सिख धर्म की तीन प्रमुख राजनैतिक-धार्मिक संस्थाओं अकाल तख्त, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) में बीते चार महीनों से उथलपुथल मची है. यह सांस्थानिक खलबली ऐसा खतरनाक शून्य पैदा कर सकती है जिससे विशेषज्ञों की राय में पंजाब के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य पर कट्टरपंथी तत्वों के हौसले बढ़ सकते हैं.
अकाल तख्त सिख धर्म में सत्ता की सबसे ऊंची पीठ है. इसके जत्थेदार यानी विधिवत नियुक्त प्रमुख को ईसाई कैथोलिक धर्म में पोप जैसा दर्जा हासिल है. उनकी नियुक्ति एसजीपीसी करती है, जिसके हाथ में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और चंडीगढ़ के तमाम गुरुद्वारों का प्रबंधन है.
इस बीच सिखों की प्रमुख राजनैतिक पार्टी एसएडी ने इन दोनों संस्थाओं पर अच्छा-खासा दबदबा कायम कर लिया. यही तीन संस्थाएं मिलकर दशकों से सिखों की धार्मिक और राजनैतिक जिंदगी का रंग-रूप गढ़ती आ रही हैं.
मुश्किल 2 दिसंबर को शुरू हुई जब अकाल तख्त के प्रमुख ज्ञानी रघबीर सिंह की अगुआई में पांचों तख्तों के जत्थेदारों ने अकाली दल से मांग की कि वह पार्टी अध्यक्ष पद से सुखबीर सिंह बादल का इस्तीफा मंजूर करे, शीर्ष नेतृत्व को बर्खास्त करे और नया सदस्यता अभियान शुरू करे. पंजाब में एसएडी की हुकूमत (2007-17) के दौरान की गई कथित गलतियों के लिए तनखैया घोषित किए जाने के बाद सुखबीर को धार्मिक सजा भुगतनी पड़ी.
फरवरी मध्य में एसजीपीसी ने तख्त दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को बर्खास्त कर दिया. रघबीर सिंह ने फैसले पर एतराज जताया तो एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने इस्तीफा दे दिया. 7 मार्च को एसजीपीसी ने रघबीर सिंह और तख्त केसगढ़ साहिब के जत्थेदार ज्ञानी सुल्तान सिंह को बर्खास्त कर दिया. उसने ''पंथ को राह दिखाने और मौजूदा वक्त के मुद्दों को असरदार ढंग से हल करने में नाकामी'' को उन्हें हटाए जाने की वजह बताया.
इन बर्खास्तगियों से बदले की राजनीति के आरोपों की झड़ी लग गई. बर्खास्त जत्थेदारों ने सुखबीर पर सख्त दंड लगाने में अहम रोल निभाया. कट्टरपंथियों ने अस्थिरता का यह मौका झपट लिया. उन्होंने कहा कि एसजीपीसी की कार्रवाइयों से बादल परिवार के असर की झलक मिलती है. हालात सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी खतरनाक हैं क्योंकि कट्टरपंथी फायदा उठाकर पंजाब में अपने एजेंडे को और हवा दे रहे हैं. 2024 के आम चुनाव में दो खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह संधू (खडूर साहिब) और सरबजीत सिंह खालसा (फरीदकोट) लोकसभा के लिए चुने गए.
जत्थेदारों की नियुक्तियों पर एसजीपीसी के नियंत्रण का विरोध करते हुए निहंग गुटों समेत कट्टरपंथी सिख धड़ों ने विरोध प्रदर्शन किए. उनका कहना है कि अकाल तख्त के अगुआ एसजीपीसी ही नहीं बल्कि दुनिया भर के सिख निकाय चुनें. हालात कितने विस्फोटक हैं, यह जाहिर हो गया जब ज्ञानी कुलदीप सिंह गढ़गज को आनंदपुर साहिब स्थित तख्त केसगढ़ के नए जत्थेदार के पद पर सुशोभित करने का कार्यक्रम हिंसक विरोध के डर से तय समय से पहले 10 मार्च को अलस्सुबह करना पड़ा.
सियासी मोर्चे पर आज शिरोमणि अकाली दल भी विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है. उसके मतदाता कांग्रेस, आप यहां तक कि भाजपा की तरफ खिसक रहे हैं. सीटों की बात करें तो लोकसभा में उसकी एक और विधानसभा में मात्र दो सीटें रह गई हैं. बिक्रम सिंह मजीठिया, शरणजीत सिंह ढिल्लों और लखबीर सिंह लोधीनंगल सरीखे बड़े अकाली नेताओं ने जत्थेदारों की बर्खास्तगी को लेकर चिंता जाहिर की तो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें सार्वजनिक रूप से झिड़क दिया. इससे पता चला कि अकाली दल इस मुद्दे को लेकर बुरी तरह बंट गया है.
पर्यवेक्षकों का मानना है कि तत्काल सुधार नहीं किए जाते हैं तो सिख संस्थाओं की साख इसी तरह छीजती रहेगी. पहले भी इन संस्थाओं में उथलपुथल पैदा हुई लेकिन वे अपना असर कायम रखने में कामयाब रहीं. इस बार अलबत्ता तीनों स्तंभों के कमजोर होने से अपूर्व नाजुक हालात पैदा हो गए हैं.
नतीजतन पैदा खालीपन से सिख राजनीति के और भी डांवाडोल होने का खतरा खड़ा हो गया है. कट्टरपंथी तत्वों को असर बढ़ाने के लिए उपजाऊ जमीन मिल गई है. ऐसे वक्त जब सिख संस्थाएं इस दौर से निकलने की राह खोज रही हैं, ढांचागत सुधारों की मांग तेज हो रही है, जिन्हें कई लोग पंथिक नेतृत्व की स्थिरता और साख बहाल करने का अकेला उपाय मानते हैं.