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तेलंगाना : जमीन से जुड़ी लड़ाइयां रोकने की रेवंत रेड्डी की पहल असर दिखाएगी?

कांग्रेस सरकार ने तेलंगाना के भूमि दस्तावेज प्रबंधन में भू-भारती सुधारों की बदौलत पारदर्शिता और कार्यकुशलता लाने का वादा किया है जिसे करने में पुराना धरणी पोर्टल नाकाम रहा था

मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी नवंबर 2024 में हनमकोंडा में एक जनसभा के दौरान
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी नवंबर 2024 में हनमकोंडा में एक जनसभा के दौरान
अपडेटेड 30 जनवरी , 2025

छप्पन वर्षीय भूताराजू जनगैह को अब जाकर आस बंधी है कि तेलंगाना के रंगा रेड्डी जिले के याचाराम गांव में एक एकड़ पैतृक इनामी जमीन के दसवें हिस्से पर उनके मालिकाना हक को औपचारिक मान्यता मिल जाएगी. तब के जागीरदारों से तोहफे में मिली दो एकड़ जमीन पर उनके पुरखों ने एक सदी से ज्यादा वक्त खेतीबाड़ी की. राजस्व अधिकारियों ने इसके एक हिस्से के लिए कब्जा अधिकार प्रमाणपत्र (ओआरसी) 2020 में भूताराजू को जारी कर दिया.

मगर उसी साल पिछली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की सरकार के वक्त शुरू धरणी पोर्टल ने उन्हें अधर में छोड़ दिया, क्योंकि इसमें ओआरसी से लैस किसी व्यक्ति को पट्टा (पासबुक के साथ जमीन का स्वत्वाधिकार) देने का प्रावधान ही नहीं था. अब तेलंगाना भू भारती (भूमि अधिकारों का अभिलेख) विधेयक 2024 पारित होने से भूताराजू और कब्जे की 12 श्रेणियों में उनके सरीखे हजारों लोगों को वह राहत मिलने जा रही है जिसकी उन्हें बहुत जरूरत थी.

नए कानून को विधानसभा ने 20 दिसंबर को पारित किया और अब इसे राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है. यह राज्य में भूमि अभिलेख प्रबंधन व्यवस्था को आसान और सुचारु बनाने और धरणी पोर्टल का कायापलट करने की कोशिश है. विडंबना यह है कि धरणी पोर्टल ठीक इसी मकसद से लाया गया था. विधेयक में किए गए मुख्य सुधारों में प्रत्येक भूखंड के लिए विशिष्ट पहचान संख्या शुरू करना, यूजर के कार्यकलाप को आसान बनाना, विवादों के समाधान को विकेंद्रित करना, और डेटा सुरक्षा बढ़ाना शामिल है.

पोर्टल के संचालन का काम राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) को सौंपने और अभिलेखों में सर्वेक्षण मानचित्र शामिल करना अनिवार्य करके रेवंत रेड्डी की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने दिखा दिया कि वह 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले किए गए संपूर्ण सुधार के अपने वादे को पूरा करने के लिए किस कदर प्रतिबद्ध है.

धरणी पोर्टल अधिकारों का अभिलेख लोकप्रिय तेलंगाना भूमि अधिकार और पट्टादार पासबुक अधिनियम 2020 के तहत लॉन्च किया गया था. मगर यह राज्य की नौकरशाही के नाकारापन और कथित कदाचरणों का प्रतीक बनकर रह गया. इसकी वजह से भूताराजू सरीखे लाखों जमीन मालिकों को बीते चार साल के दौरान दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं. टाइटल डीड (मालिकाना हक का दस्तावेज) के 9,24,000 से ज्यादा आवेदन लटके हैं, 27.2 लाख एकड़ जमीन निषिद्ध सूची में डाल दी गई है जिसकी वजह से उसके लेनदेन पर रोक है और इसके अलावा 18.3 लाख एकड़ जमीन का लेनदेन अधूरे डिजिटल दस्तखतों की वजह से रुका हुआ है. इतना ही नहीं, भूदान तक की जमीन (भूमिहीन गरीबों को सामुदायिक उद्देश्यों के लिए दान की गई) के फर्जी सौदों और अवैध बिक्री के आरोपों ने खतरे की घटी बजा दी है. 

एक नई पहचान

जिस तरह लोगों के लिए आधार है उसी तरह इन सुधारों में एक भूधार की व्यवस्था है. इसमें हरेक भूखंड को अब 11 अंकों की एक विशिष्ट पहचान संख्या दी जाएगी, जो मिल्कियत के विस्तृत अभिलेख से जुड़ी होगी. शुरुआत में ये अस्थायी संख्या के रूप में जारी होंगे क्योंकि जियो रिफरेंसिंग प्रक्रिया लंबित है. मैदानी सर्वे पूरा होने पर और सटीकता सुनिश्चित करने तथा बाउंड्री से जुड़े विवाद निबटाने के बाद स्थायी भूधार दिए जाएंगे. उम्मीद है कि ये पारदर्शिता बनाए रखने और धोखाधड़ी को कम करने में बहुत अहम भूमिका निभाएंगे. वहीं राजस्व मंत्री पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी के शब्दों में, "माउस के एक क्लिक पर जमीन मालिकों को उनके संपूर्ण अभिलेख सुलभ होंगे."

एक और अहम बदलाव उपयोगकर्ता के क्रियाकलाप को बेहद आसान बनाना है. मॉड्यूल की संख्या धरणी में 33 से घटाकर भूमाता में महज छह कर दी गई है. इससे पोर्टल उपयोगकर्ता और खासकर किसानों के लिए कहीं ज्यादा सुगम और आसान हो गया. वे अब हर वक्त अपने आवेदनों की प्रगति पर नजर रख सकते हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा. धरणी में महज एक कॉलम तक सीमित कर दी गई मैनुअल पाहणी (ग्राम भूमि रजिस्टर) व्यवस्था को भूमाता ने 11 कॉलम के साथ बहाल किया है ताकि हर भूखंड की विस्तृत जानकारी दर्ज हो. इससे लंबे वक्त से चले आ रहे आधे-अधूरे और अस्पष्ट रिकॉर्ड का मसला हल होगा, जिसकी वजह से किसान नौकरशाही के मोहताज हो जाते थे.

भू भारती की एक और अहम खूबी रजिस्ट्रेशन के लिए सर्वे के नक्शे अनिवार्य बनाए जाने की शुरुआत है. पड़ोसी कर्नाटक के नक्शेकदम पर इन नक्शों से भूखंड का दृश्य निरूपण देखा जा सकेगा, जिससे दोहरे रजिस्ट्रेशन की वह समस्या खत्म होगी जिसमें अनैतिक और बेईमान लोग रिकॉर्ड रखने की विसंगतियों का फायदा उठाते हैं. सर्वे मैप को लैंड पासबुक और गांव के मैप में समाहित किया जाएगा जिससे क्रॉस वेरिफिकेशन का व्यापक सिस्टम बनेगा और जमीन का उत्तराधिकार दर्ज करना भी सुलभ हो सकेगा. 

विवाद निबटान का विकेंद्रीकरण

नई व्यवस्था विवादों के समाधान का विकेंद्रीकरण करके किसानों और दूसरे जमीन मालिकों की शिकायतों से निबटना भी आसान बनाती है. धरणी हालांकि जमीन से जुड़ी सारी परेशानियों के हल के तौर पर लाया गया, लेकिन इसमें गलतियों को दुरुस्त करने के लिए कोई निवारण तंत्र नहीं था. इसकी वजह से पीड़ित और परेशान लोग लंबी और पेचीदा प्रक्रिया से गुजरने को मजबूर हुए, जिसका हश्र अंतत: दीवानी अदालतों में हुआ, जहां मामले बदकिस्मती से अधिकांश आवेदकों के लिए बरसों घिसटते रहते थे. भू भारती इसे बदल रही है.

सरकार इसी काम के लिए समर्पित मोबाइल ऐप के जरिए शिकायतें दर्ज करने का अधिकार मंडल राजस्व अधिकारियों (एमआरओ) को देने की योजना बना रही है. शिकायतकर्ता इसी ऐप से याचिका की प्रगति पर नजर रख पाएंगे. अपील के लिए दो पायदान के तंत्र और विशेष भूमि न्यायाधिकरणों की स्थापना से ज्यादा पेचीदा विवादों से निबटने के मजबूत रास्ते भी मिलेंगे.

हैदराबाद स्थित नलसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में सहायक प्रोफेसर एम. सुनील कुमार, जो राज्य कृषि आयोग के सदस्य भी हैं और जिन्होंने नए कानून का मसौदा बनाने में अहम भूमिका अदा की, कहते हैं, "लाखों किसानों को अब अपने लंबित मसलों के जवाब मिलेंगे. शिकायतों के निवारण का अधिकार अब वापस तहसीलदारों, राजस्व मंडल अधिकारियों और जिला कलेक्टरों को दिया गया है, ताकि समाधान पाने के लिए लोगों को दीवानी अदालत जाने की जरूरत न पड़े...पहली बार भारत में किसी भी जमीन का रजिस्ट्रेशन करवाते वक्त ऐसे किसी भी पीड़ित व्यक्ति को 'जो वित्तीय कठिनाइयों के कारण अपील न कर सके' मुफ्त कानूनी सहायता देने का प्रावधान है."

ऐसे समय जब डेटा में सेंध लगाना बहुत आम बात हो गई है, ये सुधार डेटा की शुद्धता और गोपनीयता पर भी जोर देते हैं. विधानसभा में बहस के दौरान रेड्डी ने पिछली व्यवस्था को हेरफेर और भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया. उन्होंने आरोप लगाया कि इन पोर्टल को 'विदेशी संस्थाएं' संभालती थीं और उन्हें जमीन मालिकों की संवेदनशील जानकारी—आधार के ब्योरे, मोबाइल नंबर और बैंक खातों—तक बेरोकटोक पहुंच हासिल थी. इसलिए सरकार जब अभी नए कानून के तौर-तरीकों पर काम कर ही रही थी, तभी उसने धरणी को संभालने का जिम्मा पहले इसकी देखरेख के लिए जिम्मेदार निजी एजेंसी टेरासीआइएस से लेकर एनआईसी को सौंप दिया.

इस कदम का मकसद सरकार की इस शीर्ष संस्था की विशेषज्ञता का फायदा उठाना था ताकि जनता का विश्वास बहाल हो और जमीन मालिकों की संवेदनशील जानकारी सुरक्षित और जिम्मेदार ढंग से संभालना सुनिश्चित किया जा सके. धरणी के फॉरेंसिक ऑडिट का आदेश भी दिया गया है.

मिलीजुली प्रतिक्रिया

अलबत्ता विपक्षी बीआरएस के नेताओं ने इन सुधारों को 'उलटे नतीजे देने वाला' करार दिया. पार्टी के विधायक पल्ला राजेश्वर रेड्डी का कहना है कि "धरणी को भू भारती से बदलना किसानों के प्रति विश्वासघात है." वे आरोप लगाते हैं कि "कांग्रेस बेकार हो चुके पुराने तौर-तरीकों को वापस ला रही है, जिसका फायदा जमीन हड़पने वाले लोग और दूसरे अपराधी उठाएंगे." मगर रियल एस्टेट सेक्टर ने मोटे तौर पर इस कदम का स्वागत किया. तेलंगाना रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएसन के प्रेसिडेंट विजय साई मेका कहते हैं, "मौजूदा व्यवस्था बहुत ज्यादा केंद्रीकृत है और जमीन मालिकों व खासकर किसानों के लिए सुगम नहीं है. हम नए बहुस्तरीय अपील तंत्र की सराहना करते हैं, जिससे कई असली जमीन मालिकों को अपने सामने आ रही परेशानियों का तुरत-फुरत समाधान मिलेगा."

फिर भी कई डेवलपर आगाह करते हैं कि इस व्यवस्था की कामयाबी सुनिश्चित करने के लिए आगे के कदम उठाने की जरूरत है. विवाद कम करने और लंबे वक्त की मुकदमेबाजी घटाने के लिए गांवों के राजस्व और सर्वे अभिलेखों को व्यापक रूप से अपडेट करना बहुत जरूरी है. अपनी ओर से सरकार ने भविष्य की चुनौतियों के खिलाफ लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर भू अभिलेखों के प्रकाशन और परिरक्षण के साथ दोहरे—मैनुअल और डिजिटल—रिकॉर्ड के रखरखाव की प्रतिबद्धता जताई है. अतीत की गलतियों की रामबाण दवा के रूप में लाए गए भूमि सुधारों के लिए इससे कम कुछ भी काफी न होगा.

सिरे से बदलाव

भू भारती प्रणाली न केवल धरणी की खामियां दूर करेगी, बल्कि प्रौद्योगिकी और शासन को भी एकीकृत करेगी

> सरलीकृत प्रक्रियाएं धरणी पोर्टल में मॉड्यूल की संख्या 33 से घटाकर भूमाता पोर्टल में सिर्फ छह कर दी गई है, जिससे लोगों, खासकर किसानों के लिए नेविगेशन में आसानी होगी.

> विस्तृत भूमि रिकॉर्ड मैनुअल पाहणी (ग्राम भूमि रजिस्टर) प्रणाली, जिसे एक कॉलम तक सीमित कर दिया गया था, को 11-कॉलम प्रारूप से बदल दिया गया है. इसमें व्यापक भूमि रिकॉर्ड विवरण की व्यवस्था है.

> स्पष्ट सीमांकन संपत्ति पंजीकरण के दौरान सर्वेक्षण मानचित्रों को अनिवार्य रूप से शामिल करना सीमा विवादों और दोहरे पंजीकरण को हल करने के लिए उपयोगी होना चाहिए.

> विशिष्ट पहचान आधार कार्ड की तरह, भूधार कार्ड हर भू-खंड के लिए एक विशिष्ट पहचान संख्या देगा. इससे स्पष्ट स्वामित्व विवरण तय होगा और निर्बाध लेनदेन की सुविधा होगी.

> दोहरी रिकॉर्ड-कीपिंग मैनुअल भूमि रिकॉर्ड सटीकता को बढ़ाने और डेटा के नुक्सान को रोकने के लिए डिजिटल डेटाबेस के साथ बनाए रखा जाएगा.

> निवारण तंत्र यह प्रणाली शिकायत समाधान को विकेंद्रीकृत करती है, स्थानीय अधिकारियों को विवादों को तेजी से निबटाने के लिए अधिकृत करती है; साथ ही बढ़े हुए मामलों के लिए दो-स्तरीय अपील प्रणाली भी पेश करती है.

लालफीताशाही की वजह से लटके मामले

धरणी पोर्टल ने भूमि रिकॉर्ड सुव्यवस्थित करने के बजाए अराजकता पैदा कर दी

9,24,000 मालिकाना हक के आवेदन लटके हैं.

27.2 लाख एकड़ जमीन निषिद्ध सूची में डाल दी गई. उसके लेनदेन पर रोक.

18.3 लाख एकड़ जमीन के लेनदेन अधूरे डिजिटल दस्तखतों की वजह से रुके.

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