करीब पौने दो साल बाद 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव के लिए दलित मतदाता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए कितने महत्वपूर्ण हो गए हैं, यह पार्टी के कार्यक्रमों से स्पष्ट है.
दलितों तक पैठ मजबूत करने के लिए भाजपा ने दोतरफा अभियान शुरू किया है. इस अभियान की अगुआई प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह कर रहे हैं.
पहली बार व्यापक कार्यक्रमों के तहत धर्मपाल हर जिले में अनुसूचित जाति संवाद कार्यक्रम करके दलित मतदाताओं से मिल रहे हैं. पार्टी का मानना है कि दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा राज्य में 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के खेमे में चला गया था. इसलिए इस अभियान की एक बड़ी रणनीति बी.आर. आंबेडकर, संविधान और संबंधित मुद्दों के बारे में विपक्ष के 'नैरेटिव' को निष्प्रभावी करने की भी है, जिसके चलते भाजपा को यूपी में खासा नुक्सान हुआ.
इसके अलावा धर्मपाल उन विधानसभा सीटों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिन पर 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हार गई थी. इस दो स्तरीय रणनीति से भाजपा ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अपनी तैयारियों का आगाज कर दिया है.
दलित मतदाताओं में सेंधमारी की विपक्षी कोशिशों को 'काउंटर' करने के लिए भाजपा कितनी बेचैन है, इसका संकेत समाजवादी पार्टी की ओर से आंबेडकर के चेहरे को आधा हटाकर उसकी जगह राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की आधी तस्वीर जोड़कर होर्डिंग लगाने पर मिला. भाजपा ने जरा भी देर किए बगैर सपा पर चौतरफा हमला बोल दिया. योगी सरकार में मंत्री से लेकर सांसद-विधायकों ने इसे बाबासाहेब और उनके अनुयायियों का अपमान बताया.
अगले दिन 30 अप्रैल को भाजपा कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया. दलित मतदाताओं को लेकर भाजपा को फिलवक्त सबसे ज्यादा चुनौती सपा से ही मिल रही है. राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान राजपूत आइकन राणा सांगा पर कथित विवादित बयान देकर करणी सेना के निशाने पर आए सपा सांसद रामजी लाल सुमन का समर्थन कर अखिलेश यादव ने इस पूरे प्रकरण को दलित बनाम अपरकास्ट बना दिया है. सुमन के जरिए सपा आक्रामक ढंग से जाटव-दलित बिरादरी के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.
दलितों में खासकर जाटव बिरादरी की खासी आबादी वाले जिले आगरा में सत्तारूढ़ भाजपा के इसी बिरादरी के नेताओं पर नजर डालिए. बेबी रानी मौर्य यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. दलितों की जाटव बिरादरी से ताल्लुक रखने के चलते उन्हें प्रदेश की भाजपा सरकार में वरिष्ठ पद मिला. इसी बिरादरी के एमबीबीएस डॉक्टर जी.एस. धर्मेश आगरा कैंट से भाजपा विधायक हैं.
इसके अलावा डॉ. रामबाबू हरित तीन बार विधायक और राज्य अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग के चेयरमैन रह चुके हैं. इसी बिरादरी के गुटियारी लाल दुबेश पूर्व विधायक हैं. वहीं आगरा में भाजपा संगठन में महानगर कमेटी के जिला महामंत्री अशोक पिप्पल भी जाटव समाज से हैं. इसके बावजूद राणा सांगा विवाद से चर्चा में आए आगरा निवासी सपा के राज्यसभा सांसद और जाटव बिरादरी के रामजी लाल सुमन की आक्रामकता भाजपा पर भारी पड़ रही है.
प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता दबी जुबान से यह स्वीकार करते रहे हैं कि भाजपा के जाटव नेताओं को सुमन के बयान का जिस मुस्तैदी के साथ जवाब देना चाहिए था, उसमें चूक हुई है. नाम न छापने की शर्त पर आगरा के एक वरिष्ठ भाजपा नेता बताते हैं, ''सुमन का बयान केवल राणा सांगा के विरोध में नहीं था बल्कि वह पूरे हिंदू समाज को लक्ष्य करके दिया गया था. ऐसे में जाटव समाज के नेताओं को आगे आकर इस बात का पुरजोर विरोध करना चाहिए था. आगरा में भाजपा के जाटव नेताओं की सुस्ती ने सपा को आक्रामक ढंग से रामजी लाल सुमन के बहाने जाटव-दलित समाज का समर्थन पाने की रणनीति को खुला मैदान दे दिया है.''
भले ही आगरा जिले की सभी नौ विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा हो लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में आगरा (सुरक्षित) लोकसभा सीट पर सपा के मतों में 29 फीसद का इजाफा यह संकेत करता है कि दलित मतदाताओं का झुकाव सपा की ओर बढ़ा है जो भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान यह यूपी में संविधान की किताब को हाथ में लेकर 'संविधान बचाओ' का नारा देने वाले कांग्रेसी नेता राहुल गांधी और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का ही असर था कि विपक्षी 'इंडिया गठबंधन' ने दलितों के मतों में भारी सेंधमारी कर दी थी.
दलित वोटों के शिक्रट होने से पिछले दो लोकसभा चुनावों में आरक्षित सीटों पर एकतरफा प्रदर्शन करने वाली भाजपा की सीटें 2024 के लोकसभा चुनाव में घटकर आधी रह गईं. बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के समाजशास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर अजय कुमार बताते हैं, ''पिछले दो विधानसभा चुनावों में आरक्षित सीटों में हो रही गिरावट भाजपा के लिए चुनौती है.
हालांकि यह गिरावट मामूली ही थी लेकिन अगर पिछले लोकसभा चुनाव की भांति विपक्षी दल इन सीटों पर ज्यादा सेंधमारी कर ले गए तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.'' वैसे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर पूर्व आइपीएस अधिकारी और प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण जाटव बिरादरी के बीच लगातार जनसंपर्क के जरिए भगवा खेमे का जनाधार मजबूत करने के मिशन में जुटे हैं.
दलितों में जाटव के बाद दूसरी सबसे बड़ी उपजाति पासी है. पासी मतदाता लंबे समय से भाजपा का समर्थक रहा है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में बदलाव दिखा. इस चुनाव में सपा ने पासी जाति के पांच उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और सभी चुनाव जीतकर सांसद बने थे.
अब भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव के बाद पासी मतदाताओं पर डोरे डालने की हर मुमकिन कोशिश शुरू कर दी है. पिछले साल 14 जुलाई को लखनऊ में भाजपा की राज्य कार्यसमिति की बैठक में नेताओं का स्वागत करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने 'शहर के वास्तुशिल्पी भारतीय वास्तुकार' के रूप में लखन पासी को याद किया था.
पासी राजा के बारे में माना जाता है कि उन्होंने 10वीं या 11वीं शताब्दी में शासन किया था. लोकसभा चुनाव के पहले तक कुछ भाजपा नेता लखनऊ का नाम बदलकर लक्ष्मणपुरी करने का दबाव बना रहे थे. लखन पासी का जिक्र करके भाजपा ने समुदाय को यह संकेत देने का प्रयास किया है कि वह अपने इतिहास और सांस्कृतिक प्रतीकों की परवाह करती है.
अवध इलाके में पासी बिरादरी का समर्थन फिर से हासिल करने के लिए ही भाजपा ने अवध के वरिष्ठ पासी नेता बाराबंकी के पूर्व सांसद बैजनाथ रावत को यूपी अनुसूचित जाति आयोग का चेयरमैन और पूर्व विधायक राम नरेश रावत की पत्नी सरोज रावत को यूपी संगीत नाटक अकादमी का सदस्य बनाया है.
दलितों के बीच विपक्ष के आक्रामक प्रचार से निबटने के लिए भाजपा सरकार और संगठन ने इस बार 14 अप्रैल को भीमराव आंबेडकर के जन्मदिन को काफी जोरशोर के साथ मनाया. पार्टी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत आंबेडकर जयंती के कार्यक्रमों में पिता समेत उनके पूरे नाम भीमराव रामजी आंबेडकर का इस्तेमाल किया.
अजय कुमार के मुताबिक, ''आंबेडकर के नाम में 'रामजी' का विशेष उल्लेख करके भाजपा ने हिंदुत्व का कार्ड खेला है. इसके जरिए भाजपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ को भी तोड़ना चाहती है. लोकसभा चुनाव में नगीना, सहारनपुर समेत कई सीटों पर इस गठजोड़ का असर दिखा था.''
यूपी भाजपा ने एक रणनीतिक कदम के तहत अपने दलित संपर्क अभियान को मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश के हरेक जिले में कम से कम 300 दलित बुद्धिजीवियों को जोड़ने की एक विस्तृत योजना बनाई है. यह अभियान उसने आंबेडकर जयंती पर शुरू किया था. इस तरह भाजपा का लक्ष्य यूपी में दलित समुदाय के लगभग 22,500 शिक्षित और प्रभावशाली लोगों तक पहुंचना है. पार्टी रणनीतिकारों ने बूथ, सेक्टर और मंडल स्तर पर ज्यादा दलित नेताओं को जिम्मेदारी देकर अभियान को अंजाम देने के लिए यूपी भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा को इसमें शामिल किया है.
यूपी भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र कनौजिया बताते हैं, ''इस अभियान के लिए विशेष टीमें गठित की गई हैं. प्रत्येक टीम अनुसूचित जाति के बुद्धिजीवियों में से पांच लोगों से संपर्क करेगी और उन्हें पिछले 10 साल में दलितों के कल्याण के लिए पार्टी की ओर से उठाए गए कदमों से अवगत कराएगी.''
कनौजिया के मुताबिक, यह अभियान इस मामले में खास है कि इसमें न केवल पार्टी के दलित नेता बल्कि योगी सरकार के सभी मंत्री, प्रदेश और जिला पदाधिकारी तथा अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हो रहे हैं. इन अभियानों से भाजपा विपक्ष के नैरेटिव को कितना निष्प्रभावी कर पाएगी, यह विधानसभा चुनाव नतीजों से जाहिर होगा, लेकिन फिलहाल पार्टी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है.
चेहरों से 'दलित कनेक्ट'
> केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में आगरा से सांसद एस.पी. सिंह बघेल और पूर्वी यूपी में बांसगांव से सांसद कमलेश पासवान राज्यमंत्री हैं.
> आगरा ग्रामीण सुरक्षित सीट से विधायक बेबी रानी मौर्य योगी सरकार में महिला कल्याण और बाल पुष्टाहार विभाग की कैबिनेट मंत्री हैं.
> योगी सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में गुलाब देवी (माध्यमिक शिक्षा) और असीम अरुण (समाज कल्याण, अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण) हैं.
> प्रदेश सरकार में दिनेश खटीक, मनोहर लाल 'मन्नू कोरी', सुरेश राही, विजय लक्ष्मी गौतम राज्यमंत्री के रूप शामिल हैं.
> यूपी भाजपा में बाराबंकी से पूर्व सांसद प्रियंका रावत प्रदेश महामंत्री हैं. यूपी भाजपा की 45 सदस्यीय टीम में अनुसूचित वर्ग के नौ नेता हैं.
> रामचंद्र कनौजिया, यूपी भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा और संजय गौड़ अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं.
> पूर्व सांसद बैजनाथ रावत यूपी अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन हैं. भाजपा के नवनियुक्त 70 जिलाध्यक्षों में केवल छह ही अनुसूचित वर्ग से हैं.