
लखनऊ में गोमतीनगर के विभूति खंड इलाके में मौजूद पिकप भवन को उद्योग भवन के रूप में तब्दील किया जा रहा है. अब औद्योगिक गतिविधियों से जुड़ाव रखने वाले इधर-उधर छितरे सरकारी विभाग एक ही भवन में दिखेंगे. इसी क्रम में 'इन्वेस्ट यूपी' का दफ्तर तीन साल पहले ही पिकप भवन में पहुंच चुका है.
यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जून 2020 में 'इन्वेस्ट यूपी' का गठन किया था, जिसे पहले 'उद्योग बंधु' के नाम से जाना जाता था. पर राज्य में निवेश को बढ़ावा देने और सुविधा मुहैया करने के लिए बनी संस्था 'इन्वेस्ट यूपी' एक निवेशक के उत्पीड़न की वजह बन गई.
मामले ने उस वक्त सुर्खियां बटोरीं जब उत्तर प्रदेश सरकार ने 20 मार्च को राज्य औद्योगिक विकास विभाग के सचिव और 'इन्वेस्ट यूपी' के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अभिषेक प्रकाश को निवेश के एक बड़े प्रोजेक्ट को मंजूरी देने के लिए एक व्यवसायी से रिश्वत मांगने के आरोप में निलंबित कर दिया.
मामला कुछ इस तरह सामने आया:
एसएईएल सोलर पी6 प्राइवेट लि. के प्रतिनिधि विश्वजीत दत्ता ने यूपी के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से 'इन्वेस्ट यूपी' में भ्रष्टाचार की शिकायत की थी. दत्ता ने आरोप लगाया था कि उन्होंने यूपी में 7,000 करोड़ रुपए के निवेश से सौर ऊर्जा के कलपुर्जे बनाने का संयंत्र लगाने के लिए 'इन्वेस्ट यूपी' को ऑनलाइन आवेदन किया था.
मूल्यांकन समिति की बैठक में उनके आवेदन को मंजूर कर लिया गया. लेकिन 'इन्वेस्ट यूपी' के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें निकांत जैन का मोबाइल नंबर देते हुए उससे बात करने को कहा. निकांत से संपर्क करने पर उसने पांच प्रतिशत कमिशन मांगा. दत्ता ने आरोप लगाया कि उनके प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने के बाद भी पत्रावली पर टालमटोल किया जाता रहा.
उधर निकांत कमिशन के लिए दत्ता पर दबाव बना रहा था. उसने कमिशन के बिना आवेदन मंजूर न होने और कमिशन दे देने पर एम्पावर्ड कमेटी और कैबिनेट से तुरत-फुरत स्वीकृति दिला देने की बात कही. हर तरफ से मायूस होने के बाद कंपनी के अधिकारी मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से मिलने में कामयाब हो गए. सिंह ने पूरे मामले की गुपचुप जांच कराई.
उसमें पता चला कि मूल्यांकन समिति की बैठक 12 मार्च को हुई थी जिसमें एसएईएल प्राइवेट लिमिटेड के आवेदन पर भी विचार किया गया. लेकिन यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (यीडा) और यूपी पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) को दस्तावेज उपलब्ध कराने और पुनर्मूल्यांकन का पेच फंसाकर अंतिम कार्यवृत्त जारी कर दिया गया. गोपनीय जांच में अभिषेक और बिचौलिए निकांत की मिलीभगत सामने आ गई.

मुख्य सचिव ने मुख्यमंत्री को इस मामले की जानकारी दी तो उन्होंने तुरंत अभिषेक को निलंबित कर पूरे मामले की गहन जांच के लिए मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया. इसके बाद पुलिस ने लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज कर 40 वर्षीय निकांत को गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन 20 मार्च को 2006 बैच के आईएएस अफसर अभिषेक प्रकाश को निलंबित कर दिया गया.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गांव, बिहार में सीवान जिले के जीरादेई के रहने वाले अभिषेक यूपी में बरेली, अलीगढ़, लखीमपुर खीरी, हमीरपुर और लखनऊ के जिलाधिकारी रह चुके हैं. 7 जून, 2022 को उनकी तैनाती औद्योगिक विकास विभाग के सचिव और 'इन्वेस्ट यूपी' के सीईओ पद पर की गई थी.
अभिषेक के रहते 'इन्वेस्ट यूपी' में फैले भ्रष्टाचार की तह में जाने के मुख्यमंत्री के निर्देश पर निवर्तमान सीईओ की संपत्ति की विजिलेंस जांच भी होगी. योगी सरकार के आठ साल के कार्यकाल में अभिषेक पहले ऐसे सचिव स्तर के अधिकारी हैं जो विजिलेंस जांच के दायरे में आए हैं.
एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ''इस बात की भी पड़ताल की जा रही है कि पुनर्मूल्यांकन के निर्णय में किन-किन अधिकारियों की भूमिका थी और पांच प्रतिशत कमिशन की रकम में किन-किन अधिकारियों, दलालों तथा अन्य की हिस्सेदारी होनी थी.'' मामले की तह तक पहुंचने के लिए अभिषेक के कुछ करीबियों की भूमिका की भी जांच शुरू की गई है. साथ ही उस अधिकारी पर भी जांच दल का शिकंजा कस रहा है जिसने दत्ता को निकांत का नंबर दिया था.
दत्ता की कंपनी को गौतमबुद्ध नगर की यमुना अथॉरिटी के सेक्टर-8 में 200 एकड़ जमीन आवंटित करने की सिफारिश की गई थी. घूसखोरी के इस प्रकरण की तपिश नोएडा की तीनों अथॉरिटी भी महसूस कर रही हैं. कमिशन मांगने के आरोप में गिरफ्तार निकांत को रिमांड पर लेकर पुलिस उसके संपर्क में रहने वाले कई अन्य अधिकारियों के गठजोड़ की पड़ताल करेगी. इस मामले की जांच की आंच का नोएडा अथॉरिटी, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के साथ यमुना अथॉरिटी के अफसरों तक भी पहुंचना तय है.
फरवरी 2023 में लखनऊ में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 35 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के निवेश समझौते (एमओयू) करके यूपी ने सुर्खियां बटोरी थीं. इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी गौतमबुद्ध नगर की थी. 1,377 निवेशकों ने गौतमबुद्ध नगर को अपनी पहली पसंद बताया था और 7.85 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव लेकर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में शामिल हुए थे. दो साल बीतने के बाद अब 70 फीसद यानी 939 निवेशकों ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.
1,377 निवेशकों में से केवल 438 ने ही एमओयू किया है. यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं, '''इन्वेस्ट यूपी' में भ्रष्टाचार का मामला सामने आने से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के बीच यूपी की छवि को नुक्सान पहुंचा है. प्रदेश सरकार को यूपी के सभी लंबित और खारिज हो चुके निवेशों की दोबारा समीक्षा कर यह पता लगाना चाहिए कि कहीं किसी अन्य निवेशक के साथ भी कमिशनबाजी का खेल तो नहीं हुआ है.''
इन्वेस्ट यूपी के पूर्व सीईओ अभिषेक के वसूली रैकेट ने शासन-प्रशासन में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया है. इससे पहले अभिषेक का नाम लखनऊ के जिलाधिकारी रहते हुए डिफेंस कॉरिडोर भूमि अधिग्रहण घोटाले में आया था. डिफेंस कॉरिडोर के लिए लखनऊ की सरोजिनीनगर तहसील में भटगांव ग्राम पंचायत का चयन किया गया था.
सरोजनीनगर निवासी किसान नेता मनोज पासवान बताते हैं, ''ब्रह्मत्तोस मिसाइल के अलावा रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कई कंपनियां अपने लिए भूमि तलाश रही थीं. अचानक जमीन की कीमत बढ़ गई और सरोजनीनगर का यह इलाका भू माफियाओं की सक्रियता का केंद्र बन गया. अफसरों की मदद से भूमाफियाओं ने, डिफेंस कॉरिडोर के लिए जिस जगह जमीन का अधिग्रहण होना था, वहां किसानों से सस्ती दर पर जमीनें खरीद लीं. इसके बाद भूमि अधिग्रहण की प्रकिया में भी दस्तावेजों में हेरफेर कर आवंटियों के नाम जोड़े गए.''
धांधली की जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय को होने पर राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष रजनीश दुबे को जांच सौंपी गई थी. 83 पन्नों की जांच रिपोर्ट में दुबे ने क्रय समिति के अध्यक्ष तत्कालीन जिलाधिकारी और सदस्य सचिव तत्कालीन तहसीलदार सरोजिनीनगर को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है. रिपोर्ट के मुताबिक, जमीन की खरीद-फरोख्त में नियमों की अनदेखी की गई. पट्टे की असंक्रमणीय श्रेणी की भूमि को नियमानुसार बेचा नहीं जा सकता था, इसलिए उसे पहले संक्रमणीय कराया गया और फिर बेचा गया.
जांच रिपोर्ट के अनुसार, भटगांव की करीब 35 हेक्टेयर जमीन के लिए 45.18 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए थे जिसमें करीब 20 करोड़ रुपए की गड़बड़ी पाई गई. दुबे ने अगस्त 2024 में सेवानिवृत्ति से पहले यह रिपोर्ट सौंपी थी. सात महीने बाद भी इस रिपोर्ट पर कार्रवाई न होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं. इसके अलावा अभिषेक बरेली में बतौर जिलाधिकारी तैनाती के दौरान भी चर्चा में रहे थे.
क्या अभिषेक के विरुद्ध जांच किसी अंजाम पर पहुंच पाएगी? इसे लेकर भी कई कयास लगाए जा रहे हैं. मार्च, 2017 में सत्ता में आने वाली आदित्यनाथ सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत आठ वर्षों में अब तक कुल 11 आईएएस अफसर निलंबित किए जा चुके हैं. हालांकि इनमें से कई अफसर जांच के बाद बहाल भी हो चुके हैं.
भ्रष्टाचार के आरोप पर अधिकारियों का निलंबन और फिर उन्हें प्राइम पदों पर तैनात करने को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. कानपुर विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर ज्ञानेंद्र कुमार बताते हैं, ''अगर सरकार ने किसी अधिकारी को एक रिपोर्ट के आधार पर निलंबित किया है और बाद में दूसरी रिपोर्ट के आधार पर निलंबन समाप्त कर बेहतर पोस्टिंग दे दी है तो इससे दो बातें सामने आती हैं: या तो पहली रिपोर्ट गड़बड़ थी जिसके आधार पर अधिकारी का निलंबन हुआ या दूसरी रिपोर्ट सही नहीं है जिसके आधार पर अधिकारी बहाल हुआ.''
अधिकारी को निलंबित करने के बाद उसे और अच्छी पोस्टिंग देने पर जनता के बीच गलत संदेश जाने की बात भी लोक प्रशासन के जानकार कह रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर संजीव गुप्ता बताते हैं, ''निलंबन के कुछ समय बाद अधिकारियों को अच्छी पोस्टिंग मिल जाने से इन पर सरकार का खौफ खत्म होने लगता है. इससे ईमानदार अधिकारियों में नकारात्मकता का भाव पैदा होता है, जिसका असर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर पड़ता है.''
अभिषेक प्रकाश के वसूली प्रकरण के डैमेज कंट्रोल के लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का जिम्मा संभाल रहे आइएएस प्रथमेश कुमार को 'इन्वेस्ट यूपी' के सीईओ का भी दायित्व सौंप दिया है. निवेश का पसंदीदा गंतव्य बनकर उभर रहे उत्तर प्रदेश को 'इन्वेस्ट यूपी' से भ्रष्टाचार के दाग मिटाने की कठिन चुनौती से निबटना है.
आईएएस अफसरों पर योगी सरकार का चाबुक
> कुमार प्रशांत (2010 बैच): फतेहपुर में जिलाधिकारी रहने के दौरान गेहूं खरीद केंद्रों में भारी अनियमितता और मनमानी के आरोप में 7 जून, 2018 को निलंबित हुए.
> जितेंद्र बहादुर सिंह (2005 बैच): गोंडा में जिलाधिकारी रहने के दौरान नवाबगंज में अवैध खाद्य गोदाम पकड़े जाने और सरकारी राशन की कालाबाजारी के आरोप में 7 जून, 2018 को निलंबित हुए.
> अमरनाथ उपाध्याय ( 2011 बैच: महाराजगंज में डीएम रहने के दौरान निचलौल तहसील के मधवलिया गोसदन में गड़बड़ी के आरोप में 14 अक्तूबर, 2019 को निलंबित किए गए.
> देवेंद्र पांडेय (2011 बैच): उन्नाव में डीएम के रूप में तैनाती के दौरान 9.73 करोड़ रुपए की कंपोजिट स्कूल ग्रांट के इस्तेमाल में अनियमितता बरतने के आरोप में 22 फरवरी, 2020 को निलंबित हुए.
> टी.के. शिबू (2012 बैच): सोनभद्र में जिलाधिकारी के रूप में तैनाती के दौरान खनन, जिला खनिज न्यास समिति और अन्य निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप में 31 मार्च, 2022 को निलंबित हुए.
> सुनील कुमार वर्मा (2013 बैच): औरैया में डीएम के रूप में तैनात रहने के दौरान जिला पंचायत में वित्तीय अनियमितता, खनन माफिया से सांठगांठ के आरोप में 4 अप्रैल, 2022 को निलंबित.
> देवीशरण उपाध्याय (2012 बैच): सदस्य न्यायिक, राजस्व परिषद में तैनाती के दौरान अलीगढ़ में 35 भूखंडों के पट्टे मनमाने ढंग से बहाल करने के आरोप में 16 जुलाई, 2024 को निलंबित हुए थे.
(नोट: ये सभी अधिकारी बाद में बहाल हो गए)

जित देखो, तित गड़बड़ी
> वित्तीय अनियमितता: अपर जिलाधिकारी स्तर के पीसीएस अधिकारी गणेश प्रसाद सिंह जौनपुर में मुख्य राजस्व अधिकारी के तौर पर तैनाती के दौरान वित्तीय अनियमितता करने के आरोप में निलंबित हुए थे. उन पर कुशीनगर ग्राम समाज की जमीनों का नियम विपरीत पट्टा देने का आरोप सही पाए जाने पर मुख्यमंत्री योगी ने 13 फरवरी को उन्हें बर्खास्त कर दिया.
> भूमि अधिग्रहण घोटाला: बरेली-पीलीभीत-सितारगंज हाइवे और बरेली रिंग रोड निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़े करीब 200 करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप में पीसीएस अधिकारी आशीष कुमार और मदन कुमार को 13 फरवरी को निलंबित कर दिया गया. इससे पहले लोक निर्माण विभाग के दो अवर अभियंता और 15 अन्य आरोपियों को भी निलंबित किया जा चुका है.
> रिपोर्ट के लिए रिश्वत: मथुरा के फरह निवासी प्रताप सिंह राणा ने सतर्कता (विजिलेंस) अधिष्ठान में शिकायत की थी कि उनकी ओर से अपनी ग्राम सभा में बनाई गई अस्थाई गोशाला की जांच जिलाधिकारी के आदेश पर हो रही थी. राणा के पक्ष में रिपोर्ट लगाने के एवज में 70,000 रुपए रिश्वत लेते हुए जिला पंचायत राज अधिकारी किरण चौधरी को विजिलेंस टीम ने 4 फरवरी को गिरफ्तार किया.
> ई-वे बिल में घपला: 23-24 दिसंबर को कानपुर में पंजीकृत शिखर पान मसाला की फैक्ट्री से बिना ई-वे बिल के निकले चार ट्रक लखनऊ में पकड़े गए थे. जांच में टैक्स चोरी के माल की पुष्टि हुई थी. इस पर 9 जनवरी को एसजीएसटी कार्यालय के दो सहायक आयुक्त रत्नेश सिंह और सोमांक चौहान को निलंबित कर दिया गया. चार राज्य कर अधिकारी पहले ही निलंबित हो चुके हैं.
> सड़क निर्माण घोटाला: मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर 28 नवंबर, 2024 को हरदोई में पलिया-लखनऊ राष्ट्रीय मार्ग से लगी सड़कें, हरदोई-सांडी मार्ग समेत कई अन्य सड़कों के निर्माण में किए गए घोटाले में लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता सुभाष चंद्र, अधिशासी अभियंता सुमंत कुमार तथा शरद कुमार मिश्र समेत कुल 16 अभियंताओं को निलंबित कर दिया गया.
> भूमि पैमाइश में धांधली: योगी सरकार ने लखीमपुर खीरी में एक खेत की पैमाइश को छह साल से लटकाए रखने पर आइएएस अधिकारी और तत्कालीन अपर आयुक्त लखनऊ मंडल घनश्याम सिंह को 13 नवंबर, 2024 को निलंबित कर दिया. उनके साथ तीन अन्य पीसीएस अफसर भी निलंबित हुए. घनश्याम समेत कई अधिकारी बाद में बहाल हो गए.