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जम्मू-कश्मीर: अफसरों के तबादले पर उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच क्यों बढ़ी तकरार?

पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच अपने-अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर ठन गई

वादी में बैठक सीएम उमर अब्दुल्ला, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 8 अप्रैल को श्रीनगर में
अपडेटेड 13 मई , 2025

दरअसल, दस साल बाद 2024 में पहले विधानसभा चुनाव होने और राज्य का दर्जा वापस मिलने की उम्मीद से उत्साहित उमर अब्दुल्ला ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के तौर पर काफी हद तक बिना किसी अड़चन के काम किया.

मगर अभी तक केंद्र के साथ सौजन्य और सहयोग के मुलम्मे की ओट में टाला जा रहा राजनैतिक टकराव अब तय-सा लग रहा था. पिछले हफ्ते यह नौबत आ पड़ी जब उमर और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा के बीच अपने-अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर ठन गई.

फौरी शुरुआत पहली अप्रैल को सिन्हा की तरफ से किए गए जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) के मझोले दर्जे के 48 अफसरों के तबादलों से हुई, जिनमें 16 एडिशनल डिप्टी कमिशनर, 23 सबडिविजनल मजिस्ट्रेट और नौ असिस्टेंट रेवेन्यू कमिशनर शामिल थे.

केंद्र शासित प्रदेश के दोहरे सत्ता केंद्रों के बीच सीधे टकराव का माहौल बनाते हुए मुख्यमंत्री उमर ने 4 अप्रैल को नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के सभी 42 विधायकों के साथ सहयोगी दलों कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और निर्दलीय विधायकों की बैठक बुला ली. बैठक के अंत में दबी-छिपी चेतावनी दी गई. जैसा कि विधायक और एनसी के मुख्य प्रवक्ता ने कहा, ''हमें मजबूर मत करो. हमारे दोस्ताना रवैये को कमजोरी मत समझो.''

हालांकि उमर कई मुद्दों पर एलजी सिन्हा से इत्तेफाक नहीं रखते मगर वे मामलों को तूल देने से बचते रहे. इसके चलते विपक्ष ने उन पर सिन्हा के प्रति बहुत ज्यादा नरम होने का आरोप भी लगाया. सबसे अहम यह मुद्दा था कि एलजी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मुहम्मद अब्दुल्ला की जयंती के उपलक्ष्य में 5 दिसंबर की छुट्टी बहाल करने की उमर की गुजारिश नामंजूर कर दी. इस दिन अवकाश को एलजी ने 2020 में 13 जुलाई को 'शहीद दिवस' के साथ रद्द कर दिया था.

अब जब राजभवन प्रशासनिक अफसरों के तबादलों पर जोर दे रहा है और ऐसा करते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों की दुहाई दे रहा है, जेकेएएस के मध्य क्रम के अफसरों पर अपना नियंत्रण होने का सरकार का दावा औंधे मुंह गिर गया. नतीजतन, आंतरिक असंतोष पैदा हुआ और सरेआम शर्मिंदगी उठानी पड़ी. विवाद के जवाब में एलजी सिन्हा ने कहा, ''मैं अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर हूं और इससे बाहर जाकर कभी कुछ नहीं करूंगा.''

उमर बस इतना कर सके कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को नाराजगी भरी चिट्ठी लिख मारी. उसमें उन्होंने कहा कि सिन्हा की कार्रवाई जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 का उल्लंघन थी और इसने उनकी सरकार के इकबाल की जड़ खोद दी क्योंकि जेकेएएस के अधिकारियों का तबादला करना उसका विशेषाधिकार था.

केंद्र शासित प्रदेश होने की वजह से एलजी और चुनी हुई सरकार की शक्तियों तथा अधिकारों के बीच बंटवारे की व्यवस्था है और मौजूदा विवाद की जड़ उमर अब्दुल्ला की अगुआई वाली सरकार के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र को लेकर कायम अस्पष्टता है. तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद लागू हुआ जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 53 के तहत एलजी को व्यापक अधिकार देता है.

साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय के कार्य संचालन नियम कानून और व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवाओं, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, अभियोजन, जेल और फॉरेंसिक विज्ञान को साफ तौर पर उनके मातहत रखते हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस की सत्तारूढ़ सरकार का कहना है कि बाकी की प्रशासनिक मशीनरी सरकार के अधीन है जिसमें जेकेएएस के अधिकारियों की तैनातियां और तबादले भी शामिल हैं.

जहां अधिकारों के बंटवारे की सीमारेखाएं और इस तरह सरकार के अधिकार धुंधले हैं, वहां ज्यादा स्पष्टता हासिल करने के लिए उमर सरकार ने कार्य संचालन नियम बनाए और महीने भर पहले नई दिल्ली भेजने के लिए एलजी को सौंपे. उसे केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार है.

एनसी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, 4 अप्रैल की बैठक में राज्य के दर्जे की बहाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने और इसी मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू करने की संभावनाओं पर चर्चा की गई. यह भी व्यापक रूप से महसूस किया गया कि जम्मू-कश्मीर के कार्य संचालन नियमों को मंजूरी देने में केंद्र की देरी 'जनादेश को ठेंगा दिखाने' की सोची-समझी चाल है.

अब जब एलजी 'व्यापक पहुंच' वाले अपने अधिकारों का प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार को लग रहा है कि राज्य का दर्जा जल्द बहाल करने के केंद्र के वादे महज दूर की कौड़ी हैं. समय सीमा बताए बिना अमित शाह लगातार यही कहते रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा 'उचित समय' पर बहाल किया जाएगा. वहीं उमर सरकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राज्य के दर्जे की बहाली पर एक और प्रस्ताव लाएगी. पहला प्रस्ताव अक्तूबर 2024 में सौंपा गया था और उसे एलजी की मंजूरी भी मिली थी.

इस सबके बीच शाह ने अपना तीन दिन का जम्मू-कश्मीर दौरा 6 अप्रैल को जम्मू में भाजपा मुख्यालय से शुरू किया. माना जाता है कि उन्होंने पार्टी विधायकों को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का निर्देश दिया. जब 7 अप्रैल को वे श्रीनगर पहुंचे, हवाई अड्डे पर उमर अब्दुल्ला और दूसरे अधिकारियों ने उनकी अगवानी की. अगले दिन शाह ने एक उच्चस्तरीय बैठक में केंद्र शासित प्रदेश की विभिन्न विकास परियोजनाओं की समीक्षा की, जिसमें सिन्हा, उमर, जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव अतुल डुल्लू और विभिन्न महकमों के प्रशासनिक प्रमुख शामिल हुए. जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा हालात का जायजा लेने के लिए एक और बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री उमर मौजूद नहीं थे. मगर इन सबके पहले मुख्यमंत्री और शाह के बीच सीधी मुलाकात हुई. इससे उमर को सिन्हा के कामकाज के बारे में अपनी शिकायतें बयान करने और शक्तियों के बंटवारे को लेकर स्पष्टता की मांग करने का माकूल मौका मिल गया.

एलजी बनाम सीएम

> उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 1 अप्रैल को प्रशासनिक सेवा के मध्य क्रम के 48 अफसरों के तबादले के आदेश दिए.

> उमर सरकार ने इसका विरोध किया और इसे जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 का उल्लंघन बताया.

> सिन्हा ने कदम का बचाव करते हुए कहा कि इसे अधिनियम के ''अधिकार क्षेत्र के मुताबिक'' ही किया गया है.

> सत्ता के बंटवारे पर स्पष्टता के लिए उमर सरकार ने कार्य संचालन नियम बनाए जिसे केंद्र की मंजूरी का इंतजार है.

कलीम गीलानी की स्टोरी. 

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