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केंद्र वर्सेस राज्यों की सियासी लड़ाई में कैसे नौनिहालों को हो रहा है नुकसान?

केंद्र सरकार की पीएम-श्री मॉडल स्कूल बनाने की योजना कुछ राज्यों ने लागू न की तो उनका फंड ही रोक दिया गया. इससे समग्र शिक्षा अभियान को चोट पहुंची

विरोध की भाषा संसद परिसर में डीएमके सांसद एनईपी-20 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए
अपडेटेड 20 मई , 2025

देश के तीन राज्यों को समग्र शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाली फंडिंग पर रोक इस समय केंद्र सरकार और विपक्षी पार्टियों के बीच टकराव का एक और बिंदु बन गई है. ये तीन राज्य हैं तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल. तीनों ही केंद्र सरकार की पीएम-श्री योजना की शर्तों को पूरी तरह से मानने को तैयार नहीं.

तीनों राज्यों को मिलाकर समग्र शिक्षा अभियान के तहत कुल 4,000 करोड़ रुपए मिलने थे लेकिन केंद्र सरकार ने इसे रोक लिया है. संसद की एक स्थायी संसदीय समिति ने अपनी हाल ही की एक रिपोर्ट में इसे 'अन्यायपूर्ण' माना है और पैसे तुरंत जारी करने की सिफारिश की है.

दरअसल, इस कहानी की शुरुआत 7 सितंबर, 2022 को हुई. उस दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक नई केंद्र प्रायोजित योजना पीएम-श्री स्कूल (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) को मंजूरी दी. केंद्र सरकार की योजना यह थी कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 (एनईपी-2020) के अनुरूप देश भर में 14,500 से ज्यादा स्कूलों को पीएम-श्री स्कूलों के रूप में विकसित किया जाए.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति समग्र शिक्षा अभियान का हिस्सा है और इस तरह पीएम-श्री स्कूल भी इसी के तहत आते हैं. इस योजना का मकसद देश के हर कोने में ऐसे मॉडल स्कूल तैयार करना है, जिनका इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो, जहां पढ़ाने के आधुनिक और इनोवेटिव तरीके इस्तेमाल किए जाएं और कौशल विकास पर अधिक जोर हो.

योजना के तहत यह प्रावधान किया गया कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय निकायों की ओर से चलाए जा रहे स्कूलों में से ही तकरीबन 14,500 स्कूलों को पीएम-श्री स्कूल का दर्जा दिया जाएगा. यह दर्जा पाने के लिए स्कूल आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे और उसके आधार पर इनका चयन किया जाएगा. केंद्र सरकार का दावा है कि अब तक 12,000 से ज्यादा स्कूलों को पीएम-श्री स्कूल में अपग्रेड किया गया है (देखें बॉक्स: पीएम-श्री स्कूल योजना).

पांच साल तक चलने वाली इस योजना पर 27,360 करोड़ रुपए का खर्च अनुमानित था. इसमें 18,128 करोड़ रुपए केंद्र सरकार को देना था और बाकी पैसे राज्य सरकारों को लगाने थे. राज्यों में आम तौर पर जो केंद्र प्रायोजित योजनाएं लागू होती हैं, उनमें कुल खर्च का 60 फीसद केंद्र सरकार देती है और 40 फीसद पैसा संबंधित राज्य सरकार को लगाना होता है.

जब इस योजना का क्रियान्वयन शुरू हुआ तो तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल के अलावा कुछ दूसरे राज्यों ने भी इसका विरोध किया था. इनमें पंजाब और दिल्ली भी शामिल थे. पंजाब में केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विरोधी आम आदमी पार्टी  (आप) की सरकार है. उस समय दिल्ली में भी आप की ही सरकार थी. लेकिन केंद्र की तरफ से समग्र शिक्षा अभियान की फंडिंग रोके जाने के अंदेशे को देखते हुए पंजाब और दिल्ली ने इस योजना को लागू कर दिया.

अभी जो तीन राज्य पीएम-श्री योजना के खिलाफ मुखर हैं, उन सभी में विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं. हालांकि कई ऐसे राज्य हैं जो विपक्षी पार्टियों से शासित होने के बावजूद पीएम-श्री योजना को लागू कर चुके हैं.

तो फिर आखिर इन तीन राज्यों को किन बातों पर ऐतराज है? तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, शिक्षा विभाग के मंत्रियों और अधिकारियों की बातों पर गौर करें तो इनकी पहली दिक्कत इन स्कूलों के नाम को लेकर है. राज्य सरकारें अपने स्कूल चलाती हैं. इस योजना में जो भी स्कूल शामिल होगा, उसके मौजूदा नाम के पहले 'पीएम-श्री' जुड़ जाएगा.

पिछले साल तमिलनाडु के स्कूल शिक्षा विभाग ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को एक पत्र लिखकर कहा था कि वह पीएम-श्री योजना को अपने यहां लागू करने के लिए तैयार है, बशर्ते केंद्र सरकार एमओयू की उस शर्त को हटा ले जिसके तहत स्कूल के नाम के आगे 'पीएम-श्री' जोड़ने की बाध्यता है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने तमिलनाडु के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.

विरोध करने वाले इन राज्यों की दूसरी आपत्ति यह है कि अभी अपने स्कूलों का पाठ्यक्रम वे खुद तय करते हैं. लेकिन पीएम-श्री स्कूलों के पाठ्यक्रम इस योजना दस्तावेजों के मुताबिक होंगे. यानी परोक्ष रूप से इनके पाठ्यक्रम तैयार करने का काम केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगा. इन राज्यों को तीसरी और सबसे बड़ी आपत्ति इस बात को लेकर है कि केंद्र सरकार जो एनईपी-2020 लेकर आई है, उसके अनुरूप इन स्कूलों का संचालन होगा.

जो तीन राज्य बचे हैं, उनका मुख्य विरोध एनईपी-2020 के प्रावधानों को लेकर भी है. अगर ये पीएम-श्री योजना में शामिल होते हैं तो इन्हें एनईपी-2020 को भी स्वीकार करना होगा. पीएम-श्री योजना और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर सबसे ज्यादा मुखर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और उनकी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कलगम (डीएमके) है. बजट सत्र के दौरान डीएमके सांसदों ने संसद भवन परिसर में 11 मार्च को एनईपी-2020 और पीएम-श्री योजना का विरोध किया था.

कुछ दिनों पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि पीएम-श्री योजना को अपनाने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा उनके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सुझाई गई तीन भाषायी फॉर्मूला है. इसके तहत स्कूलों में बच्चों को तीन भाषाएं पढ़ाने का प्रावधान है. स्टालिन ने इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा. इसमें उन्होंने कहा, ''मामूली बदलावों के साथ तमिलनाडु पीएम-श्री योजना लागू करने के लिए एमओयू पर दस्तखत करने के लिए तैयार है लेकिन भाषा फॉर्मूला को लेकर राज्य का संवैधानिक संरक्षण बरकरार रहना चाहिए.''

स्टालिन के मुताबिक, ''एनईपी में कहा गया है कि तीन भाषा वाला फॉर्मूला लागू करने को लेकर राज्यों के पास निर्णय का अधिकार होगा और कोई भी भाषा राज्य पर थोपी नहीं जाएगी. लेकिन पीएम-श्री के एमओयू में शिक्षा नीति की यह भावना नहीं दिखती और भाषा फॉर्मूला को लेकर राज्यों के पास कोई अधिकार नहीं बचता.''

तमिलनाडु के स्कूल शिक्षा विभाग के मंत्री अनाबिल महेश पोयामोझी भी यही बात दोहराते हैं, ''हमें कुछ खास बातों पर ऐतराज है. इनमें तीन भाषा फॉर्मूला और पाठ्यक्रम में प्रस्तावित बदलाव प्रमुख हैं. पीएम-श्री स्कूलों के माध्यम से केंद्र सरकार एनईपी-2020 के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है. दूसरे राज्यों ने स्वीकार कर लिया है लेकिन हम नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारी भाषा नीति के खिलाफ पड़ती है.''

जिस भी राज्य ने पीएम-श्री योजना को लागू करने के लिए केंद्र सरकार के साथ सहमति पत्र पर दस्तखत नहीं किए, केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत उसकी फंडिंग रोक दी. इसी दबाव में पंजाब और दिल्ली ने पीएम-श्री योजना को स्वीकार किया. मार्च, 2025 तक की स्थिति यह थी कि तमिलनाडु के 2,152 करोड़ रुपए, केरल के 859 करोड़ रुपए और पश्चिम बंगाल के तकरीबन 1,000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने रोक रखे थे. यह पैसा इन राज्यों को समग्र शिक्षा अभियान के तहत मिलना था. केंद्र का कहना है कि समग्र शिक्षा अभियान का एक लक्ष्य एनईपी-2020 को लागू कराना है और पीएम-श्री योजना में शामिल न होकर ये राज्य समग्र शिक्षा अभियान के क्रियान्वयन में बाधा पहुंचा रहे हैं, इसलिए इनका पैसा रोका गया है.

इस बात को लेकर केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों के बीच पिछले काफी समय से जुबानी जंग के अलावा चिट्ठीबाजी भी चल रही है. अब इन सबके बीच शिक्षा पर स्थायी संसदीय समिति की ​रिपोर्ट आई है. इस समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह हैं. समिति में भाजपा के सांसद भी सदस्य हैं. इसके बावजूद समिति ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार से इन राज्यों का पैसा रोके जाने को 'अन्यायपूर्ण' कहा है. साथ ही समिति ने सिफारिश की है कि इन राज्यों के बकाया पैसे के भुगतान को प्राथमिकता दी जाए. 

संसदीय समिति ने केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा नीति के लक्ष्यों से समग्र शिक्षा अभियान को जोड़ने के तर्क को भी खारिज किया है. समिति अपनी रिपोर्ट में कहती है, ''समग्र शिक्षा अभियान पीएम-श्री से पहले का है और इसका उद्देश्य राज्यों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करना है. आरटीई संसद से पारित एक कानून है और हर बच्चे के मौलिक अधिकार के रूप में यह उसे शिक्षा मिलने की बात पक्की करता है. समग्र शिक्षा अभियान, जो मौलिक अधिकार-आधारित आरटीई को लागू करता है, एनईपी के जरिए दरकिनार नहीं किया जा सकता क्योंकि शिक्षा नीति एक कार्यकारी नीति है.'' सामान्य शब्दों में समझें तो समिति यह कह रही है कि केंद्र सरकार के कुछ अफसरों की बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति संसद से पारित शिक्षा के अधिकार को दरकिनार करके लागू नहीं की जा सकती.

समिति ने केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के बारे में कहा है कि इन राज्यों में स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की दर दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा है. तकनीकी तौर पर इस दर को सकल नामांकन दर कहा जाता है. स​मिति कहती है कि केंद्र सरकार की ओर से इन राज्यों का पैसा रोके जाने से इनके यहां के स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने की प्रक्रिया बाधित हुई है. साथ ही शिक्षकों का प्रशिक्षण और छात्रों को दिया जाने वाला अन्य सहयोग बाधित हुआ है.

हालांकि, केंद्र सरकार पीएम-श्री योजना को लेकर इन राज्यों के विरोध को राजनैतिक बता रही है. जब बजट सत्र में डीएमके की तरफ से केंद्र सरकार पर इस योजना को लेकर दबाव बढ़ाया गया तो केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु सरकार का एक पत्र जारी करके यह दावा किया कि प्रदेश सरकार ने पीएम-श्री योजना में शामिल होने की सहमति दी थी लेकिन अब राजनैतिक वजहों से इसका विरोध कर रही है. प्रधान का सवाल था कि ''एनईपी पर अचानक तमिलनाडु का रुख क्यों बदला? निश्चित रूप से राजनैतिक लाभ के लिए और डीएमके के राजनैतिक भाग्य को पुनर्जीवित करने के लिए. डीएमके की यह पीछे हटने की राजनीति तमिलनाडु और उसके छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक बड़ा नुक्सान है. मैं माननीय मुख्यमंत्री से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि वे एनईपी 2020 को राजनैतिक चश्मे से न देखें.''

संसदीय समिति की रिपोर्ट, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की तरफ से प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र और दूसरे राज्यों की तरफ से केंद्र सरकार से रुका हुआ फंड जारी करने के लिए अलग-अलग स्तर पर किए जा रहे अनुरोध के बावजूद इस गतिरोध का फिलहाल तुरत-फुरत कोई समाधान होता नहीं दिख रहा.

इस पूरे मसले पर अड़ियल रुख चाहे किसी भी पक्ष का हो, आखिर में इसके नतीजे इन राज्यों के स्कूलों के बच्चों को ही भुगतने होंगे.

पीएम-श्री स्कूल योजना
केंद्र सरकार ने सितंबर, 2022 में इस योजना को मंजूरी दी थी. इसका लक्ष्य है राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत स्कूलों को अपग्रेड करना

मॉडल पीएम-श्री स्कूल का दर्जा पाने वाला दिल्ली का एक केंद्रीय विद्यालय

14,500 मौजूदा स्कूलों को पीएम-श्री स्कूल में अपग्रेड करने का लक्ष्य

27,360 करोड़ रु. की लागत से पांच साल में क्रियान्वयन का लक्ष्य

12,499 स्कूलों को अब तक पीएम-श्री में अपग्रेड किया गया

18,00,000 से ज्यादा छात्रों को इस योजना का लाभ मिलने का अनुमान

किसको कितना मिलना बाकी
ये पैसे इन राज्यों को समग्र शिक्षा अभियान के तहत मिलने थे

''एनईपी के मुताबिक, तीन भाषा फॉर्मूला के मामले पर राज्यों को अधिकार होगा, लेकिन पीएम-श्री योजना में एनईपी की यह भावना नहीं दिखती. इसमें भाषा फॉर्मूला पर राज्यों के पास कोई अधिकार नहीं.''
एम.के. स्टालिन, मुख्यमंत्री, तमिलनाडु

''तमिलनाडु सरकार ने पहले पीएम-श्री योजना में शामिल होने को लेकर सहमति दी थी लेकिन अब अचानक पलट गई. यह सिर्फ राजनैतिक लाभ के लिए किया जा रहा है. इससे छात्रों का नुक्सान हो रहा है.''
धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय शिक्षा मंत्री
 

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