अभी कुछ दिन पहले ही 'गार्डन ऑफ ईडन' में बहार पूरे शबाब पर थी. वसंत की इसकी खूबसूरती को लाखों आंखें मंत्रमुग्ध होकर निहारना चाहती थीं.
मगर दबे पांव आए तूफान की तरह पहलगाम हमले ने सब कुछ तबाह कर दिया. कश्मीर की हरी-भरी वादियों, झिलमिलाती झीलों और चहल-पहल भरी सड़कों की रौनक गुम हो गई.
इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर के बाद जंग की आहट ने इस केंद्रशासित प्रदेश को फिर से अनिश्चितता में झोंक दिया है.
फिर, एक दोराहे पर
भारत की स्ट्राइक से पहले ही तनावपूर्ण माहौल के कारण स्थिति बेहद खराब थी. कश्मीर ट्रैवल एडवाइजर नाम की ट्रैवल एजेंसी चलाने वाले सुहैल डार बताते हैं, ''करीब 90 फीसद बुकिंग रद्द की जा चुकी थी. 21 लोगों के उच्च स्तरीय समूह ने पहलगाम के ठीक बाद 28 अप्रैल की अपनी बुकिंग रद्द कर दी. हमले के बाद यही ट्रेंड बन गया था. हम एकदम सदमे में हैं.''
अब श्रीनगर एयरपोर्ट भी बंद हो गया है तो पर्यटन के लिहाज से राहत की कोई गुंजाइश नहीं दिखती. अगर भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ा तो इसका असर सिर्फ पर्यटन पर नहीं पड़ेगा, बल्कि और भी दुष्प्रभाव सामने आएंगे. बैसरन घाटी में एम4 कार्बाइन की तड़तड़ाहट से पहले यहां मशहूर हाउसबोट, होटल और कैब-टैक्सियां पर्यटकों से गुलजार थीं. हमले ने सब कुछ तबाह कर दिया.
हाल के वर्षों में थोड़ी-बहुत अनिश्चितता के बीच स्थिति अमूमन स्थिर और शांतिपूर्ण रही जिससे पर्यटकों की संख्या खासी बढ़ी. 2024 में 43,654 विदेशी समेत रिकॉर्ड 35 लाख पर्यटक कश्मीर पहुंचे तथा इस साल यह आंकड़ा और बढ़ने का अनुमान था.
रोमांच के शौकीन करीब 75 नए और अनूठे गंतव्यों की ओर आकर्षित हो रहे थे जिससे पर्यटन क्षेत्र एलओसी के और करीब तक विस्तारित हो रहा था, जैसे उत्तर में गुरेज या कुलगाम के अहरबल में पीर पंजाल की चोटियां.
2021 के संघर्ष विराम ने श्रीनगर से करीब 125 किमी उत्तर में किशनगंगा को घेरने वाली करनाह और केरन जैसी खूबसूरत घाटियों को आतंक के दौर से उबरने का मौका दिया. पहले दशकों तक ये जगहें सीमापार से गोलाबारी के कारण इंसानों और आवासों को होने वाली क्षति की वजह से ही सुर्खियों में रहती थीं.
मगर अब घाटी एक बार फिर खौफ के साए में सिमटती जा रही है. पूरी फिजा एक अलग रंगत में दिख रही है, रेड अलर्ट के कारण पसरा सन्नाटा जैतूनी हरे रंग के ट्रकों की आवाजाही से ही टूटता है और लोगों के नाम पर बंकरों में मुस्तैद जवान नजर आते हैं. गुरेज के घास के मैदानों में किराये पर कैंपिंग टेंट लगाने वाले आमिर अनीस कहते हैं, ''अब यह सीजन बर्बाद हो चुका है.'' उन्हें 86 किमी दूर बांदीपोरा शहर में लौटने को मजबूर होना पड़ा. वे अपने पीछे घाटी में सेना, गरजती तोपें और वही पुराना दहशतभरा माहौल छोड़ आए हैं जो बढ़ता नजर आ रहा है.
जंग की आहट
ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही कश्मीर के आधे से ज्यादा पर्यटन स्थल (87 में 48) बंद हो चुके थे. गुलमर्ग, सोनमर्ग, श्रीनगर की डल झील, मुगल गार्डन और पहलगाम जैसी जगहों पर भी सन्नाटा पसरा है.
जंग की आहट ने आम कश्मीरियों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है. झेलम के उद्गम स्थल वेरीनाग में अप्रैल में रोजाना 10,000 से ज्यादा लोग आते थे. अब यहां 250 फेरीवालों की गाड़ियां काले तिरपाल से ढकी नजर आ रही हैं, जो संकेत है कि यहां सामान्य जीवन खात्मे के कगार पर पहुंच चुका है.
चाय और ठंडा पेय बेचने वाले 65 वर्षीय अब्दुल रशीद अपनी और अपने जैसे अन्य आम कश्मीरियों की पीड़ा जाहिर करते हुए कहते हैं, ''हम बहुत बदकिस्मत हैं.''
खास बातें
> कश्मीर का 12,000 करोड़ रुपए का पर्यटन उद्योग आतंक और जंग के साये से घिरा हुआ है.
> 2024 में 35 लाख पर्यटक यहां आए थे और पहलगाम हमले से पहले तक, इस साल संख्या बढ़ने का अनुमान था.
- कलीम गीलानी