आम तौर पर शैंपू का उपयोग लोग बालों को धोने और उन्हें आकर्षक बनाने के लिए करते हैं लेकिन रायबरेली के कचनवां गांव के रहने वाले आनंद मिश्र के खेतों में लगे नींबू के लिए यही शैंपू प्राणरक्षक की भूमिका में हैं. आनंद ने शैंपू का उपयोग करके नींबू के पौधे को शुरुआत में नष्ट होने से बचाया और रायबरेली में 200 क्विंटल नींबू की पैदावार लेकर एक बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे.
रायबरेली के सिविल लाइंस चौराहे से परसदेपुर की तरफ जाने वाली सड़क पर करीब 15 किलोमीटर चलने के बाद शिवगुलाम का पुरवा तिराहे से एक पतली सड़क कचनवां गांव को जाती है. आनंद अब इस गांव की पहचान बन गए हैं. उन्हें यहां के लोग 'लेमन मैन' के नाम से पुकारते हैं. गांव के बाहर पहुंचते ही गेहूं और धान के खेतों के बीच एक हेक्टेयर जमीन में खड़े नींबू के पेड़ दूर से ही ध्यान खींच लेते हैं.
एक गरीब परिवार में जन्मे आनंद ने 2004 में मेरठ की एक निजी यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (बीबीए) का कोर्स पूरा करके कई मल्टीनेशनल कंपनियों में मैनेजर के पद पर काम किया. पर उसमें इनका मन बहुत रमा नहीं. 2016 में अचानक नौकरी छोड़कर वे यहीं अपने गांव आ गए. वे बताते हैं, "कंपनी में कुछ नया करने को नहीं था. इसलिए 90,000 रु. महीने की नौकरी छोड़ अपने गांव आ गया. मेरे पास करीब एक हेक्टेयर की खेती थी. उसी में कुछ नया करने की सोची."
गांव और आसपास के किसान गेहूं, चावल, चना, मटर की परंपरागत खेती करते थे. शुरू में आनंद ने भी धान, गेहूं और सरसों की खेती की लेकिन ज्यादा मेहनत के बाद भी साल भर में 50,000 रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाए. तब आनंद ने व्यावसायिक खेती में हाथ आजमाने की तैयारी की. उन्होंने प्रतापगढ़ में आंवला, मलीहाबाद में आम, फतेहपुर में केला और बाराबंकी में पिपरमिंट की खेती के बारे में जानकारी हासिल की. उसी दौरान वे लखनऊ की मोहिबुल्लापुर और दुबग्गा और रायबरेली की सब्जी मंडी भी गए. वहां पता चला कि नींबू गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से आता है.
आनंद ने नींबू की खेती करने की सोची. इसकी तकनीक जानने के लिए रायबरेली के कृषि विज्ञान केंद्र के साथ गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और नागपुर के प्रगतिशील नींबू किसानों से संपर्क किया और बारीकियां सीखीं. नागपुर और वाराणसी की नर्सरी से नींबू के पौधे मंगवाकर उन्होंने एक हेक्टेयर जमीन पर लगाए. इससे पहले खेत में ढैंचा के बीज की खाद डालकर उसे तैयार किया. पशुओं से बचाने के लिए बाउंड्री बनाई. शुरू में नींबू के 400 पौधे लगाए. इस सब में करीब पांच लाख रुपए खर्च हो गए. लेकिन मेहनत के बाद उम्मीद के मुताबिक फसल नहीं आई.
कुछ पौधों में कीड़े लग गए तो कइयों में फल ही न आए. जो नींबू निकले उन्हें भी मंडी में कोई व्यापारी लेने को तैयार न था क्योंकि यह 'थाई सीडलेस' यानी बिना बीज वाली थी. इस पर कुछ नए प्रयोगों के साथ कागजी नींबू उगाने की सोची. नागपुर से कागजी नींबू और अन्य वैरायटी के पौधे मंगाए. क्रलड इरिगेशन की जगह ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया. प्रति पौधा 5 से 10 किलो कंपोस्ट खाद डाली.
दूसरे प्रदेशों में नींबू के पौधे मॉनसून में रोपे जाते थे. आनंद ने इन्हें जाड़े में लगाना शुरू किया. पत्तियों को कीड़ों से बचाने को साल में दो बार विशेष ढंग से कीटनाशक का छिड़काव बारिश के बाद और मार्च के महीने में किया. मेहनत और नवाचार काम आया. अब आनंद यूपी में सबसे ज्यादा नींबू उगाने वाले किसान हैं. इस बार उन्होंने 200 क्विंटल से ज्यादा नींबू पैदा किए, जो यूपी ही नहीं मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान समेत दूसरे कई राज्यों में पहुंच रहे हैं. वे थाई सीडलेस, एनआरसीसी-8, एनआरसीसी-7, साई शरबती, प्रमालिनी, मेक्सिकन जैसी प्रजातियों के अलावा कुंभकाट सरीखी मुस्लिम देशों में उगाई जाने वाली वैरायटी भी पैदा कर रहे हैं.
सफलता का मंत्र
"खेती की जमीन के 30 फीसदी हिस्से पर बागवानी हमेशा फायदा दिलाती है."
शौक
खेती और बागवानी में नई युक्तियों/तकनीकों की खोज करना
उपलब्धि
वर्ष 2018 और 2021 में यूपी सरकार ने सम्मानित किया