किसने सोचा होगा कि किस्मत और अंकों का एक साधारण-सा खेल इतना खतरनाक बन जाएगा कि इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा? गोवा में 'हाउजी' के साथ ठीक ऐसा ही हुआ है.
हाउजी लंबे समय से एक प्रिय खेल और राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा रहा है और इसे तंबोला या बिंगो के रूप में भी जाना जाता है. यह न केवल समाज के लिए मनोरंजन का एक साधन था बल्कि इससे खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और स्थानीय त्योहारों के लिए धन जुटाने में भी मदद मिलती थी.
लेकिन बाद में इस खेल पर धन कुबेरों की नजर पड़ गई और यह करोड़ों रुपए के कारोबार में बदल गया. टिकटों की कीमतें आसमान छू गईं और पुरस्कार राशि कुछ लाख में जा पहुंची. राज्य के एक अधिकारी के अनुसार, ''टिकटों की कीमत अब 1,000 रुपए है और बताते हैं कि एक कार्यक्रम में ही 9,000 टिकट तक बेच दिए जाते हैं.''
मडगांव में एक हाइ-प्रोफाइल हाउजी कार्यक्रम में कुल पुरस्कार राशि 13 लाख रुपए थी जबकि दूसरे ने 15.15 लाख रुपए का वादा किया था. लेकिन जीतने वाले नंबरों में अक्सर हेराफेरी की जाती है ताकि जैकपॉट किसी के हाथ न लगे और खेल चलता रहे. अधिकारी का कहना है, ''आखिरकार, असली विजेता आयोजक ही होते हैं.'' और दिलचस्प बात तो यह कि वे न तो आयकर देते हैं और न ही जीएसटी.
यह कारोबार पूरी तरह से गुप्त तरीके से चलता है. अधिकारी कहते हैं, ''वे सांस्कृतिक या संगीत कार्यक्रमों के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत लेते हैं और इसके बजाए हाउजी गेम आयोजित करते हैं.''
इस महीने के शुरू में दक्षिण गोवा की जिला कलेक्टर एग्ना क्लीटस ने जुए की अवैध गतिविधियों में वृद्धि और हाउजी के लिए साउंड परमिशन के दुरुपयोग से निबटने को लेकर बैठक की. फिर उन्होंने डिप्टी कलेक्टरों को ऐसी इजाजत देना बंद करने और उल्लंघनों पर गोवा पब्लिक गैंबलिंग ऐक्ट, 1976 के तहत कार्रवाई का निर्देश दिया. इस सख्ती को मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का पूरा समर्थन है.
दक्षिण गोवा से कांग्रेस सांसद कैप्टन (सेवानिवृत्त) विरियाटो फर्नांडीस बताते हैं कि हाउजी में कितना बदलाव आ गया है. पहले टिकट की कीमत सिर्फ 50 पैसे या एक रुपया हुआ करती थी और पुरस्कार राशि महज 10 रुपए. हालांकि वे मानते हैं कि अब यह खेल एक राक्षस बन गया है. लेकिन वे इस पर चुनिंदा तरीके से कार्रवाई करने पर आपत्ति जताते हुए पूछते हैं कि सरकार ऐसी ही कार्रवाई कसीनो के खिलाफ क्यों नहीं कर सकती.
हालांकि इस प्रतिबंध से गोवा फुटबॉल एसोसिएशन (जीएफए) के तहत पंजीकृत राज्य के 200 से ज्यादा फुटबॉल क्लबों को सबसे ज्यादा किक लगी है. एसोसिएशन के अध्यक्ष कैटानो फर्नांडीस कहते हैं, ''फुटबॉल क्लब हाफ-टाइम में हाउजी इवेंट आयोजित करते हैं. वे भीड़ को आकर्षित करते हैं और मनोरंजन का एक जरिया भी होते हैं.
टिकट की कीमत लगभग 50 या 100 रुपए होती है और पुरस्कार राशि 2,000-5,000 रुपए के बीच. इन पैसों का इस्तेमाल उपकरण, जलपान और खिलाड़ियों की फीस के साथ-साथ प्रशिक्षण में किया जाता है. वे ऐसे आयोजनों से औसतन लगभग 3 लाख रुपए इकट्ठा करते हैं.''
हाउजी पर प्रतिबंध के कारण छोटे क्लबों को बंद करने की नौबत आ सकती है. पूर्व विधायक और कार्यकर्ता राधाराव ग्रेसियस ने कहा, ''गोवा में मेरे बचपन से ही हाउजी का चलन रहा है और यह फुटबॉल टीमों के लिए धन जुटाने के मुख्य स्रोतों में से एक है.''
प्रतिबंध के पैरोकार
हालांकि गोवा विश्वविद्यालय में सामाजिक कार्य के असिस्टेंट प्रोफेसर और गोवा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष पीटर एफ. बोर्गेज कहते हैं, ''यह संस्कृति पर हमला नहीं बल्कि एक सरल, समुदाय-आधारित खेल के बेकाबू व्यापारीकरण को रोकने के लिए जरूरी हस्तक्षेप है.''
गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विधायक और पूर्व उपमुख्यमंत्री विजय सरदेसाई का आरोप है कि भाजपा समर्थक प्रतिबंध के बावजूद हाउजी कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, ''वे अवैध कारोबार के लिए राजनैतिक संरक्षण का इस्तेमाल कर रहे हैं.''
खास बातें
> गोवा की जिंदगी का एक प्रिय हिस्सा रहा हाउजी, जो कभी खेल प्रतियोगिताओं और त्योहारों को फंड करता था, हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर चलने वाले हाइ-स्टेक जुए का रूप ले चुका था.
> इस प्रतिबंध का असर हाउजी की आय पर निर्भर लगभग 200 फुटबॉल क्लबों पर पड़ेगा.