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कैसे शैलेंद्र सिंह के गौशाला में 4 जोड़ी बैल की मदद से पैदा होती है 50 KWH बिजली?

1989 बैच के प्रांतीय पुलिस सेवा यानी PPS अधिकारी शैलेंद्र सिंह इन दिनों गोसाईंगंज में एक गौशाला चला रहे हैं. इस गौशाला में उन्होंने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे 4 जोड़ी बैल एक घंटे में 50 किलोवाट बिजली पैदा करती है.

38th Anniversary/Technology se tarakki/ energy 
शैलेंद्र सिंह
अपडेटेड 2 जनवरी , 2025

लखनऊ में गोसाईंगंज को मोहनलालगंज से जोड़ने वाली सड़क पर पड़ने वाली नई जेल के पीछे तीन एकड़ जमीन पर बनी गोशाला और यहां लगी मशीनें अपनी ही बिजली से रौशन हैं. यह बिजली उन बैलों के जरिए पैदा हो रही है जो ट्रेडमिल नुमा मशीन पर चल रहे हैं. इस अनोखे तरह के सिस्टम को 'नंदी ऊर्जा’ नाम दिया गया है.

इस अनोखी मशीन से चार बैलों की जोड़ी एक घंटे में 50 किलोवाट बिजली पैदा करती है. यह मशीन शैलेंद्र सिंह ने ईजाद कर पेटेंट कराई है. शैलेंद्र कोई इंजीनियर नहीं बल्कि यूपी प्रांतीय पुलिस सेवा (पीपीएस) के 1989 बैच के पूर्व अधिकारी हैं. वे चर्चा में उस वक्त आए थे जब जनवरी, 2004 में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के पद पर लखनऊ में तैनाती के दौरान इन्हें मुखबिरों से सूचना मिली थी कि सेना का एक भगोड़ा लाइट मशीन गन (एलएमजी) लेकर भागा है.

उसे मुख्तार अंसारी को बेचने की तैयारी है. इसके बाद शैलेंद्र ने भगोड़े को पकड़कर एलएमजी (लाइट मशीनगन) बरामद की थी. शैलेंद्र का दावा था कि एलएमजी मुख्तार अंसारी के पास से बरामद हुई थी. इसी आरोप के चलते मुख्तार के खिलाफ 'पोटा’ के तहत मामला दर्ज कराया गया था. इसके बाद शैलेंद्र मुलायम सरकार के निशाने पर आ गए थे क्योंकि विधायक के तौर पर मुख्तार सपा को समर्थन कर रहा था. सरकार के दबाव में आकर शैलेंद्र ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद शैलेंद्र समाजसेवा करने लगे.

उन्होंने राजनीति में भी भाग्य आजमाया. 2009 के लोकसभा चुनाव में शैलेंद्र ने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चंदौली सीट से चुनाव भी लड़ा था. चुनाव प्रचार के दौरान शैलेंद्र ने गावों में निराश्रित गोवंश की समस्या देखी. शैलेंद्र बताते हैं, ''चुनाव प्रचार के दौरान गांव-गांव घूमने के दौरान मैंने पाया कि किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम नहीं मिल रहा. गरीबी के कारण किसान गाय-बैल को निराश्रित छोड़ देते थे.’’

इसके बाद से ही शैलेंद्र ने कुछ ऐसा करने की सोची जिससे किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके. शैलेंद्र ने गोसाईंगंज में जमीन खरीदी और यहां पर रह कर प्राकृतिक खेती और क्लीन एनर्जी-ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में नए प्रयोग करने शुरू किए. वे बताते हैं, ''दिसंबर 2017 में मैंने गाय के संरक्षण पर एक जनहित याचिका हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल की थी.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मुझसे ही आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या के समाधान के बारे में पूछा. इसके बाद खेती में गाय और बैलों के उपयोग का एक टिकाऊ तंत्र बनाने के प्रयोग शुरू किए. इसका परिणाम ही नंदी ऊर्जा के रूप में सामने आया है.’’

फरवरी, 2020 में शैलेंद्र ने पहली बार आठ बैलों से 20 किलोवाट बिजली पैदाकर इसका डेमो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय के अधिकारियों के सामने दिया था. अब राजस्थान और देश के कुछ अन्य राज्य भी शैंलेंद्र से नंदी ऊर्जा के प्रोटोटाइप मांगकर इस प्रोजेक्ट को अपने यहां लागू करने की तैयारी कर रहे हैं.

नवाचार 
शैलेंद्र ने ट्रेडमिल नुमा 'कन्वेयर सिस्टम’ को एक खास तरह के गियर सिस्टम से जोड़ा है, जो 'कन्वेयर’ से मिलने वाले 30 'रेवॉल्यूशन पर मिनट‘ (आरपीएम) के चक्कर को 1,500 आरपीएम में तब्दील कर देता है. गियर सिस्टम बाजार में मिलने वाले सामान्य 'अल्टरनेटर’ से जुड़ा है जो 1,500 आरपीएम पर बिजली पैदा करता है. इस अनोखी मशीन 'नंदी ऊर्जा’ से चार बैलों की जोड़ी एक घंटे में 50 किलोवाट बिजली पैदा कर देती है.

‘‘नंदी ऊर्जा न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाते हुए उनकी आय में कई गुना इजाफा करने में सक्षम है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान दे रही है.’’
- शिखा सिंह, गोवंश संरक्षण की दिशा में काम कर रही समाजसेवी

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