
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 9 अप्रैल को अहमदाबाद में हुए अधिवेशन में लिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाने के लिए यूपी कांग्रेस ने 28 अप्रैल को 'संविधान बचाओ रैली' का आयोजन किया. इसके लिए एक रणनीति के तहत बस्ती जिले को चुना गया.
बस्ती और इसके आसपास के जिलों में पिछड़ा, दलित और मुस्लिम आबादी की खासी तादाद है जिस पर कांग्रेस लगातार फोकस कर रही है. इसके अलावा बस्ती यूपी में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के दो केंद्रों-अयोध्या और गोरखपुर-के बीच में है.
यही वजह थी कि जिले के ऐतिहासिक झंडा चौक के पास मौजूद बस्ती क्लब मैदान में 'संविधान बचाओ रैली' के मंच से कांग्रेस नेताओं ने विशेष रूप से अयोध्या और गोरखपुर में अपराध तथा जमीनों की गड़बड़ियों को उठाया. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं का स्वागत फूल-मालाओं से ज्यादा डॉ. भीमराव आंबेडकर के चित्र भेंट करके किया. जमकर जय भीम के नारे लगे और हर हाल में संविधान को बचाने की कसम खाई गई.
रैली के जरिए यूपी कांग्रेस ने अपनी एकता का भी प्रदर्शन किया जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, सांसदों, पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को एक साथ मंच पर जगह दी गई. सभी विधानसभा क्षेत्रों से लेकर बूथ तक संविधान बचाओ रैली और सम्मेलन आयोजित करने की रूपरेखा भी बनी.
इंडिया गठबंधन के नेताओं ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 'संविधान बचाओ' का मुद्दा आक्रामक ढंग से उठाकर न केवल 43 सीटें (कांग्रेस 6, सपा 37) जीतीं बल्कि भाजपा को 33 सीटों पर रोक दिया था. कांग्रेस अब संविधान के मुद्दे पर पार्टी की आक्रामकता को बनाए रखते हुए यूपी में संगठन को नए सिरे से तैयार करने में जुटी है.
कांग्रेस के इतिहास में पहली बार 20 मार्च को पार्टी ने अपने सभी नवचयनित 133 जिला और शहर अध्यक्षों की सूची एक साथ जारी की. प्रदेश कांग्रेस के को-चेयरमैन मनीष हिंदवी बताते हैं, ''दिसंबर में प्रदेश कांग्रेस की सभी इकाइयों को भंग करने के बाद एक चयन समिति बनी, जिसमें सभी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, सांसद, प्रभारी सचिव शामिल थे. मंडल से लेकर प्रदेश स्तर तक छोटे-बड़े करीब 6,500 नेताओं से संवाद किया गया.''
हिंदवी के मुताबिक, राहुल गांधी की मुहिम के अनुरूप अध्यक्ष पद पर सामाजिक न्याय की अवधारणा का पूरा ध्यान रखा गया है. पिछड़ों के साथ अतिपिछड़ों तथा दलितों के साथ अतिदलितों और सामान्य वर्ग के साथ अल्पसंख्यक समुदाय तथा महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है.
पार्टी के 133 जिला और शहर अध्यक्षों की नियुक्ति में ओबीसी को कुल 48 पद मिले हैं, जिनमें मुस्लिम ओबीसी भी शामिल हैं, जो प्रदेश में इस समुदाय को देखते हुए बड़ा रणनीतिक कदम है. अनुसूचित जाति को 19 और अनूसूचित जनजाति को एक पद मिला है. अल्पसंख्यक समुदाय को 32 पद दिए गए हैं जो उन क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत करने की दिशा में एक कदम है जहां मुस्लिम आबादी अच्छी संख्या में है. 19 ब्राह्मणों को जगह मिली है. आठ पद महिलाओं को दिए गए हैं.
यूपी कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय बताते हैं, ''पार्टी ने युवा नेतृत्व को मौका देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. शहर और जिला अध्यक्षों की सूची में 41-50 आयु वर्ग के 59 और 31-40 आयु वर्ग के 24 लोग शामिल हैं. औसत आयु 48 वर्ष है, जो अनुभव और युवा ऊर्जा के बीच संतुलन को दर्शाती है.''
शहर और जिला अध्यक्षों के चयन में पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को तवज्जो देकर सियासी असर बढ़ाने में जुटी कांग्रेस यूपी में कई नए प्रयोग कर रही है. पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय चेयरमैन कैप्टन अजय सिंह यादव ने बीते दिनों यूपी में इस प्रकोष्ठ की सभी इकाइयां भंग कर इसके पुनर्गठन का ऐलान किया था. प्रदेश के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ को तीन हिस्सों में बांटकर इस वर्ग का नया नेतृत्व खड़ा करने का प्रस्ताव केंद्रीय नेतृत्व को भेजा गया है. एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ''फिलहाल पार्टी के पास पिछड़ों का कोई बड़ा चेहरा प्रदेश में नहीं है.
पार्टी अपने खोए जनाधार को तलाशने के लिए इस वर्ग को जोड़ने पर खास जोर दे रही है. इसके लिए कई विकल्पों पर विचार चल रहा है.'' पार्टी प्रदेश को संगठनात्मक लिहाज से 25-25 जिलों के तीन हिस्सों में बांटकर पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के तीन अध्यक्ष और उनकी टीम तैयार करने पर मंथन कर रही है. एक विचार यह भी है कि एक प्रभावी ओबीसी नेता को पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की कमान सौंपकर उसके नेतृत्व में प्रदेश के तीन हिस्सों में नया नेतृत्व खड़ा किया जाए. पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की सोच है कि इस तरह से पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ में ज्यादा कार्यकर्ताओं को दायित्व सौंपा जा सकेगा जिसका लाभ पिछड़े मतदाताओं को जोड़ने में मिलेगा.
पार्टी यूपी कांग्रेस के रायबरेली और अमेठी की तर्ज पर संगठनात्मक स्तर पर मंडल के गठन का प्रयोग भी करने जा रही है. इसके तहत यूपी कांग्रेस में ब्लॉक के बाद मंडल स्तर का एक संगठन होगा. हर मंडल में दो से तीन न्याय पंचायतें और 9 से 10 बूथ होंगे. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस में ब्लॉक के बाद न्याय पंचायत स्तर का संगठन तैयार किया जाता रहा है. पर ब्लॉक से सीधे न्याय पंचायत स्तर पर संगठनात्मक गतिविधियों पर नजर रखना आसान नहीं होता.
यही वजह है कि सांगठनिक गतिविधियों से ज्यादातर न्याय पंचायतें विरत रह जाती हैं. लिहाजा ब्लॉक और न्याय पंचायत के बीच मंडल के रूप में संगठन की एक और परत होने से ब्लॉक से आने वाले निर्देशों को आसानी से न्याय पंचायत के स्तर तक पहुंचाया जा सकता है और उनकी गतिविधियों पर नजर भी बनाए रखी जा सकती है. यानी जिला संगठन अब पांच स्तरीय होगा. इसमें जिला अध्यक्ष के अलावा ब्लॉक अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष, न्याय पंचायत अध्यक्ष और बूथ अध्यक्ष होंगे.
प्रदेश कांग्रेस में 15 जून तक ब्लॉक स्तरीय कमेटी का और 15 अगस्त तक सभी बूथों पर बीएलए की नियुक्ति का लक्ष्य रखा गया है. इतना ही नहीं, संगठन को एकजुट और सक्रिय बनाए रखने के लिए हर महीने की 3 तारीख को जिला और शहर कमेटी की समीक्षा बैठक तथा 5 तारीख को ब्लॉक और वार्ड की समीक्षा बैठक अनिवार्य रूप से करने की योजना भी बनी है.
उत्तर प्रदेश में जिला इकाइयों के हालिया पुनर्गठन को लेकर जिला स्तर पर नाराजगी का सामना करने के बाद कांग्रेस अपनी राज्य इकाई में बदलाव करते समय सावधानी बरत रही है. न केवल उचित जाति संयोजन को समायोजित करने का प्रयास हो रहा है, बल्कि पुराने और नए चेहरों के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने की भी हरसंभव कोशिश है. पार्टी का वरिष्ठ नेतृत्व अब जिलों से वरिष्ठ नेताओं को राज्य समिति में समायोजित करने का प्रयास कर रहा है, जहां हालिया फेरबदल के बाद खुले तौर पर नाराजगी देखी गई है. कांग्रेस को राज्य में अपने पुनर्गठन को अंजाम देने में महीना भर और लगेगा.
पार्टी दरअसल वह टीम तैयार कर रही है, जो राज्य में 2027 में विधानसभा चुनावों का नेतृत्व करेगी. राज्य स्तर पर तय बदलावों के बीच सबकी निगाहें इस बात पर भी टिकी हैं कि क्या प्रदेश में कोई नया अध्यक्ष बनेगा या फिर अध्यक्ष को बरकरार रखकर पहले की तरह उपाध्यक्ष और क्षेत्रीय अध्यक्ष के स्तर पर प्रयोग किए जाएंगे, जहां अलग-अलग क्षेत्रों और जातियों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. बहरहाल ये प्रयोग किस स्तर तक कामयाब होंगे, यह आने वाले दिनों में ही स्पष्ट होगा.
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''सौ दिन में सभी बूथों पर दिखने लगेगी कांग्रेस''
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव और यूपी कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडेय ने 28 अप्रैल को बस्ती में 'संविधान बचाओ रैली' के बाद एसोसिएट एडिटर आशीष मिश्र से बातचीत की. संपादित अंश :

• यूपी में कांग्रेस को आप कहां खड़ा पाते हैं?
कांग्रेस का जनाधार तेजी से बढ़ रहा है. उसकी सोच, नीति और सबको साथ लेकर चलने की धारणा से सभी समाज के लोग सबसे पुरानी पार्टी की ओर आकर्षित हो रहे हैं और वे पार्टी में अपना योगदान देना चाहते हैं.
• संगठन स्तर पर किस तरह की तैयारी है?
सभी नवचयनित जिला और शहर अध्यक्षों की पहली बैठक 23 अप्रैल को हुई. पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की उपस्थति में आने वाले दिनों में 100 दिनों का संगठन सृजन कार्यक्रम तय हुआ है. जमीन से जुड़े और आम जनता को छूने वाले सभी मुद्दों पर प्रदेश से बूथ स्तर तक संघर्ष किया जाएगा.
• कांग्रेस के कई पुराने नेता पार्टी पर उपेक्षा भरे रवैए का आरोप लगाते हैं.
अब ऐसा नहीं. पदाधिकारियों के चयन में वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को भूमिका दी गई है. नवगठित प्रत्येक मंडल का नामकरण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता, ऐतिहासिक धरोहर आदि के नाम पर होगा.
• जिला और शहर अध्यक्षों की घोषणा के बाद कई जगह विवाद शुरू हो गया है.
कई जगह जिला और शहर अध्यक्ष के पद पर एक से ज्यादा प्रभावी दावेदार थे. स्थानीय सामाजिक समीकरण और युवाओं को ध्यान में रखकर अध्यक्षों का चयन हुआ. 84 प्रतिशत नवचयनित जिला और शहर अध्यक्ष ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक बिरादरी से हैं. जो किन्हीं कारणों से छूट गए, उन्हें दुख हुआ. कांग्रेस सबको साथ लेकर आगे बढ़ेगी.
• 2027 के विधानसभा चुनाव की कैसी तैयारी करेंगे?
अगले वर्ष यूपी में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव के संभावित उम्मीदवारों का चयन करके जुलाई-अगस्त से उनका प्रशिक्षण शुरू करेंगे. 2027 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी 403 सीटों पर प्रस्तावित उम्मीदवारों के रूप में समन्वयक तैनात किए जाएंगे. उनके कार्यों की समीक्षा के साथ वे अपने क्षेत्र में कितने प्रभावी हो सकते हैं, इसको भी परखा जाएगा.
• सपा से गठबंधन पर पार्टी ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है.
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यूपी की 80 में से कम से कम 40 सीटों पर पार्टी के पास अच्छे उम्मीदवार थे. भाजपा को हराने की बात आई तो कांग्रेस ने यूपी में 17 सीटों पर ही चुनाव लड़ा. जितना कांग्रेस मजबूत होगी, उतना ही इंडिया गठबंधन मजबूत होगा. भाजपा को हराने के लिए जो भी सम्मानजनक गठबंधन और संघर्ष होगा, कांग्रेस उससे पीछे नहीं हटेगी.
• भाजपा के आक्रामक राष्ट्रवाद से कांग्रेस कैसे निबटेगी?
कांग्रेस जोड़ने वाली, सबकी भावनाओं और मान्यताओं को सम्मान देने, संविधान को मानने वाली राजनीति करती है. समाज को बांटने की कोशिश से जो नुक्सान हो रहा है उसे लोग अब जानने लगे हैं.
• राहुल, प्रियंका गांधी पर अतिनिर्भरता क्यों है?
सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हम सबके प्रेरणा स्रोत हैं. गांधी परिवार के नेतृत्व में पार्टी का हर सदस्य सुरक्षित और भविष्य के प्रति आश्वस्त महसूस करता है.