का भी सेंटर खुले. ताड़ी से सिर्फ नीरा ही नहीं गुड़, मिठाई और ताल मिस्री भी बने. इस पर गंभीरता से काम हो तो किसी को दिक्कत नहीं है. नीरा का अच्छा रेट दीजिए, उद्योग विकसित कीजिए. अगर ऐसा कर सकते हैं तो ठीक, नहीं तो हमारा पारंपरिक व्यवसाय तो मत छीनिए.’’
इस संबंध में जब इंडिया टुडे ने बिहार सरकार के मद्यनिषेध, निबंधन एवं उत्पाद विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया तो कोई आधिकारिक बयान देने के लिए तैयार न हुआ. अनधिकृत रूप से बताया गया कि पहले की योजना ताड़ से जुड़े उद्योग के विकास के लिए थी, इसलिए उसमें उद्योग विभाग को भी शामिल किया गया था. नई योजना का लक्ष्य ताड़ी बेचने वालों को प्रोत्साहन राशि देना है, ताकि वे इस काम को छोड़कर नीरा के काम से जुड़ें. इस योजना का क्रियान्वयन पूरी तरह जीविका मिशन के हाथ में है.
जीविका मिशन से जुड़े लोग बताते हैं कि इसे लागू करने की प्रक्रिया में नीरा उत्पादकों का एक उत्पादन समूह तैयार किया गया है. इस समूह में कम से कम 20 टैपर यानी ताड़ी उतारने वाले और ज्यादा से ज्यादा 35 टैपर हो सकते हैं. ये नीरा जमा करेंगे और उनमें से ही एक टैपर को इसे काउंटर पर बैठकर बेचने की जिम्मेदारी दी जाएगी. नीरा की खरीद 25 रुपए प्रति लीटर की दर से होगी और उसे 30 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचा जाएगा. चूंकि यह योजना आनन-फानन शुरू हुई है, इसलिए इसे लागू करने में काफी वक्त लगेगा.
पूर्व मंत्री और जद (यू) नेता मुनीश्वर चौधरी के मुताबिक, हमारे पूर्वज जगलाल चौधरी ने 1937 में बिहार की प्रांतीय सरकार के मंत्री रहते हुए ताड़ी पर रोक लगाई थी. हम उनसे प्रेरणा लेकर काम करते हैं.
नीरा परियोजना का हाल
● शराबबंदी के ठीक बाद नीरा और ताड़ के रस से विभिन्न सामग्री तैयार करने का लक्ष्य रखा गया. इसके तहत 32,000 टैपर्स को जोड़कर उनसे नीरा लेकर, नीरा पेय, गुड़ और दूसरे उत्पाद तैयार करने का लक्ष्य था.
● इसके तहत बिहारशरीफ और हाजीपुर में फैक्टरियां भी खुलीं मगर वे चल नहीं पाईं.
● नीरा को लेकर नई योजना में सिर्फ नीरा पेय बेचने की बात है. इसमें ताड़ी टैपर और ताड़ पेड़ के मालिक को प्रोत्साहन राशि देकर उन्हें ताड़ी के बदले नीरा बेचने के लिए कहा जाएगा.
● इस योजना के तहत 20,000 टैपरों के जरिए दो लाख ताड़ के पेड़ों से हर साल 3.9 करोड़ लीटर नीरा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.