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क्या है 'सेपक टकरा' खेल, जिसके 'वर्ल्ड कप' टूर्नामेंट का आयोजन कर बिहार ने रचा इतिहास?

भारत ने 1982 के एशियाई खेलों से ही सेपक टकरा पर फोकस करना शुरू कर दिया था. 1984 से ही इसकी नेशनल चैंपियनशिप शुरू हो गई थी और इसमें अब भारत अच्छी पोजिशन में है

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अपडेटेड 23 अप्रैल , 2025

बिहार की राजधानी पटना के पाटलिपुत्र इंडोर स्टेडियम में रंग-बिरंगी रोशनी के बीच हाल ही एक अनूठे खेल का वर्ल्ड कप खेला गया. 2011 में इस खेल के वर्ल्ड कप के आयोजन की शुरुआत हुई थी. अब तक इसके चार वर्ल्ड कप हुए हैं, दो मलेशिया के क्वालालांपुर में, एक दक्षिण कोरिया के देइजिओन में और एक भारत के हैदराबाद में. यह पांचवां वर्ल्ड कप था, जिसके आयोजन का मौका बिहार को मिला और इसमें भारत ने एक स्वर्ण भी जीता. खेल का नाम है, 'सेपक टकरा'.

सेपक टकरा की भारतीय पुरुष टीम के कोच बी.ए. शर्मा कहते हैं, ''यह इतना नया खेल है कि लोग इसका नाम भी ठीक से नहीं बोल पाते. टीवी पर सुना है, लोग इसे लेग वॉलीबॉल कहते हैं. यह वॉलीबॉल जैसा है, मगर पूरी तरह वैसा नहीं है. इसमें बॉल को हाथ नहीं लगा सकते, बाकी कोई भी चीज इस्तेमाल कर सकते हैं. पैर से तो खेलते ही हैं, सिर से, पीठ से भी बॉल को हिट करते हैं."

मेन्स इंडियन टीम में शामिल बिहार के खिलाड़ी बॉबी कहते हैं, ''एक तरह से यह फुटबॉल और वॉलीबॉल का मिला-जुला गेम है. बस फॉर्मेट और कोर्ट वॉलीबॉल जैसा है.''

इस वर्ल्ड कप में 20 देशों ने हिस्सेदारी की. चीन और इंडोनेशिया नहीं आ पाए. इसकी वजह नहीं बताई गई. मगर जो देश आए, उनमें ज्यादातर एशिया के ही थे. मसलन, भारत के अलावा जापान, म्यांमार, थाइलैंड, मलेशिया, ईरान, वियतनाम, श्रीलंका, सिंगापुर और नेपाल. वजह यह है कि इसकी शुरुआत मलेशिया और थाइलैंड जैसे दक्षिण एशियाई देशों में हुई, यह वहां का पारंपरिक खेल है. 1960 में मलेशिया में इसका मानकीकरण किया गया और 1970 से एशियाई खेलों में इसे एक प्रदर्शनी खेल की तरह पेश किया गया.

भारत में इस खेल की शुरुआत 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों से मानी जाती है. उस स्पर्धा में भी इसे प्रदर्शनी गेम की तरह ही रखा गया था, मगर भारतीय खिलाड़ियों ने भी इसे सीख लिया. 1990 में बीजिंग के एशियाई खेलों में इसे मेडल गेम की तरह पेश किया गया. 2011 में इंटरनेशनल सेपक टकरा फेडरेशन ने इसके वर्ल्ड कप की शुरुआत की. हालांकि इसे हर चार साल पर आयोजित होना होता है मगर अब तक अनियमित तरीके से इसका आयोजन होता आया है. 2011 के बाद 2017, 2022 और 2024 में इसके आयोजन हुए.

इस बीच इस खेल के लिए यह अच्छी बात रही कि इसका फैलाव एशिया से बाहर के मुल्कों जैसे अमेरिका, ब्राजील, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, कनाडा आदि देशों में भी हुआ. इनमें से कई देश इस बार के वर्ल्ड कप में भाग लेने आए.

पाटलिपुत्र इंडोर स्टेडियम में इस टूर्नामेंट के लिए दो कोर्ट बने थे. वहां होने वाली स्पर्धाओं को देखते हुए समझ आया कि यह खेल नया जरूर है मगर आसान बिल्कुल नहीं. इस खेल का मुख्य आकर्षण कूदकर पांव से मारी जाने वाली किक है, जो बैडमिंटन और वॉलीबॉल के स्मैश जैसा है. ऐसी किक मारने के लिए जबरदस्त फिटनेस की जरूरत होती है. इसी वजह से इस खेल में ज्यादातर पूर्वोत्तर भारत के खिलाड़ी शामिल हैं.

पटना के दर्शक भारी संख्या में इस खेल प्रतियोगिता को देखने पहुंचे और उन्होंने धीरे-धीरे इस खेल को समझ लिया.

धीरे-धीरे भारत भी इस खेल में अपनी पहचान बना रहा है. अब तक के चार वर्ल्ड कप में एक स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य जीत चुके भारत ने पटना वाले वर्ल्ड कप में एक स्वर्ण, एक रजत और पांच कांस्य पदक जीते.

भारतीय महिला टीम ने डबल्स में रजत और क्वाड में कांस्य जीता. टीम के कोच महावीर और बिदुमुखी इस प्रदर्शन से काफी खुश नजर आ रहे थे. बिदुमुखी कहती हैं, ''हम लोग मेडल जीतेंगे, यह होप तो थी ही मगर अब हम गोल्ड जीतना चाहते हैं.''

महावीर कहते हैं, ''1982 के एशियाई खेलों से ही भारत ने सेपक टकरा पर फोकस करना शुरू कर दिया था, इसलिए अब हमारी पोजिशन अच्छी है. 1984 से ही इसकी नेशनल चैंपियनशिप शुरू हो गई थी. हम लोग हमेशा वर्ल्ड रैंकिंग में रहते हैं.''

इस गेम में चार तरह की इवेंट होती हैं. पहली जो सबसे ज्यादा चर्चित है वह है रेगु, जिसमें दोनों टीमों के तीन-तीन खिलाड़ी भाग लेते हैं. इसके बाद क्वाड, जिसमें चार-चार खिलाड़ी होते हैं, फिर डबल जिसमें दो-दो खिलाड़ी शामिल होते हैं, फिर मिक्स क्वाड जिसमें दो पुरुष और दो महिलाएं शामिल होती हैं. मिक्स क्वाड के अलावा बाकी तीन इवेंट में महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग स्पर्धाएं होती हैं.

शर्मा भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सेपक टकरा में भारत का प्रदर्शन लगातार बेहतर हो रहा है. वे कहते हैं, ''एशियाई खेलों में हमें दो बार कांस्य मिला है. 2018 में लड़कों ने पदक दिलाया, बाद में लड़कियां भी लेकर आईं. इस बार हमारा प्रदर्शन इसलिए भी काफी अच्छा रहा क्योंकि भारत सरकार ने हमारी टीम की थाइलैंड में एक महीने की ट्रेनिंग कराई.''

वैसे तो सेपक टकरा की भारतीय टीम में ज्यादातर खिलाड़ी पूर्वोत्तर राज्यों के हैं मगर पुरुषों की टीम में बिहार के भी एक खिलाड़ी हैं, बॉबी. शर्मा कहते हैं, ''बॉबी अच्छा प्लेयर है, हमारे लिए भविष्य की उम्मीद है. वह क्वाड में था, जिसमें हमने कांस्य जीता और अब वह रेगु भी खेलेगा.''

अपने अपने दांव भारत और म्यांमार के मैच का एक दृश्य

बॉबी छपरा के निवासी हैं. इंडिया टुडे से बातचीत में वे कहते हैं, ''मैं पहले क्रिकेट खेलता था. 2015 में अपने मोहल्ले कंकड़बाग के एक पार्क में मैंने यह खेल देखा. 2016 में मैंने इसे सीखना शुरू कर दिया. 2018 से सरकार मुझे इस खेल में आगे बढ़ाने लगी. अब मैं इंडियन टीम में हूं.''

बॉबी के अलावा बिहार के ऋतिक, जयवीर और आशुतोष भी अच्छा खेलते हैं. मगर अभी इनका सेलेक्शन भारतीय टीम में नहीं हो पाया है.

शर्मा कहते हैं, ''पहले सेपक टकरा में बिहार से खिलाड़ी नहीं आते थे. मगर पिछले कुछ साल से बिहार का फोकस इस खेल में बढ़ा है. यहां के खिलाड़ी जूनियर और सब जूनियर में मेडल लेकर आ रहे हैं.''

बॉबी पिछले एशियाई खेलों के कैंप में थे, वे तीन बार थाइलैंड और दो बार मलेशिया जा चुके हैं. वे कहते हैं, ''बिहार की टीम ने जूनियर नेशनल में गोल्ड मेडल जीता है, हम लोग सीनियर में और सब जूनियर में भी मेडल जीतते रहे हैं.''

बॉबी की सफलता ने बिहार के दूसरे खिलाड़ियों के लिए भी उम्मीद जगाई है. 2018 से सेपक टकरा खेल रहे, बिहार की टीम के लिए राज आर्यन कहते हैं, ''मुझे इंटरनेशनल लेवल तक जाना है.'' संजना भारती 2023 से सेपक टकरा खेल रही हैं. उन्हें उस सब जूनियर टीम का हिस्सा रहने का मौका मिला है, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य मिला है. 12 साल के आयुष ने दो साल पहले सेपक टकरा खेलना शुरू किया है, अभी वे बिहार टीम में हैं.

बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रवींद्रन शंकरण कहते हैं, ''दरअसल, बिहार सरकार की नीति रही है कि हम उन खेलों में आगे बढ़ें जो एशियाई खेलों और कॉमनवेल्थ में खेले जाते हैं. इसलिए हमने 14 खेलों को प्रायोरिटी स्पोर्ट्स की सूची में रखा है. उनमें से एक सेपक टकरा भी है. सेपक टकरा जैसे खेलों पर हम इसलिए भी ज्यादा फोकस कर रहे हैं क्योंकि इसे बहुत सारे राज्य नहीं खेलते. इसमें कंपीटिशन कम है और आगे बढ़ने की संभावना अधिक. कह सकते हैं कि यह हमारी चाणक्य नीति है कि हम मेडल टैली में अपना नंबर बढ़ाने और अपने खिलाड़ियों को इंटरनेशनल लेवल तक भेजने के लिए ऐसे खेलों को बढ़ावा दे रहे हैं.''

वे कहते हैं, ''हमने पटना में सेपक टकरा का वर्ल्ड कप इसलिए कराया ताकि यह खेल और पॉपुलर हो तथा आने वाले एशियाई खेलों में हमारा देश स्वर्ण या रजत पदक प्राप्त करे.''

इस टूर्नामेंट के लिए बिहार सरकार ने काफी पैसे खर्च किए. उन देशों को स्पॅन्सर भी किया है, जहां यह खेल अभी ज्यादा लोकप्रिय नहीं है. महावीर कहते हैं, ''बिहार सरकार ने अच्छा आयोजन किया है. शायद पहली बार इतनी लाइट जलाकर और इतने म्यूजिक के बीच कोई वर्ल्ड कप हुआ है. ऐसा तो प्रो-कबड्डी और आइपीएल जैसे मुकाबले में होता है.''

भारत ने 1982 के एशियाई खेलों से ही सेपक टकरा पर फोकस करना शुरू कर दिया था. इस अब यह अच्छी पोजिशन में है. 1984 से ही इसकी नेशनल चैंपियनशिप शुरू हो गई थी.

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