चार दिसंबर को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेवा देते हुए शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) नेता सुखबीर सिंह बादल को अप्रत्याशित खतरे का सामना करना पड़ा. सेवादारों वाली नीली वर्दी पहने और हाथ में भाला लिए सुखबीर व्हीलचेयर पर बैठकर (उनके एक पैर में फ्रैक्चर है) सिखों के सबसे पवित्र मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहरेदारी कर रहे थे. तभी एक पूर्व खालिस्तानी आतंकवादी नारायण सिंह चौड़ा ने गोली चला दी जो स्वर्णमंदिर के द्वार पर लगी. वहां मौजूद लोगों के तत्काल दखल ने हमले को विफल कर दिया और चौड़ा को काबू करके पुलिस के हवाले कर दिया गया.
सुखबीर को धार्मिक कदाचार के लिए दो दिन पहले सुनाई गई सजा के तौर पर स्वर्ण मंदिर में सेवादारी के लिए तैनात किया गया था. वे सजा सुनाए जाने के दौरान जब सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त के सामने खड़े थे तो उनके चेहरे से मायूसी टपक रही थी और आंखों से आंसू बह रहे थे. यह दर्शा रहा था कि वे पश्चाताप कर रहे हैं. उनके साथ अन्य वरिष्ठ अकाली नेता—वफादार और बागी दोनों—मौजूद थे, जो अपनी पार्टी के 2007-17 के शासन के दौरान सिख समुदाय को हिलाकर रख देने वाली घटनाओं में मिलीभगत या चुप्पी साधने के लिए इसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे थे.
उनके सामूहिक अपराधों में विवादित डेरा प्रमुख नेता गुरमीत राम रहीम को धार्मिक माफी दिलाना, 2015 की बेअदबी की घटनाओं को सही ढंग से न सुलझाना और 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' पुलिसवालों का समर्थन करना शामिल था. प्रायश्चित के तौर पर तनखैया नेताओं को सेवादारी का निर्देश दिया गया, जिसमें जूते पोंछना, शौचालय साफ करना और पंजाब के पांच प्रमुख गुरुद्वारों में पहरा देना शामिल है.
सिख धर्मगुरु सजा सुनाने के दौरान दोहरी चुनौती का सामना कर रहे थे: एक तो उन पर अपनी संस्थाओं की साख फिर से कायम करने की जिम्मेदारी थी, वहीं उन्हें अकाली दल के अस्तित्व पर आए संकट को भी देखना था, जिसने हालिया वर्षों में अपना जनाधार बुरी तरह घटते देखा है. हालांकि, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह की तरफ से उनके कदाचार को सार्वजनिक तौर पर सामने रखना सुखबीर के पहले से डांवाडोल राजनैतिक करियर के लिए और भी मुश्किल बन गया है.
सिख धर्मगुरुओं ने शिरोमणि अकाली दल की कार्यसमिति को अध्यक्ष पद से सुखबीर का इस्तीफा स्वीकारने का निर्देश भी दिया है, जो उन्होंने 16 नवंबर को लगातार बढ़ते दबाव के बीच दिया था. जत्थेदार ने यहां तक कहा कि मौजूदा अकाली नेतृत्व अपनी वैधता खो चुका है और उसे पूरी तरह से बदला जाना चाहिए. इसके लिए एक समिति भी बनाई गई है, जिसमें एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी और जरनैल सिंह भिंडरांवाले के करीबी सहयोगी अमरीक सिंह की बेटी सतवंत कौर समेत ऐसे लोग शामिल हैं, जो सुखबीर के हितों की रक्षा के पक्षधर नहीं हैं.
बादल से पहले मास्टर तारा सिंह, जे.एस. तलवंडी और सुरजीत सिंह बरनाला जैसे नेताओं को ऐसी धार्मिक आलोचना का सामना करना पड़ा था और उन्हें राजनैतिक तौर पर खुद को फिर से स्थापित करने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था. अगला विधानसभा चुनाव फरवरी 2027 में होना है. इसलिए, सुखबीर के पास समय तो पर्याप्त है लेकिन उनकी चुनौतियां काफी कड़ी हैं.
पार्टी को फिर मजबूती से खड़ा करने के प्रयासों के बीच एक बड़ी चुनौती कट्टरपंथी तत्वों को पंथिक मुख्यधारा पर कब्जा करने से रोकना भी है. अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा जैसे कट्टरपंथियों का लोकसभा चुनाव जीतना इसी खतरे को रेखांकित करता है. हालांकि हाल ही हुए विधानसभा उपचुनावों में एसएडी के मैदान से बाहर रहने के कारण मूलत: अकाली मतदाता सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के पाले में चले गए. बादल परिवार पंजाब में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए दशकों से उदार सिखों के लिए जगह पक्की करने के काम में लगा था. यही वजह है कि कट्टरपंथी बादल परिवार के खिलाफ दंडात्मक उपायों पर जोर दे रहे थे.
सिख धर्मगुरुओं की कार्रवाई कट्टरपंथियों की मांगों के अनुरूप ही नजर आती है, जिसमें दिवंगत प्रकाश सिंह बादल को दी गई पंथ रतन फख्र-ए-कौम की उपाधि रद्द करना और पूर्व अकाल तख्त प्रमुख गुरबचन सिंह को मिली सुविधाएं वापस लेना शामिल हैं.
आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे चौड़ा का सुखबीर पर हमला करना भी कट्टरपंथी एजेंडा दर्शाता है. विडंबना है कि 1997-2002 के दौरान बादल सरकार के प्रयासों से ही चौड़ा पाकिस्तान स्थित ठिकाने से भारत लौटा था. यह घटना अस्थिरता फैलाने वाली ताकतों के उभरने की आशंका को भी बढ़ाती है.
कट्टरपंथ की छाया
> सुखबीर सिंह बादल की धार्मिक निंदा सिख संस्थाओं और पंथिक राजनीति को कमजोर करने को लेकर बादल परिवार को जिम्मेदार ठहराने के व्यापक प्रयासों को दर्शाती है.
> सिख धर्मगुरुओं ने कट्टरपंथियों की मांगों पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है, जैसे कि दिवंगत प्रकाश सिंह बादल की मानद उपाधि (पंथ रतन फख्र-ए-कौम) को रद्द करना और अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार गुरबचन सिंह के विशेषाधिकार वापस लेना.
> जरनैल सिंह भिंडरांवाले के करीबी अमरीक सिंह की बेटी सतवंत कौर को धर्मगुरुओं की तरफ से बनाई गई उस समिति में जगह दी गई है जो शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख पद से सुखबीर बादल के इस्तीफे के बाद सदस्यता अभियान और नए चुनावों की निगरानी करेगी.
> एक पूर्व खालिस्तानी आतंकवादी का सुखबीर पर हमला करना पंजाब की सिख राजनीति में उदारवादी प्रभाव खत्म करने के कट्टरपंथी तत्वों के एजेंडे को रेखांकित करता है.