
बाड़मेर जिले में भारत की सरहद का एक आखिरी गांव है रोहिड़ी. इसका एक हिस्सा पुरानी रोहिड़ी 100 फुट ऊंचे टीले पर बसा और नई रोहिड़ी टीले के नीचे. केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन योजना लागू करने की कड़ी में अफसरों ने नई रोहिड़ी में पानी का ओवर हेड टैंक बनाया और तीन किमी दूर पुरानी रोहिड़ी को पाइपलाइन के जरिए इस टैंक से जोड़ दिया.
यही नहीं, हर घर में नल भी लगा दिए, एक बच्चे को भी समझ में आ जाने वाला साइंस उनके भेजे में न घुसा कि गांव की बसावट ही अगर इस टैंक के लेवल से ऊंची है तो पाइपलाइन के जरिए पानी आखिर कैसे चढ़ेगा? गांव के रेशमाराम मेघवाल खोपड़ी सहलाते हुए निराशा में कहते हैं, ''अब तो जादू से ही हमारे गांव में पानी आ सकता है. टंकी का पानी तो इतनी ऊंचाई तक पहुंचेगा नहीं, कैसे संभव है? आप ही बताइए जरा.’’
घुटे हुए अफसर और ठेकेदार लोगों को दूसरी टंकी बनाने का झांसा देकर भागे तो फिर दोबारा न दिखे. अब गांव के लोग दिनभर घर के बाहर लगे हरे रंग के नलों को निहारते रहते हैं. गांव की महिलाओं का पूरा दिन 130 फुट गहरी बेरी यानी कुएं से पानी खींचने में बीतता है. गर्मी आते ही इस कुएं का पानी भी 10-20 मटके भरने के बाद सूख जाता है. फिर एक डेढ़ घंटे तक इंतजार करना पड़ता है. कुआं इतना गहरा है कि एक साथ 3-4 महिलाएं मिलकर रस्सी से पानी खींच पाती हैं.
गुड्डी देवी, मोरू देवी और शिमला देवी रोज 10-15 बार हाथ से पानी खींचकर परिवार की जरूरत पूरी करती हैं. रस्सी खींचने से हाथ में पड़े छाले दिखाते हुए शिमला कहती हैं, ''हमारी जिंदगी कुएं से पानी खींचने में ही बीत गई. नल आया तो लगा कि चलो बच्चों को इस पीड़ा से मुक्ति मिलेगी, पर अफसरों की करतूत देखकर लगता है कि उन्हें भी पानी के लिए जिंदगीभर इसी तरह खटना पड़ेगा. क्या करें, किससे कहने जाएं?’’
बाड़मेर जिले के ही सियाणी गांव की लाली का हाल देखिए. भरी धूप में सड़क पर नंगे पांव चलना मुश्किल. सो सीमेंट की बोरी को चप्पल बनाकर पैरों में बांध निकल पड़ती हैं. अगल-बगल दो मटके. सुबह से शाम तक इसी तरह चक्कर. वैसे यहां भी जल जीवन मिशन के तहत पानी की टंकी बने दो साल से ज्यादा हो चुका है. डेढ़ साल पहले गांव में पाइपलाइन भी पड़ चुकी लेकिन नल कनेक्शन अभी तक नहीं हुए.

पहले हैंडपंप पानी का जरिया थे लेकिन टंकी बनने के बाद किसी ने हैंडपंप की तरफ ध्यान न दिया. नतीजतन, गांव में लगे 15 में से 12 हैंडपंप सूख चुके हैं. ऐसे में लाली जैसी गांव की सैकड़ों महिलाएं घर से एक किलोमीटर दूर इसी पानी की टंकी से पानी लाने को मजबूर हैं. सुबह-शाम यहां लंबी लाइनें लगती हैं.
राजस्थान के 42,327 गांवों में से रोहिड़ी और सियाणी जैसे 30,337 गांवों के लिए नल से पानी अब भी दूर की कौड़ी है. केंद्रीय जल जीवन मिशन के आंकड़ों के अनुसार मार्च, 2025 तक राज्य के सिर्फ 11,990 गांवों तक ही नल से पानी पहुंच पाया है. यहां 6,437 गांव तो ऐसे हैं जिनमें मिशन का काम भी अभी तक शुरू नहीं हुआ है.
हर घर कनेक्शन जारी करने के मामले में राजस्थान देश में सबसे पिछड़ा दूसरा राज्य है वहीं हर घर जल पहुंचाने के मामले में देश में चौथा सबसे फिसड्डी राज्य. वैसे राज्य सरकार के आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि मार्च, 2025 तक राजस्थान में 55.95 फीसद घरों में नल से पानी पहुंच चुका है, मगर जमीनी हकीकत इससे परे है. इंडिया टुडे की एक पड़ताल में पता चला कि जिन गांवों में 100 फीसद नल कनेक्शन देकर पानी पहुंचाने का दावा किया जा रहा था वहां आधी आबादी तक भी पानी नहीं पहुंच रहा है.
बाड़मेर जिले के रामसर गांव में जल जीवन मिशन के तहत हर घर में नल कनेक्शन हो चुके हैं और हर घर नल से पानी पहुंच रहा है. हकीकत यह है कि यहां की 30 फीसद आबादी आज भी 2-3 किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर है. इस गांव की जडेजों की बस्ती और गडराई मेघवालों की बस्ती में एक बार भी पानी नहीं पहुंचा.
पाइपलाइन इतनी घटिया डाली गई कि जडेजों की बस्ती में एक ही जगह पर वह दर्जनों बार लीक हो चुकी है. गांव के बाहर उत्तम सिंह तालाब में हैंडपंप के पास लगे नल से दर्जनों महिलाएं पानी भरती दिखीं. पता चला कि वे 2-3 किलोमीटर दूर के गांव से दिन में कई बार यहां पानी लेने आती हैं.
गांव के सरपंच गिरीश कुमार खत्री कहते हैं, ''सप्लाइ के लिए लगाए गए पाइप की क्वालिटी इतनी खराब है कि वे पानी का थोड़ा-सा भी दबाव नहीं झेल पाते. ठेकेदारों ने पाइपलाइन डालकर सड़क की मरम्मत तक नहीं कराई. डालते समय ऊंचाई का ख्याल नहीं रखा गया, जिसके कारण अंतिम छोर के घरों तक पानी पहुंचता ही नहीं.’’

दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बोझापाड़ा गांव में तो दो साल पहले ही हर घर में नल कनेक्शन हो गया था लेकिन पानी आज तक नहीं आया. ठेकेदार और अफसरों ने घरों में पानी की सप्लाइ दिखाने के लिए लोटे से पानी डालकर चलते हुए नलों की तस्वीरें खींचीं और पानी पहुंचने की खानापूर्ति कर दी. सरपंच प्रकाश चंद्र का कहना है कि अफसर-ठेकेदारों की करतूत सामने आने के बाद भी अभी तक आधे गांव में पानी नहीं पहुंचा है.
इसी तरह डूंगरपुर जिले के सुंदरपुर, देवल खास, देवल गामड़ी, घुगरा, छापी और लांबी डूंगरी जैसे गांवों में प्रशासन ने दावा किया कि वहां के सभी घरों में नल कनेक्शन हो गए हैं. हकीकत में वहां पानी पहुंचना तो दूर, कई गांवों में टंकियों का काम भी पूरा नहीं हुआ है. ठेकेदार काम संपन्न बताकर भुगतान उठा चुके और गांव के बाहर इस आशय का बोर्ड भी लग गया.
छापी और लांबी डूंगरी गांव में तो उद्घाटन के बाद दोबारा कभी पानी नहीं आया. छापी गांव के 408 घरों में से 108 घरों तक पानी नहीं पहुंचा. लांबी डूंगरी गांव में सप्लाइ के लिए जो कुआं खोदा गया, उसमें भी पानी नहीं है. सुंदरपुरा गांव की सरपंच उर्मिला कहती हैं, ''ठेकेदार गुजरात का था. वह काम बीच में छोड़कर चला गया. ग्रामीण पानी के लिए कई बार आंदोलन करने के अलावा कलक्टर को ज्ञापन भी दे चुके हैं.’’
नागौर जिले में झुझुंडा गांव के हर घर से दो साल पहले 2,700 रुपए लिए गए, मगर पानी अब तक नहीं पहुंच पाया. पूर्व सरपंच शिवदान कहते हैं, ''पीएचईडी ने बिना तकनीकी जांच किए 15 किलोमीटर दूर खेड़ा अकबरपुर गांव से झुझंडा तक पाइपलाइन डालकर पानी लाने की कवायद की लेकिन इस लाइन को किसानों ने जगह-जगह तोड़कर खेतों में सिंचाई शुरू कर दी, जिसके झुझुंडा तक पानी की बूंद भी नहीं पहुंच पाई.’’ पाली जिले का लांबिया गांव भी इसी श्रेणी में शुमार है जहां नल कनेक्शन के 2,500-3,000 रुपए लेने के बाद भी 100 से ज्यादा घरों में पानी नहीं आया.

बाड़मेर जिले में पाकिस्तानी सरहद से सटे भलगांव, तारीसरा और दूसरे कई गांवों में अब तक जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइन भी नहीं पहुंची है. पानी के अभाव के चलते इलाके के कई लोग यहां से पलायन कर गए. इलाके की सरपंच चंपा देवी कहती हैं, ''सरकार जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जीका) के सहयोग से अब नए सिरे से नर्मदा का पानी लाए जाने की तैयारी कर रही है, मगर पानी कब आएगा, कोई नहीं बता पा रहा.’’
राजस्थान में बाड़मेर और चित्तौड़गढ़ जल जीवन मिशन के तहत सबसे पिछड़े जिले हैं. बाड़मेर जिले के 2,73,250 घरों में से अब तक 51,196 घरों में ही नल कनेक्शन हुए हैं. इनमें से पानी तो आधे घरों में भी नहीं पहुंच पाया है. इसी तरह चित्तौड़गढ़ जिले के 2,93,992 घरों में से अब तक 84,312 घरों में ही नल कनेक्शन हुए हैं. बाड़मेर, चित्तौडगढ़ के अलावा डूंगरपुर, उदयपुर और बांसवाड़ा जिलों की स्थिति भी बहुत चिंताजनक है.
जल जीवन मिशन में राजस्थान आखिर इतना क्यों पिछड़ गया? जवाब में बस सियासी आरोप-प्रत्यारोप सामने आते हैं. पूर्व केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत सीधे कह देते हैं, ''पिछली सरकार (राज्य की अशोक गहलोत सरकार) ने राजनैतिक द्वेष के चलते जल जीवन मिशन योजना के प्रति उदासीनता बरती जिसके कारण राजस्थान पिछड़ गया. हमने राजस्थान को मिशन के तहत 27,000 करोड़ रु. दिए. इसमें राज्य भी अपने हिस्से की इतनी ही रकम डालता तो 54,000 करोड़ रु. में राजस्थान की काया पलट सकती थी, लेकिन पिछली सरकार ने 2019-2023 तक 8,000 करोड़ रु. खर्चे.’’
वैसे, मिशन के आंकड़े शेखावत के दावों पर सवाल खड़ा करते हैं. सूबे में दिसंबर 2023 में भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक महज 11,76,000 नए जल कनेक्शन जारी किए गए हैं. प्रदेश में भाजपा की नई सरकार में वित्त मंत्री दीया कुमारी ने अपने दूसरे बजट (2024-25) में 15,000 करोड़ रु. की लागत से 25 लाख घरों में नल पहुंचाने की घोषणा की थी लेकिन मार्च 2024 से फरवरी 2025 तक महज 9.27 लाख नए कनेक्शन जारी हुए.
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कहते हैं, ''पूर्ववर्ती सरकार में जिस तरह से जल जीवन मिशन के कार्यों में अनियमितता और ढिलाई हुई उसके चलते हर घर नल जल पहुंचाने का सपना पूरा नहीं हो पाया. हमारी सरकार अब जल जीवन मिशन के कार्यों की नियमित समीक्षा करेगी. सभी जिला कलेक्टरों को इस परियोजना के कार्यों की गुणवत्ता की जांच के लिए थर्ड पार्टी जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं. अनियमितता बरतने वाले ठेकेदारों और अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.’’
वैसे मिशन के तहत प्रदेश में श्रीगंगानगर, डीडवाना-कुचामन और हनुमानगढ़ जिलों में उम्दा काम हुआ है. यहां लक्ष्य के मुकाबले 80 फीसद से ऊपर नल कनेक्शन मिल चुके हैं.
पांच साल में बस 43 फीसद कनेक्शन!
15 अगस्त, 2019 को जब जल जीवन मिशन योजना शुरू हुई तब राजस्थान में 11 फीसद लोगों के घरों में नल कनेक्शन थे. तब उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में 2 फीसद भी नल कनेक्शन नहीं थे. पांच साल में यानी 9 जुलाई, 2024 तक राजस्थान में 54 फीसदी घरों में कनेक्शन हुए जबकि उत्तर प्रदेश में 85 और बिहार में 96 फीसद घरों में कनेक्शन दिए जा चुके हैं. पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश समेत 11 राज्यों में 100 फीसद घरों में कनेक्शन लग चुके हैं. जल जीवन मिशन में सबसे फिसड्डी राज्यों में राजस्थान का देश में 31वां नंबर है.
इस मिशन के तहत राज्य को 2019-2024 तक केंद्र और राज्य के हिस्से से कुल 26,454 करोड़ रु. मिले हैं जिसमें से उसने 24,397 करोड़ रुपए खर्च किए. इस योजना के तहत केंद्र सरकार ने पिछले पांच साल में राजस्थान के लिए 93,427 करोड़ रुपए की योजनाएं मंजूर कीं मगर समय पर काम न कर पाने के कारण उसे 2024 के अंत तक 26,454 करोड़ रुपए ही मिले. भजनलाल शर्मा सरकार की मांग पर केंद्र ने इस मिशन की अवधि 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दी लेकिन इस अवधि में पांच फीसद काम भी पूरा नहीं हो पाया. अब नए विस्तार में इसे 2028 तक पूरा करने का लक्ष्य मिला है.
जल जीवन मिशन में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 45-45 फीसद है. 10 फीसद स्थानीय जनों से लिए जाते हैं. राजस्थान में नल कलेक्शन के लिए प्रति परिवार 1,500-3,000 रु. लिए गए हैं.
खूब बही भ्रष्टाचार की गंगा
राजस्थान में इस योजना में हुए भ्रष्टाचार के मामलों की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआइ और ऐंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) कर रहे हैं. यहां इस योजना में कथित घोटाले की जानकारी एसीबी की एक प्राथमिकी के बाद सामने आई थी. एसीबी ने जांच के बाद 5 नवंबर, 2024 को मिशन में 979 करोड़ रुपए का घोटाला मानते हुए अशोक गहलोत सरकार में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी (पीएचईडी) मंत्री रहे महेश जोशी समेत 22 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया.
प्राथमिकी में दो अलग-अलग ट्यूबवेल कंपनियों के मालिक क्रमश: पदमचंद जैन और महेश मित्तल समेत कई अन्य पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर टेंडर लेने और सरकारी अफसरों को रिश्वत देकर गड़बड़ियां करने के आरोप हैं.
पता चला कि टेंडर हासिल करने को इन कंपनियों ने भारत सरकार की कंपनी इरकॉन इंटरनेशल लिमिटेड के फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र भी तैयार किए थे, जिनके आधार पर इन कंपनियों को 900 करोड़ रु. के टेंडर मिले और उनका भुगतान भी आ गया. इरकॉन ने राज्य सरकार को लिखा कि बताई गई ट्यूबवेल कंपनियों ने उसके साथ कभी काम नहीं किया. राज्य के कृषि मंत्री रहे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा का आरोप था कि मिशन में 20,000 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है.
ईडी ने अनियमितताओं को लेकर अब तक पदमचंद जैन, उनके बेटे पीयूष जैन और महेश मित्तल को गिरफ्तार किया है. महेश जोशी समेत कई लोगों के ठिकानों पर छापे मारकर अब तक 11 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्तिन जब्त की चुकी है. मिशन में भ्रष्टाचार करने वाले 50 से ज्यादा अधिकारी निलंबित हो चुके हैं.
कमजोर पाइप बने मुसीबत
राजस्थान में जल जीवन मिशन के तहत कई जिलों में घटिया पाइप लगाए जाने की भी शिकायतें मिली हैं. कहीं कम गहरे ट्यूबवेल खोदे गए तो कहीं सीमेंट के पाइप डाल दिए गए. कई जगह पहले से लगे कनेक्शन को हर घर नल कनेक्शन बता दिया गया. मिशन के तहत नियमानुसार हाइ डेंसिटी पॉली एथिलिन (एचडीपीई) पाइप आइएस कोड 4984-2016 के अनुरूप होने चाहिए.
ये 50 साल तक काम में आ सकते हैं. लेकिन कई जगहों पर इनकी जगह लगाए गए घटिया पाइप पानी का दबाव नहीं सह पा रहे. अलवर में इंजीनियरों और ठेका फर्मों की ओर से 2,500 करोड़ रु. के घटिया पाइप बिछाकर भारी घोटाले की शिकायतें मिली हैं. पूर्व सांसद और तिजारा से विधायक महंत बालकनाथ ने केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री को पत्र लिखकर मिशन में बिछाए गए पाइप की गुणवत्ता की जांच कराने की मांग की थी. उनका आरोप था कि अलवर में बिछाए जा रहे 70 फीसद पाइप नीले ड्रम या कचरे की थैली के दानों से निर्मित हैं.
राजस्थान में 150 कंपनियां इसमें पाइप की सप्लाइ कर रही हैं. मिशन की गाइडलाइन के अनुसार, परियोजनाओं के काम की थर्ड पार्टी जांच जरूरी है लेकिन राजस्थान में किसी भी परियोजना की जांच नहीं हुई और फर्मों को हजारों करोड़ रु. का भुगतान कर दिया गया. ठेकेदार, इंजीनियर और पाइप निर्माता फर्मों ने मिलकर करीब 4,000 करोड़ रु. के घटिया पाइप सप्लाइ किए. अलवर के मूंडिया, नांगल सतोकड़ा समेत बीसेक गांवों में ये पाइप जमीन में दबा भी दिए गए. जिले में छह पाइप निर्माता फर्मों को ब्लैक लिस्ट किया जा चुका है.
दौसा जिले के पीपलखेड़ा गांव में पिछले दिनों राजस्थान के जलदाय मंत्री कन्हैया लाल की मौजूदगी में मिशन के तहत डाली गई पाइपलाइन की क्वालिटी जांच की गई तो पाइप घटिया क्वालिटी के मिले. मंत्री ने तुरंत पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया. जयपुर जिले की फागी तहसील के मंडोर गांव में ठेकेदार ने मिशन की पाइपलाइन अपने खेत तक बिछा दी.
मंडोर में दस दिन में एक बार पानी की सप्लाइ होती है जबकि ठेकेदार के खेत में मिशन के पानी से खेती हो रही थी. नीम का थाना जिले के टटेरा गांव में नई पाइपलाइन बिछाने की जगह पुरानी और टूटी पाइपलाइन से ही कनेक्शन दे दिए गए. 10 साल पहले डाला गया पाइप हर 30-40 फुट पर टूटा है जिसके चलते रोज हजारों लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है.
मिशन वरदान पर बनता अभिशाप
बाड़मेर, जैसलमेर जैसे इलाकों के लिए जल जीवन मिशन योजना वरदान साबित हो सकती है. जैसलमेर जिले की पदमपुरा ग्राम पंचायत के मोतीपुरा गांव को ही लीजिए. यहां अब तक पाइपलाइन नहीं पहुंची है. गांव के मल्लाराम और सत्ताराम 60 पार कर चुके हैं लेकिन दोनों के कंधों पर पानी का भार कम नहीं हुआ. वे एक लकड़ी के दोनों सिरों पर पानी के दो मटके बांधकर कई किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं.
सत्ताराम कहते हैं, ''बेरियों का खारा पानी पीकर हमारे दांत खराब हो चुके हैं, हड्डियां दर्द करती हैं, लेकिन सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. नेता हमारे पास सिर्फ वोट मांगने आते हैं और फिर कभी शक्ल भी नहीं दिखाते. हमें खाने के लिए अनाज तो मिल जाता है लेकिन पानी नहीं मिलता.’’ गांव के साधनसंपन्न लोग तो 1,500 रु. खर्च कर 25 किलोमीटर दूर फलसुंड कस्बे से टैंकर मंगवा लेते हैं लेकिन गरीब लोग क्या करें?
जैसलमेर जिले के प्रभुपुरा गांव के लोगों ने अपनी उपजाऊ जमीन को ही पानी सहेजने का माध्यम बना लिया है. गांव के सरंपच मीरां चौधरी ने अपनी पुश्तैनी पांच बीघा जमीन पर 40,000-50,000 लीटर क्षमता के आठ बड़े टांके खुदवाकर बारिश का पानी सहेजने का इंतजाम किया है. सरपंच के भाई भोमाराम कहते हैं, ''सरकार से हमें ज्यादा उम्मीद नहीं. 20 साल पहले भी गांव में पाइपलाइन आई थी जिसमें आज तक पानी नहीं आया. जल जीवन मिशन से भी हमें ज्यादा उम्मीद नहीं.’’
70 वर्षीया रामू देवी कहीं गहरा तंज करती हैं: ''सरकार हमारे मवेशियों के लिए तो 30 दिन में एक बार पानी का प्रबंध कर पाती है. वह हमारे लिए रोज पानी की व्यवस्था क्या खाक करेगी. मैं 55 साल पहले ब्याहकर आई थी, तब से दिन-रात मटके ढोना ही मेरा मुख्य काम है. हमारी पांच पीढ़ियों ने कभी घर में नल से पानी नहीं देखा.’’
जल जीवन मिशन के तहत इस साल के अंत तक देश के हर घर में नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य है. मिशन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके लागू होने के बाद देश में शिशु मृत्यु दर में 1.36 लाख की कमी आई. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, राजस्थान में 1,000 बच्चों के जन्म पर 30 बच्चों की मौत हो जाती है जिसका एक कारण दूषित पेजयल भी है.
जल जीवन मिशन शुरू होने के बाद देश में डायरिया से होने वाली मौतों की संख्या में भी चार लाख की कमी आई. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में डायरिया से हर साल 3,900 बच्चों की मौत हो जाती है. इन मौतों का सबसे बड़ा कारण दूषित जल का सेवन है.
‘‘पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के दौरान जल जीवन मिशन के काम में अनियमितता से हर घर नल जल का सपना पूरा न हो सका. अब इसकी नियमित समीक्षा होगी. दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.’’
भजन लाल शर्मा, मुख्यमंत्री, राजस्थान
बांसवाड़ा जिले के कुछ गांवों में तो ठेकेदारों और अफसरों ने घरों में सप्लाई दिखाने के लिए लोटे से पानी डालकर चलते हुए नलों की तस्वीरें खींचीं और पानी पहुंचने की खानापूरी कर दी.
सरकारी रिकॉर्ड का क्या! बाड़मेर का रामसर गांव कागजों में सौ फीसद नल कनेक्शन वाला लेकिन वहीं की जडेजों की बस्ती वाले एक किमी दूर से पानी ला रहे.