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मुर्शिदाबाद हिंसा : आस्था की राजनीति में कैसे होम हो गए आम हिंदू-मुस्लिम?

बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह से आस्था की राजनीति कर रही हैं, वह राज्य की सांप्रदायिक एकता के लिए अशुभ संकेत

मुर्शिदाबाद में हुई सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में 13 अप्रैल को कोलकाता में प्रदर्शन करते भाजपा कार्यकर्ता
मुर्शिदाबाद में हुई सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में 13 अप्रैल को कोलकाता में प्रदर्शन करते भाजपा कार्यकर्ता
अपडेटेड 23 मई , 2025

संसद में हाल में पारित वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर जिस तेजी और पैमाने पर पश्चिम बंगाल में असंतोष और हिंसा भड़की वैसी और कहीं नहीं भड़की. राज्य में मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद और माल्दा जिलों के अलावा दक्षिण 24 परगना के भांगोर में यह आग ज्यादा तीव्रता से भड़की. सामान्य विरोध प्रदर्शन ने देखते ही देखते 11-12 अप्रैल को हिंसक रूप ले लिया और राज्य में सांप्रदायिक दरारें एक बार फिर गहराई से उजागर होती नजर आईं.

तीन लोगों की मौत हो गई, 200 से ज्यादा को गिरफ्तार किया गया और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए अर्धसैनिक बलों को मोर्चा संभालना पड़ा. यह संकट बंगाल के बदलते राजनैतिक परिदृश्य की गंभीरता दर्शाता है, जहां दो प्रमुख दल—सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी—2026 के विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू वोट अपने पक्ष में ध्रुवीकृत करने में एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए हर पैंतरा अपना रहे हैं. और यह सब राज्य की बड़ी मुस्लिम आबादी के बीच असंतोष की एक बड़ी वजह भी बन रहा है.

आग के इस खेल की चिनगारी 11 अप्रैल को सबसे पहले मुर्शिदाबाद में समसेरगंज ब्लॉक के धुलियान में भड़की, जहां प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की गाड़ियां आग के हवाले कर दीं और सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गए. नजदीक के सुती इलाके में कथित तौर पर पुलिस ने ऐजाज अहमद को गोली मार दी. समसेरगंज से कुछ ही किलोमीटर दूर 70 वर्षीय हरगोबिंद दास और उनके 40 वर्षीय बेटे चंदन की उनके घर में हत्या कर दी गई. पुलिस चार घंटे बाद पहुंची.

हैरत की बात यह है कि अगले ही दिन पुलिस ने इलाके में रामनवमी की यात्रा निकलने दी. कथित तौर पर जुलूस निकालने वाले कुछ लोगों ने भड़काऊ भाषण दिए तो एक आयोजक गिरफ्तार कर लिया गया. 15 अप्रैल को पुलिस ने हत्याओं के सिलसिले में दो लोगों को गिरफ्तार किया. 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल में संशोधित वक्फ कानून लागू करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया है. उन्होंने 14 अप्रैल को कोलकाता में लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, ''धर्म का मतलब भक्ति, स्नेह, मानवता, शांति, संस्कृति, सदभा5 व और एकता है. ये लड़ाई क्यों? दंगे, युद्ध या अशांति क्यों?" लेकिन आलोचकों का मानना है कि खुफिया इकाइयां और प्रशासन यह अनुमान लगाने में नाकाम रहे कि विरोध प्रदर्शन किस हद तक पहुंच सकता है.

वक्फ कानून के विरोध में प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद जिले में जलाया गया एक वाहन

सांप्रदायिक अशांति के कारण करीब 400 लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा. भाजपा का दावा है कि लगभग 80 हिंदू परिवारों ने भागीरथी नदी पार कर माल्दा के परलालपुर में शरण ली है. हालांकि, स्थानीय अधिकारी इस आंकड़े से सहमत नहीं हैं.

आरोप यह भी लग रहा है कि भाजपा ने सांप्रदायिकता का नैरेटिव गढ़ने के लिए लोगों के पलायन की साजिश रची है. बहरहाल, हिंसा एकतरफा नहीं थी. मुस्लिम समुदाय के घरों को भी निशाना बनाया गया. भाजपा पर भावनाएं भड़काने के लिए हिंसा की फर्जी तस्वीरें प्रसारित करने का आरोप भी लग रहा है.

जांचकर्ताओं को अंदेशा है कि अशांति फैलाने में प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) का हाथ था. माकपा नेता मोहम्मद सलीम ने पार्टी समर्थक हरगोबिंद और चंदन के परिवार से मुलाकात की. उन्होंने भाजपा नेताओं के कथित नफरती भाषणों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने को लेकर सरकार की आलोचना भी की. उन्होंने कहा, ''नफरती भाषणों के कारण दूसरे समुदाय की प्रतिक्रिया हुई. लेकिन ऐसा लगता है कि इससे सत्तारूढ़ दल के कुछ हित भी सध रहे हैं."

टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष इसके सबके पीछे एक बड़ी साजिश देखते हैं, जिसमें ''कुछ केंद्रीय एजेंसियां, बीएसएफ का एक वर्ग और दो-तीन राजनैतिक दल" शामिल हो सकते हैं. उनका दावा है कि उपद्रवियों को खुली छूट मिली थी और बाद में वे बिना किसी कार्रवाई के आराम से वहां से जाने में सफल रहे. ऐसा लगता है कि हिंसा स्वत:स्फूर्त थी जिसमें राजनैतिक शह पर फैलाई गई अराजकता भी शामिल थी.

मंदिर की राजनीति

मुर्शिदाबाद और दूसरी जगहों पर हुई हिंसा को प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकता के उस खेल की रोशनी में देखना चाहिए जो अगले साल होने वाले चुनावी मुकाबले की तैयारी करते हुए टीएमसी और भाजपा खेल रहे हैं. वह धार्मिक प्रतीकवाद जो कभी बंगाल के राजनैतिक व्याकरण में हाशिए की चीज हुआ करता था, अब मंच के बीचोबीच आ गया है. मंदिर अब एक सियासी बयान हैं और पर्व-त्योहार लोगों को लामबंद करने के ताकतवर औजार.

साल 2011 में अपने उभार के वक्त से ही टीएमसी ने मोटे तौर पर अपनी पूर्ववर्ती वामपंथी हुकूमत के पंथनिरपेक्ष तानेबाने का पालन किया. उसे अल्पसंख्यकों का जोरदार समर्थन मिला, जो राज्य की आबादी के करीब 27 फीसद हैं. भाजपा के ''अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण’’ करने और ''हिंदू विरोधी’’ होने के आरोपों का जवाब वह कभी बेरुखी और उदासीनता से दिया करती थी.

मगर 2019 में वह सब बदल गया, जब भाजपा ने 57 फीसद हिंदू वोट बटोरकर राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर कब्जा कर लिया. रुख बदलते हुए टीएमसी ने हिंदुओं तक पहुंचने की कोशिशें बढ़ा दीं. ममता खुद अपनी हिंदू ब्राह्मण पहचान को बढ़-चढ़कर जतलाने लगीं. 2012 में मूलत: इमामों के लिए शुरू की गई मासिक भत्ते की योजना को हिंदू पुरोहितों तक बढ़ा दिया गया.

वाराणसी की प्रसिद्ध गंगा आरती की नकल पर हुगली के तटों पर आरती शुरू की गई. पुरी के जगन्नाथ और वैष्णो देवी मंदिर की नकल पर मंदिरों की योजनाओं का ऐलान किया गया. दीघा में 250 करोड़ रुपए से बने जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति हिंदू पंचांग की शुभ तिथि अक्षय तृतीया के दिन 30 अप्रैल को उदघाा टन के लिए तैयार है. भाजपा भला कैसे पीछे रहती, उसके नेता सुवेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम में राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया, जिसकी आधारशिला रामनवमी पर रखी गई.

राम के नाम पर 6 अप्रैल को हावड़ा में रामनवमी रैली निकालते तृणमूल कांग्रेस के सदस्य

रामनवमी को भाजपा ने दरअसल अपने सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और वैचारिक पितृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ मिलकर एक बड़ी राज्यव्यापी घटना में बदल दिया. दशक भर पहले हल्के-फुल्के अनुष्ठान से अब इसे राज्य की जबरदस्त सांस्कृतिक ताकत में तब्दील कर दिया गया है.

अकेले 2025 में ही करीब 2,000 रैलियां आयोजित की गईं और 1,00,000 से ज्यादा जगहों पर राम महोत्सवों के आयोजन का दावा किया गया. भाजपा के समिक भट्टाचार्य कहते हैं, ''तृणमूल कांग्रेस के कुशासन ने हिंदू समुदाय को एकजुट कर दिया है. उनके विरोध को रामनवमी और हनुमान जयंती की रैलियों में तब्दील किया जा रहा है."

टीएमसी ने भी उसी की भाषा में जवाब दिया. रामनवमी के जुलूसों की अगुआई अब उसके अपने नेता करते हैं. नवद्वीप और पुरुलिया में टीएमसी-संचालित नगरपालिकाओं ने होली और रामनवमी के मौकों पर बूचड़खाने बंद रखने का आग्रह किया. टीएमसी नेता पार्थ भौमिक ने जोर दिया कि टीएमसी के नेता हमेशा ऐसी रैलियों का हिस्सा रहे हैं और ''हमारे राम शांतिमय हैं. भाजपा विदेशी संस्कृति थोपना चाहती है जो बच्चों को तलवार चलाना सिखाती है."

इस साल की रामनवमी भले ही निर्विघ्न गुजर गई लेकिन पहले के सालों का रिकॉर्ड उथल-पुथल से भरा रहा है. 2018 में रानीगंज में, 2019 में आसनसोल में, 2022 और 2023 में हावड़ा में और पिछले साल मुर्शिदाबाद में सांप्रदायिक अशांति भड़क उठी.

सांप्रदायिक मथानी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी लंबे समय से एक नाजुक सियासी रस्सी पर चलती आ रही हैं. दुर्गा पूजा और छठ पूजा सरीखे त्योहार तो वे धूमधाम से मनाती ही हैं, साथ ही मुसलमानों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की हिमायत करती, ईद मिलन समारोहों में हिस्सा लेतीं और यहां तक कि हिजाब में भी बराबर दिखाई दीं.

यह बहुत नाप-तौलकर की गई संतुलन की कवायद है, जिसका मकसद अल्पसंख्यकों के बेहद अहम वोट को दूर किए बिना हिंदू हितैषी होने की छवि पेश करना है. मगर मुसलमानों को जहां वे भरोसा दिला रही हैं कि सब ठीक-ठाक है, पार्टी के अपने सियासतदां ही तयशुदा नैरेटिव से छिटक रहे हैं क्योंकि राजनीति धार्मिक बहुसंख्यकवाद की दिशा में करवट बदल रही है.

मार्च में सुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा में ऐलानिया कहा कि अगर 2026 में भाजपा सत्ता में आती है तो वे ''टीएमसी के अल्पसंख्यक विधायकों को सड़कों पर घसीटेंगे." जवाब में टीएमसी के हुमायूं कबीर ने माफी नहीं मांगने पर अधिकारी के हाथ तोड़ने की धमकी दे डाली. उन्होंने कहा, ''मेरी पार्टी दूसरे नंबर पर आती है. मेरा समुदाय पहले नंबर पर आता है." ममता भी इस झगड़े में कूद पड़ीं. उन्होंने सदन में अपनी हिंदू पहचान का इसरार किया और भाजपा पर ''राज्य में नकली हिंदू धर्म का आयात करने’’ का आरोप लगाया. यह 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले विचारधारा की लड़ाई का पूर्वावलोकन था.

जिन मुस्लिम नेताओं पर भड़काऊ बयान देने के आरोप लगाए गए, उनमें ममता के मंत्रिमंडल के सहयोगी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेता सिद्दीकुल्ला चौधरी भी हैं, जिन्होंने वक्फ कानून के विरोध में कोलकाता को ठप करने की धमकी दी थी. राजनैतिक विश्लेषक निर्माल्य मुखर्जी कहते हैं, ''यह ऊंचे दांव का सांस्कृतिक युद्ध है. अगर नेता सोच-समझकर सावधानी से कदम नहीं उठाते, तो खूनखराबा बंगाल की आंखों में ताक रहा हो सकता है.’’

मुर्शिदाबाद में भड़की हिंसा से महज एक दिन पहले सांप्रदायिक राजनीति के खतरों के संकेत दिखाई दिए. 10 अप्रैल को एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कोलकाता की रैली में वक्फ कानून का विरोध कर रहे मुसलमानों को कथित तौर पर एक बस ड्राइवर से भगवा झंडा हटाने के लिए कहते दिखाया गया. तत्काल टीएमसी पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए भाजपा ने हिंदुओं से आग्रह किया कि वे 12 अप्रैल को हनुमान जयंती पर अपने घरों पर भगवा झंडा लगाएं.

पहले से ही भड़की हुई इस आग में घी डालने का काम असरदार धार्मिक निकायों ने किया. हुगली स्थित फुरफुरा शरीफ के प्रमुख मौलवी पीरजादा तोहा सिद्दीकी ने हाल में मंदिर परियोजना को 'संतुलित’ करने के लिए दीघा में मस्जिद के निर्माण की अपील की. राजनैतिक तौर पर उनके ज्यादा सक्रिय नातेदार और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) के संस्थापक अब्बास और नौशाद सिद्दीकी मुस्लिम वोटों पर टीएमसी के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए तैयार हैं.

आरएसएस ने भी बंगाल में अपनी जमीनी पहुंच का विस्तार किया है. यह साफ है कि बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के विपरीत, जब भाजपा ने क्रमश: (294 में से) 77 और (42 में से) 12 सीटें जीती थीं, राज्य इकाई की निहायत कमजोर संगठनात्मक ताकत को आरएसएस का सहारा मिलेगा.

विश्लेषकों का कहना है कि 2024 में 38.73 फीसद वोट हिस्सेदारी से उत्साहित भाजपा 2026 में 7-8 फीसद वोटों का रुख बदलने का लक्ष्य लेकर चल रही है. इसे हासिल करने की कुंजी आरएसएस और विहिप की लामबंदी की बदौलत हिंदू मतदाताओं के ज्यादा बड़ी तादाद में वोट देने के लिए निकलने में है.

धार्मिक राजनीति के इस कानफाड़ू शोर में आम आदमी के रोजमर्रा के सरोकार डूब जाते हैं. बेरोजगारी के संकट या बहुत-से कथित घोटालों से जाहिर स्थानीय भ्रष्टाचार से निबटने का कोई उपाय नहीं. राजनैतिक शोरशराबे को भेदने वाले अकेले गैर-धार्मिक मुद्दे आर.जी. कर बलात्कार मामले में हुई कथित अनियमितताएं और पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के मातहत भर्ती की प्रक्रिया में हुई हेरफेर के कारण स्कूलों की करीब 26,000 नौकरियों को रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला रहे हैं.

फिर भी मंदिर, पहचान और काल्पनिक ऐतिहासिक शिकवे-शिकायतें राजनैतिक नैरेटिव पर हावी हैं. मुर्शिदाबाद में आग की तीली एक ही दिन नहीं सुलगाई गई. बंगाल के सियासी तबके ने इसे सालोसाल बहुत एहतियात और लगातार मेहनत से भड़काया.

बंगाल में ध्रुवीकरण की होड़

हिंदू वोटों को पाले में लाने के लिए भाजपा और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में मंदिरों और त्योहारों की राजनीति करने में एक-दूसरे से आगे निकलने की मची होड़.

भाजपा

●विहिप और भाजपा का दावा है कि 2025 में 1,00,000 से ज्यादा जगहों पर राम महोत्सव आयोजित किए गए और रामनवमी पर करीब 2,000 रैलियां निकाली गईं.

●मुख्य विपक्षी दल भाजपा की तरफ से तृणमूल कांग्रेस पर 'अल्पसंख्यक तुष्टीकरण’ और 'हिंदू विरोधी’ होने के आरोप लगाए जाते रहे हैं.

●भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने तो यह तक कह डाला कि 2026 में भाजपा सत्ता में आई तो तृणमूल के मुस्लिम विधायकों को 'सड़कों पर घसीटा जाएगा.’

●बंगाल में जमीनी स्तर पर अपनी पहुंच बढ़ाने के साथ आरएसएस को 2026 में बड़ी संख्या में हिंदू मतदाताओं का साथ मिलने की उम्मीद है.

●मुर्शिदाबाद हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करके भी समुदायों के ध्रुवीकरण की कोशिश की गई.

तृणमूल कांग्रेस

●तृणमूल नेताओं ने भी रामनवमी और हनुमान जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किए और रैलियों का हिस्सा बने.

●तृणमूल के नेतृत्व वाली नवद्वीप और पुरुलिया नगरपालिकाओं ने होली और रामनवमी जैसे मौकों पर मांस की दुकानें बंद रखने की अपील की.

●'हिंदू विरोधी’ होने के भाजपा के आरोपों के जवाब में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने बार-बार अपने हिंदू ब्राह्मण होने पर जोर दिया.

●ममता बनर्जी 30 अप्रैल को दीघा में पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति का उद्घाटन करने वाली हैं.

●कोलकाता स्थित कालीघाट मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है, इसे जोड़ने वाला स्काइवॉक उद्घाटित.

●वाराणसी की तर्ज पर हुगली में गंगा आरती होने लगी है.

- अर्कमय दत्ता मजूमदार

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